
देहरादून १३ अप्रैल २००९
दिल्ली में मोहन सिंह पैलेस का कॉफी हाऊस अड्डा था कथाकार विष्णु प्रभाकर जी का। विष्णु जी और भीष्म साहनी वहीं बैठते थे। कवि लीलाधर जगूड़ी की स्मृतियों में विष्णु प्रभाकर के उस कॉफी हाऊस में बैठे होने का दृश्य उतर गया।
कथाकार विष्णु प्रभाकर को विनम्र श्रद्धाजंली देते हुए देहरादून की साहित्यिक संस्था संवेदना की गोष्ठी में जब उनके अवदान को याद को याद किया गया था तो जो किस्सा कवि लीलाधर जगूड़ी की जुबान से सुना उसका तर्जुमा करके भी रख पाना संभव नहीं हो रहा है।
जगूड़ी कह रहे थे -
दिल्ली का वह कॉफी हाऊस था ही ऐसी जगह जहां जुटने वाले साहित्यकारों के बीच आपसी रिश्तों में एक ऐसा अनोखा जुड़ाव था कि विष्णु प्रभाकर उसकी एक कड़ी हुआ करते। वे किसी भी टेबल पर हो सकते थे। एक ऐसी टेबल पर भी जहां उसी वक्त पहुंचा हुआ कोई कॉफी पीने की अपनी हुड़क को इसलिए नहीं दबाता था कि सबको पिलाने के लिए उसके पास प्ार्याप्त पैसे नहीं है। टेबल पर उसके समेत यदि छै लोग हों तो एक कप कॉफी और पांच गिलास पानी मंगाते हुए उसे हिचकना नहीं पड़ता था। वहीं कॉफी हाऊस के पानी को पी-पीकर उस दौर के युवा और आज के वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल, त्रिनेत्र जोशी और प्रभाति नौटियाल सरीखे उनके अभिन्न मित्र उस समय तक, जब तक कि किसी एक दिन का प्ार्याप्त भोजन जुटा पाना उनके लिए संभव नहीं हुआ था, अपने शरीर में उसी पानी की ऊर्जा को संचित करते थे। बाद में जब उन तीनों ही मित्रों का जे.एन.यू. में दाखिला हो गया हो गया और रहने ठहरने के साथ-साथ खाने का जुगाड़ भी तो पहले दिन छक कर खाना खा लेने के बाद वे तीनों ही बीमार पड़ गए।

शब्दयोग के संपादक, कथाकार सुभाष पंत ने विष्णु प्रभाकर के रचनाकर्म पर विस्तार से बात करते हुए इस बात पर चिन्ता जाहिर की कि हिन्दी आलोचना की खेमेबाजी ने उनके रचनाकर्म पर कोई विशेष ध्यान न दिया।
वरिष्ठ कवियत्री कृष्णा खुराना ने शरत चंद की जीवनी आवारा मसिहा को विष्णु जी के रचनाकर्म का बेजोड़ काम कहा।
विष्णु प्रभाकर की कहानी धरती अब भी घूम रही है का पाठ इस मौके पर किया गया। गोष्ठी में डॉ जितेन्द भारती, गुरुदीप खुराना, नितिन, प्रेम साहिल आदि भी उपस्थित थे।