फिलिस्तीन के कवि महमूद दरवेश, 9 अगस्त को जिनका निधन हुआ, को याद करते हुए यादवेन्द्र जी द्वारा उनकी कविताएं के अनुवाद प्रस्तुत हैं।
महमूद दरवेश
बहुत बोलता हूं मैं
बहुत बोलता हूं मैं
स्त्रियों और वृक्षों के बीच के सुक्ष्म भेदों के बारे में
धरती के सम्मोहन के बारे में
और ऐसे देश के बारे में
नहीं है जिसकी अपनी मोहर पासपोर्ट पर लगने को
पूछता हूं : भद्र जनों और देवियों,
क्या यह सच है- जैसे आप कह रहे है-
कि यह धरती है सम्पूर्ण मानव जाति के लिए ?
यदि सचमुच ऐसा है
तो कहां है मेरा घर-
मेहरबानी करे मुझे मेरा ठिकाना तो बता दे आप !
सम्मेलन में शामिल सब लोग
अनवरत करतल ध्वनि करते रहे अगले तीन मिनट तक-
आजादी और पहचान के बहुमूल्य तीन मिनट!
फिर सम्मेलन मुहर लगाता है लौट कर अपने घर जाने के हमारे अधिकार पर
जैसे चूजों और घोड़ों का अधिकार है
शिला से निर्मित स्वपन में लौट जाने का।
मैं वहां उपस्थित सभी लोगों से मिलाते हुए हाथ
एक एक करके
झुक कर सलाम करते हुए सबको-
फिर शुरु कर देता हूं अपनी यात्रा
जहां देना है नया व्याख्यान
कि क्या होता है अंतर बरसात और मृग मरीचिका के बीच
वहां भी पूछता हूं : भद्र जनों और देवियों,
क्या यह सच है- जैसा आप कह रहे हैं-
कि यह धरती है सम्पूर्ण मानव जाति के लिए ?
शब्द
जब मेरे शब्द बने गेहूं
मैं बन गया धरती।
जब मेरे शब्द बने क्रोध
मैं बन गया बवंडर।
जब मेरे श्ब्द बने चट्टान
मैं बन गया नदी।
जब मेरे श्ब्द बन गये शहद
मक्खियों ने ले लिए कब्जे मे मेरे होंठ
मरना
दोस्तों आप उस तरह तो न मरिए
जैसे मरते रहे हैं अब तक
मेरी बिनती है- अभी न मरें
एक साल तो रुक जाऐं मेरे लिए
एक साल
केवल एक साल और-
फिर हम साथ साथ सड़क पर चलते हुए
अपनी तमाम बातें करेगें एक दूसरे से
समय और इश्तहारों की पहुंच से परे-
कबरें तलाशने और शोकगीत रचने के अलावा
हमारे सामने अभी पढ़े हैं
अन्य बहुतेरे काम।
अनुवाद:- यादवेन्द्र