Wednesday, January 21, 2015

दुश्मनों से दोस्ती

दुश्मनों से दोस्ती होने लगी है ;
गहन मेरी चौकसी होने लगी है।

ज़िन्दग़ी के नाज़ उठाने लगे हैं आप;
बात चलो काम की होने लगी है ।

हाँफ़ने लगी थी अब मेरी निगाह भी;
शुक्र है कि भोर सी होने लगी है ।

हो गये हैं कान चौकन्ने से और भी;
मुखर जब से खामुशी होने लगी है ।

खटकने लगी है ग़म को बात ये साहिल;
ख़ुशी से जो वाकिफ़ी होने लगी है ।

                          प्रेम साहिल



   प्रेम साहिल पंजाबी के कवि है. उनकी यह रचना मुझे उनके द्वारा ही वाट्सअप पर संदेश रूप में प्राप्त हुई. निशचित लिप्यांतरण और अनुवाद प्रेम साहिल ने खुद किया होगा.




4 comments:

Unknown said...

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Kaunquest said...

good poem.. :)

Ahir said...

Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.

Satyaanveshi said...

Daagh Dehlvi sahab ko pranam nahin kiya?

https://rekhta.org/ghazals/ranj-kii-jab-guftuguu-hone-lagii-dagh-dehlvi-ghazals