यह कविता हमारे प्रिय मित्र और महत्वपूर्ण कथाकार योगेन्द्र आहूजा के मार्फत मेल से प्राप्त हुई। स्वाभाविक है कविता उन्हें पसंद होगी ही। कविता को इस ब्लाग पर देते हुए रचनाकार श्योराज सिंह बेचैन का बहुत बहुत आभार। उनकी अनुमति के बिना ही कविता को ब्लाग पर दिया जा रहा है, उम्मीद है वे अन्यथा न लेंगे और इस बात को समझ पाएंगे कि सम्पर्क सूत्र न होने के कारण ही उन तक पहुंचना संभव नहीं हो रहा है।
वि.गौ.
अच्छी कविता
श्योराज सिंह बेचैन
अच्छी कविता
अच्छा आदमी लिखता है
अच्छा आदमी कथित ऊंची जात में पैदा होता है
ऊंची जात का आदमी
ऊंचा सोचता है
हिमालय की एवरेस्ट चोटी की बर्फ के बारे में
या नासा की
चाँद पर हुई नयी खोजों के बारे में
अच्छी कविता
कोई समाधान नहीं देती
निचली दुनियादार जिन्दगी का
अच्छी कविता
पुरस्कृत होने के लिए पैदा होती है
कोई असहमति-बिंदु
नहीं रखती
निर्णायकों, आलोचकों और संपादकों के बीच
अच्छी कविता
कथा के क़र्ज़ को महसूस नहीं करती
अच्छी कविता
देश-धर्म, जाति
लिंग के भेदाभेदों के पचड़े में नहीं पड़ती
अवाम से बावस्ता नहीं और
निजाम से छेड़छाड़ नहीं करती
अच्छी कविता
बुरों को बुरा नहीं कहने देती
अच्छी कविता
अच्छा इंसान बनाने का जिम्मा नहीं लेती
अच्छे शब्दों से
अच्छे ख्यालों से
सजती है अच्छी कविता
अच्छी कविता
अनुभव और आत्मीय सबकी दरकार नहीं रखती
कवि के सचेतन
संकलन की परिणति होती है अच्छी कविता
अच्छी कविता
अच्छे सपने भी नहीं देती
अच्छे समय में साथ ज़रूर नहीं छोडती
अच्छी कविता की
अच्छाई पूर्वपरिभाषित होती है
अच्छी कविता
अच्छे दिनों में अच्छे जनों में
हमेशा मुस्तैदी और
मजबूती से उपस्थित रहती है
पर बुरे वक़्त में
किसी के काम नहीं आती
अच्छी कविता
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में परसपुर के आटा ग्राम में २२ अक्टूबर, १९४७ को जन्मे अवामी शायर अदम गोंडवी ( मूल नाम- रामनाथ सिंह) ने आज दिनांक १८ नवम्बर ,२०११ , सुबह ५ बजे पी. जी. आई, लखनऊ में अंतिम साँसे लीं. पिछले कुछ समय से वे लीवर की बीमारी से जूझ रहे थे. अदम गोंडवी ने अपनी ग़ज़लों को जन-प्रतिरोध का माध्यम बनाया. उन्होंने इस मिथक को अपने कवि-कर्म से ध्वस्त किया कि यदि समाज में बड़े जन-आन्दोलन नही हो रहे तो कविता में प्रतिरोध की ऊर्जा नहीं आ सकती. सच तो यह है कि उनकी ग़ज़लों ने बेहद अँधेरे समय में तब भी बदलाव और प्रतिरोध की ललकार को अभिव्यक्त किया जब संगठित प्रतिरोध की पहलकदमी समाज में बहुत क्षीण रही. जब-जब राजनीति की मुख्यधारा ने जनता से दगा किया, अदम ने अपने साहित्य को राजनीति के आगे चलनेवाली मशाल साबित किया.वि.गौ.
अच्छी कविता
श्योराज सिंह बेचैन
अच्छी कविता
अच्छा आदमी लिखता है
अच्छा आदमी कथित ऊंची जात में पैदा होता है
ऊंची जात का आदमी
ऊंचा सोचता है
हिमालय की एवरेस्ट चोटी की बर्फ के बारे में
या नासा की
चाँद पर हुई नयी खोजों के बारे में
अच्छी कविता
कोई समाधान नहीं देती
निचली दुनियादार जिन्दगी का
अच्छी कविता
पुरस्कृत होने के लिए पैदा होती है
कोई असहमति-बिंदु
नहीं रखती
निर्णायकों, आलोचकों और संपादकों के बीच
अच्छी कविता
कथा के क़र्ज़ को महसूस नहीं करती
अच्छी कविता
देश-धर्म, जाति
लिंग के भेदाभेदों के पचड़े में नहीं पड़ती
अवाम से बावस्ता नहीं और
निजाम से छेड़छाड़ नहीं करती
अच्छी कविता
बुरों को बुरा नहीं कहने देती
अच्छी कविता
अच्छा इंसान बनाने का जिम्मा नहीं लेती
अच्छे शब्दों से
अच्छे ख्यालों से
सजती है अच्छी कविता
अच्छी कविता
अनुभव और आत्मीय सबकी दरकार नहीं रखती
कवि के सचेतन
संकलन की परिणति होती है अच्छी कविता
अच्छी कविता
अच्छे सपने भी नहीं देती
अच्छे समय में साथ ज़रूर नहीं छोडती
अच्छी कविता की
अच्छाई पूर्वपरिभाषित होती है
अच्छी कविता
अच्छे दिनों में अच्छे जनों में
हमेशा मुस्तैदी और
मजबूती से उपस्थित रहती है
पर बुरे वक़्त में
किसी के काम नहीं आती
अच्छी कविता
अदम गोंडवी आजीविका के लिए मुख्यतः खेती-किसानी करते थे. उनकी शायरी को इंकलाबी तेवर निश्चय ही वाम आन्दोलनों के साथ उनकी पक्षधरता से प्राप्त हुआ था. अदम ने समय और समाज की भीषण सच्चाइयों से , उनकी स्थानीयता के पार्थिव अहसास के साक्षात्कार लायक बनाया ग़ज़ल को. उनसे पहले 'चमारों की गली' में ग़ज़ल को कोइ न ले जा सका था.
'
मैं चमारों की गली में ले चलूँगा आपको' जैसी लम्बी कविता न केवल उस 'सरजूपार की मोनालिसा' के साथ बलात्कार, बल्कि प्रतिरोध के संभावना को सूंघकर ठाकुरों द्वारा पुलिस के साथ मिलकर दलित बस्ती पर हमले की भयानकता की कथा कहती है. ग़ज़ल की भूमि को सीधे-सीधे राजनीतिक आलोचना और प्रतिरोध के काबिल बनाना उनकी ख़ास दक्षता थी-
जुल्फ
- अंगडाई - तबस्सुम - चाँद - आईना -गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब
पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब
इस सदी की तिश्नगी का ज़ख्म होंठों पर लिए
बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब
भुखमरी, गरीबी, सामंती और पुलिसिया दमन के साथ-साथ उत्तर भारत में राजनीति के माफियाकरण पर हाल के दौर में सबसे मारक कवितायेँ उन्होंने लिखीं. उनकी अनेक पंक्तियाँ आम पढ़े-लिखे लोगों की ज़बान पर हैं-
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
उन्होंने साम्प्रदायिकता के उभार के अंधे और पागलपन भरे दौर में ग़ज़ल के ढाँचे में सवाल उठाने
, बहस करने और समाज की इस प्रश्न पर समझ और विवेक को विकसित करने की कोशिश की-
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये
इन सीधी अनुभवसिद्ध, ऐतिहासिक तर्क-प्रणाली में गुंथी पंक्तियों में आम जन को साम्प्रदायिकता से आगाह करने की ताकत बहुत से मोटे-मोटे उन ग्रंथों से ज़्यादा है जो सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने रचे. अदम ने सेकुलरवाद किसी विश्विद्यालय में नहीं सीखा था, बल्कि ज़िंदगी की पाठशाला और गंगा-जमुनी तहजीब के सहज संस्कारों से पाया था.
आज जब अदम नहीं हैं तो बरबस याद आता है कि कैसे उनके कविता संग्रह बहुत बाद तक भी प्रतापगढ़ जैसे छोटे शहरों से ही
छपते रहे, कैसे उन्होंने अपनी मकबूलियत को कभी भुनाया नहीं और कैसे जीवन के आखिरी दिनों में भी उनके परिवार के पास इलाज लायक पैसे नहीं थे. उनका जाना उत्तर भारत की जनता की क्षति है, उन तमाम कार्यकर्ताओं की क्षति है जो उनकी गजलों को गाकर अपने कार्यक्रम शुरू करते थे और एक अलग ही आवेग और भरोसा पाते थे, ज़ुल्म से टकराने का हौसला पाते थे, बदलाव के यकीन पुख्ता होता था. इस भीषण भूमंदलीकृत समय में जब वित्तीय पूंजी के नंगे नाच का नेतृत्व सत्ताधारी दलों के माफिया और गुंडे कर रहे हों, जब कारपोरेट लूट में सरकार का साझा हो, तब ऐसे में आम लोगों की ज़िंदगी की तकलीफों से उठने वाली प्रतिरोध की भरोसे की आवाज़ का खामोश होना बेहद दुखद है, अदम गोंडवी को जन संस्कृति मंच अपना सलाम पेश करता है.
जन संस्कृति मंच की ओर से महासचिव प्रणय कृष्ण द्वारा जारी