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Thursday, March 31, 2016

हिलाये से तो हिलते नहीं अभी


कूदा, हिला जाये ?
वैसे अभी फुरसत नहीं। हिलने में तो यूं भी घोड़े की ही टांग टूट जाती है, फिर आदमी का क्‍या। रहा कूदने का मसला तो गुजरात से कश्‍मीर तक छलांग लगा देना कोई छुपा हुई बात नहीं, विरोधियों तक का हांफना गवाह है। आप क्‍यों उबल रहे हैं, जो अबकी बार हम आपके शहर में न आकर ओल्विया-बोल्विया को निकल गये। अरे भाई जापान गये थे तो पैगाम दिया ही था बुलैट बुलैट। अपनी यादाश्‍त को दुरस्‍त रखिये, बताइये तो कहां कहां हो आये हैं ? सब्र करो, आ ही जायेंगे आपके पास, अभी तो यूं भी वर्ष 2016 है। हमारे सबसे करीबी बाबा तो हर रोज आपके करीब आते जाने की जुगत पर जुगत के साथ। पतंग जली जली जो उड़ रही है, हमारी ही है। भभूत-फभूत ही नहीं जूस-फूस तक के साथ जो भी कारोबार है, किसी बाहरी आदमी के लिए तो नहीं न। अब देखो न करीबी के वास्‍ते ही तो वायु सेवा शुरू करने जा रहे हैं। ऊं भागवत, भागवत। आप अपनी जन्‍म कुएडली बनवाइये। कुण्‍डलिनी जाग्रत करने न लग जायें पर। हमारे गेरुयेपन पर एतराज करने वालों की पांत में आकर साधू साधू चिल्‍लाने की बजाय याद करें रामलीला मैदान की रात जो सूट सलवार पहना था, रंग तो गेरुआ था ही नहीं उसका।

चलो-चलो, हटो-हटो। विद्यालय के छोकरा लोगों की बतकही में क्‍यों भड़क रहे हो। थोड़ा नाजुक सा ख्‍याल रखो कि स्मित मन मुस्‍कान है हम ईरानी ईरानी। समझ लो कि सलेबस, सेमस्‍टर के चक्‍कर में जो पढ़ गये होते तो अकड़ाये रहते खरे खरे।

चलो अब कूद ही लो, हिलाये से हिलते तो नहीं ही हम तुमसे अभी।                            

Friday, March 18, 2016

मेरी, तेरी, सबकी मां की जय हो भारत

विजय गौड़

 
भारत माता की जय, तू-तू, मैं-मैं की हदों को पार कर रही है। यहां तू-तू, मैं-मैं को मुहावरे की तरह ही देखें। वैसे भी मैं राष्‍ट्रद्रोही नहीं हूं। राष्‍ट्रदोह का सार्टिफिकेट बांटने वालों से अपील है कि वे अपनी सील-मुहर को अभी थैले से बाहर न निकाले और घ्‍यान से पढ़ें।

अब देखिये न एक तरफ वे महाशय जिद ठाने बैठे हैं कि मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा, दूसरी ओर माता के सच्‍चे पुत्र हैं, जो यूं तो अक्‍सर ही मां का नाम भूल जाते हैं, और वक्‍त बेवक्‍त के हिसाब से कुछ भी पुकार लेते हैं, जिद्द ठाने हैं कि भारत माता की जय तो बुलवा कर ही रहेगें। देखिये मैं राष्‍्ट्रदोही पुकार दिये जाने का खौफ खाये बगैर बता देना चाहता हूं कि कभी किसी क्रिकेटकर, किसी विराटरू या मोनी-जॉनियों के कलात्‍मक अंदाजों पर, खासतौर पर उस वक्‍त जब वे भारतीय जनता के करोड़ो रूपयों के कजर्दार किसी शराब के व्‍यापारी की खरीद पर बनायी गयी एक टीम हों या अन्‍यथा भी, जब वे विरोधी टीम के धुर्रे उड़ा रहे हों और उनका मालिक व्‍यपारी चीयर्स गर्ल्‍स की कमर में हाथ डालकर यम यम करता हो, तो औपनिवेशिक पहचान कराती भाषा में गूंजने वाले नाम के साथ माता को याद करते हुए लगाया जाने वाला जयकारा भी उनकी दमित इच्‍छाओं का यम यम हो जाता है। एक बात ओर है कि संसद, कानून और जब चाहे तब बेखौफ सरहदों के आर-पार निकल जाने वाले और सब तरफ से विजय पाये व्‍यापारी के राष्‍ट्रद्रोह को भी यदाकदा पहचान लेने वाले चैनलों के एंकर भी तू-तू, मैं-मैं को हवा देने में कम नहीं।

मजेदार है कि कितने ही चैनेलों के एंकर भी गले की नसें फुलाफुलाकर उस टोपीबाज को बिल्‍कुल सामने-सामने देशद्रोही और जाने क्‍या क्‍या बोल रहे हैं, मुकदद्दमें का डर दिखा रहे है, लेकिन वह तब भी भरत माता की जय न बोलने की जिद्द पर अड़ा बैठा है और अपने ही धर्म के एक सांसद के भावनात्‍मक इजहार तक को धत्‍ता बताकर कभी जय हिन्‍द तो कभी इंक्‍लाब जिंदाबाद ही कहे जा रहा है। भारत माता की जय का तर्जुमा करके मंद मंद मुस्‍कराते हुए वह और भी चिढ़ाऊ कार्रवाई करने में माहिर है। उसके अंदाज पर तो नसें फुलाकर बोलने वाले एंकरों से प्रभावित और देश प्रेम के क्रोध से उबल रहे भले मानुस भी कभी-कभी सारे मामले को खुद ही नूरा कुश्‍ती के रूप में देख सकते हैं।

खैर हमें इस चिन्‍ता में नहीं घुलना है और न ही तू-तू, मैं-मैं करने वालों के झांसे में आकर कभी राष्‍ट्रवाद का सार्टिफिकेट बांटने वालों के साथ होना है और न ही हर सेकैण्‍ड के हिसाब से बांटे जा रहे उन सार्टिफिकेटों को फाड़ने में जुटे नूरा कुश्‍ती लड़ते हुए मुस्‍कराने वालों के साथ होना है। खतरा तो दोनों ही ओर है। निश्चित ही है। वैश्विक पूंजी से दोनों का ही प्रेम इतना अनूठा है कि अपनी अपनी जरूरत के हिसाब से दोनों ही जनता की एक मुश्‍त गाढ़ी कमाई के पैसे को वैश्विक पूंजी द्वारा बाजार में उतारी हुई मशीनों पर लुटा देना चाहते हैं। उनकी जरूरत को पूरा करने के लिए सार्टिफिकेट बांटने वाली मशीन प्रति सैकेण्‍ड की दर से सार्टिफिकेट बांटेगी और फाड़ने वाली प्रति सैकेण्‍ड की दर से उन्‍हें फाड़ती जायेगी1 खबरों की तलाश में जुटे चैनलों को विकास के आंकड़े पर सुबह से शाम तक मजमा-ए-बहस जुटाना आसान होगा। वे बता पायेगें कि आज सार्टिफिकेट बांटने वाली मशीन प्रति सैकेण्‍ड चार सार्टिफिकेट की दर से कुल तीस हजार सार्टिफिकेट ही बांट पायी जबकि सार्टिफिकेट फाड़ने वाली मशीन ने प्रति सैकेण्‍ड पांच सार्टिफिकेट की दर से सारे के सारे सार्टिफिकेट कुल समय से दो घंटे पहले ही फाड़ दिये। तय मानिये मजमा-ए-बहस के निर्णय आंकड़ो को इस तरह से परिभाषित करने में साहयक रहेंगे कि गठित समीक्षा कमेटी सिफारिशें दे पाये कि मशीन की कार्यक्षमताओं को परिमार्जित करना आवश्‍यक है। अत: एफ डी आई का प्रतिशत 51 कर दिया जा रहा है।

मित्रों बहुत हुई तू-तू, मैं-मैं।

यह बताइये कि आपकी भाषा में मां को क्‍या कहते हैं ?
मैं तो गढ़वाल का रहने वाला हूं, मेरी मातृभाषा में तो ‘ब्‍वै‘ बोला जाता है।
कल एक मित्र बोले कि उनकी भाषा में ‘दइया’, ‘महतारी’, ‘माई’, तीनों ही शब्‍द प्रचलित हैं।
वैसे मेरा दोस्‍त पाटिल तो ‘आई’ ही बोलता है।
आपको सच बताऊ गढ़वाल के पड़ोस में ही कुमाऊ है वहां ‘ईजा’ बोला जाता है।
आपकी मातृभाषा में क्‍या बोलते हैं ? जो भी बोलते हों बोलिये उस मां की भी जय।

 

Friday, March 11, 2016

अभिव्यक्ति का झूला

“शब्द हथियार होते हैं, और उनका इस्तेमाल अच्छाई या बुराई के लिए किया जा सकता है; चाकू के मत्थे अपराध का आरोप नहीं मढ़ा जा सकता।“ एडुआर्डो गैलियानो का यह वक्तव्य डा. अनिल के महत्‍वपूर्ण अनुवाद के साथ पहल-102 में प्रकाशित है।
 
इस ब्लाग को सजाने संवारने और जारी रखने में जिन साथियों की महत्वतपूर्ण भूमिका है, कथाकार दिनेश चंद्र जोशी उनमें से एक है।
 
जोशी जी, भले भले बने रहने वाली उस मध्य वर्गीय मानसिकता के निश्छल और ईमानदार व्य।वहार बरतने वाले प्रतिनिधि हैं, जो हमेशा चालाकी भरा व्यवहार करती है और लेखन में विचार के निषेध की हिमायती होती है। पक्षधरता के सवाल पर जिसके यहां लेखकीय कर्म के दायरे से बाहर रहते हुए रचनाकार को राजनीति से परहेज करना सिखाया जाता है और रचना को अभिव्यक्ति के झूले में बैठा कर झुलाया जाता है, इस बात पर आत्म मुगध होते हुए  कि चलो एक रचना तो लिखी गयी। जोशी जी का ताजा व्यंग्य लेख इसकी स्पष्ट मिसाल है।
 
असहमति के बावजूद लेख को टिप्‍पणी के साथ प्रस्तुत करने का उद्देश्य स्पष्‍ट है कि ब्लाग की विश्ववसनीयता कायम रहे। साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी की हिफाजत हो सके, एवं ऐसे गैर वैचारिक दृष्टिकोण बहस के दायरे में आयें, जो अनर्गल प्रचारों से निर्मित होते हुए गैर राजनैतिक बने रहने का ढकोसला फैलाये रखना चाहते हैं लेकिन जाने, या अनजाने तरह से उस राजनीति को ही पोषित करने में सहायक होते हैं, जिसके लिए ‘लोकतंत्र’ एक शब्द मात्र होता है- जिसका लगातार जाप भर किया जाना है, ताकि अलोकतांत्रिकता को कायम रखा जा सके।

वि.गौ.

व्यंग्य लेख

                                 वाह कन्हैया, आह कन्हैया

         दिनेश चन्‍द्र जोशी
          9411382560
 
एक कन्हैया द्वापर युग में पैदा हुए थे, दूसरे आज के साइबर युग में प्रकट हुए है। द्वापर वाले कन्हैया गोपियों के साथ रास नचाते थे, ये नये वाले जे.एन.यू की गोपियों के साथ विचारधारा रूपी प्रेमवर्षा में स्नान करते हैं। ये बौद्धिकता की वंशी बजा कर जे.एन.यू के ग्वाल बालों को सम्मोहित करते हैं, देश उनके लिये कागज में बना नक्सा भर है, जिसको रबर से मिटा कर बदला जा सकता है। उनका लक्ष्य है, ''देश से नहीं, देश में आजादी,''  उनका नारा है, ''आजादी, आजादी'', मुह खोलने की आजादी, मन जो कहे उसे उड़ेलने की आजादी। क्योंकि उनका मन अभिव्‍यक्ति के लिये छटपटाता रहता है, इसी छटपटाहट के तहत उनकी संगत कुछ देश द्रोही किस्म के ग्वाल बालों से हो गई थी। वे आजादी के मामले में इससे दो हाथ और आगे थे, वे नारे लगा रहे थे, देश के टुकड़े टुकड़े कर देंगे, मुटिठयां उछाल रहे थे, हुंकारा भर रहे थे, आग उगल रहे थे, कन्हैया भी उनके झांसे में फंस गये, उस भीड़ में प्रकट नजर आये, नैतिक समर्थन देने को उत्सुक से। टुकड़े टुकड़े करने का नारा लगाने वाले भूमिगत हो गये।   छात्रसंघ के अघ्यक्ष होने के नाते  कन्हैया धर लिये गये। हवालात में, सुनते हैं, कन्हैया की ठुकाई भी हुई। उनका मोरमुकुट बंशी वंशी सब तोड़ दी गई होगी, जाहिर सी बात है। उन पर राजद्राोह का आरोप लगाया गया। कन्हैया की गिरफ्तारी पर बवाल मच गया। सारे जे.एन.यू के ब्रजमंडल सहित वामदल,पुष्पकमल दहलवादी विफर पड़े। देशभक्ति  की भाावुकता को संघियो का षडयन्त्र बताया, तर्क,विचार, ज्ञान,शोध आजादी के अडडे की श्रेष्ठता को बदनाम करने की साजिश बताया। सेक्युलरवादियों ने भी बहती गंगा में हाथ धोये। राहुल बाबा की बैठे बिठाये मौज हो गई। नितीश बोले, ये मथुरा वाला नहीं ,हमारे  बेगूसराय वाला कन्हैया है, इसको हिन्दूवादी तंग कर रहे हैं, अलबत्‍ता लालू जी के गोल मटोल ढोल से कुछ मौलिक किस्म का प्रहसन नहीं झरा। दक्षिणपंथियों ने देशभक्ति की विशाल रैली निकाली, तिरंगे फहराये, केशरिया लहराये, कहा, बन्द कर देने चाहिये देशद्रोह के जे..एन.यू जैसे अडडे, जहां पर शराब, ड्रग्स, कंडोम बहुतायत में पाये जाते हैं। ऊपर से देश के टुक्ड़े टुकड़े करने के नारे भी लगाये जाते हैं। आंतकवादी इनके आदर्श हैं, हाफिज सईद इनका सरगना है, इन सबको पाकिस्तान खदेड़ देना चाहिये। मीडिया की बहार हो गई, देशभक्ति व देश द्रोह की परिभाषायें खंगाली गई,कानूनी टीपें खोजी गई। इन विषयों के वक्ता प्रवक्ताओं की दुकानें चैनलों पर जम कर चलने लगी। भगत सिंह, गोलवलकर, गांधी, गोडसे सब लपेटे में लिये गये। कुछ ने सोनियां को महान देशभक्त बताया। उधर हनुमनथप्पा सियाचीन में बफ्र्र के नीचे दबे कराहते रहे, इधर जे.एन.यू के मुकितकामी, देशभक्ति को छदम अवधारणा ठहराने का तर्क गढ़ते रहे।  कन्हैया को कोर्ट में पेश किया गया, वहां काले कोट वालों ने उन पर लात घूंसे जड़ने की चेष्टा की, कुछ इस अभियान में सफल भी हुए,कुछ निराश जो देशभक्ति का कर्ज नहीं चुका पाये। बड़ा विलोमहर्षक –दृश्य था, जनता भौचक्की रह गई, उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर देशभक्ति होती क्या चीज है, तिरंगा फहराना या काले झंडे दिखना। जनता बिचारी को खुद अपनी देशभक्ति पर शक होने लगा। इधर कन्हैया को जमानत भी मिल गई, वे हवालात से हीरो बन कर लौटे, उनका इन्टरव्यू लेने को मीडिया में होड़ मच गई है।  कन्हैया ने जे.एन.यू के ग्वालबालों को भाषण दिया,उनको देशभक्ति की व्याख्या समझाई, वे काले जैकिट के भीतर सफेद टी शर्ट में सलमान खान वाले अंदाज में नमूदार हुए। जे.एन.यू की गोपियां उसकी रोमानिटक बौद्धिकता पर फिदा हुई। कन्हैया ने अपनी मां की गरीबी का हवाला दिया। उसने स्वयं को विधार्थी व बच्चा भी कहा, इस बच्चे ने फिर राजनीतिक भाषण दिया,उसका भाषण सुन कर तीसियों साल वामपंथ में खपा चुके बूढ़े कुंठित हुए। कन्हैया ने कहा, हमें मुक्ति चाहिये, गरीबी से, बेरोजगारी से, साम्प्रदायिकता से, सामन्तवाद से मुक्ति। हमें छदम देशभक्ति से मुक्ति चाहिये, असहिष्णुता से मुक्ति। मुक्ति का पाठ पढ़ाता कन्हैया, बच्चे से एक घाघ नेता में तब्दील नजर आया। उसकी नेतागिरी से प्रभावित हो कर सीताराम येचूरी ने उसको अपना चुनाव प्रचारक घोषित कर दिया,बंगाल के चुनाव हेतु। केजरीवाल उसके मुक्ति पाठ से प्रेरित होकर कहने लगे,हमें भी मुक्ति चाये,राज्यपाल जंग से। उसका मुक्ति पाठ इतना प्रभावशाली था कि उस पाठ ने कइयों को अपनी जद में ले लिया। स्त्रियां पतियों से मुक्ति चाहने लगीं,कर्मचारी बास से, बच्चे अभिभाावकों से, कांग्रेसी सोनियां राहुल से, विपक्षी मोदी सरकार से मुक्ति चाहने लगे,सत्‍ताधारी सहिष्णुता के ठेकेदारों से। गीतकार आधुनिक कविता से मुक्ति चाहने लगे, कहानीकार,लम्बी कहानी लाबी से। कन्हैया का मुक्ति पाठ वायरल हो गया। कन्हैया का देशद्रोह सफल हो गया, हालांकि उसकी मुक्ति व स्वच्छन्दता का राग कइयों के गले नहीं उतर रहा है,वे उसकी ठुकाई तैयार बैठे है, उसके सिर पर इनाम घोषित हो चुका है, ये उसको कंस बना कर छोड़ेंगे।