tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post9158744894161108648..comments2024-03-18T11:08:06.414+05:30Comments on लिखो यहां वहां: अवचेतन कला कैनवास पर तो ज्यामितीय आकारों के भीतर ही होती हैविजय गौड़http://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-6416449418160083302010-03-25T16:29:09.096+05:302010-03-25T16:29:09.096+05:30रचनाकार के रचना संसार में झांकता साक्षात्कार. साधु...रचनाकार के रचना संसार में झांकता साक्षात्कार. साधुवाद.पंकजhttps://www.blogger.com/profile/05230648047026512339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-18873250855912746062010-03-25T09:15:37.621+05:302010-03-25T09:15:37.621+05:30मैं बहुत ज़ोर दे कर सहमत होना चाहता हूँ कि :
&quo...मैं बहुत ज़ोर दे कर सहमत होना चाहता हूँ कि : <br /><br />"वस्तुत: मैं कबीर से बहुत प्रभावित रहा हूं। क्योंकि जो उसके स्टेटमैंट्स रहे हैं उसमें समाज की कोई परवाह नहीं है।"<br /><br />यह अराजकता मुझे पसन्द है. और विश्वास करना चाहता हूँ कि यही अराजकता अभिव्यक्ति के नए आयाम खोलती है. मुक्ति बोध ने इसी लिए कहा था कि (हिन्दी साहित्यिकों को)'अभिव्यक्ति के खतरे उठाने पड़ेंगे'. ऐसा नहीं है कि कबीर उस युग मे अचानक कुकुर्मुत्ते की तरह उग गए थे. मध्य काल मे अराजकता की पूरी एक परंपरा थी. देखें तो यह अंतर्धारा वेदांत, उपनिषद, और श्रमण साहित्य के समय से पनपनी शुरू हो गई थी .लेकिन यह् हमारी शुद्धता वादी सोच को हज़म नहीं हुई.हम इस धारा को चालाकी से मिटाते रहे. इस खतरे को कबीर से पहले उठाया भी गया था ...लेकिन अज्ञात कारणो से वह अभिव्यक्ति फक़त कबीर के रूप में ही बची रह सकी. बहर हाल मैं वे कारण यहाँ डिस्कस नही करूँगा. विषयांतरण हो जाएगा, लेकिन साह जी के ये बोल्ड स्टेटमेंट मुझे प्रेरित करते हैं. एक घुटन के महौल से उबारते हैं. थेंक्स विजय भाई.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-45546150941416417562010-03-20T23:32:52.042+05:302010-03-20T23:32:52.042+05:30अच्छा लगा बातचीत पढ़कर .......अच्छा लगा बातचीत पढ़कर .......सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3781544463522842555.post-70690618714602636222010-03-20T19:35:45.418+05:302010-03-20T19:35:45.418+05:30कबीर का उदाहरण ले लीजिए कबीर अनपढ़ थे लेकिन उनके भी...कबीर का उदाहरण ले लीजिए कबीर अनपढ़ थे लेकिन उनके भीतर रचना कर्म कर सकने की अद्भुत् क्षमताऐं थीं। यदि कोई ये समझे कि मैं बहुत ज्यादा पढ़ लिख कर कलाकार बन जाऊंगा तो आर्ट्स कालेज से आज तक न जाने कितने ही लोग प्रशिक्षित हुए लेकिन कलाकार कितने बने ये देखने वाली बात है।<br />और<br />देखिए मैं एब्स्ट्रैक्ट आर्ट को लगभग 1956 से देख रहा हूं। लेकिन अवचेतन कला जिसे कहा जाता है कि विचार से जन्मीं कला। कैनवास पर तो वह ज्यामितीय आकारों के भीतर ही है। अवचेतन तो कुछ नहीं है। उसके लिए जो आकार हमने लिए हैं वो भी प्रकृति से इतर नहीं हैं। हां लेकिन एक ट्र्रैण्ड चल पड़ा है। <br />खूबसूरत बातें हैंnaveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.com