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Wednesday, September 7, 2011

उदार-अंधराष्ट्रवाद

मैं भी अन्ना 

गलियां बोलीं मैं भी अन्ना, कूचा बोला मैं भी अन्ना!
सचमुच देश समूचा बोला मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
भ्रष्ट तंत्र का मारा बोला, महंगाई से हारा बोला!
बेबस और बेचार बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
साधु बोला मैं भी अन्ना, योगी बोला मैं भी अन्ना!
रोगी बोला, भोगी बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
गायक बोला मैं भी अन्ना, नायक बोला मैं भी अन्ना
दंगों का खलनायक बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
कर्मनिश्ठ कर्मचारी बोला, लेखपाल पटवारी बोला!
घूसखोर अधिकारी बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
मुंबई बोली मैं भी अन्ना, दिल्ली बोली मैं भी अन्ना!
नौ सौ चूहे खाने वाली बिल्ली बोली मैं भी अन्ना!
डमरु बजा मदारी बोला, नेता खद्दरधारी बोला!
जमाखोर व्यापारी बोला, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
दायां बोला मैं भी अन्ना, बायां बोला मैं भी अन्ना!
खाया-पीया अघाया बोला मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
निर्धन जन की तंगी बोली, जनता भूखी-नंगी बोली!
हीरोइन अधनंगी बोली, मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!
नफरत बोली मैं भी अन्ना, प्यार बोला मैं भी अन्ना!
हंसकर भ्रष्टाचार बोला मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना!

-अरुण आदित्य

 

संघर्ष के स्वरूप की उदारता के बावजूद बहस से परे राष्ट्रवादी दिखने की जिद उदार-अंधराष्ट्रवाद  ही कही जा सकती है। आप मैसेज कर सकते हैं, मिस्ड कॉल कर सकते हैं, जूलूस निकाल सकते हैं, कैण्डल मार्च कर सकते हैं, बत्ती बुझा सकते हैं, गीत गा सकते हैं, सोसल साइटों पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रियायें दर्ज कर सकते हैं, न हो तो मौन रह सकते हैं लेकिन मुद्दे पर सहमत होते हुए भी कुछ इतर करने की छूट नहीं ले सकते कि कुछ सुलगते हुए सवाल उठ खड़े हों। न सिर्फ समाज विरोधी बल्कि राष्ट्रविरोधी का तमगा पहनना चाहते हों तो आपका कुछ नहीं किया जा सकता। बदलाव के संघर्ष के उदार-अंधराष्ट्रवादी ऐजण्डे का अनुपालन उसके तय कायदों में ही संभव है। उदार-अंधराष्ट्रवाद  की विशेषता है कि कट्टरपंथी अंधराष्ट्रवाद  के निहित कायदों से सहमति के बावजूद यह उससे अपने संबंधों को बचाकर चलता है। न सिर्फ वे जिनसे कट्टरपंथी अंधराष्ट्रवाद  को खुली असहमति होती है बल्कि किसी भी तरह की दूसरी गतिविधियां यहां छूट के दायरे में रहती हैं। आप व्यापार कर सकते हैं, बिकनी पहनकर फैशन शो में उतर सकते हैं, मैदान में खेलने की बजाय विज्ञापनों में छे जड़ते हुए दर्शकों को कूल कूल कर सकते हैं, खुद को प्रोजेक्ट करने वाली सामाजिक गतिविधियों के नाम पर विदेशी या देशी धन पर गैर-सरकारी बने रह सकते हैं, ओहदेदार पद पर होने के कारण जो कुछ सीमित दायरे में भी जनहित संभव हो उससे बचते हुए जी हुजूरी की व्यवस्था को बनाये रखने में सहयोगी हो सकते हैं, अन्य भी-चाहे वह बदलाव के ऐजण्डे से मेल न खाती कोई भी गतिविधी हो, स्वतंत्र रूप से जारी रख सकते हैं। यूं क्षेत्र, जाति, धर्म, रूप, रंग और लिंगभेद जैसे गैर प्रगतिशील विचार इसके दायरे से बाहर हैं लेकिन इन पर यकीन करना आपकी निजि स्वतंत्रता बना रह सकता है। आधुनिकतम तकनीक के प्रति उदार-अंधराष्ट्रवाद  का कोई निषेध नहीं जो कि उसका उजला पक्ष भी कहा जा सकता है। लेकिन तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ उसके तय ऐजण्डे के प्रचार प्रसार में हो, इस बात पर उसका विशेष जोर होता है। बल्कि ज्यादा मारक तरीके से उसके प्रयोग की संभावनाओं की तलाश इसके उद्देश्यों में शामिल माना जा सकता है। उदार-अंधराष्ट्रवाद की एक और विशेषता है कि गैर-जनतांत्रिक होते हुए भी जनतंत्र में पारदर्शिता की बात बहुत जोर-शोर से करता है। प्रगतिशील मूल्यों के प्रति सहमति के भाव के बावजूद गैर प्रगतिशील विचारों की व्याप्ति के लिए उदार-अंधराष्ट्रवाद को हमेशा जनता के किसी बेहद धड़कते हुए मुद्दे की दरकार रहती है। अपनी चोरजेब के अर्थतंत्र के लेखे-जोखे को ज्यादा पारदर्शी बनाने की उसकी कोशिशें, तरह-तरह के छल-छद्म से छली जाती जनता के पढ़े लिखे तबके को प्रभावित करने के लिए, लोकप्रिय छवी की तलाश में होती हैं और लोकप्रिय छवी के इर्द-गिर्द लामबंदी की कार्रवाइयों में उसके नेतृत्व का अहम हिस्सा खुद की छवियों को ज्यादा से ज्यादा संवारने की कोशिश में जुटा होता है। 
भारतीय मध्यवर्ग की त्रासद कथा का जनलोकपाल उदार-अंधराष्ट्रवाद की ज्वलंत मिसाल है। 
ऐसे ही एक बड़ी बहस को बहुत खूबसूरत ढंग से कवि अरूण कुमार आदित्य न कविता के अंदाज में बयां किया है। 
-विजय गौड़