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Friday, September 16, 2011

धीरेन्द्र अस्थाना को छत्रपति शिवाजी पुरस्कार

 
संस्कृति राज्य मंत्री श्रीमती फौजिया खान से छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार प्राप्त करते कहानीकार पत्रकार धीरेन्द्र अस्थाना। मंच पर मौजूद हैं संस्कृति मंत्री संजय देवतले, पत्रकार विश्वनाथ सचदेव, अकादमी कार्याध्यक्ष दामोदर खडसे और पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी।

वरिष्ठ कहानीकार और प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा के मुंबई ब्यूरो प्रमुख धीरेन्द्र अस्थाना को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से सम्मानित किया है। श्री अस्थाना को 51 हजार रुपए का यह सम्मान उनके समग्र साहित्यिक लेखन को देखते हुए दिया गया है। मुंबई के सचिवालय जिमखाना के खचाखच भरे सभागार में श्री अस्थाना को शॉल, श्रीफल, ट्रॉफी और 51 हजार रुपए की राशि का चेक महाराष्ट्र की संस्कृति राज्य मंत्री श्रीमती फौजिया खान ने प्रदान किया। श्री धीरेन्द्र अस्थाना की अब तक डेढ़ दर्जन से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें उपन्यास, कहानी और साक्षात्कारों का समावेश है। उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं - गुजर क्यों नहीं जाता, देशनिकाला, हलाहल, उस रात की गंध, नींद के बाहर और रू-ब-रू। श्री अस्थाना टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस और दैनिक जागरण समूह में काम कर चुके हैं। पिछले 9 वर्ष से वह सहारा समूह के साथ जुड़े हुए हैं। श्री अस्थाना के अलावा आबिद सुरती, दिनेश ठाकुर, नारायण दत्त, सलिल सुधाकर, डॉ। आनंद प्रसाद दीक्षित और मनोज सोनकर समेत महाराष्ट्र के कुल 27 हिंदी सेवियों को भी इस मौके पर विभिन्न क्षेत्रों में सम्मानित किया गया।

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Sunday, July 17, 2011

अलकनन्दा घाटी का मूर्ति शिल्प

उत्तराखण्ड के गांवों की वीरानी, तकलीफ देने वाली है। जो लोग वहां खपने के लिए छूट गए हैं उनकी कोई खबर लेने वाला नहीं है। जो खत्म हो चुके हैं उनका कोई ब्यौरा हमारे पास नहीं है। आर्थिक कारणों के अतिरिक्त सवर्णों की खराब सोच के कारण हमारे शिल्पकारों, मूर्तिकारों और संगीतकारों को खत्म होना पड़ा। सवर्णों के लिए ये कार्य हेय है और इनके सक्रिय लोग निम्न कोटि के वासी हैं। कभी ये ध्यान ही नहीं गया कि यहां के मन्दिरों में सुन्दर मूर्तिशिल्प किसने बनाए? हमारे घरों की तिबारियों पर गढ़े गए लकड़ी के सुन्दर शिल्पों का निर्माण करने वाले आखिर हैं कहां ? लेकिन पहाड़ों में घुमकड़ी करने वाले कला रसिक नन्द किशोर हटवाल की मुलाकात आशा लाल से होती है। आशा लाल खांटी मजदूर है। वैसे ही दिखते हैं विनम्र और अबोध। घरों की खोली बनाने में वे निपुण हैं लेकिन अपने उजड़ते गांवों में इसकी जरूरत ही नहीं रही। बहुत संकोच के साथ वे बताते हैं वे मूर्तिशिल्पी हैं और पहाड़ के स्थानीय पत्थरों पर वे देवी देवताओं के शिल्प उकेरते हैं। वे जानते और मानते नहीं कि वे कलाकार हैं। जिला चमोली के छिनका नामक स्थान के सामने पाखे पर उनका गांव है। मूर्तिशिल्प कोई लेने वाला नहीं इसलिए बनाते भी नहीं हैं। पहले कभी पारम्परिक खरीददार रहे होंगे। आज के समय की मार्केटिंग उन्हें नहीं आती, इसलिए सड़क पर मजदूरी करते हैं।
वे शौक के लिए तो मूर्ति बना नहीं सकते। लगभग एक-फुट ऊंची मूर्ति बनाने में लगभग 15 दिन लगते हैं। पहले पहाड़ की ऊंचाई पर उपयुक्त जगह पर पत्थर को छांटना पड़ता है। फिर भारी पत्थर को ढो कर अपने गांव तक लाना पड़ता है। इतने समय तक बच्चों का पेट कौन भरेगा। सो काम बिल्कुल खत्म है। वे लगभग सत्तर-बह्त्तर वर्ष की आयु के हैं। उनके साथ इस दुर्लभ कला का भी अन्त होना हुआ।
किसी तरह लगभग दस मूर्तियां उनसे आग्रह कर बनवाई गईं। उनमें कलाकार का अहंकार नहीं है, ये कार्य वे मजदूर की तरह ही करते हैं। उनके मूर्तिशिल्पों की अलग पहचान है। उनका खुरदरापन और स्थानिकता देश के किसी भी दूसरे भाग की मूर्तियों से भिन्न है। स्थानिक देवी-देवता के अलावा वे भगवान बदरीनाथ की मूर्ति बनाते हैं। बहुत सम्भव है उनके पूर्वजों ने ही बदरीनाथ देवता की मूर्ति का सृजन किया होगा।
जांच पड़ताल करने पर कुछ और मूर्ति शिल्पियों की जानकारी भी मिली। छिनका के अनुसुया लाल और पंगनों के बसन्तू लाल के नाम उल्लेखनीय हैं। चमोली जिले में दस या बारह इस तरह के कलाकार हैं। ठीक से शोध करने पर उत्तरकाशी से बागेश्वर तक ऐसे अनेकों गुणी कलाकारों का जरूर पता लग सकता है। साहित्यकार नन्द किशोर हटवाल ने इस दिशा में पहल की है।
चारों धाम की यात्रा करने वाले लाखों लोगों को वैसे भी अपने उत्तराखण्ड में यादगार के लिए कोई चीज खरीदने को नहीं मिलती है।

-राजेश सकलानी

यदि ग्राहक मौजूद हों तो मूर्तिशिल्प की उपलब्धता  संभव हो सकती है। एक ठीक ठाक आकार का शिल्प (लगभग १ फ़ुट लम्बा और८ इंच चौड़ा) मेहनताने की कीमत रू २५०० से ३००० के बीच उपलब्ध हो सकता है।

Thursday, December 25, 2008

विद्यासागर नौटियाल का नया कथा-संग्रह " मेरी कथा यात्रा"




सुप्रसिद्ध आलोचक डा0 नामवरसिंह 25 दिसम्बर '08 को दूरदर्शन के ने्शनल प्रोग्राम के अंतर्गत
सुबह 8-20 बजे विद्यासागर नौटियाल के कथा-संग्रह
मेरी कथा यात्रा की समीक्षा करेंगे