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Friday, May 22, 2020

तितलियों का प्रारब्ध

हिदी साहित्य की दुनिया में समीक्षातमक टिप्पणी को भी आलोचना मान लेना बहुप्रचलित व्यवहार है। इसकी वजह से आलोचना जो भी व्यवस्थित स्वरूप दिखता है, वह बहुत सीमित है। दूसरी ओर यह भी हुआ है कि समीक्षा के नाम पर वे विज्ञापनी जानकारियां जिन्हें पुस्तक व्यवसाय का अंग होना चाहिए, रचनात्मक लेखन के दायरे में गिना जाती है।
समीक्षा के क्षेत्र में इधर लगातार दिखाई दे रहे चन्द्रनाथ मिश्रा की उपस्थिति और उनकी लिखी समीक्षाएं आलोचनात्मक टिप्पणियों की बानगी बन रही है।
लेखिका श्रीमती नयनतारा सहगल के रचनात्मक साहित्य पर चन्द्रनाथ मिश्रा की लिखी समीक्षात्मक टिप्पणिया यहां चन्द्रनाथ मिश्रा से गुजारिश करते हुए इसी आशय के साथ प्रस्तुत हैं कि जिस शिद्दत के साथ वे फेसबुक पर लिख रहे हैं, उसी ऊर्जा के साथ साहित्य की दुनिया में पत्र पत्रिकाओं के जरिये भी अपनी दखल के लिए मन बनाएं। यह ब्लॉग उनकी ताजा टिप्पणी को यहां प्रस्तुत करते हुए अपने को समृद्ध कर रहा है।

वि गौ





अपने जीवन के 92 वे वर्ष में नयन तारा सेहगल उतनी ही सटीक, प्रभावशाली एवं राजनीतिक तौर पर मुखर हैं जितना वे अपने लेखन के प्रारम्भिक दिनों में जब उन्होंने Rich like us,(1985), Plans for departure (1985), Mistaken identity (1988) और Lesser Breeds(2003) आदि पुस्तकें लिखी थीं। वे PUCL (people's union  for civil liberties) की  Vice President की हैसियत से वैचारिक स्वतन्त्रता एवं प्रजातांत्रिक अधिकारो पर हो रहे प्रहारों के विरोध में सतत लिखति और बोलती रहीं। उन्हें साहित्य अकादमी, सिंक्लेयर प्राइस तथा कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज से नवाजा गया है।
फेट ऑफ बटरफ्लाईज़ पाँच छह लोगों की जिंदगी कि कहानी है जो ऐसे वक्त से गुज़र रहे हैं जो हमारा और हमारे देश का  ही वर्तमान है।ऐसा दौर जिसमे साम्प्रदयिक दंगो, लिँग औऱ  जाती के आधार पर भेद भाव  तथा राजनीति में घोर दक्षिण पन्थ  का बोलबाला है।इन लोंगो की नियति विभिन्न देश काल मे रहते हुए भी कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी है। फेट ऑफ बटरफ्लाई इन चरित्रों के जीवन पर  पड़ने वाले तत्कालीन राजनैतिक सामाजिक प्रभावो की कहानी है जिसने परिस्थितिजन्य कारणों से उनके जीवन को असीम दुख और विषाद से भर दिया। ये कहानी है सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी कैटरीना की  जिसका क्रूर  सामूहिक बलात्कार हुआ । जिस गांव में वह मदद के लिए गयी थी वहां के लोगों को उनके घरोँ में जिंदा जला दिया गया। ये कहानी है समलैंगिक युगल प्रह्लाद और फ्रैंकोइस की जिन्हे बुरी तरह पीटा गया और जिनका बुटिक होटल   दंगाइयों द्वारा मलवे के ढेर में बदल दिया गया। प्रह्लाद जो एक अच्छा नर्तक था अब कभी नही नाच सकेगा। लेकिन इस सब त्रासदियों के  बावजूद  ये महज़ नाउम्मीदी की दास्ताँन न होकर कही न कही जिंदगी में ख़ुसी औऱ जीने की छोटी से छोटी वजह  ढूंढ लेने की कामयाब कोशिस की भी कहानी है।
चूंकि उपन्यास मूल रूप से संकछिप्त है इसलिए संभवतः कथानक में  बहुत सी परतें मुमकिन नहीं थी। लेकिन विशेष परिस्थितियों की संरचना, समय का  चित्रण,  चरित्र विशेष की अंतर्दृष्टि, या भविष्य की  हृदयहीनता का पूर्वानुमान बखूबी घटनाओं व पत्रों के  माध्यम से दर्षित है।
प्रभाकर जो राजनीति शास्त्र का प्रोफेसर है एक दिन चौराहे पर एक नग्न शव देखता है, जिसके सिर पर केवल एक शिरस्त्राण है।
इसके कुछ दिनों बाद वह कैटरीना पर हुए सामूहिक बलात्कार की कहानी ,उसि के मुह से ,एक सादे और संवेग हीन बयान के रूप में सुनता है।  कैटरीना पर बीते हुए कल का प्रभाव इतना गहन है कि प्रभाकर के हाथ का हल्का सा स्पर्ष भी कैटरीना को आतंक से भर देता है।  वह एक नर्सरी स्कूल में जाता है जहां उसे बताया जाता कि किस प्रकार  कुछ अन्य स्कूलों में तितलियों को मार कर उन्हें बोर्ड में पिन से लगाकर रखा जाता है । प्रभाकर ऐसी बहुत सी  घटनाओ को देखता, सुनता और उनसे  प्रभावित होता है। वह अपने प्रिय रेस्टोरेंट बोंज़ूर को दंगाइयों द्वारा तवाह होते हुए देखता है, जहां उसकी प्रिय डिश गूलर कबाब पेश की जाती थी, जो रफीक़ मियां बनाया करते थे।
इन सब दृश्यों और घटनाओं से ऊपर मीराजकर जो एक राजीतिक नीति निर्देशक हैं। वह देश को उन सब तत्वों और प्रभाबो से मुक्त करना चाहतें हैं जो उनके अनुसार देश की तथाकथित सभ्यता औऱ संस्कृती से मेल नही खाते।जाहिर है  इस सभ्यता और संस्कृति की  परिभाषा और ब्यख्या  मीराजकर और उनके पार्टी  के लोग अपनी तरह से करते हैं। हिटलर के extermination की अवधारणा संभवतः इसी सोच का तार्किक विस्तार था।
प्रभाकर अपनी पुस्तक के कारण इन दक्षिणपंथी चिन्तको का ध्यान आकर्षित करता है। इस पुस्तक के माध्यम से वह राष्ट्र के लिए एक नई शुरूआत की परिकल्पना रखता है। उदाहरण के लिए वह गांधी की विशाल  छाया से देश को बाहर निकालने की कल्पना करता है। यद्दपि प्रभाकर किसी विचारधारा या सिद्धान्त से  प्रतिबद्ध नही होना चाहता यथापि परिस्थितिबस उसे एक ऐसे समारोह में जाना पड़ता है जहा राजनीतिक लोगों का जमावड़ा है जो सत्ता के केन्द्रीयकरण के घोर समर्थक हैं। एक भव्य हॉल में महँगी शराब और उत्कृष्ठ देसी विदेशी व्यंजनों का स्वाद चखते हुए  प्रभाकर जो कि एक मजदूर का बेटा तथा पादरियों द्वारा पाला हुआ था , औऱ एक गहन त्रासदी भरा बचपन बहुत पीछे छोड़कर आया था, स्वयम को ऐसे पुरोधाओं में बीच पाता है जो यूरोपियन महाद्वीप में दक्षिणपंथ के उत्थान का ऊत्सव मनाने को एकत्र हुए है। यहाँ प्रभाकर की तुलना वज्ञानिक फ्रेंकएस्टिन से की जाती है ,जिसने ऐसे राक्षस को पैदा किया जिसने विस्व में तवाही मचा दी।
प्रभाकर अपनी पुस्तक में इस थियोरी को प्रतिपादित करता है की अंतिम प्रभाव उनका नही होता जो अच्छाई, सदभाव व करूणा की बात करते हैं बल्कि  'matter of factness of cruelty'  (क्रूरता के वास्तविक प्रभाव)का होता है।
सर्जेई एक हथियार का व्यापारी है। उसका व्यापार भारत मे है। जो उसे पिता से विरासत में मिला है। हथियार के व्यापार को लेकर उसकी दुविधा का चित्रण
उल्लेखनीय है।

ये सारे क़िरदार एक बदलते हुए भारत के परिवेस में अपने अपने तरीके से अवतरित होते हैं।
उनकी जिंदगी कंही 'काऊ कमिशन'जो कि गो-माँस खाने वालों के उन्मूलन के लिए प्रयासरत है, से भी प्रभावित है। तथाकथित बुद्धिजीवी जो इतिहास का पुनर्लेखन व विश्लेषण  अपने एजेंडा और स्वार्थ के लिए कर रहे है, अपने अपने तरीके से सामने आते है।
पुस्तक की संकछिप्तता के कारण कई प्रसंगों के कल्पना की व्यापकता नियंत्रित लगती है। भाषा पर नयनतारा सहगल का अद्भुत नियंत्रण एवं इतिहास का विषद ज्ञान पुस्तक में  हर जगह परिलक्षित है। देस विदेश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सन्दर्भ लेखिका के विस्तृत ज्ञान और उनके लेखन के विस्तार का होराइजन दर्शाते है। उपन्यास  की भावप्रवणता  दुरदमनिय  है जहां जीवन की तमाम त्रासदियों और विसंगतियों के बावजूद अच्छे भविष्य का सपना कहीं ना कहीं झलकता रहता है।  मानवता कितनी भी अधोगामी हो जाए, चांदनी रात में नृत्य की अभिलाषा पूरी तरह कभी दमित नहीं होती।