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Friday, March 12, 2021

आक्रामक खेल के बीच शेष विरल कोमलता

यादवेन्द्र



खेल आम तौर पर निर्मम आक्रामकता के लिए जाने जाते हैं - खास तौर पर आमने सामने एक दूसरे को चुनौती देने वाले खिलाड़ी ज्यादा रसहीन इंसान साबित होते हैं।टेनिस की दुनिया पर दशकों राज करने वाली सेरेना विलियम्स वैसे भी अपने विजय अभियान और रिकॉर्ड को लेकर बहुत सजग और निर्मम मानी जाती हैं पर पिछले कुछ वर्षों में उन्हें एक युवा अश्वेत टेनिस सितारे से बार बार मुखातिब होना पड़ा -- नाओमी ओसाका ने चौबीस ग्रैंड स्लैम जीतने के उनके स्वप्न को एक नहीं अधिक बार तोड़ा।पर टेनिस कोर्ट के इन धुर प्रतिद्वंद्वियों के बीच दुनिया ने जिस ढंग की आत्मीय सहचरी देखी वह भी टेनिस की दुनिया में विरल है - खेल समीक्षक मानते हैं कि ओसाका सेरेना की सुयोग्य उत्तराधिकारी साबित होने की राह पर अग्रसर हैं।



हाल में संपन्न हुए ऑस्ट्रेलियन ओपन में विजय का ताज पहनने के बाद के इंटरव्यू में जब नाओमी ओसाका से (इसके सेमी फाइनल में उन्होंने सेरेना विलियम्स को पराजित कर टूर्नामेंट से बाहर कर दिया था) एक पत्रकार ने पूछा:
"अभी कुछ दिन पहले आपने कहा था कि जब तक सेरेना खेलती रहीं वे टेनिस का चेहरा हुआ करती थीं। क्या आपको लगता है कि ऑस्ट्रेलियन ओपन में आपने जो उनके खिलाफ जीत हासिल की वह पूर्व स्थिति के बदलाव का सूचक है?"
युवा पर चतुर ओसाका को पल भर भी सोचने की जरूरत नहीं पड़ी,बोलीं: नहीं,ऐसा बिल्कुल नहीं है।"
(20 फरवरी 2021 का WTA Insider का एक ट्वीट)
इसी टूर्नामेंट के दौरान ओसाका ने ट्वीट कर सेरेना विलियम्स के बारे में कहा: "जब मैं छोटी थी और उन्हें खेलते हुए देखती थी तो हमेशा मुझे  लगता था कि कभी मैं उनके साथ खेलूं... यह मेरा एक सपना था...जब जब भी मैं उन के साथ खेलती हूं तो मुझे बचपन के वे दिन याद आते हैं और मुझे लगता है कि मैं उन मौकों को हमेशा याद रखूंगी... ये खेल मेरे लिए कुछ खास हैं।"
"जहां तक मेरा सवाल है मैं उन्हें हमेशा खेलते हुए देखना चाहती हूं। मेरे अंदर एक बच्चा भी रहता है।"

2018 के यूएस ओपन फाइनल मैच में नाओमी ओसाका से मुकाबला करते हुए अंपायर ने मां बनने के बाद पहला बड़ा मैच खेल रही सेरेना पर अपने कोच के इशारों के अनुसार खेलने का आरोप लगाया था और अंपायर के साथ सेरेना की तीखी नोकझोंक हुई थी। सेरेना ने बार बार दंडित करने वाले अंपायर को झूठा भी कहा था और गुस्से में अपना रैकेट तोड़ कर कोर्ट में फेंक दिया था। उन्होंने अपने कोच से निर्देश लेने के आरोप से इनकार किया और अंततः मैच हार गई थीं - वह भी ढाई दशक से टेनिस के शिखर पर राज करने वाली सेरेना अपने से सोलह साल जूनियर और बिल्कुल नयी खिलाड़ी नाओमी ओसाका से।यहां यह जानना समीचीन होगा कि ओसाका भी हैतियन पिता और जापानी मां की अश्वेत संतान हैं और अमेरिका में रहती हैं।

यह ओसाका के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी और वे इतनी भावुक हो गईं कि लगभग सुबकने लगीं।उम्मीद से पलट नतीजे से नाखुश उपस्थित दर्शक शोर मचाने लगे और सेरेना जैसी दुर्दमनीय खिलाड़ी को मात देने वाली नाओमी ओसाका को हूट करने लगे।इस पर ओसाका बोलीं:
"मैं जानती हूं यहां इकट्ठा सभी लोग उन (सेरेना विलियम्स)के लिए तालियां बजा रहे हैं, चीयर कर रहे हैं।मुझे अफ़सोस है कि इस मैच को इस तरह खत्म होना था....आप आए और आपने मैच देखा,इसके लिए हार्दिक आभार।"
सेरेना ने अप्रत्याशित सहृदयता दिखाते हुए आगे बढ़ कर उत्तेजित दर्शकों से अपील की:
"मेरी गुजारिश है कि आप अब किसी तरह का सवाल मत उठाइए। मैं आपसे कहना चाहती हूं कि आज  ओसाका बहुत अच्छा खेली... यह उसका पहला ग्रैंड स्लैम है। अब आप उसे हूट करना बंद करिए।"

इस ऐतिहासिक घटना पर theundefeated.com (8 सितम्बर 2018) ने लिखा : "विजयी होकर भी जीत के लिए माफी मांगती और सुबकती हुए नाओमी ओसाका को सेरेना ने आगे बढ़ कर गले लगाया - पल भर भी नहीं लगा कि सेरेना प्रतिद्वंद्वी की भूमिका छोड़ कर रोती हुई ओसाका को सांत्वना देती हुईं मां की भूमिका में आ गईं।"

इस घटना के अगले दिन ओसाका से जब यह पूछा गया कि मैच के बाद सेरेना विलियम्स उन्हें गले लगाते हुए कान में क्या कह रही थीं तो ओसाका ने जवाब दिया: "सेरेना ने मुझे कहा कि मुझे तुम पर गर्व है और दर्शकों की भीड़ चिल्ला चिल्ला कर तुम्हें अपमानित नहीं कर रही थी। मुझे उनका यह कहना कितना अच्छा लगा, मैं बता नहीं सकती।"

इसके बाद सेरेना ने गहरे विचार मंथन के बाद नाओमी ओसाका को चिट्ठी लिखी जिसका एक अंश पढ़िए:
" हाय नाओमी, मैं सेरेना विलियम्स! जैसा मैंने कोर्ट में भी कहा था, मुझे तुम पर बहुत गर्व है... और जो कुछ भी उस समय हुआ उस का अफसोस भी। उस समय मुझे ऐसा लगा था कि मुझे अपनी बात पर अड़े रहना चाहिए और ऐसा करते हुए मैं सही कर रही हूं। लेकिन मुझे कतई इसका आभास नहीं था कि मीडिया इस घटना के बाद हमें और तुम्हें एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर देगा। उन पलों को मैं चाहती हूं एक बार फिर से जीना संभव हो पाता... काश कि हम फिर से कोर्ट पर आमने सामने  हो पा ते। मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं,खुश थी और हमेशा खुश रहूंगी और तुम्हें सपोर्ट करती रहूंगी। मैं कभी नहीं चाहूंगी कि कामयाबी की रोशनी किसी दूसरी स्त्री से हट कर अलग किसी और पर चली जाए - खासतौर पर जब वह रोशनी एक काली स्त्री खिलाड़ी पर पड़ रही हो। तुम्हारे भविष्य को लेकर मैं बहुत ज्यादा इंतजार अब नहीं कर सकती और मेरा यकीन करो, तुम्हें खेलते हुए देखना और वह भी तुम्हारे बहुत बड़े फैन के रूप में देखना मुझे बहुत अच्छा लगेगा। आज की बात करें तो तुम्हारी सफलता के लिए मैं शुभकामनाएं देती हूं... लेकिन यह सिर्फ आज तक सीमित नहीं है, भविष्य में भी तुम्हारा मार्ग बहुत प्रशस्त हो। एक बार फिर, मुझे तुम्हारे ऊपर बहुत गर्व है। मेरा ढेर सारा प्यार...
तुम्हारी फैन
सेरेना "
(हार्पर बाजार पत्रिका/9 जुलाई 2019)

Saturday, December 5, 2020

कहां हो साहेबराव फडतरे?


चाहता तो था कि यादवेन्‍द्र जी की इधर की गतिविधियों पर बात करूं। हमेशा के घुमडकड़ इस जिंदादिल व्‍यक्ति ने पिछले कुछ वर्षों से फोटोग्राफी को लगातार अपने फेसबुक वॉल पर शेयर किया है। उन छवियों में 'अभी अभी' का होना इतना प्रभावी हुआ है कि शाम और सुबह की रोशनी में वर्तमान राजनीति के षडयंत्रों पर भी लगातार टिप्‍पणी की छायाएं बहुत साफ होकर उभरती हुई हैं। लेकिन अपने अनुवादों के लिए प्रसिद्ध यादवेन्‍द्र जी के मेल से प्राप्‍त एक महत्‍वपूर्ण पत्र को प्रकाशित कर रहा हूं। अनुवादों में यादवेन्‍द्र जी के विषय चयन उनके भीतर के उस व्‍यक्ति से भी परिचय रहे हैं, जिसकी काफी स्‍पष्‍ट झलक प्रस्‍तुत पत्र के प्रभाव में भी दिखती है।

सभी चित्र यादवेन्‍द्र जी के ही हैं।

 

वि गौ   

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कहां हो साहेबराव फडतरे? कैसे हो? उम्मीद नहीं पक्का भरोसा है कि अब तक बंदीगृह से मुक्त हो गए होगे और लगभग पचपन साल का प्रौढ़ जीवन एक बार फिर से  पटरी  पर लौट आया होगा - चाहे अध्यात्म के रास्ते पर...या गृहस्थी के रास्ते पर।भारत भ्रमण के अपने सपने को पूरा करते हुए यदि कभी इधर पटना या बिहार का कार्यक्रम बनाओ तो तुम्हें अपने घर आमंत्रित करना मुझे बहुत अच्छा लगेगा।

(पच्चीस साल पुरानी बात है मैंने किसी अंग्रेजी अखबार या पत्रिका में(अब नाम याद नहीं) पुणे के येरवडा जेल के कैदी कवियों की कविताएं अंग्रेजी अनुवाद में पढ़ी थीं। उस पढ़ कर मैंने जेल के प्रमुख को उन कवियों की कविताओं के हिंदी अनुवाद करने की इच्छा के साथ एक अनुरोध पत्र लिखा था जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।कुछ कवियों के साथ मेरा सीधा पत्र व्यवहार भी हुआ और उनमें से कुछ ने काम चलाऊ हिंदी में और कुछ ने मराठी में कविताएं मुझे भेजीं। कविताओं के साथ साथ उन्होंने अपने जीवन अनुभव और सजा के कारणों के बारे में भी मुझे बताया। इस सामग्री का उपयोग कर मैंने अपनी मित्र क वि सीमा शफक के साथ मिलकर "अमर उजाला" की रविवारी पत्रिका के मुखपृष्ठ के लिए एक विस्तृत आलेख तैयार किया - दुर्भाग्य से वह प्रकाशित सामग्री मेरे पास अब नहीं है पर एक कवि साहेबराव फड तरे की यह चिट्ठी आज हाथ लगी।इस चिट्ठी के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं:)
यादवेन्द्र yapandey@gmail.com
09411100294






 । श्री।
।। ओम, नमो गणेशाय।।

पुणे -येरवडा
दिनांक 27- 11- 1995

प्यारे भाई साहब यादवेंद्र जी, अनोखा साथी साहेबराव का प्यार भरा सलाम

खत लिखने का वजह आपका अंतर्देशी कार्ड मिला। पढ़कर आपके दिल की बात मालुम हो गयी। मेरे यहां के साथी (कवि) उनको आपका अड्रेस देता हुं। और कविताये भेजना या नही भेजना यह उन्ही के ऊपर छोड़ देना। क्योंकि हरेकी पसंती अलग-अलग होती है। मैं और एक बात आपसे पुछना चाहता हुं। की जो कभी हिंदी में ही कविताये लिख रहे हैं। उनकी कविता भेज दिया तो चलेगा क्या? अगर आपने लिखा चलेगा, तो उन्ही को भी आपका अड्रेस दे 
दुंगा।
 आपने और चार पांच कविताये मांगी है। मैं जरूर भेज दुंगा।
 लेकीन पहले कवि तों का अनुवाद पसंत आया तो।
**********
आपको मैंने पहले "आक्रोश" नाम की कविता भेजी थी। उसमें दुःख से रोने वाला मैं अब बोल रहा है - "अब रोना छोड़ दे"। इतना फर्क मुझ में क्यु हो गया। इसकी वजह मेरी जन्मठेप सजा है। मैंने दुःख को ही गुरु बनाया। और दुःख का वजह भी ढुंडा। अब मुझे ऐसा लग रहा है। मुझे सजा हो गई यही अच्छा हुआ। मैंने अपने बिवी को खत लिखा की तुम मेरी जिंदगी में आयी, इसलिए मुझे खुदा मिला। अब छुटने के बाद अगर तुम मेरे जिंदगी में आने की कोशीस की तो मैं तेरे पैर छु लेगा। मैं तुझे मां कहुंगा। तुझे दुसरी शादी बनाना है तो बना डाल।
**********
भाई साब, अपनी दोस्ती कितने दिनों की है। यह मुझे भी मालुम नहीं। खुदा ने चाहा तो, आप से बाहर भी मुलाकात होगी। आप अपनी एड्रेस मराठी दोस्तों से लॉन्ग फॉर्म में लिखवा के भेजना (अच्छी अक्षर में) ।अब मेरी उम्र 39 साल की चालु है। अब मेरे पास लिखने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए कविता भी लिखना बंद कर दीया है। आप मेरी नजर बाहर की दुनिया में लगी है। सन्यास ले के मैं पैदल से भारत भ्रमन  कर दुंगा। और क्या लिखुं। आपको लिखने के वजह से मैं अपनी बिती हुयी जिंदगी में घूम के आया। जो भुल गया था, उसको याद करना पड़ा। अच्छा कोयी बात नहीं। आपके आने वाले लेटर की राह देखुंगा। आपके दोस्त यार, घर वालों को सलाम।
आपका अनोखा दोस्त 
साहेबराव फडतरे

(यहां मैंने वर्तनी की अशुद्धियां प्रामाणिकता को बरकरार रखने के उद्देश्य से छोड़ दी हैं, मेरी कोई और मंशा नहीं है। यादवेन्द्र  )










Sunday, August 2, 2020

अपने शब्दों में सेरेना विलियम्स

यह हमारे लिए गर्व की बात है कि वर्ष 2008 के आस-पास इंटरनेट की दुनिया में अपने लिखे हुए के प्रकाशन के लिए यादवेन्द्र जी ने सर्वप्रथम इस ब्लाग को ही चुना। दूसरी भाषओं के अनुवाद ही नहीं, यादवेन्द्र जी की रचनाएं भी इस ब्लाग को तब से ही समृद्ध करती रही हैं।

इस दौरान अनुवादों पर आधारित उनकी दो किताबें प्रकाशित हुई हैं।

हिंदी की दुनिया यादवेन्द्र जी को उनके अनुवादों की वजह से ही नहीं, उनके विषय चयन से भी पहचानती है। टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स के जीवन संघर्ष का ब्योरा प्रस्तुत करने की कोशिश उनकी अगली पुस्तक का विषय है।

प्रस्तुत है संभावना प्रकाशन,हापुड़ से इस साल के अंत तक प्रकाशित होने वाली उनकी किताब का एक अंश।

यादवेन्द्र

 

हालाँकि सेरेना अपने बारे में व्यक्तिगत विवरणों का ज्यादा खुलासा करने की अभ्यस्त नहीं हैं फिर भी मीडिया में उपलब्ध उनके कुछ इंटरव्यू से लिए गए उद्धरणों के आधार पर उनकी शख्सियत को समझना कुछ कुछ संभव है : 

 

वैसे मैं बहुत साफ तौर पर तो नहीं जानती लेकिन मुझे लगता है कि मैंने जब से होश संभाला तब से मुझे मालूम है कि मैं काली हूं। जिस दिन से मैं टेनिस की दुनिया  में आई हूँ  उस दिन से मुझे ऐसा ही लगता है। जब हम छोटे थे उस समय के बारे में बताती हूँ : हम घर से बाहर निकल कर पास के पार्क में जाते थे जहाँ  हम खेलने की प्रैक्टिस करते थे। उन पार्कों में हमें हमेशा गोरे लोग दिखाई देते थे , शायद ही कोई काला इंसान दिखाई देता था...वे वहाँ  टेनिस खेला करते थे। जहाँ  तक मेरी स्मृति जाती है, मुझे लगता है कि शुरू से मुझे मालूम था : मैं काली हूँ । मुझे यह भी मालूम था कि मैं औरों से थोड़ी अलग हूँ , जो मैं कर रही हूँ वह औरों से कुछ अलग है। हमारे साथ हमारा परिवार होता था, वीनस होती थी हमारी अन्य बहनें भी होती थीं।एक बार की बात याद आती है जब मैं और वीनस प्रैक्टिस कर रहे थे, आसपास के तमाम गोरे लड़के हमारे पास आये और हमें घेर कर खड़े हो गए -वे ब्लैकी ब्लैकी कह कर हमें चिढ़ाने लगे।तब मेरी उम्र सात साल के करीब रही होगी... मुझे अच्छी तरह याद है,उनका चिढाना सुन कर मेरे मन में निश्चय आया : मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता,तुम्हें जो कहना हो कहते रहो। अब सोचती हूँ तो लगता है कि उस उम्र में ऐसी बातें सोचना बहुत सामान्य नहीं था, उसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए.... वह हिम्मत मुझ में शुरू से ही थी।

 

मेरे माता पिता शुरू से यह चाहते थे और हमें सिखाते थे कि हम जो हैं जैसे हैं,उसके लिए हमारे मनों में किसी तरह की शर्मिंदगी नहीं बल्कि गर्व का भाव होना चाहिए।      अफ़सोस यह कि अपने आसपास हम देखते हैं बहुत सारे काले लोगों -खास तौर पर युवाओं  को -हर पल यह कह कर निरुत्साहित किया जाता रहता है कि तुम बदसूरत हो...तुम्हारे केश भद्दे लगते हैं...तुम्हारी त्वचा कितनी काली है। हमें शुरू से खुद को प्यार करना, खुद को सम्मान देना सिखाया गया। मेरे डैड हमेशा कहते कि तुम्हें अपना इतिहास अपनी विरासत जाननी चाहिए - जो अपनी विरासत  अपना इतिहास जानता है वही अपने भविष्य को महान ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। हम लोगों को शुरू से टीवी पर अपने इतिहास, अपने संघर्षों, अपने विरासत के प्रोग्राम देखने को कहा जाता था .......एलेक्स हेली के आत्मकथात्मक उपन्यास पर आधारित रूट्स जैसे प्रोग्राम - इस तरह के कार्यक्रम हम जरूर देखते थे और ढूंढ ढूंढ कर देखते थे जिससे हम अपने इतिहास से रू ब रू हो सकें। जब आप अपने पुरखों को इस तरह के संघर्षों से जूझते हुए विजयी होकर निकलते हुए देखते हैं तब आपका मन गर्व से भर जाता है और भविष्य के लिए रास्ते खुलते हैं। माया एंजेलू ने भी तो अपनी कविता में कहा है: हम गुलामों की उम्मीदें हैं, हम गुलामों के सपने हैं। यह पता चलने के बाद कि अपने पुरखों के ऐसे कठिन संघर्षों की बदौलत आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं और ढ़ंग की जिंदगी जी रहे हैं , मैं काले रंग के अलावा किसी और रंग में जन्म नहीं लेना चाहती। किसी और कुल वंश (रेस) का  सैकड़ों सैकड़ों सालों का ऐसा कठिन संघर्ष का इतिहास नहीं रहा है और यह तो जगजाहिर है कि मजबूत इंसान ही काल के थपेड़ों को झेल कर जिंदा बच पाते हैं,पनप पाते हैं - कोई शक नहीं कि हम काले लोग शरीर और मन दोनों से सबसे मजबूत लोग हैं।अपने जीवन के पल पल मैं अपना काला रंग धारण कर के गौरवान्वित महसूस करती हूं।

 

वीनस ने और  मैंने टेनिस की दुनिया में जब से कदम रखा है सफलता हमारे पक्ष में रही है और हम दोनों एक के बाद एक अगली  सीढ़ी पर चढ़ते गए हैं। हम दोनों में एक और बात समान थी कि हम अपने किए को लेकर कभी किसी तरह की शर्मिंदगी नहीं महसूस करते थे।हम अपने केशों में जिस तरह की लड़ियाँ  बनाते थे उसको लेकर हमें कभी यह नहीं लगा कि घर से बाहर निकलेंगे तो कैसा लगेगा। गोरों की दुनिया का खेल है टेनिस और हम काले थे लेकिन हमें कभी उनके बीच रहकर खेलते हुए डर नहीं लगता...यह कोई सहज सामान्य बात नहीं थी पर हममें थी।

 

हमारी माँ ने हमें बचपन से भावनात्मक रूप से मजबूत बनाया जिससे जब दर्शक हमारे काले होने या स्त्री होने को लेकर फब्तियाँ  कसें या हमें निशाना बनाएँ तो मालूम हो हमें उससे कैसे निबटना है। उन्होंने हमें यह पाठ पढ़ाया कि हम जैसे हैं  उस पर किसी तरह की शर्मिंदगी न महसूस करें - खास तौर पर अपने केश और शारीरिक बनावट को लेकर , अपनी विरासत, अपने पुरखों के संघर्ष को लेकर मन में निरंतर गर्व का भाव महसूस करें। मुझे उनकी परवरिश का यह पक्ष सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है। मैं अपनी बेटी को इन्हीं मूल्यों के साथ बड़ा कर रही हूँ ।

 

 जब मैं किसी काम को हाथ लगाती हूँ  तो उतना फोकस अपने काम में लाती हूँ  जिससे मैं दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बन जाऊँ - और ऐसा नहीं कि मैं इतने से संतुष्ट हो जाती हूँ   बल्कि निरंतर और बेहतर काम करने की कोशिश करती हूँ । काफी कम उम्र में - जहाँ  तक मुझे याद आता है 17 साल की उम्र में - मैंने अपने बारे में अखबारों में छपा कोई समाचार पढ़ना छोड़ दिया था।मुझे लगता है कि इस आत्मसंयम के कारण मुझे बहुत लाभ हुआ, मैं अपने खेल पर ज्यादा फोकस कर पाई। मैं उन दिनों को याद करती हूँ तो मुझे लगता है  मेरे खेल की ज्यादा नुक्ताचीनी इस लिए की जाती थी क्योंकि मैं मुझमें आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा हुआ था - लोगों को ताज्जुब होता था मैं गोरी नहीं बल्कि काली हूँ , गोरों का खेल टेनिस खेलती हूँ  और आत्मविश्वास से इतनी लबरेज हूँ , ऐसा कैसे हो सकता है?

 

मैं अपने आप को हमेशा यह कहती थी कि मैं एक दिन दुनिया की नंबर एक टेनिस खिलाड़ी बनूँगी, मुझ में वह काबिलियत है। और हाँ मैं क्यों न सोचूँ  ऐसा - जब मैं दुनिया के शिखर पर होने के बारे में सोचूँगी ही नहीं तो मैं उस श्रेणी का खेल खेल भला कैसे सकती हूँ ?

 

एक समय ऐसा था जब अपने शरीर को लेकर मैं खुद भी असहज रहती थी, मुझे लगता था कि मैं बहुत बलवान और हृष्ट पुष्ट हूँ । फिर एक सेकंड को सोचती: कौन कहता है कि मैं इतनी बलवान और तगड़ी हूँ ? इसी शरीर ने तो मुझे दुनिया का महानतम खिलाड़ी बनाया, मैं उसके बारे में ऐसी ऊल जलूल बातें भला क्यों सोचने लगी।और आज मेरा यही शरीर एक स्टाइल बन गया है, मुझे इसके बारे में सोच सोच कर बहुत अच्छा लगता है। अब वह समय आ गया है जब मेरा यही शरीर दुनिया भर में एक स्टाइल बन कर धूम मचा रहा है। यहाँ  तक पहुँचने में वक्त लगा - जब मैं पीछे मुड़ के देखती हूँ  तो अपने अपनी मॉम और डैड का शुक्रिया अदा करना कभी नहीं भूलती जिन्होंने बचपन से मुझ में विश्वास कूट कूट कर भरा।

ऐसा भी तो हो सकता था कि वे  रंग,केश और शरीर को लेकर मुझे औरों की तरह हतोत्साहित करते... तब तो मैं आज जिस सीढ़ी पर हूँ  वहाँ  तक पहुँचने का कोई सवाल ही नहीं होता। तब मैं अलग तरह से अपना जीवन जीती,अलग ढंग की एक्सरसाइज करती, कोई और अलग ही काम कर सकती थी। आज यहाँ खड़े होकर मैं जो कुछ भी हूँ , जैसी भी हूँ  उसको लेकर  बेहद खुश हूँ ,जिन लोगों ने मुझे इस मुकाम तक पहुँचने में मदद की उनकी  शुक्रगुजार हूँ । मुझे इस रूप में ऐसा होना बहुत रास आ रहा है, यहाँ खड़ी होकर मैं बेहतर और शक्ति संपन्न महसूस कर रही हूँ।"

 

अपनी आत्मकथा "क्वीन ऑफ़ द कोर्ट : ऐन ऑटोबायोग्राफ़ी" में सेरेना विलियम्स बचपन का उदहारण देती हैं कि अपने को सर्वश्रेष्ठ मानने की धुन मेरे  ऊपर इस कदर सवार थी कि प्रेरक उद्धरणों को कागज़ पर लिख कर मैं  अक्सर अपने रैकेट बैग के ऊपर उन्हें चिपका देती स्व मार्टिन लूथर किंग जूनियर का यह उद्धरण मुझे  बेहद प्रिय था :" अपने भावों को चेहरे पर मत आने दो तुम काले हो और तुममें कुछ भी झेल लेने की कूबत है ....डटे रहो डिगो नहीं ,झेल लो जो भी सामने आये .... बस तन कर खड़े रहो। " और "शक्तिशाली बनो काले हो तो क्या हुआ अब तुम्हारे चमकने निखरने का वक्त आ गया है अपनी श्रेष्ठता पर भरोसा रखो। लोग तुम्हें क्रोधित देखना चाहते हैं .... क्रोध करो,पर ऐसे करो कि लोगों को यह आग दिखायी न दे।" 

जाहिर है उन्हें अपनी ऐतिहासिक भूमिका और जिम्मेदारी का भरपूर एहसास है तभी तो वे कहती हैं :"मैं खुद के लिए खेलती हूँ पर साथ साथ उनके लिए भी खेलती हूँ जिनकी हैसियत मुझसे ज्यादा बड़ी है - मैं उनका प्रतिनिधित्व भी करती हूँ। मैं अपने बाद आने वाली पीढ़ी के लिए भी दरवाज़े खोलती हूँ।"

 

(सेरेना की तस्‍वीरें इंटरनेट से साभार ली जा रही हैं)


Tuesday, November 6, 2018

मुर्गी को भी इंसानी भूत बना देते हैं वे


पेशे से एक अमेरिकी विश्व विद्यालय की प्रोफेसर एंजेला सोरबी कवि,कथाकार,बाल साहित्यकार और साहित्य की समालोचक हैं।उनके अनेक संकलन प्रकाशित और पुरस्कृत हैं।बर्ड स्किन कोट , डिस्टेंस लर्निंग और द स्लीव वेव्ज़ उनके प्रमुख संकलन हैं। अमेरिका के लोकप्रिय रेडियो एनपीआर के छोटी कहानियों के प्रोग्राम 'थ्री मिनट फ़िक्शन' के राउंड 6 (2011) में यह कहानी शामिल थी और सर्वश्रेष्ठ कहानी के चयन की निर्णायक चिमामांडा अदिची ने इस कहानी की विशेष चर्चा की थी। अमानवीय परिस्थितियों में काम करने वाली श्रमिक चीनी युवतियों को केन्द्र में रख कर लिखी गयी इस कहानी के बारे में वे कहती हैं कि यह बेहद संयम के साथ लिखी गयी कहानी है जिससे भावुकता का अतिरेक हावी नहीं होने पाया। यह व्यक्तियों को केन्द्र में नहीं रखती बल्कि आत्मा तक को मटियामेट कर देने वाली कार्य संस्कृति पर आघात करती है।ऊपरी तौर पर कहानी के किरदार जिंदा दिखते हैं पर राक्षसी काम ने उन्हें मार कर चलता फिरता भूत बना दिया है...यहाँ तक कि बुनियादी इंसानियत तक उनमें नहीं बची।

प्रस्तुति एवं चयन : यादवेंद्र 


                                              लाल पत्तियों वाला पेड़ 

                                                                                - एंजेला सोरबी

लैन काम पर देर से पहुँची तो उसकी बॉस चिल्लाने लगी : 'मालूम नहीं, तुम्हें यहाँ ठीक सात बजे पहुँचना था?' लैन ने पलट कर पूछा :'भला क्यों? सात बजे ऐसा खास क्या होने वाला होता है?' 
कल तो यह हँसी मज़ाक में हुआ था पर आज वैसा नहीं था...यह वाकया खूबसूरत खाल वाले कछुए सरीखा था,ऊपर से चमक दमक पर पलटते ही सड़ा हुआ गोश्त।
जिंग से मेरी कोई खास दोस्ती नहीं है पर फैक्टरी में जहाँ खड़ी होकर मैं काम करती हूँ उसी के पास वह भी खड़ी होकर काम करती है - उसका काम खूबसूरत पॉली बैलेरिना के सिर पर बाल चिपकाना है,मैं उनमें गाँठें बाँधती हूँ।पर हम यह काम अपने हाथ से नहीं करते,रोबोट से करते हैं...ऐसा नहीं कि रोबोट खुद ब खुद सारा काम सम्पन्न कर देता है,उसे भी इंसानी सहयोग चाहिए।काम करते हुए शॉप फ्लोर पर हमें एक दूसरे से कुछ भी बात करने की मनाही है फिर भी बातें छुपी कहाँ रह पाती हैं यहाँ से वहाँ तक फैल ही जाती हैं: अभी महीना भी नहीं हुआ था उसको हुनान के किसी गाँव से यहाँ आये कि ऐन यी लॉन्ड्री वाली छत से नीचे कूद गई...नीचे जहाँ लोगबाग पक्षी और फूल बाजार जाने के लिए 17 नं की बस के लिए खड़े थे,उसकी लाश उनके बीच सड़क पर पड़ी रही।
'मुझे अंदेशा था ऐसा होगा',जिंग ने छूटते ही कहा...'वह रातभर जगी रहती थी,कभी कुछ मिनट के लिए आँख लग जाये तो अलग बात...क्या उसकी आँखों के नीचे थैलियाँ लटकी हुई दिखाई नहीं देती थीं?आधी रात को शतरंज उठा कर वह पीछे के गलियारे में आ जाती और एक भूत के साथ देर तक बैठ कर खेलती - वह जगह कोई दूर थोड़े ही है,यहीं पास की दो फैक्ट्रियों की डॉरमिटरी के बीचोंबीच जो लाल पत्तियों वाला पेड़ है वहीं पर वह बैठ कर शतरंज खेला करती थी।'
'जिंग,यह तो सीरियस बात है।', मैं अपने काम के लिए रोबोट को हिदायत देते हुए बोल पड़ी:'यानि ऐन यी सहज मौत नहीं मरी है,उसने खुदकुशी कर ली।'
'उसी भूत ने उसे ऐसा करने को कहा था',जिंग एक रौ में बोलती गयी:'जानती हो वह भूत कौन था?पिछले साल ऐसे ही कूद कर खुदकुशी करने वाली एक लड़की....उसी ने उसे अपनी तरह कूद कर मर जाने को उकसाया।'
'मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुम भी  इतनी अंधविश्वासी हो सकती हो जिंग।तुम तो हुनान के किसी गाँव की अनपढ़ गंवार जैसी बातें कर रही हो।'गुस्से से मेरे कान गरम हो रहे थे जबकि मैं खुद हुनान से यहाँ आयी हूँ पर ऐसी दकियानूस बातों से कोसों दूर रहती हूँ।
जिंग ने मेरे तेवर देख मुझसे नज़रें मिलायीं...उसका चेहरा पीलापन लिए हुए लम्बोतरा है,किसी पुरानी मोटी सी जड़ सरीखा।बोली:'तुम्हें मालूम हैऐन यी अपने साथ हरदम एक मुर्गी रखा करती थी?'
'मुर्गी?क्या खाने के लिये?'
'धत,खाने के लिए नहीं...पालने के लिए।उसको सीने से चिपका कर रखती थी,इससे उसको सुकून मिलता था।पिछले हफ़्ते जब डॉरमिटरी वाले गैरकानूनी चीजों को हटाने के लिए कमरों की तलाशी ले रहे थे तब मुर्गी को पकड़ कर अपने साथ ले गए।'
जिंग की बातें सुनकर मैं मन ही मन में ऐन यी की छवि निर्मित करने लगी जिसमें वह अपनी पालतू मुर्गी को सीने से चिपकाए हुए खड़ी है...हाँलाकि उसको शायद ही मैं निकट से जानती थी।कल्पना में मुझे वह रोती हुई दिखी और आँसू छुपाने के लिए मुर्गी के पंखों के बीच घुसती हुई...
'चाहे कुछ भी हो उसे नियम नहीं तोड़ना चाहिए था',मैं स्वतःस्फूर्त ढंग से बोल पड़ी...हाँलाकि बोलते हुए मेरा मन वही करने को कह रहा था जिसको न करने की बात मैं कह रही थी - मुझे भी एकदम से एक मुर्गी पालने की इच्छा हो आयी... और मन हुआ कोई भूत आधी रात मेरे पास आये और छत से नीचे छलाँग लगा देने को कहे।
'उसने अपनी मुर्गी का पुकारने का नाम भी रखा हुआ था - पेंग्यू...अपने इलाके की भाषा में वह हर रात पेंग्यू को लोरी गा कर सुनाती थी।'
'पर यह बताओ,तुम्हें इतना सब कुछ मालूम कैसे है? तुम तो उसकी डॉरमिटरी में रहती भी नहीं थी।'
मेरा यह सवाल सुन कर जिंग इतनी जोर से ठहाका लगा कर हँसी कि उसका पूरा शरीर कांप गया...और दूर खड़ी लड़कियाँ उसे घूर घूर कर देखने लगीं।वह बोली: 'मैं यह सब कैसे जानती हूँ?इसलिए जानती हूँ कि मैं भी एक भूत हूँ, जिंदा इंसान नहीं।'
'झूठमूठ गप्पें मत हाँको जिंग',मैं तपाक से बोल पड़ी।वैसे उसको एक के बाद एक किस्से सुनाने की आदत थी...कभी लाल पत्तियों वाले पेड़ का,कभी जादुई अंगूठियों का...कभी हंसों का किस्सा तो कभी बेमौसम फलों का।
'पर तुम भी वही नहीं हो क्या मेरी दोस्त?सच बताना,तुम भूत नहीं तो क्या जिंदा इंसान हो?'
मैं ने कोई जवाब नहीं दिया...वैसे मैं जिंग की नजदीकी दोस्त हूँ भी नहीं कि उसकी तरह खुद को जिंदा इंसान नहीं भूत मानने लगूँ।पर विडम्बना यह है कि हम दोनों यहाँ एक दूसरे से सट कर खड़े हैं।परिस्थितियाँ हर समय एक सी नहीं रहतीं,बदलती रहती हैं।कौन जाने इनके पीछे क्या है,कौन है?
तभी मुझे एहसास हुआ हमारे चारों ओर तमाम लड़कियाँ खड़ी धीमी आवाज़ में बातें कर रही हैं...उनके स्वर स्पष्ट नहीं थे,मशीनों का शोर उन्हें ढाँपे दे रहा था।