Friday, March 16, 2012

महबूब जमाना और जमाने में वे

 अल्पना मिश्र हिंदी कहानी के सूची समाज में अनिवार्य रूप से शामिल नहीं हैं लेकिन वे उसकी सबसे मजबूत परम्परा का एक विद्रोही और दमकता हुआ नाम हैं। उन्हें उखड़े और बाजारप्रिय लोगों द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया जा सका। कहानी का यह धीमा सितारा मिटने वाला, धुंधला होने वाला नहीं है, निश्चय ही यह स्थायी दूरियों तक जायेगा।
अल्पना मिश्र की कहानियों में अधूरे, तकलीफदेह, बेचैन, खंडित और संघर्ष करते मानव जीवन के बहुसंख्यक चित्र हैं। वे अपनी कहानियों के लिए बहुत दूर नहीं जातीं, निकटवर्ती दुनिया में रहती हैं। आज, पाठक और कथाकार के बीच की दूरी कुछ अधिक ही बढ़ती जा रही है, अल्पना मिश्र की कहानियों में यह दूरी नहीं मिलेगी। आज बहुतेरे नए कहानीकार प्रतिभाशाली तो हैं पर उनका कहानी तत्व दुर्बल है, वे अपने निकटस्थ खलबलाती, उजड़ती दुनिया को छोड़ कर नए और आकर्षक भूमंडल में जा रहे हैं। इस नजरिए से देखे तो अल्पना मिश्र उड़ती नहीं हैं, वे प्रचलित के साथ नहीं हैं, वे ढूंढती हुई, खोजती हुई, धीमे धीमे अंगुली पकड़ कर लोगों यानी अपने पाठकों के साथ चलती हैं।
'गैरहाजिरी में हाजिर", 'गुमशुदा",'रहगुजर की पोटली", 'महबूब जमाना और जमाने में वे",'सड़क मुस्तकिल", 'उनकी व्यस्तता", 'मेरे हमदम मेरे दोस्त",'पुष्पक विमान" और 'ऐ अहिल्या" कुल नौ कहानियॉ इस संग्रह में हैं। इन सभी में किसी न किसी प्रकार के हादसे हैं। भूस्ख्लन, पलायन, छद्म आधुनिकता,जुल्म, दहेज हत्याएं, स्त्री शोषण से जुड़ी घटनाएं अल्पना मिश्र की कहानियों के केन्द्र में हैं। इन सभी कहानियों में लेखिका की तरफदारी और आग्रह तीखे और स्प्ष्ट हैं। वे अत्याधुनिक अदाओं और स्थापत्य के लिए विकल नहीं हैं। उनकी कहानियॉ अलंकारिक नहीं हैं, वे उत्पीड़न के खिलाफ मानवीय आन्दोलन का पक्ष रखती हैं और इस तरह सामाजिक कायरता से हमें मुक्त कराने का रचनात्मक प्रयास करती हैं। मुझे इस तरह की कहानियॉ प्रिय हैं।
- ज्ञानरंजन

1 comment:

कविता रावत said...

bahut badiya sarthak sameeksha prastuti...