tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post717907255000995799..comments2024-03-18T11:08:06.414+05:30Comments on लिखो यहां वहां: टिप्पणी जो प्रकाशित न हो पा रही थीविजय गौड़http://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-14146779350509598262009-12-04T14:34:32.423+05:302009-12-04T14:34:32.423+05:30कभी कभी सर्वर की समस्या के कारण ऐसा हो जाता है।
...कभी कभी सर्वर की समस्या के कारण ऐसा हो जाता है।<br /><br />------------------<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?</a><br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?</a>Arshia Alihttps://www.blogger.com/profile/14818017885986099482noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-90735706950480041152009-11-30T19:50:04.637+05:302009-11-30T19:50:04.637+05:30विजय भाई, अगर कुछ सामूहिक हो तो अच्छा है और अगर जो...विजय भाई, अगर कुछ सामूहिक हो तो अच्छा है और अगर जो नाम खरे जी ने गिनाये हैं, वे भी कोई ईमानदार साहस दिखाते हैं तो अच्छा होगा. अब खरे जी ने क्या कहा, उस से अलग भी यह मसला तो है ही कि कोई भी लेखक इस बारे में क्या सोचता है और वो अपना पक्ष चुनने के लिए आज़ाद है.Dheereshhttp://ek-ziddi-dhun.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-1218558920732617302009-11-30T17:50:32.956+05:302009-11-30T17:50:32.956+05:30विजय भाई सबद पर यह लेख देखा और वहीँ एक छोटी सी त्...विजय भाई सबद पर यह लेख देखा और वहीँ एक छोटी सी त्वरित टिप्पणी भी दी. यहाँ आपने अपने ढंग से कुछ सोचा और लिखा - इस पर भी बार बार ध्यान जा रहा है! रवींद्र वाली बात पर तो मैं भी वैसे ही सोचता हूँ, जैसा खरे जी. भारतीय क्या बांगला साहित्य में भी रवींद्र के नाम के आगे कई दूसरे महत्त्वपूर्ण नामों की अनदेखी हुई है. ये अलग बात है कि उनके सरीखा पी आर किसी का नहीं रहा. आखिर रवींद्र ही क्यों? प्रेमचंद या निराला या मुक्तिबोध क्यों नहीं? बाक़ी लेख जिस मूल मुद्दे पर है उससे तो सभी बावस्ता है. खरे जी ने कुछ नाम गिनाए या कहो कि उन नामों को शायद चुनौती है कि हिम्मत है तो वे कुछ कह कर दिखाएं - इसकी भी अलग अलग व्याख्याएं हो सकती हैं. आपकी बात को और अच्छे से पढने -समझने की कोशिश कर रहा हूँ. रहा विरोध तो वह सामूहिक तभी हो पायेगा जब हम सब उसमें शामिल होंगे. आप साहित्य अकादमी के इस क़दम पर एक पोस्ट सिर्फ़ अपनी राय देते हुए लगायें तो और अच्छा रहेगा. और उसे लिखते हुए क्यों न उन से भी प्रतिक्रिया ले ली जाये, जिनके नाम खरे जी ने लिए हैं. हालांकि साफ़ है कि ये सिर्फ़ उन नामों की नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है- हर छोटे बड़े को अपनी बात साफ़ साफ़ बतानी चाहिए- क्योंकि बात वही पुरानी है - जो तटस्थ हैं समय कहेगा उनका भी अपराध!शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-50594973408617856302009-11-30T13:39:12.952+05:302009-11-30T13:39:12.952+05:30रविन्द्रनाथ टैगोर से पूरे आदर के बावज़ूद यह तो है व...रविन्द्रनाथ टैगोर से पूरे आदर के बावज़ूद यह तो है विजय भाई की सामसुंग या उसके भाई बंधु सिर्फ़ उसी को महत्व देते हैं जिसे नोबल मिला… क्या उसके पहले या बाद उससे बेहतर रचनाकार नही मिले?<br /><br />हां इससे मुझे लगता है कि बाज़ार विरोध और समर्थन के बीच स्पष्ट रेखा ज़रूर खिंचेगी…और हम साफ़ पूछ सकेंगे… तय करो किस ओर हो तुम?Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.com