
1940 में प्रसिद्ध कुर्द कवि फायेक बेकेस के बेटे के तौर पर जन्में शेर्को बेकेस आधुनिक कुर्द कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। युवावस्था में ही वे कुर्द स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और इसके रेडियो के लिए काम करने लगे। मामूली विषयों पर गूढ़ कविताएं लिखने के लिए और कुर्द कविता को परंपरागत ढांचे से बाहर निकालने के लिए उन्हें वि्शेष श्रेय दिया जाता है। उनकी कविताओं के अनुवाद अरबी, स्वीडिश डेनि्श डच इटालियन फ्रेंच अंग्रेजी सहित वि्श्व की अनेक भा्षाओं में हुए हैं- साथ ही अनेक अन्तर्रा्ष्ट्रीय पुरस्कारों /सम्मानों से भी उन्हें नवाजा गया है। आधुनिक फारसी के निकट समझी जाने वाली कुर्द भाषा में उनके कई संकलन प्रका्शित हैं। अंग्रजी में "द सीक्रेट डायरी ऑफ ए रोज: थ्रू पोएटिक कुर्दिस्तान" उनकी कविताओं का लोकप्रिय संकलन है। 1986 में तत्कालीन इराकी सरकार की दमनात्मक नीतियों से बचने के लिए बेकेस को स्वीडन में राजनितिक शरण लेनी पड़ी पर 1992 में वापस अपने दे्श लौट आए। सक्रिय राजनीति में रहते हुए वे थोड़े समय के लिए स्थानीय सरकार में मंत्री भी रहे। यहां प्रस्तुत हैं अपने समय के इस महत्वपूर्ण कवि की कुछ छोटी कविताओं के अनुवाद। - यादवेन्द्र
साथ - साथएक शाम
एक गूंगा, एक बहरा और एक अंधा
बाग में थोड़ी देर के लिए
साथ साथ बैठे
एक बेंच पर-
जीवंत, तेज-तर्रार और मुस्कराते हुए।
अंधे ने देखनी शुरू की दुनिया
बहरे की आंखों से-
बहरे ने सुननी शुरू की आवाजें
गूंगे के कानों से-
और गूंगे ने सब कुछ समझना शुरू किया
बाकी दोनों के होठों और चेहरों के हावभाव से-
इस तरह तीनों ने साथ साथ
अपने अंदर खींचनी शुरू की सांसें
फूलों की सुगंध से लिपटी हुई।
कुर्सीवह कुर्सी
जिस पर बिठा कर मार डाला गया था कवि को-
वह थी एक गवाह
और बची रही जिन्दा
देखने को हत्यारे की मौत---
फिर आजादी प्रकट हुई आनन फानन में
और आसीन हो गई
उसी कुर्सी पर।
तूफान में लहरउफनती लहर ने मछुआरे से कहा-
एक नहीं हजार कारण हैं
जिनसे उत्तेजित हैं वे लहरें
पर सबसे अहम बात ये
कि मैं बख्शना चाहती हूं
मछली को आजादी
विरोध में खड़े होकर
जाल के।
प्रेमगीतपहले पहल एक सरकंडे ने
बगावत कर दी धरती के खिलाफ
वह दुर्बल और पीली पड़ी हुई कुंवारी डंडी
दिल दे बैठी गतिशील बयार को
पर धरती को नहीं था मंजूर
ये प्रेम गठबंधन।
प्रेम में सराबोर होकर उसने कहा:
"इस धरती पर नहीं है कोई उसका सानी---
और मेरा दिल है कि वहीं पर रम गया है---"
ओस से गीली आंखों वाली
उसी कुंवारी को देने को दंड
उद्धत धरती ने बुला भेजा कठफोड़वा-
उसने कब्जे में जकड़ लिए दुर्बल डंडी के मन और तन
और कर डाले यहां वहां सूराख ही सूराख---
उस दिन के बाद से
वह बन गई एक बांसुरी
और बयार के हाथ सहलाने लगे उसके घाव
लाड़ में- कोमल तानों से-
तब से अब तक वह गाए जा रही है
गीत दुनिया की खातिर।
विच्छेदमेरी कविताओं से
यदि बहिशकृत कर दो तुम फूल
तो इनके चार मौसमों में से
हो जाएगी मौत एक मौसम की।
यदि निचोड़ लो प्यार
तो मर जाएगा दूसरा मौसम।
यदि इसमें कहीं नहीं है जगह रोटी की
तो बचेगा हरगिज नहीं तीसरा मौसम।
और यदि बंद कर दिए गए दरवाजे आजादी के लिए
तो दम तोड़ ड़ालेंगे चारों मौसम एक साथ
बिल्कुल मेरी तरह ही।
बुतएक दिन जरूर आएगा
जब दुनिया के तमाम बल्ब
कर देंगे बगावत
और हमें मनाही कर देंगे रोशनी देने से
क्योंकि जब से वे आए हैं अस्तित्व में
कौंधे जा रही हैं अपलक उनकी आंखें
दुनिया भर में फैले
हजार-हजार बुतों के ऊपर-
पर अफसोस कि
नहीं बनाया गया है एक भी अदद बुत
एडिसन के नाम।
अनुवाद: यादवेन्द्र