Tuesday, July 21, 2009

उम्मीदों की एक नई पहल

अभी अभी एक मेल प्राप्त हुई। एक ऎसी खबर जिसके सच होने की कामना ही की जा सकती है।

प्रिय मित्र,

कुछ समय पहले सुप्रतिष्ठित पत्रिका पहल कुछ समय के लिए स्थगित कर दी गई थी। संपादक ज्ञानरंजन की ओर से की गई इस घोषणा को लेकर साहित्य एवं बौद्धिक जगत में अच्छा-ख़ासा विवाद भी उठ खड़ा हुआ था। पहल के चाहने वालों को पत्रिका का इस तरह अचानक बंद होना बेहद अखरा था।

लेकिन अब खुशी की बात ये है कि पहल को फिर से शुरू करने की योजना बन रही है। इस ख़बर को लेकर आप क्या सोचते हैं ये संपादक ज्ञानरंजन और पत्रिका को फिर से शुरू करने वाले लोग जानना चाहते हैं। अत: आपसे निवेदन है कि अपनी विचार हमें फौरन info@deshkaal.com पर भेजें।

हम आपकी प्रतिक्रिया का व्यग्रता से इंतज़ार कर रहे हैं, इसलिए भूलें नहीं।

धन्यवाद एवं शुभकामनाएं।
संपादक
www.deshkaal.com

8 comments:

सतीश पंचम said...

सुना है बंसवारी में पीले बांस ही बचे हैं, एकाध हंस जैसे हरियर बांस दिख जाते है। पहल के फिर से शुरू होने का मतलब हरे बांस की संख्या में बढोत्तरी माना जायगा। और नई कोंपले भी फूंटेंगी, सो अलग।

पहल शुरू हो, मेरी ओर से शुभकामना।

अनूप शुक्ल said...

पहल जारी रहे यही कामना है!

Udan Tashtari said...

यह तो बड़ा शुभ समाचार है. मेरी ओर से शुभकामनाऐं.

शरद कोकास said...

इस वक़्त तो साहित्य जगत के लिये दुनिया का कोई भी बडे से बडा खुशी का समाचार इस समाचार से बडा नहीं हो सकता ज्ञान जी को हम सब की उमर लग जाये.

अजेय said...

मेरे लिए यह " सपनो के देश" से आई खबर जैसी है. मैं जानता हूं कि सपने सच नही होते. फिर भी दिल बहलाने के लिए खबर बुरी नहीं है. ज्ञानरंजन जी तक मेरी प्रतिक्रिया ज़रूर पहुंचाईएगा विजय भाई. अगर ये खबर सच है , तो मैं नराज़ हूं कि मुझे इस बात की खबर क्यों नहीं?
मालूम हो कि बीता साल मैने घोर डिप्रेशन मे बिताया है . और पहल का बन्द होना उस्के अनेक कारणों मे से एक था.

सुशीला पुरी said...

hm to isi intjaar me the......

Ashok Kumar pandey said...

पहल का इंतज़ार बेसब्री से रहेगा।

Amit Kumar Yadav said...

...Apke munh men ghee-shakkar.