Saturday, May 15, 2010

खुश रहने की कला

जलेह इस्फ़हानी (१९२१-२००७) इरान की लब्धप्रतिष्ठ कवियित्री थीं.दर्जन भर से ज्यादा कविता संकलनों की बिरासत पीछे छोड़ जाने वाली ये शानदार ईरानी  नायिका अपने राजनैतिक और धार्मिक विचारों के कारण जीवन के अधिकांश साल विदेशों में बिताने को मजबूर रहीं,पर आधुनिक फारसी कविता को उनकी बहुमूल्य देन को बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है.ईरानी स्त्रियों के  हालातों को केंद्र में रख कर लिखी गयी उनकी इस  छोटी सी कविता को यहाँ पूरी दुनिया की स्त्रियों के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए..

 मैं हूँ
इसी लिए  ,मैं किसी बात  पर विचार कर सकती हूँ
मेरे  विचार  कभी सरल लग सकते हैं
तो कभी ऐसे जैसे बहुत गहरे गूढ़ विचार हों
मैं अपनी सोच का ...अपनी मर्जी का
सेनापति हूँ
मैं  जीवन के लिए संघर्ष करती हूँ
 मैं लिखती हूँ ..पढ़ती हूँ
सशक्तिकरण के
शिलालेख  
अक्षर दर अक्षर...
पंक्ति  दर  पंक्ति ....


अनुवाद एवं प्रस्तुति:
-यादवेन्द्र

2 comments:

अजेय said...

वेल्कम बेक विजय भाई.....
बहुत इंतज़ार करवाया. पर इस बीच नैथानी जी ने इसे बढ़िया से चलाया. भरत प्रसाद (नेपाल) की कुछ और चीज़ें पढ़ने का मन है.

प्रदीप कांत said...

मैं जीवन के लिए संघर्ष करती हूँ
मैं लिखती हूँ ..पढ़ती हूँ
सशक्तिकरण के
शिलालेख
अक्षर दर अक्षर...
पंक्ति दर पंक्ति ....

बढिया