Saturday, March 8, 2014

यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय ह


अपने स्ारकारी आवास, टॉलिगंज से निकलकर नेताजी नगर के स्टूच्यू पर मिलने के वायदे के साथ पहुंचते हुए कोलकाता के सचेत नागरिक और हिन्दी के कवि नील कमल से मिलकर लौटा हूं। आज शनिवार है। कदम दर कदम मन्दिरों की अनंत श्रृंखला वाले कोलकाता में शनिपूजा की धूम है। ऋत्विज प्रकाशन, कोलकता से प्रकाशित भाई नील कमल का सद्य प्रकाशित कविता संग्रह हाथ में है ''यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है""। छपाई में आकर्षक और नये में नये की भव्यता का आतंक न मचाते रंग वाले कागज पर छपी इस किताब के लिए नील कमल को बधाई एवं शुभ कामनायें।  


सुना आपने


कभी आप विचार को
जनेऊ की तरह धारण करते हैं

कभी आप जनेऊ को
विचार को की तरह धारण करते हैं

दोनों ही स्थितियों में सुविधानुसार
Vichaar को कान पर टांग लेने की सुविधा है
कविता की दुनिया में बस यह एक सुविधा है

फिलहाल
कविता के कान पर
टंगा हुआ एक धागा
ख्ाता मुआफ़ हो मेरे दोस्तो
आप जो बनते हैं कविता के हिमायती
सबसे ज्यादा सांसत में कविता की जान
आप से।।। हां आ ही से है।।। सुना आपने ?