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Monday, July 28, 2014

ऑल द बेस्ट मॉ

हिन्दी कविता में पहाड़ के दर्द को दर्ज करने वाले कवियों के बीच रेखा चमोली की रचनाओं में पहाड़ की स्त्रियों के जीवन के अनेकों चित्र देखें जा सकते हैं। स्त्री विमर्श के व्यापक दायरे में उनके संकेत, बहुत सीमित लेकिन लगातार के सामाजिक बदलावों में अपने व्यवहार को बदलते पुरूष के प्रति स्त्री मन की स्वीकरोकित के साथ हैं। सीधे वार करने की बजाय दोस्ताना असहमतियों में अपने साथी पुरूष को उन सामंती प्रवृत्तियों से मुक्त होने का अवसर देते हुए, जो हजारों सालों की परम्परा में पुरूष प्रकृति में ऐसे समाया हुआ होता है कि प्रगतिशील होने की चाह रखता कोई भी पुरूष कभी भी जिसकी जद में देखा जा सकता है। पुरूष मन के भीतर जाकर लिखी गयी कविता ताना-बाना अपने ऐसे कथ्य के कारण महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रस्तुत है रेखा की नयी कविताऐं।
 यूं अभिव्यक्ति का कच्चापन रेखा की कविताओं को किसी खास वैचारिक दायरे की बजाय मासूमियत भरा है। विमर्श की प्रकिया में रचनात्मक कमजोरी के इस बिन्दु से रेखा को लगातार टकराना चाहिए ताकि विचार की परिपक्वता में कविताओं के दायरे विस्तार पायें।
वि.गौ.

ताना-बाना                            


किसी जुलाहे के ताने-बाने से कम नहीं
उसके तानों का जाल
जिसमें न जाने कैसी-कैसी
मासूम चाहतें
पाली हैं उसने  
कभी एक फूल के लिए महकती
तो कभी
धुर  घुमक्कड बनने को मचलती
रोकना-टोकना सब बेकार
ऐसा नहीं कि
मेरा मन नहीं पढ़ पाती
बनती जान बूझकर अनजान
कभी नींद में भी सुलझाना चाहूॅं
उसके तानो का जाल तो
खींचते ही एक धागा
बाकि सब बजने लगते सितार से
हो जाती सुबह
धागा हाथ में लिए
उसके कई तानों का
मुझसे कोई सरोकार नहीं
जानकर भी
मन भर-भर तानें देती
तानेबाज कहीं की

उसके तानों के पीछे छिपी बेबसी
निरूत्तर कर देती
तो कोई शरारत भरा ताना
महका जाता तन-मन
जब कभी
मस्त पहाड़न मिर्ची सा तीखा छोंका पड़ता
उस दिन की तो कुछ ना पूछिए
और जब
कई दिनों तक
नहीं देती वो कोई ताना
डर जाता हूॅ
कहीं मेरे उसके बीच बने ताने-बाने का
कोई धागा ढीला तो नहीं हो गया।                  


नींद


एक सुकून भरी नींद चाहिए
जिसमें ना हो
कोई सपना
प्रश्न
द्धन्द
चीख
खून
ऑसू
दुख
बीमारी
जन्म-मृत्यु
यहॉ तक कि
हॅसी-खुशी
यादें
भविष्य के लिए योजनाऍ
भी ना हों
बस एक शांत नींद चाहिए।



चाहना


चाहना कि
प्रेम के बदले मिले प्रेम
स्नेह के बदले सम्मान
मीठे बोलों के बदले आत्मीयता
तार्किक बातों के बदले वैचारिक चर्चाऍ
मिट जाएं समस्याऍ
सॅवर जॉए काम
आसान नहीं
बदलाव के लिए
और भी बहुत कुछ करना होता है
चाहने के साथ।


कसूर


कपडे-मेकअप
चाल-ढाल
खान-पान
रहन-सहन
उठना-बैठना
शक्ल-सूरत
रंग-ढंग
सब हमारा दोष
तुम तो बस
अपनी कुंठाओं से परेशान
उसे यहॉ-वहॉ उतारने को आतुर
तुम्हारा क्या कसूर ?


ऑल द बेस्ट मॉ


घर -गृहस्थी, नौकरी
पचासों तरह की हबड-तबड के बीच
मॉ को कहॉ समय
देख पढ ले किताबें
मॉ के काम
मानों दन्त कथा के अमर फूल
जितने झरते उससे कई गुना खिलते
पलक झपकाने भर आराम के बीच
किताबें तकिया बन जाती
बुद्ध न बन पाने की सीमाओं के बाबजूद
मैत्रेयी और गार्गी बची रह गयीं
मन के किसी कोने में
इसीलिए
मनचाहा विषय ना मिलने पर भी
मॉ नहीं घबरायी
अब तक मनचाहा मिला ही कितना था ?
तो , मुझे अच्छा लगेगा कहकर
मॉ ने जता दिया
इसबार कोई उसे रोक नहीं पाएगा
आज मॉ निकली है
बेहद हडबडी में
परीक्षा देने
वैसे ही जैसे
रोजमर्रा के अनगिनत मोर्चों पर निकल पडती है
अकेली ही
ऑल द बेस्ट मॉ।


ड्राइवर


मत चलाओ
इतनी तेज गाड़ी
ये पहाड़ी रास्ते
गहरी घाटियों में बहती तेज नदी
जंगल जले हुए
लुढ़क सकता कोई पत्थर
जला पेड़
मोड़ पर अचानक

तेज बरसात से
बारूदी बिस्फोटों से
चोटिल हैं पहाड़
संभल कर चलो
गाड-गदने अपना
पूरा दम खम दिखा रहे

ड्राइवर
मत बिठाओ
इतनी सवारी
शराब पीकर गाड़ी मत चलाओ
फोन पर बात फिर कर लेना

कुछ दिन पहले
देखा तुम्हें
कॉलेज आते-जाते
कहाँ सीखी ये हवा से बातें करना?

ऐसा भी क्या रोमांच?
जो गैरजिम्मेदार बना दे

मेरे घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं
तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?







रेखा चमोली
जोशियाडा
 उत्तरकाशी ,उत्त्ाराखण्ड
मो 9411576387




Sunday, February 26, 2012

सहमति और असहमति जताती दृढ़तायें

कविता, सहमति और असहमति जताती दृढ़्तायें हैं, कहने वाली रेखा चमोली की कविताओं में प्रेम की ताजगी से भरपूर उत्साह पर्वतों से निकलती किसी ताजा नदी की तरह बरबस ध्यान खींचता है. पहाड की जिन्दगी के बिम्बों से भरपूर इन कविताओं की सादगी में जीवन की सहज गतिविधियां जिस तरह दर्ज हुई हैं उन्हें देखकर आश्चर्य होता है. ये कवितायें एक स्त्री के नजर से दुनिया की बहुत मामूली किन्तु मह्त्वपूर्ण चीजों को दर्ज करते हुए स्त्री के होने की विडम्बना को भी उजागर करती हैं. 
प्रस्तुति एवं चयन : नवीन नैथानी


रेखा चमोली

कविता

कविता नहीं है सिर्फ कुछ शब्द या पंक्तियॉ
कविता
सहमति और असहमति जताती दृढताऍ हैं
रुंधे हुए गले में रुकी हुई पीडाऍ हैं
सच्चाई को हारता देख
बेबस लोगों का बिलाप हैं
तो बार-बार गिरने पर
फिर-फिर उठने का संकल्प भी हैं
कविता अपने बचाव में हथियार उठाने का विचार हैं
साहस की सीढियॉ हैं
कविता उमंग हैं उत्साह हैं
खुद में एक बच्चे को बचाए रखने का प्रयास हैं।

पुकार


एक अनाम नदी
बादलों के पास, सागर का संदेशा पाकर
दौडती चली आयी
पर्वतों, घाटियों ,जंगलों ,बस्तियों को
लॉघती ,फलॉगती
कोई अवरोध उसे रोक नहीं पाया
सागर के पास आने से

पास आकर देखा
सागर उत्साह से हिलोरे मार रहा था
पर यह उत्साह सारी नदियों के लिए
एक समान था
नदी सागर में मिलकर अपना मीठापन खो चुकी थी
सागर नदी को खुद में समाकर बेहद प्रसन्न था
उसकी बॉहें फैली हुयी थीं
बाकि सारी नदियों के इन्तजार में
बादल उसके संदेशे लिए आ जा रहे थे।



शुभ संकेत

गर्भ में
ज्यों ही पनपता है
स्त्री शिशु
एक अदृश्य शिकायत पेटी भी
बॅध जाती है उसके साथ
उसकी उम्र के साथ ही
बढता जाता है जिसका आकार
और इसमें सिवाय उसके
सारी दुनिया दर्ज करा सकती है
अपनी शिकायतें
उसके इस दुनिया से जाने के बाद भी
इन शिकायतों को नष्ट नहीं किया जाता
बल्कि किसी इतिहास की पुस्तक की तरह
जब तब अन्य महिलाओं के बीच
पढा जाता है
जिससे वे सबक लें
और उनकी शिकायत पेटी में
दर्ज हों
कम से कम शिकायतें
पर ये शिकायतें हैं कि
बढती ही जा रही हैं लगातार।


इन्तजार

ओ प्यारे सूरज
कहॉ छुप गए हो तुम
किसी लम्बी छुटटी पर गए हो क्या ?
माना कि
हरियाली
बारिश
भीगना
उपजना
लहलहाना
बेहद पसंद है मुझे
पर तुम्हारे बिना ये सब मनभावन कहॉ ?
तुम्हारे बिना
रपटीले हो गए हैं रास्ते
जिन पर से गुजरते हुए
भारी बोझ और गीले तन के साथ
गिरती पडती हैं घसियारिनें
ग्वालों को छानी से गॉव आने तक
जान पर खेलना पडता है
स्कूली बच्चे
गाड-गदने पार करते हुए
गिर-पड जाते हैं
खेतों से खर-पतवार हटा-हटा कर थक गयी हैं बहू-बेटियॉ
छोटे बच्चों के गदेले-पजामें
सुखाने का जतन करते-करते परेशान हैं मॉए
और पहाड
उसे तो मानो दरकने का
एक और बहाना मिल गया है
नदी का गुस्सा अपने चरम पर है
ऐसे में
ओ प्यारे सूरज !
आओ 
और भर दो सारी घाटियॉ, खेत-खलियान
घर-ऑगन उजली स्वच्छ धूप से।