tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post3219245646706221391..comments2024-03-18T11:08:06.414+05:30Comments on लिखो यहां वहां: खबर घटना का एकांगी पाठ हैविजय गौड़http://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-21651964685144610202009-08-23T10:51:48.677+05:302009-08-23T10:51:48.677+05:30ऐसी कितनी ही नदियां हम चूक जाते हैं हर रोज़.
यह ...ऐसी कितनी ही नदियां हम चूक जाते हैं हर रोज़. <br /><br />यह कविता इस व्याख्या के बिना बह्त अधूरी लग रही थी. अनुप शुक्ल ने सही कहा. नेट वाली कविताओं को भी इस तरह से सम्झाएं. अरुण कमल जी की कविताए तो नाम्वर जी हर कही समझाते फिर्ते हैं.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-65494675825932747882009-08-18T14:48:35.752+05:302009-08-18T14:48:35.752+05:30बहुत खूब! शीर्षक देखकर ही मन खुश हो गया। समय मिलन...बहुत खूब! शीर्षक देखकर ही मन खुश हो गया। समय मिलने पपढ़ेंगे भी।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-66455360450368718382009-08-17T20:31:37.620+05:302009-08-17T20:31:37.620+05:30मैंने अभी अरविन्द जी का थिसारस देखा, वहां शब्द तो...मैंने अभी अरविन्द जी का थिसारस देखा, वहां शब्द तो है "धांग" पर उसका कोई अर्थ नहीं दिया है। उस हिसाब से यह शब्द प्रचलन में तो है पर हो सकता है कोई आंचलिक शब्द हो।<br />आपकी उत्सुकता अब मेरी भी उत्सुकता है। आभार मुझे उस तक दौडाने के लिए।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-22155057593422961842009-08-17T20:08:28.949+05:302009-08-17T20:08:28.949+05:30बिल्कुल शब्द प्रयोग में ही अर्थ ग्रहण करते हैं, ...बिल्कुल शब्द प्रयोग में ही अर्थ ग्रहण करते हैं, कविता संप्रेषित हो गई है,लेकिन इस शब्द का अर्थ जानने की भी इच्छा हुई...संदीपhttps://www.blogger.com/profile/01871787984864513003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-65840354642626930112009-08-17T20:04:05.972+05:302009-08-17T20:04:05.972+05:30संदीप भाई यहां धांगने की आव्रति बेधडक (बेखौफ़) की ज...संदीप भाई यहां धांगने की आव्रति बेधडक (बेखौफ़) की जाने वाली ह्त्याओं से हैं। शब्द किस भाषा का है और सही सही अर्थ क्या है यह शब्दकोश देखकर ही बताउंगा। हो सकता है एक नया शब्द भी इस तरह जन्म ले रहा हो। बहुधा अभिव्यक्ति के लिए माकूल शब्द की अनुपस्थिति में भी नए शब्द जन्म लेते ही हैं। शब्द अपने अर्थ तो प्रयोग के बाद ही ग्रहण कर पाते हैं न!रचना में तो किसी भी शब्द को नितांत उसके शाब्दिक अर्थों में देखने की बजाय उसके अर्थ विस्तार तक पहुंचने के लिए उस आव्रति में ही झांकने से ही पहुंचा जा सकता है।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-72093820218004784562009-08-17T19:28:58.831+05:302009-08-17T19:28:58.831+05:30विजय भाई,
...जो धांगते गए हैं ख़ून
इसमें धांगते ह...विजय भाई,<br />...जो धांगते गए हैं ख़ून<br /><br />इसमें धांगते हैं का अर्थ नहीं समझ आया...संदीपhttps://www.blogger.com/profile/01871787984864513003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-48755327123264223152009-08-17T14:58:53.518+05:302009-08-17T14:58:53.518+05:30ye aalekh kafi kuchh sochne ko majbur to karta hi ...ye aalekh kafi kuchh sochne ko majbur to karta hi hai...Vineeta Yashsavihttps://www.blogger.com/profile/10574001200862952259noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-52518561459445162342009-08-16T19:00:28.877+05:302009-08-16T19:00:28.877+05:30आप की बात एकदम सही है....विचारोत्तेजक और सोचने को ...आप की बात एकदम सही है....विचारोत्तेजक और सोचने को मजबूर करता बहुत अच्छा लेख....आप ने अरुण कमल जी की इस रचना की विस्तृत विवेचना की है।इस रचना और विवेचना दोनों के लिये आप को बहुत बहुत बधाई....प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-18225567706769243832009-08-15T17:33:30.577+05:302009-08-15T17:33:30.577+05:30विस्तृत मंथन -बहुत आनंद आया ! कहीं खबर और रचना में...विस्तृत मंथन -बहुत आनंद आया ! कहीं खबर और रचना में जो फर्क है वही रपट और रिपोर्ताज में तो नहीं ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-46411163149634344722009-08-14T21:18:05.041+05:302009-08-14T21:18:05.041+05:30अच्छा विवेचन! अनुरोध है कि ब्लागजगत की रचनायें लेक...अच्छा विवेचन! अनुरोध है कि ब्लागजगत की रचनायें लेकर भी उन पर लिखें!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-80718655572258833722009-08-14T19:58:12.804+05:302009-08-14T19:58:12.804+05:30श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
...श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। <br /> ...but i think this news about Chinese fantasy of breaking India is true and it needs to be condemned !मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-68145572224509309412009-08-14T13:32:26.572+05:302009-08-14T13:32:26.572+05:30’खबर घटना का एकांगी पाठ है’
पूरी सहमति है .खबर को...’खबर घटना का एकांगी पाठ है’<br /><br />पूरी सहमति है .खबर को रचना बनाने की एल्केमी लेखक/रचनाकार के पास होती है पत्रकार के पास नहीं . पत्रकार के पास उतना समय ही कहां होता है. वह तो तात्कालिकता के दायरे में घटनाएं प्रतिवेदित करता है जिसमें अभ्यंतरीकरण की गुंजाइश कम होती है . जबकि रचना को अवकाश चाहिए होता है . तभी अपनी तमाम अर्थछवियों के साथ घटना का बहुलतावादी पाठ रचना में उतरता है . अरुण कमल की कविता इसे सत्यापित करती है .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.com