(क्या मैं किसी बेरोजगार सुन्दर व्यक्ति से बात कर सकता हूं ?
जी हाँ, नया ज्ञानोदय के अप्रैल 2008 के अंक में प्रकाशित सुन्दर चन्द ठाकुर की कविताओं को पढ़ने के बाद अपने को रोक न पाने, पर जब कवि महोदय को फोन लगाया, तो यही कहा था मैंने।
थोड़ा अटपटाने के बाद एक सहज और संतुलित आवाज में ज़वाब मिला, जी बेरोजगार सुन्दर व्यक्ति ही बोल रहा है। फिर तो बातों का सिलसिला था कि बढ़ ही गया। कविता के लिखे जाने की स्थितियों पर बहुत ही सहजता से सुन्दर चन्द ठाकुर ने अपने अनुभवों को बांटा। निश्चित ही नितांत व्यक्तिगत अनुभव कैसे समष्टिगत हो जाता है, इसे हम सुन्दर चन्द ठाकुर की इस कविता में देख सकते हैं। एक ही शीर्षक से प्रकाशित ये दस कवितायें थीं, जिनमें से कुछ को ही यहाँ पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है। कविता को पढ़ते हुए जो प्रभाव मुझ पर पड़ा था, वह वैसा ही आप तक पहुंचे, इसके लिए कविताओं के क्रम परिवर्तन की छूट लेते हुए उन्हें प्रस्तुत किया जा रहा है।)
सुन्दर चन्द ठाकुर, मो0 0991102826
एक बेरोज़गार की कविताऍं
एक
चांद हमारी ओर बढ़ता रहे
अंधेरा भर ले आगोश
तुम्हारी आँखों में तारों की टिमटिमाहट के सिवाय
सारी दुनिया फ़रेब है
नींद में बने रहे पेड़ों में दुबके पक्षी
मैं किसी की ज़िन्दगी में खलल नहीं बनना चाहता
यह पहाड़ों की रात है
रात जो मुझसे कोई सवाल नहीं करती
इसे बेखुदी की रात बनने दो
सुबह
एक और नाकाम दिन लेकर आएगी।
दो
कोई दोस्त नहीं मेरा
वे बचपन की तरह अतीत में रह गये
मेरे पिता मेरे दोस्त हो सकते हैं
मगर बुरे दिन नहीं होने देते ऐसा
पुश्तैनी घर की नींव हिलने लगी है दीवारों पर दरारें उभर आयी है
रात में उनसे पुरखों का रुदन बहता है
माँ मुझे सीने से लगाती है उसकी हडि्डयों से भी झरता है रुदन
पिता रोते हैं माँ रोती है फोन पर बहनें रोती हैं
कैसा हतभाग्य पुत्र हूँ, असफल भाई
मैं पत्नी की देह में खोजता हूँ शरण
उसके ठंडे स्तन और बेबस होंठ
कायनात जब एक विस्मृति में बदलने को होती है
मुझे सुनायी पड़ती है उसकी सिसकियाँ
पिता मुझे बचाना चाहते हैं माँ मुझे बचाना चाहती है
बहनें मुझे बचाना चाहती हैं धूप हवा और पानी मुझे बचाना चाहते हैं
एक दोस्त की तरह चाँद बचाना चाहता है मुझे
कि हम यूँ ही रातों को घूमते रहें
कितने लोग बचाना चाहते हैं मुझे
यही मेरी ताकत है यही डर है मेरा।
तीन
मैं क्यों चाहूँगा इस तरह मरना
राष्ट्रपति की रैली में सरेआम ज़हर पीकर
राष्ट्रपति मेरे पिता नहीं
राष्ट्रपति मेरी माँ नहीं
वे मुझे बचाने नहीं आयेगें।
चार
मेरे काले घुँघराले बाल सफ़ेद पड़ने लगे हैं
कम हँसता हूँ बहुत कम बोलता हूँ
मुझे उच्च रक्तचाप की शिकायत रहने लगी है
अकेले में घबरा उठता हूँ बेतरह
मेरे पास फट चुके जूते हैं
फटी देह और आत्मा
सूरज बुझ चुका है
गहराता अँधेरा है आँखों में
गहरा और गहरा और गहरा
और गहरा
मैं आसमान में सितारे की तरह चमकना चाहता हूँ।
पाँच
इस तरह आधी रात
कभी न बैठा था खुले आँगन में
पहाड़ों के साये दिखाई दे रहे हैं नदी का शोर सुनायी पड़ रहा है
मेरी आँखों में आत्मा तक नींद नहीं
देखता हूँ एक टूटा हुआ तारा
कहते हैं उसका दिखना मुरादें पुरी करता है
क्या माँगू इस तारे से
नौकरी!
दुनिया में इससे दुर्लभ कुछ नहीं
मैं पिता के लिए आरोग्य माँगता हूँ
माँ के लिए सीने में थोड़ी ठंडक
बहनों के लिए माँगता हूँ सुखी गृहस्थी
दुनिया में कोई दूसरा हो मेरे जैसा
ओ टूटे तारे
उसे बख्श देना तू
नौकरी!