tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post1179382777521788222..comments2024-03-29T03:47:04.949+05:30Comments on लिखो यहां वहां: बहुत बड़े अफसर की तुलना में छोटा लेखक होना बेहतर है.विजय गौड़http://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-83785864583971649832011-05-30T09:55:23.912+05:302011-05-30T09:55:23.912+05:30पलल्वी जी आपकी बात से मेरा हौसला बढ़ा। गोविंद मिश...पलल्वी जी आपकी बात से मेरा हौसला बढ़ा। गोविंद मिश्र जी ने भी यही किया। उनका उपन्यास इमारतें बंदर और..(कुछ ऐसा ही नाम है) अपने तंत्र की धज्जियां उधेड़ने वाला उपन्यास रिटायरमेंट के बाद ही लिखा था। उन्होंने उसमें प्रधानमंत्री तक को नहीं नहीं बख्शा। मैं भी कुछ चीजें तब के लिए सहेजे हुए हूं।कथाकारhttps://www.blogger.com/profile/05339019992752440339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-37170642177725698112011-05-29T12:40:38.259+05:302011-05-29T12:40:38.259+05:30बहुत बढ़िया लगा ये संस्मरण... सचमुच एक लेखक होना अ...बहुत बढ़िया लगा ये संस्मरण... सचमुच एक लेखक होना अफसर होने से ज्यादा बेहतर है! लेकिन अफसरी के साथ लेखन की अपनी समस्याएँ हैं...कई विषयों पर खुल कर लिख नहीं सकते! इसलिए ये सारे विषय मैंने रिटायर मेंट के बाद के लिए बचाकर रखे हैं! तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ज्यादा होगी...pallavi trivedihttps://www.blogger.com/profile/13303235514780334791noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-41648070259351572812011-05-26T09:51:09.074+05:302011-05-26T09:51:09.074+05:30बात बिल्कुल सही है। मैं हकीकत में यह देख भी रहा ...बात बिल्कुल सही है। मैं हकीकत में यह देख भी रहा हूं। आपकी पहचान सूरज प्रकाश है न कि उप महाप्रबंधक,सूरज प्रकाश। <br />साधुवाद।<br /><br />आपका <br />सुबोध मेहरोत्राSUBODHhttps://www.blogger.com/profile/14350655450929070266noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-17883932146216042522011-05-25T22:00:38.335+05:302011-05-25T22:00:38.335+05:30सिद्धार्थजी बता ही चुका हूं कि रिज़र्व बैंक के गवर...सिद्धार्थजी बता ही चुका हूं कि रिज़र्व बैंक के गवर्नर सहित कई बैंकों के अध्यक्ष वहां मौजूद थे1ये सारे पद राजनैतिक होते हैं।ऐसे में विशुद्घ सरकारी मंच से प्रधान मंत्री का मजाक उड़ाने वाली रचना कौन सुनना और सुनवाना पसंद करेगा। आज भी ये हिम्मत शायद ही कोई कर पाये। रचना आप तक पहुंचेगी।कथाकारhttps://www.blogger.com/profile/05339019992752440339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-6185539430423614712011-05-25T19:10:21.802+05:302011-05-25T19:10:21.802+05:30सच्चाई कुछ ऐसी ही है। अफसर का दायरा निश्चित ही बहु...सच्चाई कुछ ऐसी ही है। अफसर का दायरा निश्चित ही बहुत सीमित है।<br /><br />शरद जोशी जी का वह व्यंग्य बैंक के अधिकारियों को इतना भारी क्यों पड़ रहा था? क्या वे मान चुके थे कि वे सचमुच भ्रष्ट और नाकारे थे?<br /><br />‘पानी की समस्या’ यदि नेट पर उपलब्ध हो तो लिंक दें।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-5310644899782587022011-05-23T18:12:19.019+05:302011-05-23T18:12:19.019+05:30सूरज भाई,
बहुत ही महत्वपूर्ण संस्मरण. बात सही है....सूरज भाई,<br /><br />बहुत ही महत्वपूर्ण संस्मरण. बात सही है. अफ्सर अपनी कुर्सी से नीचे कुछ नहीं होता और मैंने ऎसे भी अफसर देखें हैं जो इसलिए लेखक बनने की जुगत में रहते हैं क्योंकि वे अफसरी की औकात जानते हैं. आपकी स्थिति को मैं समझ सकता हूं. मैंने भी यह जिन्दगी जी है और जब मौका लगा उससे मुक्त हो गया. तब मेरी नौकरी के साढ़े छः साल शेष थे. <br /><br />सही है कि बड़े अफसर के बजाय छोटा लेखक होना लाख गुना बेहतर है. <br /><br />बधाई.<br /><br />रूप चन्देलरूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-33840836983791294352011-05-23T16:34:33.783+05:302011-05-23T16:34:33.783+05:30यह एक यथार्थपरक बयान है, आपको साधुवाद; और नमन '...यह एक यथार्थपरक बयान है, आपको साधुवाद; और नमन 'पानी' सरीखी तीखी रचना लिखनेवाले श्रद्धेय जोशी जी को जिसने कितने ही नौकरशाहों के पाजामे गीले किए रखे। लेकिन बन्धुवर, देखने में तो यही आ रहा है कि बड़े प्रकाशकों और कुछेक पत्रिका-संपादकों की बदौलत वे अफसर जो पुस्तक बिकवाने और विज्ञापन दिलवाने में सहायक सिद्ध होते हैं, लेखक बने रहते हैं। न सही उम्रभर, अपने रिटायरमेंट की अन्तिम तारीख तक ही सही, वे बहुत-सी उल्लेखनीय कृतियों और कृतिकारों को छपने तक से पीछे धकेले रहते हैं।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-54282912954501237192011-05-23T13:07:36.534+05:302011-05-23T13:07:36.534+05:30सच है लेखक न तो कभी रिटायर होता है और न ही स्वर्गय...सच है लेखक न तो कभी रिटायर होता है और न ही स्वर्गयीय .......अभिनंदन!निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-56298725517025874942011-05-23T07:20:29.161+05:302011-05-23T07:20:29.161+05:30रोचक संस्मरण!रोचक संस्मरण!अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-63777257238961338032011-05-23T03:36:56.714+05:302011-05-23T03:36:56.714+05:30अच्छा लगा पढ़कर. शारद जी ने कितना सही कहा था कि ले...अच्छा लगा पढ़कर. शारद जी ने कितना सही कहा था कि लेखन से कभी रिटायरमेन्ट नहीं होता.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-66027720691695399612011-05-22T20:18:33.034+05:302011-05-22T20:18:33.034+05:30विजय
नेट पर आयी मेरी रचना पर तुम्हारा, तुम्हारे ...विजय<br />नेट पर आयी मेरी रचना पर तुम्हारा, तुम्हारे ब्लाग का और मेरे शहर का पूरा हक है। इजाज़त की बात ही नहीं है। ये मेरा अतिरिक्त सम्मान हुआ ना।<br /> कल शरदजी का जनमदिन था। इसीलिए ये रचना डाली थी।<br /> कल से ही शरदजी की बेटी नेहा ने indradhanushpatrika.com शुरू की है। उसका लिंक दोगे तो हमें अतिरिक्त सुख मिलेगा।<br />प्रचार भी करना। <br />मेरे शहर में सब मजे में हो्ंगे।<br /> जुलाई में आना हो सकता है।कथाकारhttps://www.blogger.com/profile/05339019992752440339noreply@blogger.com