Friday, June 5, 2009

रात किसी पुरातन समय का एक टुकड़ा है




कहानी: मर्सिया
लेखक: योगेन्द्र आहूजा
पाठ : विजय गौड
पाठ समय- 1 घंटा 17 मिनट

मैंने अन्यत्र लिखा था कि योगेन्द्र की कहानियां अपने पाठ में नाटकीय प्रभाव के साथ हैं। उनमें नैरेटर इस कदर छुपा बैठा होता है कि कहानियों को पढ़ते हुए सुने जाने का सुख प्राप्त किया जा सकता है। मर्सिया में तो उनकी यह विशिष्टता स्पष्ट परिलक्षित होती है। योगेन्द्र की कहानियों पर पहले भी लिखा जा चुका है। इसलिए अभी उन पर और बात करने की बजाय प्रस्तुत है उनकी कहानी मर्सिया का यह नाट्य पाठ। मर्सिया को अपने कुछ साथियों के साथ, उसके प्रकाशन के वक्त नाटक रूप में मंचित भी किया जा चुका है।

कथा पाठ में कई ज्ञात और अज्ञात कलाकारों के स्वरों का इस्तेमाल किया गया है। सभी का बहुत बहुत आभार। कुछ कलाकार जिनके बारे में सूचना है, उनमें से कुछ के नाम है - उस्ताद राशिद खान, पं जस राज महाराज, सुरमीत सिंह, पं भीमसेन जोशी ।



कहानी को यहां से डाउनलोड किया जा सकता है

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प ....हमें तो शीर्षक भी खींच लाया था जनाब......आप कहाँ है वैसे इन दिनों ?

परमजीत सिहँ बाली said...

सराहनीय प्रयास।डाउनलोड कर ली है।आभार।

दिनेशराय द्विवेदी said...

चलो आप की भी हाजरी लगी। नाट्य रूप देखने के उपरांत ही कुछ टिप्पणी की जा सकती है।

Vineeta Yashsavi said...

download hone mai thori pareshani hui per jub suna to sari pareshaniya gayab ho gayi...bahut achha raha ise sunna...

Vineeta Yashsavi said...

download hone mai thori pareshani hui per jub suna to sari pareshaniya gayab ho gayi...bahut achha raha ise sunna...

अजेय said...

paath nahi sun paa raha hoon. sound me distortion hai.....