यात्रा से लौट आया हूं। जांसकर को फिर से देखा। दारचा से पदुम तक की पैदल यात्रा के बाद मन था कि कारगिल से कश्मीर होते हुए वापिस देहरादून लौट जायें। लेकिन कम्बख्त जमाने की सूचनायें बता रही थी कि कश्मीर के रास्ते जम्मू होकर निकलना आसान न होगा। यातायात बंद है। जूलूस और चक्काजाम है। लिहाजा कारगिल से लेह और लेह से मनाली होते हुए ही वापिस लौटे। अमरनाथ साइनबोर्ड को जमीन देने पर कश्मीर से लेह लद्दाख तक के लोग, जो हमें मिले, एक ही राय रखते थे। धारा 370 के उलंघन पर वे एक मत थे।
बाकि बातें विस्तार से लिखूंगा, थोड़ा समय चाहिए। अभी तो कुछ तस्वीरें, जो इस दौरान हमारी यात्रा की गवाह हैं, प्रस्तुत हैं। लेह से नुब्रा घाटी तक की यात्रा भी की, जहां लद्दाख का रेतीलापन पसरा पड़ा रहता है, तस्वीरों में दिख ही जायेगा। ये कुछ तस्वीरें हैं :