tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post2702307172382818163..comments2024-03-29T03:47:04.949+05:30Comments on लिखो यहां वहां: उत्तराखण्ड में भाषा-बोलीविजय गौड़http://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-26666738683831370202012-01-26T14:19:23.378+05:302012-01-26T14:19:23.378+05:30Anonymous noreply-comment@blogger.com
10:11 PM (...Anonymous noreply-comment@blogger.com<br /> <br />10:11 PM (16 hours ago)<br /> <br />to me<br />Anonymous has left a new comment on your post "उत्तराखण्ड में भाषा-बोली":<br /><br />A topic near to my heart thanks, ive been wondering about this subject for a while.विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-33327117337992012352011-03-23T12:04:35.529+05:302011-03-23T12:04:35.529+05:30सुंदर प्रस्तुति ..
कभी समय मिले तो http://shiva12...सुंदर प्रस्तुति .. <br />कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें .फोलोवर बनकर उत्सावर्धन करें .. धन्यवाद .शिवाhttps://www.blogger.com/profile/14464825742991036132noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-18642353560501562622011-03-14T14:14:10.297+05:302011-03-14T14:14:10.297+05:30पिछले अक्तूबर में चीन के कुछ इलाकों में तिब्बती भा...पिछले अक्तूबर में चीन के कुछ इलाकों में तिब्बती भाषा के बोलने लिखने और पढ़ाये जाने पर जब सरकारी पाबन्दी लगा दी गयी तो नौजवानों ने इसके विरोध में उग्र प्रदर्शन किये. इसका विवरण देते हुए इन्ही में से किसी ने www.highpeakspureearth.com वेब साईट पर भाषाओँ को बचाए जाने की वकालत करती हुई एक कविता उधृत की :<br /> <br /> जब आप साँस लेना बंद कर देते हैं<br />हवा बचती नहीं,नष्ट हो जाती है.<br />जब आप चलना फिरना बंद कर देते हैं<br />तो लुप्त हो जाती है धरती भी.<br />जब आप बोलना बंद कर देते हैं<br />तो शेष नहीं बचता एक भी शब्द...<br />सो, बोलिए बतियाइए जरुर<br />अपनी अपनी भाषा में.<br /> <br />लगभग इसी सन्दर्भ में www.thaiwomantalks.com नामक वेब साईट पर एक थाई कविता का अंग्रेजी तर्जुमा मिला :<br /> <br /> यदि आप संगीत का रियाज बंद कर दें सात दिन<br /> तो संगीत आपको छोड़ कर विदा हो जायेगा..<br /> यदि आप अक्षरों को लिखना पढना बंद कर दें सिर्फ पाँच दिन<br /> तो सम्पूर्ण ज्ञान लुप्त हो जायेगा देखते देखते..<br /> यदि आप स्त्री को ध्यान से ओझल किये किये बिसार दें तीन दिन<br /> तो रहेगी नहीं वो वही स्त्री और चली जाएगी मुंह फेर कर आपसे दूर..<br /> यदि आप अपना चेहरा बगैर धोये रह गए एक दिन भी<br /> तो बिनधुला चेहरा आपको बना देगा निहायत कुरूप और लिजलिजा.<br /> <br />यादवेन्द्रविजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-63173114262369406052011-03-14T13:58:11.638+05:302011-03-14T13:58:11.638+05:30विजय भाई,
उत्तराखंड की अपनी जनभाषाओँ की उपेक्ष...विजय भाई,<br /> उत्तराखंड की अपनी जनभाषाओँ की उपेक्षा और अंततः उनकी विलुप्ति की बाबत अपने जो टिप्पणी की है वह विकास के हमारे पूंजीवादी माडल के बरक्स बहुत महत्वपूर्ण है.थोक उत्पादन (mass production ) की संस्कृति में लोक कलाकारों के हुनर की तरह भाषाएँ भी एथनिक उत्पादों की तरह संग्रहालयों और ड्राईंग रूमों की शोभा बढ़ाने लगेंगी.पर सवाल इतना ही नहीं है,उत्तराखंड को माध्यम बना कर भगवा राजनीति इन लोक भाषाओँ की कब्र के ऊपर संस्कृत की फसल उगने की जिस जुगत में है उसपर भी गौर करना चाहिए...देश में उत्तराखंड अकेला ऐसा राज्य है जहाँ संस्कृत राजभाषा ( द्वितीय ही सही) का दर्जा प्राप्त करने के बाद सरकारी धन और फरमान से पुनर्जीवित् की जाएगी.हरिद्वार और ऋषिकेश संस्कृत नगर घोषित हो चुके हैं और हर जिले में एक एक संस्कृत ग्राम चयनित किये जाने हैं.इस बारे में सरकारी आदेश लागू हो गए हैं जनाब....कुछ इनपर भी लिखा जाना चाहिए.<br /> <br /> यादवेन्द्रविजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-88500932779810852682011-03-14T11:02:47.560+05:302011-03-14T11:02:47.560+05:30विचारोत्तेजक.
वस्तुत: भूमण्डलीय युग मे भाषा को, य...विचारोत्तेजक. <br />वस्तुत: भूमण्डलीय युग मे भाषा को, या संस्कृति के किसी भी उपकरण को अस्मिता या भावनात्मक स्तर पर जोड़ कर देखना ही बेमानी लगने लगा है. संस्कृति को उत्पादन, श्रम, पूँजी , और बाज़ार के परिप्रेक्ष्य मे समझना हमारी मज़बूरी हो चुकी है. कहना कठिन है कि साँस्कृतिक अस्मिता का मुद्दा आगे कितना उपयोगी/ज़रूरी रह जाने वाला है..... लेकिन यदि हमें लगता है कि हमें लोक जीवन मे मौजूद मूल्यों को मानवीयता के पक्ष बचाना है,तो शुरुआत हमें * मिनि* से करना होगा. यानि गाँव मुहल्ले की लोक भाषा. क्यों कि हिन्दी जैसी *मेटा* भाषाएं, जिन्हे हम आज साहित्य/ मीडिया मे बरत रहे हैं, खुद बाज़ार और सत्ता का उपकरण बनी जा रही है.... लोक चेतना से कटी जा रही है.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-6134580720617060752011-03-14T11:02:43.022+05:302011-03-14T11:02:43.022+05:30विचारोत्तेजक.
वस्तुत: भूमण्डलीय युग मे भाषा को, य...विचारोत्तेजक. <br />वस्तुत: भूमण्डलीय युग मे भाषा को, या संस्कृति के किसी भी उपकरण को अस्मिता या भावनात्मक स्तर पर जोड़ कर देखना ही बेमानी लगने लगा है. संस्कृति को उत्पादन, श्रम, पूँजी , और बाज़ार के परिप्रेक्ष्य मे समझना हमारी मज़बूरी हो चुकी है. कहना कठिन है कि साँस्कृतिक अस्मिता का मुद्दा आगे कितना उपयोगी/ज़रूरी रह जाने वाला है..... लेकिन यदि हमें लगता है कि हमें लोक जीवन मे मौजूद मूल्यों को मानवीयता के पक्ष बचाना है,तो शुरुआत हमें * मिनि* से करना होगा. यानि गाँव मुहल्ले की लोक भाषा. क्यों कि हिन्दी जैसी *मेटा* भाषाएं, जिन्हे हम आज साहित्य/ मीडिया मे बरत रहे हैं, खुद बाज़ार और सत्ता का उपकरण बनी जा रही है.... लोक चेतना से कटी जा रही है.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-43783045167408644922011-03-14T11:02:40.280+05:302011-03-14T11:02:40.280+05:30विचारोत्तेजक.
वस्तुत: भूमण्डलीय युग मे भाषा को, य...विचारोत्तेजक. <br />वस्तुत: भूमण्डलीय युग मे भाषा को, या संस्कृति के किसी भी उपकरण को अस्मिता या भावनात्मक स्तर पर जोड़ कर देखना ही बेमानी लगने लगा है. संस्कृति को उत्पादन, श्रम, पूँजी , और बाज़ार के परिप्रेक्ष्य मे समझना हमारी मज़बूरी हो चुकी है. कहना कठिन है कि साँस्कृतिक अस्मिता का मुद्दा आगे कितना उपयोगी/ज़रूरी रह जाने वाला है..... लेकिन यदि हमें लगता है कि हमें लोक जीवन मे मौजूद मूल्यों को मानवीयता के पक्ष बचाना है,तो शुरुआत हमें * मिनि* से करना होगा. यानि गाँव मुहल्ले की लोक भाषा. क्यों कि हिन्दी जैसी *मेटा* भाषाएं, जिन्हे हम आज साहित्य/ मीडिया मे बरत रहे हैं, खुद बाज़ार और सत्ता का उपकरण बनी जा रही है.... लोक चेतना से कटी जा रही है.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-17821880532970844072011-03-13T23:52:24.246+05:302011-03-13T23:52:24.246+05:30सवाल गम्भीर है
पर मालिक जब राष्ट्र भाषा ही उपेक्ष...सवाल गम्भीर है<br /><br />पर मालिक जब राष्ट्र भाषा ही उपेक्षित है तो जनभाषा की बात कौन करेगा। और नई पीढी, जिसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में काम करना है उससे तो कतई उम्मीद करना बेकार है। <br /><br />हाँ इस तरह के आलेहख कुछ कर सकें तो।प्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.com