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Wednesday, April 14, 2010

माँ

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ,
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ।

बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी-आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ।

चिढ़ियों की चहकार में गूंजे
राधा-मोहन, अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ।

बीबी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बांट के अपना चेहरा माथ
आंखें जाने कहाँ गयी
फटे पुराने इक एलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

- निदा फाज़ली