Thursday, February 14, 2013

इच्छा: इब्बार रब्बी की कविता



 (  हमारे समय के असाधारण कवि इब्बार रब्बी की  कविताएं आप अगले दिनों में भी पढेंगे)


इच्छा. 

मैं मरूं दिल्ली की चलती हुई बस में
पायदान पर लटक कर नहीं
पहिये से कुचलकर नहीं
पीछे घसिटता हुआ नहीं
दुर्घटना में नहीं
मैं मरूं बस में खड़ा खड़ा
भीड़ में पिचक कर
चार पांव ऊपर हों
दस हाथ नीचे
दिल्ली की चलती हुई बस में मरूं मैं

अगर कभी मरूं तो
बस के बहुवचन के बीच
बस के यौवन और सौन्दर्य के बीच
कुचलकर मरूं मैं
अगर मैं मरूं कभी तो वहीं
जहां जिया गुमनाम लाश की तरह
गिरूँ मैं भीड़ में
साधारण कर देना मुझे हे जीवन !


1 comment:

Ek ziddi dhun said...

साधारण होने की जि़द वाले कवि ही असाधारण हो सकते हैं। वैसे भी दिल्ली की बसों की मारामारी से अपनी उम्र और बीमारी के बवाजूद इब्बार रब्बी का रोजबरोज का रिश्ता है।