Thursday, May 13, 2010

खली्ल जिब्रान की कविता

बच्चे


तुम्हारे बच्चे तुम्हारे नहीं हैं
वे जिन्दगी की खुद की चाहत के बच्चे और बच्चियां हैं
वे तुम्हारे पास आये हैं पर वे तुमसे नहीं आये हैं
और हालांकि वे तुमसे आये हैं पर तुमसे बावस्ता नहीं हैं


तुम उन्हें अपना प्यार दे सकते हो पर अपने विचार नहीं.
उनके पास अपने विचार हैं.
तुम उनके शरीर को घर दे सकते हो पर उनकी आत्मा को नहीं.
उनकी आत्मा आने वाले कल के घर में घूमती है जिसे तुम नहीं देख सकते,अपने सपनों में भी नहीं.
तुम उनके जैसा होने की कोशिश कर सकते हो,पर उन्हें अप्ने जैसा नहीं बना सकते.
जिन्दगी पीछे नहीं जाती और न ही बीते कल में ठहरती है.

तुम एक धनुष हो जिससे तुम्हारे बच्चे जिन्दा तीर की तरह आगे जाते हैं .
धनुर्धर अनन्त के रास्ते पर लक्ष्य देखता है, और वह तुम्हें अपनी शक्ति के साथ खेंचता है कि तीर सीधा और दूर तलक जाये.
अपने भले के लिये अपने को धनुर्धर के हाथों में सौंप दो.
वह जिस तरह खिंचते हुए तीर से प्यार करता है, उतना ही प्यार उस धनुष से भी करता है जो स्थिर रहता है.

अनुवाद:विनीता यशस्वी

3 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा अनुवाद..आभार!



एक विनम्र अपील:

कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

Nishant said...

अच्छा लगा.
इसका अनुवाद मैं भी कर चुका हूं. कृपया देखें - http://hindizen.com/2009/05/10/children-khalil-gibran/

प्रदीप कांत said...

तुम एक धनुष हो जिससे तुम्हारे बच्चे जिन्दा तीर की तरह आगे जाते हैं .
धनुर्धर अनन्त के रास्ते पर लक्ष्य देखता है, और वह तुम्हें अपनी शक्ति के साथ खेंचता है कि तीर सीधा और दूर तलक जाये.
अपने भले के लिये अपने को धनुर्धर के हाथों में सौंप दो.
वह जिस तरह खिंचते हुए तीर से प्यार करता है, उतना ही प्यार उस धनुष से भी करता है जो स्थिर रहता है.

क्या बात है...