(यहां - यमुना
किनारे
सुबह
के
कोहरे
में
जब
बाहर
निकलना
बहुत
मुश्किल
हुआ
जाता
है
तो
घर
के
भीतर
बैठे
पुराने
कागजों
को
खंगाल
ही
लेना
चाहिये.कम्प्यूटर
के
वाइरस
की
चिन्ता
करने
वाली
नयी
पीढी
को
दीमकों
के
भय
का
शायद
अन्दाजा
हो.
कुछ
जगहें
तो
दीमकों
के
लिये
बहुत
ही
सुरक्षित
हुई
जाती
हैं.
1988 या
89 में
लिखी
कुछ
रचनायें
मिलीं.
शायद
हर
कहानी
लिखने
वाला
शुरूआत
कविताओं
से
करता
है.उन्हीं में से
एक
यहां
किंचित
संकोच
के
साथ
प्रस्तुत
है.
–नवीन
कुमार
नैथानी)
रास्ते
कौन गया
होगा इन
रास्तों से
होकर
जब आगे
कुछ नहीं
रहा होगा
जीवन में
वनस्पति के
सिवा.
मृत अवशेषों
के साथ
किसने बिताये
होंगे
न खत्म होने वाले
दिन?
कौन जाता
होगा इन
रास्तों से
होकर
जब समय
में उतना
शेष नहीं
है जीवन
जितना हम
जी लिये.
वनस्पति के
दरकने से
बनी पगडंडी
पर कौन
चलता होगा?
कौन जायेगा
इन रास्तों
से होकर
जब आगे
कुछ नहीं
रहेगा
न हवा
न वनस्पति
न प्राणि.
जब फिर
से शुरू
होगा जीवन
तो
कौन बतायेगा
कि कभी
यहां बहुत
सारे रास्ते
थे!