- सुशील कृष्णेत
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Monday, May 7, 2012
कहानी-पाठ और परिचर्चा
लेबल:
अल्पना मिश्र,
रिपोर्ट,
सौरभ गुप्ता
Thursday, April 24, 2008
चाट पकोड़ी का स्वाद भी लोक आचरण की तस्वीर को सघन करता है
("रेलगाड़ी" सभी वय के लोगों को आकर्षित करती है लेकिन क्या चीज़ है जो इसको विशिष्ट छवि देती है ? यह एक बच्चे की आँखों से अनुभव किया जा सकता है। इंजन की वजह से इसका खिसकना संभव होता है। इस शब्द की वजह से रेल कितनी सरल और सुलभ लगने लगती है। रंगों का जिक्र और हिलने की क्रिया पूरी प्लेटफार्म की हलचल को प्रकाशित करती है। और हाँ, चाट पकोड़ी का स्वाद भी लोक आचरण की तस्वीर को सघन करता है. - राजेश सकलानी )
सौरभ गुप्ता, देहरादून
रेलगाड़ी
छुक्क छुक्क करती रेलगाड़ी आई
अपने पीछे कई डब्बे लाई
पटरी पर यह चलती हरदम
पर इंजन बिना कहीं न खिसके
काला था इंजन, सफेद थे डब्बे
डब्बों में थे रंग-बिरंगे लोग हिलते-डुलते
छुक्क छुक्क जब यह चलती
दूर तक सुनायी देती आवाज इसकी
प्लेटफार्म में धीरे हो जाए
स्टेशन में चाट पकौड़ी खाए
फिर धीरे-धीरे रफ्तार बढाए।
सौरभ गुप्ता, देहरादून
रेलगाड़ी
छुक्क छुक्क करती रेलगाड़ी आई
अपने पीछे कई डब्बे लाई
पटरी पर यह चलती हरदम
पर इंजन बिना कहीं न खिसके
काला था इंजन, सफेद थे डब्बे
डब्बों में थे रंग-बिरंगे लोग हिलते-डुलते
छुक्क छुक्क जब यह चलती
दूर तक सुनायी देती आवाज इसकी
प्लेटफार्म में धीरे हो जाए
स्टेशन में चाट पकौड़ी खाए
फिर धीरे-धीरे रफ्तार बढाए।
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कविता,
ब्लाग पर,
सौरभ गुप्ता
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