Monday, April 22, 2013

पेशावर विद्रोह की वर्षगांठ (23 अप्रैल:) पर विशेष



हुतात्मा एक सच्चे जनयोद्धा की महाकाव्यात्मक संघर्ष गाथा
एक सच्चे जनयोद्धा की महागाथा


उषा नौडियाल



डॉ. शोभा राम शर्मा द्वारा रचित महाकाव्य हुतात्मा पेशावर विद्रोह के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के संपूर्ण जीवन की महाकाव्यात्मक प्रस्तुति है। आत्मविज्ञापन, आत्मश्लाघा के इस दौर में जब हर वस्तु, हर विचार बाजारवाद का शिकार या पोषक हो रहा है। ऐसे समय में साहित्य ही मनुष्य को उसके जीवन मूल्यों का बोध कराने के साथ साथ उसकी संघर्षशीलता का स्मरण करा सकता है। 
आजादी के सच्चे सिपाहियों के जीवन संघर्ष और आत्म बलिदान से अवगत कराए बिना दिग्भ्रमित युवा पीढी को विचार शून्यता से बचाना असं व है। उत्तराखंड समेत पूरे देश में आज निजी स्वार्थों को लेकर जिस तरह की राजनीति हो रही है उसमें पेशावर विद्रोह के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और ी प्रासंगिक हो गए हैं। इन स्थितियों में वंशवाद व सांप्रदायिकता में लिपटी थोथी देशभक्ति की पोल खोलना ी जरूरी है। चंद्र सिंह गढ़वाली जिन्हे पहले अंग्रेजों ने करीब 13 वर्ष फिर देश की आजाद सरकार ने कई बार कारावास में रखा। आर्य समाज से गांधीवाद, फिर कम्युनिज्म तक उनकी विचारयात्रा ,उथलपुथल से री 20वीं सदी के ारत के राजनीतिक इतिहास की महागाथा है। तमाम विपरीत परिस्थितियों में ी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली टूटे न झुके। वह चाहते तो आसानी से विधायक या सांसद हो सकते थे। पंडित नेहरू ने उन्हे खुद कांग्रेस का टिकट देने की पेशकश की थी। लेकिन उन्होनेे विचारधारा से समझौता नहीं किया। आर्थिक तंगी के वावजूद वे विचारधारा की तलवार लिए आजादी के बाद ी वंचित वर्ग की असली आजादी के लिए लड़ते रहे। जिसका स्वप्न कितने कर्मवीरों और शहीदों ने देखा था। कविता के रूप में उनके संघर्ष का समग्र चित्रण निश्चय ही पाठकों को कौतुहूल के साथ उद्वेलित, आनंदित व किंचित विस्मित करने में समर्थ है। 
कविता का वास्तविक उद्देश्य जितना पाठकों के हृदय में सौंदर्यानुभूति जगाना है,उससे अधिक उद्दात मानवीय अनुभूतियों का प्रस्फुटन करना है। प्रकृति की तरह ही कविता ी त्रस्त हृदय के लिए मरहम का काम करती है। 
नर को अपना लोक न ाता, ाता मन का छायालोक। 
त्रस्त हृदय की पीड़ा हरता, सुख सपनों का मायालोक।। (केदार यात्रा पृष्ठ-28)
उच्च कोटि की कविता में एक यूनिवर्सल अपील होती है। वह सार्वभौमिक और सर्वकालिक होती है। हुतात्मा महाकाव्य का फलक अपने नाम के अनुरूप विस्तृत और व्यापक है। जहां एक ओर नायक के जीवन का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवरण है, वहीं दूसरी ओर तत्कालीन समाज, उसके परिवेश, संस्कृति का सूक्ष्म और गहन चित्रण ी है। मानवीय ावनाओं पर गहरी पकड़ और अंतर्मन की गुत्थियों को उजागर करता मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ी परिलक्षित होता है। प्रामाणिक युग चित्रण कवि की विद्वता और अध्ययनशीलता की छाप छोड़ जाता है। महाकाव्य एक ओर गुलाम ारत में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा दारुण यंत्रणा का मार्मिक चित्रण है वहीं दूसरी ओर प्रथम विश्वयुद्ध व सके कारणों और प्रभावों का सरल विवरण है
पूरबपश्चिम, उत्तर दक्खिन बांट चुके सब योरुप वाले।
दुनिया उनके हाथों में थी, दास बने जन पीले काले।।
बाजारों की छीनाझपटी, अपनी अपनी धाक जमाना।
गौरांगों में होड़ लगी थी, युद्ध-युद्ध का छेड़ तराना।। (प्रथम विश्वयुद्ध पृष्ठ-4)
  ारत की आजादी के संघर्ष का हो या आजादी के बाद का काल। तमाम राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का विशद विवरण निश्चय ही गहन अध्ययन और सूक्ष्म अनुसंधान के बिना सं व नहीं हो सकता। पर्वतवासियों के सरल जीवन की विकट परिस्थितियों का चित्रण, उनकी स्वभावगत सरलता, जुझारूपन और खुद्दारपन का चित्रण गढ़वालीजी के जीवन चित्रण के माध्यम से उ रकर आया है। पलायन की समस्या पर ये पंक्तियां सटीक और मार्मिक प्रतीत होती हैं- 
इस धरा के फूल कितने खल अ ावों में पले हैं।
शठ उदर का पेट रने हर छलावों में छले हैं।।
स्वर्ग जैसी ूमि से उड, दूर बीती है जवानी।
हिम शिलाओं के तले यह आपबीती है पुरानी ।।(केदारभूमि पृष्ठ-14)
प्रगतिशीलता के प्रति कवि की निजी प्रतिबद्धता, व्यवस्था परिवर्तन की अदम्य आकांक्षा काव्य में आद्योपांत झलकती है। अभिव्यक्ति की स्पष्टता, ावोें की संप्रेषणीयता ाषा के सहज सौंदर्य व सौष्ठव के माध्यम से बरकरार है। प्रकृति चित्रण में संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग जहां अनिवार्य प्रतीत होता है वहीं अन्य घटनाओं के चित्रण में बोलचाल की ंिहदी और स्थानीय गढ़वाली शब्दों का प्रयोग प्रशंसनीय है। करीब 300 पृष्ठो का यह महाकाव्य इन अर्थों में महत्वपूर्ण है कि हिंदी कविता से लग ग बाहर कर दी गई छंदबद्ध कविता को यह पुनर्प्रतिष्ठित करने का प्रयास करता है। हुतात्मा को ंिहदी कविता में महाकाव्य और छंद की वापसी के तौर पर ी देखा जा सकता है। महाकाव्यो में जहां नायक राजा महाराजा, उच्चकुल उत्पन्न, दिव्यगुणों, महान आदर्शों वाले व मानवीय दुर्बलताओं से मुक्त होते हैं वहीं हुतात्मा का नायक वीर ढ़़वाली एक सामान्य कुल में उत्पन्न आम आदमी हैं जिन्होंने उच्च मानवीय आदर्शों को जिया। इस नाते यह पुस्तक महाकाव्य की शाóीय परिभाषा की रुढ़ि को ी तोड़ती है।  

Thursday, April 18, 2013

हरजीत का एक शे’र

(य्ह पोस्टर पुराने देहरादूनी और अब जयपुर वासी दीपक द्वारा परिकल्पित)

Saturday, April 13, 2013

चिनुआ अचेबे की कहानी : वोटर

(पिछले दिनों अफ़्रीकी साहित्य के शिखर पुरूष चिनुआ अचेबे के निधन से विश्व कथा साहित्य का नायाब हीरा हमारे बीच से गुम हो गया है.एक सम्मानित समालोचक ने उनके बारे में ठीक ही कहा है कि जैसे शेक्सपियर  के माध्यम से अंग्रेजी साहित्य और पुश्किन के माध्यम से रूसी साहित्य को अभिव्यक्ति मिली ,वैसे ही चिनुआ अचेबे के माध्यम से अफ़्रीकी साहित्य को अभिव्यक्ति मिली।यहाँ प्रस्तुत है उनकी कहानी वोटर जो लगता है कि भारत के बारे में ही लिखी गयी है. इसका अनुवाद किया है यादवेन्द्र ने)

           वोटर 
                   -- चिनुआ अचेबे

रुफुस ओकेके -- जिसको लोगबाग  संक्षेप में रूफ़ कह कर बुलाते थे --अपने गाँव का बेहद लोकप्रिय व्यक्ति था।गाँव वालों के बीच उस ऊर्जावान युवक की लोकप्रियता का कारण था कि आजकल के अन्य नौजवानों की तरह उसने  काम की तलाश में गाँव छोड़ कर शहर की ओर रुख नहीं किया -- और गाँव में रहते हुए भी उसकी छवि किसी आवारा मनचले की नहीं थी।सबने उसको दो साल तक साईकिल मरम्मत करने वाली दूकान पर काम सीखते हुए देखा था और उसके बाद स्वेच्छा से गाँव लौट कर इस मुश्किल दौर में अब सबकी मदद करते हुए देख रहे थे -- उसको लगता था ऐसा करते हुए उसका भविष्य जल्दी ही बेहतरी की करवट लेगा।        
उमोफिया गाँव अब पीपुल्स एलाएंस पार्टी का मजबूत गढ़ बन चुका था और उसके सबसे देदीप्यमान नक्षत्र मारकुस इबे उसके अंतिम सरकार के संस्कृति मंत्री के आसन पर विराजमान थे --अब जबकि लोगों को भरपूर यकीन था कि अगली सरकार भी उसी पार्टी की बनेगी सो उसके बासिंदों को अच्छे नेतृत्व  की दरकार थी। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसको यह भरोसा न हो कि मंत्री दुबारा इस इलाके से जीत कर सत्ता हासिल करेंगे।

सबकी उम्मीदों के अनुरूप रूफ माननीय मंत्री की खिदमत में जी जान से जुटा हुआ था। चुनाव प्रचार की तमाम बारीकियाँ और नुस्खे उसको मालूम थे जिनका प्रयोग गाँव से लेकर देश तक की राजनीति में कामयाब रहते।चुनावी हवा के रुख और वोटरों की नब्ज भांपने में उसको महारत हासिल थी।अभी कुछ दिन पहले ही उसने मंत्री को गाँव के लोगों की  सोच में   रहे बदलावों के बारे में आगाह किया था।पिछले पाँच सालों में राजनीति  की मार्फ़त गाँव के लोगों को अच्छी भली दौलत और रसूखदारी हासिल हुई ,हाँलाकि कई मामलों में  लोगों को इनसे सीधा लाभ क्या मिलेगा इसका कुछ भी पता नहीं चला -- उनको तो किसी डाक्टर का मतलब सिर्फ यह समझ आता है कि रोगी उसके इलाज से चंगा हो जाए।मंत्री को देश के  तमाम बड़े खिताब और सम्मान पाँच साल के शासन काल में हासिल हो गए  कि उनको किसी और की तरफ देखने की जरूरत नहीं महसूस हुई।
गाँव के एक एक आदमी को पता था कि  मारकुस इबे राजनीती में आने से पहले एक मामूली स्कूल मास्टर था और उसकी छवि भी कोई अच्छी नहीं थी ... पर जब से उसने राजनीति का दामन थामा है  और उसकी शोहरत बढती गयी है लोगों की स्मृति से यह बात धुँधली पड़ती गयी है  कि स्कूल के एक साथी टीचर के गर्भ ठहर जाने का मामला इतना  तूल  पकड़ चुका था कि उसको स्कूल से निकाले   जाने का फैसला किया जा चुका था।
आज की तारीख में गाँव का माननीय प्रधान था ...उसके पास दो लम्बी चमकदार गाड़ियाँ थीं और उसकी कोठी तो इतनी शानदार थी  कि पूरे इलाके में वैसी कोठी कभी किसी ने देखी ही नहीं।पर सबसे बड़ी बात थी कि मारकुस के सिर पर इतनी दौलत और रसूख चढ़ी नहीं जबकि कोई और होता हो उसके पाँव ज़मीन पर बिलकुल  पड़ते।मारकुस था की अपने लोगों के लिए वैसा ही समर्पित बना रहा .. जब भी देश की राजधानी की चकाचौंध से उसको फुर्सत मिलती वह अपने गाँव लौट आता भले ही वहां हरदम बिजली और पानी की किल्लत रहती।कुछ दिन पहले ही उसने अपनी  कोठी को चौबीस घंटे बिजली पहुंचाने के लिए  निजी जेनरेटर लगवा लिया था।उसको अपने उज्जवल भविष्य का पक्का यकीन था। अपनी कोठी का नाम उसने अपने गाँव को सम्मान प्रदान करते हुए उमोफिया मैन्शन रखा था , और जिस दिन आर्च बिशप ने उसका उद्घाटन किया था उस दिन लोगों को खिलाने के लिए उसने पाँच भैंसों और अनगिनत बकरों का गोश्त परोसा था।
दावत खाने वालों में कोई भी ऐसा नहीं था जिसकी जुबान पर उसकी तारीफ़ के बोल  हों .. एक बुजुर्ग बोले :" हमारा बच्चा बेहद नेक इंसान है .. यह उन नामुरादों में शामिल नहीं है जिनके सामने थोड़ी सी  दौलत आई नहीं कि उन्होंने अपने लोगों से मुंह फेर लिया।" पर दावत ख़तम होने पर लोगबाग आपस में इस बात पर चर्चा करते रहे कि उनको नहीं लगता था कि बैलट पेपर की इतनी अहमियत होती है ...अब आने वाले चुनाव में वे इसको जाया नहीं करेंगे।  मारकुस इबे भी चुनाव के पूरी तरह से तैयार और मुस्तैद था ..उसने पाँच महीने का वेतन अग्रिम निकाल लिया था और नए चमकते हुए नोटों की गड्डियाँ इकठ्ठा कर रखी थीं।
अपने प्रचार दस्ते के नौजवानों को उसने सुन्दर सा जूट का बैग बनवा कर दिया था। दिन भर वह जगह जगह घूम कर धुंआधार भाषण देता और अँधेरा होने के बाद घर घर घूमकर वोट जुटाने के लिए उसका चुनाव दस्ता सक्रिय हो जाता।जाहिर था रूफ इस दस्ते का सबसे भरोसेमंद कार्यकर्ता था।

" इसी गाँव का एक आदमी देश का मंत्री है ..हमारा अपना लाडला बेटा"...उसने प्रचार के दौरान ओगबेफी एज़ेनवा के घर पर एकत्रित हुए बड़े बूढ़ों के समूह को संबोधित करते हुए रूफ ने कहा .." किसी गाँव के लिए इस से बढ़ के इज्जत की और क्या बात होगी? आपने कभी ठहर का ठन्डे दिमाग से यह सोचने विचारने की कोशिश की है कि हमारे ही गाँव को यह इज्जत क्यों बख्शी गयीमैं आपको एक राज की बात बताता हूँ .. यह गाँव पी पी पी ( पार्टी) नेतृत्व का प्रिय और पसंदीदा गाँव है। हम बैलट पेपर पर इस पार्टी को ठप्पा लगाएँ या  लगाएँ ..जीत तो पी पी पी की ही होनी है ..सरकार तो इसी पार्टी की बनेगी। अब आप गाँव गाँव तक पाइप से पानी पहुँचाने की बात ही लीजिये -- पार्टी ने इसका वादा आपसे किया ही है .."

जब यह बात कही जा रही थी तो उस कमरे में रूफ के अलावा पाँच और लोग थे .. लोगों के बीच धुंआता हुआ हलकी रोशनी फेंकता हुआ एक लैम्प रखा था।लोग एक घेरे में बैठे थे और सब के सामने चमकते कड़कडाते नोटों की एक एक गड्डी  रखी हुई थी ..दरवाजे के बाहर साफ़ आकाश में चाँद अपनी चमक बिखेर रहा था।
हमें तुम्हारी एक एक बात का भरोसा है .." एज़ेनवा ने आश्वस्त करते हुए हामी भरी " हम सब ..एक एक व्यक्ति ..सबलोग मारकुस के निशान पर ही ठप्पा लगायेंगे ..अब भला कौन ऐसा मूरख होगा जो दावत छोड़ कर सूखी रोटी खाने जायेगा। मारकुस को बोल दो कि हमारे वोट ...हमारी बीवियों के वोट भी ...सब उसी को मिलेंगे ..पर हमारी एक गुजारिश है , ये पैसे आज के समय में कम हैं .. इनको बढवा  दो।" यह कहते हुए उसने एक बार फिर से नोटों की गड्डी को उलट पुलट कर देखा कि कहीं वह उनकी कीमत को लेकर कोई गलती तो नहीं कर रहा है।

"बात तो सही है ..इतने पैसे बहुत कम हैं ...यदि मारकुस कोई गरीब आदमी होता तो मैं सबसे पहला आदमी होता जो उसको अपना वोट मुफ्त में दे देता ...पिछली बार मैंने ऐसा ही किया था। पर अब मारकुस दौलतमंद आदमी है सो उसको अपना कद देख कर काम भी करना चाहिए .. देखो , हमने पहले भी अपने लिए कोई मदद उस से नहीं मांगी ...आगे भी नहीं माँगेंगे ...पर आज तो हमारा दिन है ..आज हम जब पेड़ पर चढ़ गए हैं तो बगैर चूल्हे चौके के लिए लकड़ी काटे उतर गए तो हमसे बड़ा नादान भला और कौन होगा?"  

रूफ को बुजुर्गों की बात माननी पड़ी ..अबतक पेड़ की सबसे ज्यादा लकड़ी वो खुद अपने हिस्से में रखता जा रहा था                                
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अभी कल की ही तो बात है , मारकुस की सबसे मँहगी जैकेटों में से एक उसने माँगी थी। पिछले हफ़्ते मारकुस की बीवी ( वही टीचर जिसको लेकर उसकी नौकरी पर बन आई थी) ने रूफ को रोक था जब एक के बाद एक बियर की पाँचवी बोतल उसने फ्रिज से निकालने के लिए हाथ बढ़ाया था ..हाँलाकि सबके बीच में ही उसके पति ने ऐसा करने पर उसको खूब बुरा भला कहा था। बहुत दिन नहीं हुए जब एक विवादित ज़मीन वह अपने नाम लिखवाने में कामयाब हो गया था क्योंकि वह मंत्री की शोफ़र वाली गाड़ी जुगाड़ कर पूरे लाव लश्कर के साथ वहां पहुंचा था। यही कारण था कि बुजुर्गों की लकड़ी वाली बात उसको फ़ौरन समझ आ गयी।
अंग्रेजी में उसने कहा " ऑल राइट" और इबो की बात पर दुबारा आ गया:" अरे छोड़ो भी, छोटी मोती बातों पर विवाद करने का समय यह नहीं है।" वह उठ खड़ा हुआ ,अपने कपड़ों की सलवट सीधी की और बैग के अन्दर हाथ डाल कर कुछ टटोलने लगा।बैग से और पैसे निकाल कर उसने वहां मौजूद सबको ऐसे बाँटा जैसे कोई साधु  अपने थैले से निकाल कर मंदिर का प्रसाद बाँटता है --- पर ये पैसे उसने गाँव वालों की हथेली पर नहीं रखे बल्कि उनके सामने जमीन पर गिरा दिए। अबतक बुजुर्गों में से किसी ने भी जमीन पर रखे नोट छुए नहीं थे -- अब उन्होंने सामने नीचे देखा और इनकार में अपने अपने सिर हिला दिए।इसके बाद रूफ फिर से हरकत में आया -- बैग से और पैसे निकाले और उनको भी पहले से पड़ी नोटों की गड्डी के साथ मिला दिया।
"अब बहुत हो गया" उसने ऊँची आवाज में अपना गुस्सा प्रदर्शित करते हुए कहा हाँलाकि यह असली गुस्सा नहीं था। गाँव के बुजुर्गों को भी मालूम था कि बगैर बदमजगी किये हुए कितनी दूर तक जाया जा सकता है, इसलिए जैसे ही रूफ ने चिढ़ कर कहा कि " अब जाओ ... और मन में आये तो दुश्मनों के निशान पर ही मुहर लगा दो।" तो एक एक कर सबने बारी बारी से उसको शान्त करने के लिए कोमल शब्दों के लच्छेदार भाषण दिए ... जब आखिरी आदमी ने भाषण पूरा किया तो सबने झुक कर सामने जमीन  पर पड़े नोटों की गड्डी उठानी शुरू कर दी।
रूफ ने जिस दुश्मन का जिक्र किया था वह कोई बाहरी नहीं बल्कि चुनाव में पी पी पी की  प्रतिद्वन्द्वी  पार्टी पी ओ पी थी जिसका गठन सागर तट पर रहने वाले कबीलों ने अपने हितों की रक्षा की खातिर किया था क्योंकि उनको लगता था कि वर्तमान शासक पार्टी उनका पूर्ण राजनैतिक,सांस्कृतिक और धार्मिक सफाया करने पर तुली हुई है।हाँलाकि यह सबको मालूम था कि  इस इलाके में उसकी विजय की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं  है फिर भी कुछ स्थानीय गुण्डों मवालियों को चुनाव प्रचार के लिए गाडी और लाउडस्पीकर देकर वह मैदान में दिखाई देने का फर्ज निभा रही थी। किसी को यह पक्के तौर पर तो नहीं मालूम था कि पी ओ पी ने कितना पैसा इस गाँव में फूंका है पर प्रचार और शोर देख कर सबका अनुमान था कि यह रकम अच्छी खासी थी। एक बात बिलकुल तयशुदा थी कि इसके लिए प्रचार करने वाले स्थानीय नौजवानों के हाथ तगड़ी रकम आने वाली थी।
रूफ की मानें तो बीती रात तक सब कुछ बिलकुल वैसा ही चल रहा था जैसी योजना बनायी गयी थी। उसके बाद अचानक उसके पास पी ओ पी का कोई नेता पहुंचा -- ऐसा नहीं था कि दोनों एक दूसरे से अपरिचित  थे  --बल्कि उनको एक दूसरे का दोस्त कहना ज्यादा मुनासिब होगा-- पर उनकी यह मुलाकात बिलकुल काम के मद्दे नजर थी।निहायत कामकाजी तौर पर उनके बीच संक्षिप्त बातचीत हुई , एक शब्द भी फालतू नहीं। नेता ने रूफ के सामने नोटों की एक मोती गड्डी रख दी और बोला: "अब हमें तुम्हारा वोट चाहिए".रूफ अपनी जगह से उठा,बिना एक शब्द बोले दरवाजे तक गया और सावधानी से दरवाजा बंद कर के अपनी कुर्सी पर लौट आया। कुछ सेकेण्ड का यह अंतराल रूफ को आगामी नफे नुक्सान का हिसाब किताब करने के लिए काफी था -- जितनी देर वह बोलता रहा उसकी निगाहें सामने जमीन पर रखे लाल लाल नोटों पर लगी रहींरूफ नोटों पर खेत की फसल काटते किसान की तस्वीर देखते देखते कहीं और खो गया था।
"तुम्हें यह तो मालूम ही है कि मैं मारकुस के लिए काम करता हूँ " लगभग फुसफुसाते हुए उसने कहा .."मेरा ऐसा करना अच्छा नहीं होगा ..."
"जब तुम अपना वोट डाल रहे होगे तब मारकुस वहां नहीं रहेगा" हमें आज की रात बहुत सारे काम निबटाने हैं .. बोलो , तुम यह कबूल कर रहे हो या नहीं?"
" यह बात इस कमरे से बाहर तो नहीं जायेगी?" रूफ ने जानना चाहा।
"देखो , हम यहाँ वोटों का जुगाड़ करने आये हैं .. गप्पें मारने  और यहाँ वहां बातें फैलाने"
"" ऑल राइट".. रूफ ने अंग्रेजी में कहा।
नेता ने अपने एक साथी को आँख मारी और फ़ौरन वह लाल कपडे से पूरी तरह से ढँका हुआ डिब्बा लेकर हाजिर हो गया।जैसे ही उसने ढक्कन खोला अन्दर चिड़िया के पंखों के बीच में रखा हुआ जादू टोने वाला एक पत्थर दिखाई दिया।
"ये म्बाता ने तुम्हारे पास भेजा है ...तुम्हें इस तरह के जादू टोने वाले  पत्थर के  बारे में मालूम तो होगा ही .. इसके सामने वादा करो कि मादुका को वोट डालोगे .. यदि तुमने वादा खिलाफी की तो यह पत्थर ही तुम्हारा हिसाब किताब करेगा।"
उस पत्थर को देखते ही रूफ के होश उड़ गए ..वह लगभग बेहोश होने की कगार तक आ गया ..इन मामलों में म्बाता की शोहरत उस तक पहुँच चुकी थी।पर रूफ आनन् फानन में दो टूक फैसला करने वाला शख्स था,उसने मन ही मन हिसाब लगाया कि  चोरी छुपे यदि एक वोट मादुका को दे भी दिया गया तो मारकुस की पक्की जीत पर क्या असर पड़ने वाला है .. कुछ भी तो नहीं।
"मैं अपना वोट मादुका को ही डालूँगा ...जानता हूँ वादा खिलाफी करने पर यह पत्थर मेरा क्या हस्र कर देगा।"
"बिलकुल  सही ...तुम काफी समझदार हो।"नेता ने उठते हुए जवाब दिया जबकि उसका साथी पत्थर को वापस डिब्बे में रख के गाडी की ओर मुखातिब हुआ।
"पर तुम्हें यह तो मालूम होना चाहिए कि मारकुस के रहते उसकी चुनाव में कोई हैसियत नहीं है।"रूफ बोला।
"उसको गिनती के कुछ वोट भी मिल जाएँ तो इस बार के लिए बहुत हैं ..अगली बार हम देखेंगे कि ज्यादा वोट कैसे मिलें ..लोगों तक यह बात तो पहुँचेगी कि मादुका छोटे नोट नहीं बल्कि बड़े नोटों की गड्डियाँ बाँटता है .. लोगों को उनके वोट की कीमत समझने में देर नहीं लगेगी।"
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चुनाव के दिन की शुरुआत .. हर पाँच साल बाद लौट कर आने वाला यह महान दिवस जब आम लोग अपनी शक्ति और अधिकार का प्रयोग करते हैं ... घरों की दीवारों पर, पेड़ के तनों पर और टेलीफोन के खम्भों पर चिपके पोस्टर मौसम की मार सहते सहते बदरंग हो चुके हैं ..जो थोड़े बहुत पोस्टर जवान बचे थे उनपर लिखी इबारत पढ़ कर समझ जाने वाले ग्यानी कम ही थे ... पी ए पी ... पी पी पी ...पी ओ पी ...तमाम पार्टियों को वोट देने की अपील ...
हर बार की तरह अपनी जीत के लिए पूरी तरह से आश्वस्त मारकुस अपना हर काम उसी शान शौकत के साथ कर रहा था ..उसने एक महँगा बैण्ड वोटिंग बूथ से इतनी दूर बुला कर तैयार कर रखा था जिससे कानूनी अड़चन न आये ..अनेक गाँव वासी बूथ तक आते हुए हाथ लहराते हुए अपनी पसंद की पार्टी के गीत गाते चल रहे थे ..रसूखदार मारकुस अपनी चमचमाती हुई हरे रंग की कार के अन्दर शान से पसर कर बैठा हुआ था। ख़ुशी से झूमता हुआ एक एक गाँव वासी कार के पास आया और मारकुस से हाथ मिलाते हुए बोला:" बधाई ".उसका ऐसा करना था कि मारकुस के पास आकर हाथ मिलाने वालों और बधाई देने वालों का ताँता लग गया।
रूफ और उसके संगी साथी पसीने से लथपथ वोटरों को बूथ तक खींच लाने की भाग दौड़ में लगे हुए थे।
" भूलना मत "वह हंसी ठिठोली करती अनपढ़ औरतों के एक झुण्ड को निर्देश दे रहा था "हमारा निशान  है मोटर कार ... उसी पर मुहर लगाना".
" वैसी ही मोटर कार जैसी मारकुस की है ..बाहर वह जिसमें बैठा हुआ है।"
" आप ठीक समझीं काकी ... उसी कार की फोटो पर मुहर लगानी है ...उस कार के साथ ही मुहर लगाने की जगह बनी है" रूफ समझा रहा था .." ध्यान रखना ,दूसरी  जो आदमी के सिर की फोटो है,वह सही आदमियों के लिए नहीं है ..जिनका सिर फिर गया है वह उनके लिए है।" 
रूफ की  यह बात  सुनकर लोग हँस पड़े ..रूफ ने तिरछी  निगाहों से मारकुस की ओर ताका जिस से यह पता लग सके उसकी बात पर उसकी प्रतिक्रिया क्या हुई -- मारकुस की निगाहों में उसके लिए शाबाशी के भाव थे।
"कार के ऊपर मुहर लगाना" रूफ इतनी जोर जोर से यह कह रहा था कि चेहरे और गर्दन की सभी नसें बेतरह उभर आती थीं .." कार को वोट दोगे तो कार पर चढ़ने को मिलेगा ..कार पर मुहर लगाओ".
"चलो हमें कार पर चढ़ने को न भी मिले ...हमारे बाल बच्चों को तो मिलेगा ही" वही औरत मजाकिया लहजे में बोल पड़ी।
तभी बैंड पर नया गाना चालू हो गया .." पैदल चलें तेरे दुश्मन ...मैं तो चढूँगी मोटर कार ..."
ऊपर से बेखबर और आश्वस्त दिखने के बावजूद मारकुस के मन को चैन नहीं पड़  रहा था ..उसको बार बार अखबारों की इबारत याद आती थी कि उसकी रिकार्ड तोड़ विजय निश्चित है पर एक एक वोट का खटका उसको लगा हुआ था ..जैसे ही वोटरों का पहला जत्था निबट के बाहर निकला उसने अपने कार्यकर्ताओं को एक साथ जाकर वोट डालने का हुकुम दिया।
" रूफ , तुम सबसे पहले वोट डालने जाओ" उसने फरमान सुनाया।
रूफ की तो जैसे जान ही निकल गयी ,पर उसने पल भर में ही खुद को संभाल लिया जिस से किसी को खटका न हो।सुबह से ही वह अपने मन की बेचैनी को किसी न किसी ढंग से मुखौटे के अन्दर ढाँपने की जुगत कर रहा था और इसी क्रम में वह ज्यादा से ज्यादा अ सहज होता जा रहा था।फरमान सुनते ही वह बूथ की ओर तीर की गति से चलने को मुड़ा , दरवाजे पर खड़े पुलिस वाले ने नकली बैलट पेपर के लिए उसकी तलाशी ली .. चुनाव अफसर ने दो बक्सों में से किसी एक बक्से में बैलट पेपर डालने की हिदायत उसको दी।अबतक उसकी तीर जैसी गति पर ब्रेक लग गया था .. अन्दर पहुँचते ही अलग अलग बक्सों पर उसको कार और आदमी  के सिर  की फोटो दिखाई दी। अपनी जेब से उसने बैलट पेपर निकाला और उसको गौर से देखा .. भले ही यहाँ उसको देखने के लिए मारकुस खड़ा नहीं था पर उसके मन में एकदम से विश्वासघात की बात आ गयी, मारकुस को वह धोखा कैसे दे सकता था? उसने मन ही मन में ठान ली कि जिस से उसने विरोध में वोट देने के पैसे लिए हैं उसको नोटों की गड्डी वापस करके आएगा ..पर उसको भली प्रकार मालूम था कि अब इस घड़ी पैसे वापस करना संभव नहीं था ..उसने तो जादू टोने  वाले पत्थर के सामने वादा भी किया था ...लाल लाल नोट अब भी उसकी जेब में मौजूद थे जिनपर काम में लगे हुए किसानों की फोटो छपी थी।
रूफ इस उधेड़ बुन में था कि तभी उसको पुलिस वाले की आवाज सुनाई पड़ी ...वह अफसर से दरयाफ्त कर रहा था कि जो बाँदा अन्दर गया था वह इतने देर से बाहर क्यों नहीं निकला?
रूफ ने यह सुना तो बिजली की गति से एक विचार उसके मन में कौंधा ..उसने हाथ में पकडे बैलट पेपर की तहें कीं ..देखते देखते उसने उसको बीच से आधा आधा फाड़ डाला और सामने रखे दोनों बक्सों के अन्दर एक एक टुकड़ा डाल दिया। हाँ ,यह सावधानी उसने जरूर बरती कि उपरी हिस्सा पहले मादुका के बक्से में डाला ..यह बुदबुदाते हुए कि " मैं मादुका को वोट डालता हूँ।"  
वहाँ तैनात कर्मियों ने उसकी ऊँगली पर आसानी से न छूटने वाली स्याही लगा दी जिस से दुबारा वह वोट न आ सके .. रूफ तीर की गति से कमरे से बाहर निकल गया जिस तेजी के साथ वोट डालने बूथ के अन्दर दाखिल हुआ था।
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                             प्रस्तुति : यादवेन्द्र