Friday, April 18, 2014

सो गया दास्ताँ कहते-कहते



        उसने अपनी आत्मकथा में एक जगह लिखा है-उस वक्त हर कोई युवा था लेकिन हम हमेशा अपने से अधिक युवा लोगों से मिल रहे थे. पीढियाँ एक दूसरे से आगे निकलने को आतुर थीं ,खासतौर से कवियों और अपरधियों की;जब तक आप कुछ नया करते कोई और शख्स प्रगट हो जाता जो आपसे भी बेहतर करते हुए दिखाये देता.

          सतासी साल की भर-पूर जिन्दगी जीने वाले गैब्रीयल गार्सिया मार्खेज़ के लेखन का जादू यह साबित करने के लिये पर्याप्त है कि उनके फ़न में उनसे आगे निकलने की कोई कोशिश भी नहीं कर सका.हिन्दी की दुनिया में शायद ही कोई हो जिसने अस्सी के दशक की शुरूआत में साहित्य की दुनिया में प्रवेश लिया हो और मार्खेज़ के जादुई यथार्थ का नाम सुना हो.‘एकान्त के सौ वर्षकी चर्चा के साथ लैटिन अमेरिका के कथा साहित्य की तरफ पूरी दुनिया का ध्यान गया हालाँकि इसी दुनिया में बोर्खेज़ जैसे विद्वान,जटिल और बीहड़ लेखक  की भी बसाहट है.पत्रकारिता से कैरियर की शुरूआत करने वाले मार्खेज़ ने किस्सागोई की नायाब शैली विकसित की.हालाँकि एक साक्षात्कार में वह बताते हैं कि जिसे दुनिया जादुई कह रही है वह लैटिन अमेरिकी दुनिया का सहज यथार्थ है.पौराणिक पात्रों और मिथकीय सन्दर्भों से संवेदित भारतीय समाज के लिये यह बात इतनी अजूबी थी भी नहीं.अस्सी के दशक में हम टेलीविजन में रामायण के प्रसारण के साथ टीवी सेट के सम्मुख सिक्कों का चढ़ावा भी देख ही रहे थे!हम एक साथ दो अलग-अलग समय में जी रहे थे!(आज भी जी रहे हैंमंगल पर यान भेज रहे हैं  और मन्दिर में सफलता की कामनायें कर रहे हैं!)

     हिन्दी में मार्खेज़ के उपन्यास का अनुवाद बहुत बाद  में आया लेकिन उनकी कहानियों के अनुवाद लगातर प्रकाशित होते रहे.मार्खेज़ ने इतने विषयों पर कलम चलायी कि आश्चर्य होता है.तनाशाहों  के जीवन पर आटम आफ़ पैट्रिआर्क जैसा उपन्यास लिखने वाले मार्खेज़ पौ गायिका शकीरा पर भी मुग्ध कर देने वाला गद्य  लिखते हुए दिखायी देते हैं .पत्रकारिता का त्वरित लेखन बहुत से महान कथाकारों की अभ्यास स्थली तो रहा है लेकिन किसी  स्थापित उपन्यासकार को उसी शिद्दत से पत्रकारिता करते देखना अजूबे से कम नहीं. किसी जमाने में उनके लघु उपन्यास ‘क्रोनिकल आफ अ डेथ फ़ोरटोल्ड’ की  हिन्दी जगत में खूब चर्चा रही जिसके प्रभाव के अनुमान कुछ रचनाओं पर भी लगाये गये.लेकिन यहाँ राजेन्द्र यादव जैसे लेखक भी हुए जिन्हें यह रचना पढ़ते हुए इससे बहुत पहले लिखी गयी रघुवीर सहाय की कविता पंक्ति ‘रामदास की हत्या होगी’ याद आती रही.

     नोबुल पुरस्कार मिलने के बाद मार्खेज़ का अद्भुत उपन्यास ‘लव इन द टाइम आफ कोलरा’ आता है.इस उपन्यास में मार्खेज़ ने दिल टूटने के बाद इक्यावन वर्षों की लम्बी प्रतीक्षा करने वाले अद्भुत प्रेमी की सृष्टि की है.फ़्लोरेन्तीनो अरीजा जैसा दृढ़,धैर्यवान और बेशर्म आशिक विश्व-साहित्य में दूसरा नहीं जो उम्र की सीमाओं को लांघते हुए उस रात के एकान्त में अपना प्रणय सन्देश सद्य:विधवा प्रेमिका के सम्मुख रखने में नहीं हिचकता  !प्रेमिका फ़र्मिना दाज़ा के पति डाक्टर अर्बीनो की मृत्यु अचानक घटित होती है-प्रिय तोते का पीछा करते हुए एक डाल से फिसलने के बाद…मृत्यु और जीवन के इस शाश्वत द्वन्द्व में भग्न-हृदय फ़्लोरेन्तीनो अरीजा की जिन्दगी की आधी सदी की हलचलों के साथ कैरेबियन द्वीपों की जीवन्त दुनिया में प्रेम का मादक संगीत बजता है.

             मार्खेज़ की दुनिया में  उद्दाम प्रेम के बहुरंगी दृश्य हैं;न खत्म होने वाली बारिशें हैं;पसीनों की और अमरूदों की और समुद्रों की नम हवाओं वाली गन्ध है;दुपहरियों की अलसायी नींद भरी झपकियाँ हैं. जीवन के जादू को साहित्य में बहुत सारे लेखक लाते रहे हैं लेकिन मार्खेज़ का होना हमें बताता है कि जीवन को साहित्य में किस तरह जादुई बनाया जा सकता है!

     नवीन कुमार नैथानी