Thursday, April 4, 2013

लिखे जाने से पहले शब्द कितने स्वतन्त्र थे:अवधेश कुमार की याद (२)

(अवधेश कुमार मूल रूप से कवि थे - हालाँकि कुछ लोग उन्हें मूलत: कलाकार मानते रहे. उनकी दो कवितायें प्रस्तुत हैं)



फूल काँच मुर्गा वगैरह

डाली से टूटने के बाद यह फूल
इतने दिन तक खिला रहा.

टूटने के बाद जरा भी नहीं खिला मैं.

काँच के ऊपर इतनी धूल जमने के बाद भी
चमक ज्यों की त्यों बनी रही काँच पर

अपनी धूल झाड़ने के बाद भी मैं रद्दी हो गया.

गर्दन कट जाने के बाद भी मुर्गा दौड़ता रहा
अकड़ के साथ-खून के फौव्वारे छोड़ता हुआ
इस बंद कमरे में.

लिखे जाने से पहले शब्द कितने स्वतन्त्र थे
लिखे जाने के तुरन्त बाद वे मेरी बात की मृत्यु हो गये.

चुपचाप मैं कोशिश करने लगा बनने की फूल
काँच,मुर्गा और शब्द वगैरह : कोई मरी हुई
चीज ताजी;आजाद रहे बहुत दैर तक

रहे बहुत देर तक मरने के बाद भी.


अब भी  

 


मुझे अब भी प्यार करना चाहिए.
मुझे अब भी प्यार करना चाहिए.
मैं अपने आप को कोंचता हूँ


मुझे अब भी अच्छी चीजों में यकीन
रखना चाहिए
मैं अब भी मानता हूँ कि
मुझे अब भी अच्छी चीजों में यकीन
रखना चाहिए

मुझे अब भी स्वप्न देखने चाहिए
मैं जानता हूँ कि
मुझे अब भी स्वप्न देखने चाहिए

मुझे अब भी कोशिश करनी चाहिए
मुझे याद है कि
मुझे अब भी कोशिश करने चाहिए.

मुझे अपने भविष्य को अब भी
ऐसे देखना चाहिए
जैसे कि मेरे पिता ने देखा था.


1 comment:

Onkar said...

खूबसूरत रचनाएँ