Showing posts with label पवि. Show all posts
Showing posts with label पवि. Show all posts

Tuesday, May 26, 2009

चकमक को पढते हुए

चकमक के मई अंक पर पवि ने यह समीक्षात्मक टिप्पणी लिखी और स्वंय ही टाइप की है। पवि कक्षा नौ की छात्रा है। इससे पहले भी पवि ने संवेदना की मासिक गोष्ठी की एक रिपोर्ट तैयार की थी।




चकमक को पढते-पढते मुझे सात आठ साल हो गए है । चकमक का हर अंक एक दिलचस्प किस्सा लेकर आता है । इस बार के मई अंक में भी काफी मजेदार चीजे प्रकाशित हुई है । इस अंक में छपी "अनारको के मन की घड़ी" कहानी मुझे सबसे बेहतरीन कहानी लगी, इस कहानी को सती नाथ षडंगी जी ने लिखा है, उन्होनें कहानी को इतने अच्छे ढंग से लिखा है कि कहानी पढ़ने में बडा मजा आया । इस अंक में और भी कई मजेदार कहानियॉं प्रकाशित हुई हैं, जैसे "एक चूजे की यात्रा" "ये बुजुर्ग" "बॉसुरी नही बजती बजाता है आदमी" "गधे की हजामत"। इस अंक में सिर्फ मजेदार कहानियॉं ही नहीं मसालेदार कविताऍ भी है और सबसे ज्यादा मजेदार कविता तो गुलजार जी की है "एक और अगोडा"। इस अंक के अलावा पिछले कुछ अंको में भी गुलजार जी की कविताऍ छपी हैं । हर बार की तरह इस बार के अंक में भी माथापच्ची और चित्र पहेली है । इस बार के अंक में "बहादुर शाह जफर का खत अपनी बेटी के नाम" और "क्या बताएं कि बेंजामिन फैंकलिन कौन थे" भी है । हर बार की तरह इस बार का अंक भी अच्छा है ।


-पवि

Tuesday, December 9, 2008

संवेदना देहरादून, मासिक गोष्ठी - दिसम्बर 2008

संवेदना की मासिक गोष्ठी की रिर्पोट आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली पवि ने, हमारे द्वारा उपलब्ध करवायी गयीसूचनाओं के आधार पर लिखी है। जिसे ज्यों का त्यों, सिर्फ टाइप करके, प्रस्तुत किया जा रहा
पवि



देहरादून की साहित्यिक संस्था संवेदना हमेशा महीने के पहले रविवार को गोष्ठी आयोजित करती है। इस बार की दिसम्बर के पहले रविवार (7) को गोष्ठी आयोजित की। इसमें सभी कथाकर उपस्थित थे। इस बार की गोष्ठी को हिन्दी भवन पुस्तकालय में रखा गया। इसमें कथाकार सुभाष पंत जी,, सुरेश उनियाल जी,, दिनेश चंद्र जोशी जी,, नवीन नैथानी जी, विद्या सिंह जी,, प्रेम साहिल जी,, शकुंतला जी, मदन शर्मा जी आदि लोग उपस्थित थे। इस गोष्ठी में सुरेश उनियाल जी एवं सुभाष पंत जी ने अपने-अपने कहानी संग्रह से एक-एक कहानी पढ़ी। सुभाष पंत जी की कहानी का नाम एक का पहाड़ा था और सुरेश उनियाल जी कहानी का नाम बिल्ली था। मदन शर्मा जी ने एक संस्मरण पढ़ा और दिनेश चंद्र जोशी जी ने कविता पढ़ी।