tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post179423256219412170..comments2024-03-29T03:47:04.949+05:30Comments on लिखो यहां वहां: स्थानिकता की तस्वीर भू-भाग की विविधता में संभव होती हैविजय गौड़http://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-27661137216082043912012-03-15T06:59:58.568+05:302012-03-15T06:59:58.568+05:30भू माफ़िया हर जगह हावी हैं छल-छदम से। अच्छी पोस्ट!भू माफ़िया हर जगह हावी हैं छल-छदम से। अच्छी पोस्ट!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-55052794354546532002012-02-23T12:16:33.976+05:302012-02-23T12:16:33.976+05:30अपने देहरादून या शंकरपल्ली के हवाले से जो सवाल उठा...अपने देहरादून या शंकरपल्ली के हवाले से जो सवाल उठाये हैं वे इस देश में विकास के माडल का सम्पूर्ण स्वरुप है न कि कोई इकलौता उदाहरण...आपके आस पास ही स्थित रूडकी में दो स्तरों पर वही सब कुछ होता रहा है जो देहरादून में..एक स्तर पर रूडकी विश्वविद्यालय का विपन्न राज्य के चंगुल से निकल कर केंद्र सरकार का आई आई टी बन जाना और दूसरा नए राज्य का औद्योगिकीकरण. नए -- जरुरी और गैर जरुरी -- निर्मित भवन विकास के अनिवार्य पैमाने हैं आम तौर पर जिनका स्थानिक संस्कृति और परंपरा से छत्तीस का आंकड़ा होता है. आज की तारीख में कोई भी अधिकारी उस दर्जे का सक्षम और होशियार माना जाता है जिस दर्जे के खर्चे वो कर सकता है..चाहे ये अच्छे भले पुराने निर्माण को तोड़ कर कुरूप और अनुपयोगी इमारतें ही क्यों न हों. इसी प्रकार नए राज्य के औद्योगीकरण के नाम पर बेहद उपजाऊ खेतों और बागों के स्थान पर कारखाने खड़े किये जाने का सिलसिला थम नहीं रहा है....नयी चमचमाती बड़ी गाड़ियाँ, होटल और बार इस संस्कृति के प्रतिउत्पाद हैं...विजय भाई,आपने बड़ा ही मौजूं सवाल खड़ा किया है...शुक्रिया.<br /> यादवेन्द्र <br /> <br /> <br />.विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-56150177030124108902012-02-19T19:57:14.267+05:302012-02-19T19:57:14.267+05:30बहुत महत्वपूर्ण बात उठाई है. विकास के पूंजीवादी मा...बहुत महत्वपूर्ण बात उठाई है. विकास के पूंजीवादी माडल से उपजी संवेदनहीनता का एक और प्रमाण देहरादून की चलरौता रोड के विध्वंस के साथ धराशायी हुई बहुत सी जगहों के बीच में हाल ही में वहां गया तो अपना टिप-टाप ढूंढा किया .इस दश्त में एक शहर था...naveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.com