ओरहान पामुक का उपन्यास The Museum of Innocence प्रेम का अद्भुत आख्यान है. पामुक ने निसंदेह विश्व कथा-साहित्य में एक अनूठा प्रेमी रच दिया है.यह मारक्वेज़ के Love in the Time of Cholera के कथा नायक की तरह प्रेम के प्रति समर्पण , निष्ठा , धैर्य और प्र्तीक्षा की विलक्षण रासायनिक अभिक्रियाओं से निर्मित हुआ है. मारक्वेज़ के उपन्यास की तरह पामुक का यह उपन्यास भी उन्हें नोबल मिलने के बाद आया है. यहीं दोनों के बीच तुलना खत्म हो जाती है. मारक्वेज़ .के यहां कथा की असामान्यता का जादू है वहीं पामुक के पास शिल्प का अभिनव प्रयोग है.
य्ह उपन्यास एक संग्रहालय में संग्रहीत की गयी चीजों के माध्यम से 1593 शामों की यातना भरी गुप-चुप चलती देहातीत मार्मिक प्रेम कहानी को समय से उठाकर स्थान (space ) में रूपायित करने का उपक्रम है जहां पश्चिम और पूर्व की सन्धि-रेखा पर स्थित तुर्की का भद्र-लोक नयी वैश्विक बाजार व्यवस्था से रू-ब-रू हो रहा है और आम जन बदलती राजनैतिक परिस्थितियों के बीच आये दिन तख्ता-पलट और कर्फ्यू झेल रहा है.यहां नायक उच्च वर्ग से है और नायिका निम्न मध्य-वर्ग से. वर्जनाओं और मध्य-युगीन नैतिकता के द्वन्द्व में उलझी यह प्रेम-कथा नायक के जीवन के सुखदतम क्षण के वर्णन के साथ शुरू होती है. मंहगी वस्तुओं की शौकीन सवर्गीय-मंगेतर के लिये भेंट खरीदते हुए नायक इस " दूर की रिश्तेदार " सेल्स-गर्ल के संसर्ग में आता है और फिर गहन दैहिक अनुसंधान से शुरू होने वाली यह त्रासद कथा स्त्री होने की नियति को पुरूष-प्रधान समय में एक कारुणिक अन्त की तरफ धकेलती है.वह मंगेतर से विवाह करना चाहता है किन्तु प्रेम को छोड़ना नहीं चाहता. उच्च-वर्गीय समाज के पाखण्डों और जीवन शैली पर चोट करते हुए पामुक व्यंग्य की एक नयी युक्ति खोज लाये हैं. टूटे हुए विवाह और खोई हुई प्रेमिका को पाने की चाहत विश्व-कथा साहित्य में एक अनूठे किरदार के लिये नयी जमीन तैयार करती है. नायिका के नजदीक रहने और उसे निहारने का सुख पाने की शिद्दत नायक के भीतर एक नयी तरह की मनोग्रंथी के लिये जिम्मेदार है.वह चुपचाप उन चीजों को उठाता जाता है जिन्हें नायिका ने इस्तेमाल किया है. जरा कल्पना कीजिये- सिगरेट के 4213 टोटे नायक ने एकत्र किये हैं जिनमें से कुछ नायिका द्वारा बुरी तरह से कुचल दिये गये हैं, कुछ में उसकी लिपस्टिक लगी हुई है.इन छोडॆ हुए टुकडो के बीच वह नायिका की मनःस्तिथि का इतना सघन और विश्वसनीय चित्र खींचता है कि तय करना मुश्किल है कि यह किसी मनोग्रंथि का सूचक है या कोई चतुर मनो-विश्लेषक बात कर रहा है!यहीं पामुक ने व्यंग्य की वह युक्ति खोज निकाली है जो अब तक साहित्य में अन्जान थी!
मासूमियत का यह संग्रहालय सिर्फ गहन ऐन्द्रिक अनुभूतियों को व्यक्त करने वाली चीजों से ही नहीं बना है बल्कि उसमें एक पूरा समय और उसमें रहने वाले लोगों की जिन्दगियां दर्ज हैं. एक स्त्री की मासूम आत्महन्ता इच्छा से साक्षात्कार के बाद संग्रहालय के निर्माण की प्रक्रिया के दौरान प्रेम उदात्तता के जिन सोपानों तक उठता है वह पश्चिम में तो दुर्लभ है.निहायत वैयक्तिक अनुभव के सार्वजनिक प्रदर्शन की कामना नायक को दुनिया के तमाम संग्राहलयों के अनुसंधान की ओर ले जाती है.वह मामूली लोगों के जीवन और उनकी इच्छाओं को समझने लगता है.1950 के तुर्की की नोस्टेल्जिक स्मृतियों से जुडी इस कथा की घटनायें मुख्यतः 1976 से 1984 के बीच घटित होती हैं.
बडॆ उपन्यासों में जो चीज मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करती है वह है- मृत्यु. मृत्यु से भी अधिक उसकी आकस्मिकता .इस आकस्मिकता के घटित होने का स्थान और समय! लगता है कि मत्यु की शाश्वतता में जीवन की नश्वरता के तमाम दार्शानिक उपाख्यान अन्ततः शरणागत हो जाते हैं.यहां अन्त से पहले नायिका अपने प्रेमी से कहती है- तुम्हारी वजह से मैं अपना जीवन नहीं जी सकी . मैं अभिनेत्री बनना चाहती थी.एक बेहद मासूम इच्छा के पूरी न हो पाने का दंश या इन इच्छाओं की पूर्ती के लिये पुरुष पर निर्भर रहने की मजबूरी ही इस उपन्यास में मृत्यु की पीठिका तैयार करती है.
यह उपन्यास मुझे एक और दृष्टि से भी महत्व्पूर्ण लगा. यहां प्रेम की सघनता में जितने शब्द लिखे गये हैं वे विस्मित करते हैं.अक्सर गद्य की विधायें इस मामले में कविता के आगे बौनी पड़ जाती रही हैं.पामुक का यह उपन्यास गद्य की ताकत से भी परिचित कराता है।
नवीन कुमार नैथानी