Tuesday, February 17, 2009

ये राज ठाकरे कौन है

कवि राजेश सकलानी की कविताओं पर लिखा आलेख उनकी कविता पुस्तक सुनता हूं पानी गिरने की आवाज की कविताओं को ध्यान में रखकर लिख गया था पिछले वर्षो में लिखी गईं उनकी कुछ कविताएं यहां प्रस्तुत हैं :


राजेश सकलानी


पहाड़ों का बयान


हम तो देवता हैं आदि काल से
जरा देखिए हमारा कद
जंगल के जंगल है हमारी जमींदारी में
पहरेदारी में है खूंखार चट्टाने

हमारी जेबों से निकलती है
चमकीली नदियां
बहा कर ले जा सकती हैं
कुछ भी वे अपने आवेग से
अपनी जान की हिपफाजत आज चाहें
तो कर लें

हमसे किया ही नहीं जा सकता
कोई भी सवाल
हां हमारी प्रशंसा में लिखे जा सकते हैं
गीत


पुश्तों का बयान

हम तो भाई पुश्तें हैं
दरकते पहाड़ की मनमानी
संभालते है हमारे कन्धें

हम भी है सुन्दर, सुगठित और दृढ़

हम ठोस पत्थर है खुरदरी तराश में
यही है हमारे जुड़ाव की ताकत
हम विचार और युक्ति से आबद्ध है

सुरक्षित रास्ते हैं जिन्दगी के लिए
बेहद खराब मौसमों में सबसे बड़ा भरोसा हैं
घरों के लिए

तारीफों की चाशनी में चिपचिपी नहीं हुई है
हमारी आत्मा
हमारी खबर से बेखबर बहता चला आता
है जीवन।

ये राज ठाकरे कौन है

ये राज ठाकरे कौन है?
पता नहीं, मै तो मनु ठाकरे को जानता हूँ
अन्धेरी वैस्ट में रहता है
और वह कोई मशहूर आदमी नहीं है

सुबह आठ चालीस पर निकलता है घर से
लोकल पकड़ने के लिए
बीस मिनट लगते हैं उसे गलियों से गुजरने में
चलते-चलते ही कर लेता है अपनी चिन्ताएं
थोड़ा घबराहट तो बराबर बनी रहती है
कितने से टकराता है इसका कोई हिसाब नहीं

धीमे से बोलता है वह जिससे एक दीर्घ और स्थाई
आवाज बनती है
रात में एक समकेत सांस की तरह जो धीमें से
सुनाई पड़ती है
किन्हीं बिरले क्षणों में जागती है करूणा उसके भीतर
वर्षों तक जो बनी रहती है तहों में
और देखो कितना अलग है वो गिरे हुए लोगों से

गिरा हुए बोले तो?
वही जिन्हं सूझता हीनहीं अपनी वर्चस्वता के सिवा कुछ भी
भले ही पफूंकना पड़े उसे किसी का घ्ार
और खुलजाता रहता है दूसरे की तलाश में
शत्रु बनाने के लिए

दूसरा बोले तो ?
वही जैसे दूसरे मजहब, दूसरी जाति, दूसरे नगर
दूसरे मौहल्ले यानि कि कोई भी दूसरा जैसा कि आप ही
जो बाजू में खड़े हो

लेकिन वे कौन हैं जो बदहवास हो रेलों में भर कर
शहर छोड़ कर जा रहे हैं ?

ये कामकाजी लोग है भईया
वही हमेशा के दूसरे
पिफर भी ये राज ठाकरे कौन है?
होगा कोई
वक्त का पहिया, उसे भी सबक सिखाएगा
लेकिन ये वक्त का पहिया कौन चलाता है ?
जैसे ये मजदूर जो शहर छोड़ कर
बाहर की ओर भाग रहे हैं।

ब्लैंक कॉल

निकलो जी बाहर भीतर बड़ी घुटन है
लड़के निकल पड़ते हैं जहाँ कहीं सड़कों पर
दोस्तों के बीच जबरन मुस्कराते
गुटखा तमाखू पफाँकते बैचेनियों में
बीते जमाने के लड़कों से अध्कि चुस्त
लेकिन कहीं अधिक निराश
गलियों में पान की दुकानों की तरह खुले
लुटेरे कम्प्यूटर जैसे शिक्षण संस्थानों में आते या जाते

बढ़ती जाती है भीड़ बेकारों की रोज
बढ़ता जाता है कर्ज घरों में
बैंक प्रबन्धक बुलाते हैं उनके हड़बड़ाए पिताओं को
कर्जे के लिए बशर्ते वे आयकर का रिटर्न
दाखिल करते हो
भले ही बची तनख्वाह में पेट भर पाना
हो मुश्किल

कर्ज में ली गई मोटर साइकिल में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
की तरह उदंड रफ्रतार में भागते
कभी वे घायल हो निर्मम अस्पतालों के
बन्ध्क बन जाते हैं
दूर तक नजर नहीं आता रोजगार का रास्ता
बैंकों, सरकारी दफ्रतरों और उपक्रमों से निकाल
बाहर किए जा रहे हैं परिवार का बोझ उठाने वाले

सपनों के लिए छटपटाते वे पी।सी।ओ। में
पफोन नम्बर लगाते हैं और तुरन्त लाइन काट देते हैं
जब उधर से जिन्दगी हैलो कहती है

5 comments:

naveen kumar naithani said...

yah bahut umda kaam kiyaa hai.kam se kam gandghivaadi to nahin hi sidh hote hain.

अजेय said...

achhi kavitayen...

डॉ .अनुराग said...

आपसे अनुरोध है एक बार में दो ही कविता दिया करे ,पाठको के लिए आसानी हो जाती है

सुशील छौक्कर said...

ये राज ठाकरे कौन है, इसे तो परसो ही पढा था शायद कथादेश में। पढकर अच्छा लगा था। सच आप अच्छी कविताएं पढवाते है। बहुत बहुत शुक्रिया आपका।

Anonymous said...

Rajesh ji ki deergha khamoshi ke baad unki nai kavitayein parhna bahut achcha lag raha hai. Kavitayein bhi ek naye tevar mein hain. Raj thakre kaun hai sheershak kavita jo kathadesh mein bhi prakashit hui hai, bahut mahatwapurna hai. Badhai aur shubhkamnayein.