Sunday, August 24, 2014

उन्होंने साहित्य में आधुनिक भारतीय चेतना को स्थापित किया






यू आर अनंतमूर्ति का आकस्मिक निधन भारतीय साहित्य जगत के लिये एक स्तब्धकारी सूचना है.वे सही अर्थों में आधुनिक भारतीय चेतना के प्रतिनिधि  लेखक हैं. भाषा की सरहदों को लाँघने वाले अनंतमूर्ति न सिर्फ़ लेखन में रूढ़ियों से संघर्ष करते रहे बल्कि जीवन में भी जोखिम उठाकर अपनी  बात कहने का साहस दिखाते रहे. वे साहित्य और रजनीति के बीच की दूरी को पाटने वाले सक्रिय योद्धा के रूप में भी याद किये जायेंगे.

     अनन्तमूर्ति का उपन्यास ‘संस्कार’ हिन्दु ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खोखलेपन पर करारी चोट करते हुए प्रतिरोध का नया व्याकरण लिखता है.धर्म-विरुद्ध आचरण करने वाले ब्राह्मण की मृत्यु पर अन्तिम संस्कार  की पेचीदगियों से शुरू होता हुआ यह उपन्यास रूढ़ियों की जकड़न में फंसे ब्राह्मणों के अन्तर्विरोधों के साथ जातिवादी व्यवस्था के खोखलेपन को  उजागर करता है. अनूठे शिल्प-विन्यास और प्रतीकात्मकता के लिये विख्यात ‘संस्कार’ आधुनिक भारतीय साहित्य का अप्रतिम गौरव-ग्रन्थ है.

       उनका दूसरा उपन्यास ‘भारतीपुर’ अधुनिकता और परम्परा के शाश्वत द्वन्द्व की कथा है.कथा नायक इंग्लैण्ड में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात अपने गाँव भारतीपुर लौटता है और गाँव के हरिजनों की जीवन-स्थिति उसे बेचैन करती है.इस उपन्यास में बहुत कुछ बाहर के साथ भीतर भी घटित होता है. सदियों की जकड़न से छूटने की बेचैनी और छटपटाहट का  सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक स्तर चित्रण किया गया है. एक प्रसंग में कथा नायक सैकड़ों वर्षों से घर के पूजा घर में रखे शालिग्राम को दलित के स्पर्श कराने के प्रयोजन से बाहर निकालकर लाता है .यह पूरा प्रसंग जिस सघनता के साथ उपन्यास में आया है वह अनुवाद में भी पाठक को विचलित करके रख देता है.

        साहित्य अकादमी और नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्य-काल को बहुत सम्मान के साथ याद किया जाता है.

       लोकतान्त्रिक मूल्यों के लिये प्रतिबद्ध आधुनिक चेतना के अद्भुत शब्द-शिल्पी अनंतमूर्ति को  ‘लिखो यहाँ वहाँ ’की विनम्र शृद्धांजलि!

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