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Saturday, March 30, 2024

मदन डुकलान की कविताएं

 

कुछ वर्ष पहले तक साहित्य में षष्ठीपूर्ति मनाने की सूचनाएंं खूब सुनी जाती थी। लेकिन "युवा रचनाओं" के "आंदोलन" के शुरु होने के बाद से ऐसा कोई आयोजन सुनायी नहीं दिया। 

गढवाली भाषा के कवि मदन डुकलान  की कविताओं के अनुवाद को सांझा करते हुए हम भी उस परम्परा को तो नहीं ही निभा रहे हैं। लेकिन यह बात फिर भी अपनी जगह है कि मार्च का महीना, कवि मदन डुकलान का जन्म माह है। और आज अपने जीवन के 60 वर्ष पूरे करने के साथ भाई मदन का सेवाकाल से निवृत्ति क दिन है। उन्हें ढेरों शुभकामनाएं। 


मदन भाई लगभग चालीस वर्षों से  गढवाली भाषा में लेखन कर रहे हैं। लेखन के उन शुरुआती दिनों में जब वे हिंदी भाषा में भी लिखते थे, गढवाली भाषा साहित्य की बहुत अच्छी स्थिति नहीं थी। लेकिन एक गढवाली भाषा के प्रति अपने प्रेम और गढवाली भाषा साहित्य की चिंताओं के मद्देनजर उन्होंने गढवाली भाषा में ही लिखने का तय किया। "चिट्ठी पत्री" जैसा कविता फोल्डर निकालते हुए आज उसे एक गढवाली भाषा की जरूरी पत्रिका के रूप में स्थापित किया। यह उल्लेखनीय है कि "चिट्ठी पत्री" ने सौ सालों की गढवाली कविताओं के साथ "अंग्वाल" और सौ सालों की गढवाली कहानियों के साथ "हुंगारा" ऐतिहासिक महत्व के अंक निकाले। 

भाषायी प्रेम के चलते मदन भाई ने गढवाली भाषा में फिल्म भी बनायी और वैसे ही फिल्मों और गढवाली भाषा के नाटकों में भी आज तक सक्रिय हैं। 

मदन डुकलान की ये कविताएं उनके नए संग्रह "तेरि किताब छों" से हैं और इन कविताओं के अनुवाद गढवाली भाषा की एक विश्वसनीय अनुवादक कान्ता घिल्डियाल ने किए हैं।  


फूलदेई 


दरवाजे बंद खंडहरों की
उदास देहरी हूँ मैं 

उम्मीद लगाये 
कि तुम आओगे
और बोलोगे
फूलदेई छम्मा दे

हुलस उठेगा मन 
सीलन भरी नम दीवारों का
उदासी छटेगी ऐसी कि 
ताले टूट जाएंगे 
बंद दरवाजों के.......



चुनाव  


गाँव गांव भटकने लगे हैं गिद्ध
भेड़िए पुचकारने लगे हैं
निरीह मेमनों को
चुनाव आ गए हैं
औने कौने 
अंधेरे चौराहों पर
समर्थन की भीख मांगते 
बाज 
छले छलाए लोगों के आगे
नतमस्तक होने का
नाटक खेलने लगे हैं
चुनाव आ गए हैं........





क्या कहूँ यार 


कभी सरल कभी दुश्वार 
तेरा प्रेम , तेरा प्यार
अरे यार

तेरी कोठी तेरी कार
मै हूँ बस सड़कछाप
अरे यार

औरों के लिए समझदार
मेरे लिए बेकार 
अरे यार

प्यार में हैं  घाटे हजार
मुश्किल है यह व्यापार
क्या कहूँ यार

तेरी जीत मेरी हार
क्यों होती है बार बार 
क्या कहूँ यार

गंगा आर गंगा पार
बातें हो रही सौ हजार
क्या कहूँ यार

कैसा है तू कलाकार
 न दिया जीने  ,दिया मार
क्या कहु यार......



 मेरी आस  


मेरी सामर्थ्य से 
बाहर हो तुम

जैसे बाहर है
यह वायु
यह जल

पर तुम ही हो मेरी सामर्थ्य 
जैसे हवा
जैसे पानी.........








इससे पहले कि 


इससे पहले कि
यह घर ढह जाये
गांव का नामोनिशान न रहे

इससे पहले कि 
मवेशी (जानवर) न रहे
ओट हो जाए खत्म

इससे पहले कि  
न रहूं मैं
न रहो तुम

उठा लो कदम
इससे पहले कि 
यह रास्ता ध्वस्त न हो जाए......