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वर्षीय नसरीन सतूदेह इरान की बेहद लोकप्रिय मानव अधिकार वकील और
कार्यकर्ता हैं जो अपने कट्टर पंथी शासन विरोधी विचारों के लिए सरकार की
आंख की किरकिरी बनी हुई हैं.अपने छात्र जीवन में खूब अच्छे नंबरों से पास
होने के बाद उन्होंने कानून की पढाई की पर वकालत करने के लाइसेंस के लिए
उन्हें आठ साल का लम्बा इंतजार करना पड़ा.उन्होंने सरकारी महकमों और बैंक
में भी नौकरी की पर इरान के पुरुष वर्चस्व वाले समाज में आततायी पिताओं के
सताए हुए बच्चों और शासन के बर्बर कोप का भाजन बने राजनैतिक कार्यकर्ताओं
के लिए क़ानूनी सहायता प्रदान करने के कारण उन्हें दुनिया भर में खूब सम्मान
मिला.पिछले राष्ट्रपति चुनाव की कथित धांधलियों में उन्होंने खुल कर
विरोधी पक्ष का साथ दिया...नतीजा सितम्बर 2010 में उनकी गिरफ़्तारी और अंततः
जनवरी 2011 में ग्यारह साल की एकाकी जेल की सजा... कैद की सजा के साथ साथ
उनके अगले बीस सालों तक वकालत करने पर भी पाबन्दी लगा दी गयी जो बाद में
अपील करने पर छह साल (कैद) और दस साल (वकालत से मनाही) कर दी गयी। जेल में
रहते हुए उन्हें अपने परिवार से भी नहीं मिलने दिया जाता इसलिए कई बार
उन्होंने विरोध स्वरुप अन्न जल ग्रहण करने से इंकार कर दिया...इन दिनों भी
वे अन्य कैदियों की तरह खुले में परिवार से मिलने के हक़ के लिए भूख हड़ताल
पर हैं और उनकी सेहत निरंतर बिगडती जा रही है.दुनिया में मानव अधिकारों के
लिए आवाज उठाने वाले अनेक लोगों और संगठनों ने उनकी रिहाई की माँग की
है.जेल की अपनी एकाकी कोठरी से उन्होंने अपने बेटे के लिए जो चिट्ठी
लिखी,उसका अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है:
मई 2011 में एविन जेल में 9 महीने तक बंद रहने के बाद नसरीन सोतुदेह ने
अपने तीन साल के बेटे नीमा को यह मार्मिक ख़त लिखा। प्रसुत है नीमा का लिखा खत-
प्रस्तुति एवं अनुवाद: यादवेन्द्र
तुम्हें ख़त लिखना ...मेरे प्यारे...बेहद मुश्किल काम है...मैं तुम्हें
कैसे बताऊँ कि मैं कहाँ हूँ, इतने छोटे और नादान हो तुम कि कैद, गिरफ़्तारी,
सजा, मुकदमा, सेंसरशिप, अन्याय, दमन , आज़ादी, मुक्ति , न्याय और बराबरी
जैसे शब्दों के मायने कैसे समझ पाओगे.
मैं इसका भरोसा खुद को कैसे दिलाऊं कि जो मैं तुम्हें बताउंगी उसको
तुम्हारे स्तर पर जा कर सही ढंग से तुम तक पहुंचा और समझा भी पाऊँगी...
बड़ी बात है कि मैं आज के सन्दर्भ में बात कर रही हूँ...आगे आने वाले सालों
के बारे में कल्पना नहीं कर रही हूँ.मैं कैसे तुम्हें समझाऊं मेरे प्यारे
कि अभी घर लौट कर आ जाना मेरे लिए मुमकिन नहीं..मुझेसे मेरी यह आज़ादी छीन
ली गयी है. मुझतक यह खबर पहुंची है कि तुमने अब्बा से कहा है कि अम्मी से
अपना काम जल्दी ख़तम करने और घर लौट आने को कह दो...मैं कैसे तुम्हें
समझाऊं मेरे बच्चे कि दुनिया का कोई भी काम इतना जरुरी नहीं है कि मुझे
इतने लम्बे अरसे तक तुमसे जुदा रख सके...किसी का मेरे ऊपर ऐसा इख्तियार
नहीं है कि मुझे मेरे बच्चों के हकों से बेफिक्र कर दे.मैं कैसे तुम्हें
समझाऊं कि पिछले छह महीनों के दौरान मुझे सब मिला कर एक घंटा भी तुमसे
मुलाकात का नहीं दिया गया.
अब मैं तुमसे क्या कहूँ मेरे बेटे? पिछले हफ्ते की ही तो बात है जब तुमने
मुझसे पूछा था: आज शाम का अपने काम निबटा के हमारे पास घर आ रही हो ना
अम्मी?इसका जवाब मुझे मज़बूरी में जेल के गार्डों के सामने ही देना पड़ा था:
बच्चे, मेरा काम थोड़ा और बाकी है, जैसे ही ख़तम होगा मैं फ़ौरन घर आ
जाउंगी. मुझे लगा था जैसे तुम सारी असलियत समझ गये हो और फिर महसूस हुआ
जैसे तुमने मेरा हाथ प्यार से थामा और मुँह तक लाकर अपने नन्हें नन्हें
होंठों से उसको चूम लिया हो.
मेरे प्यारे नीमा, पिछले छह महीनों में सिर्फ दो मौके ऐसे आये जब मैं पूरी
कोशिश के बाद भी अपनी रुलाई नहीं रोक पाई...पहली बार जब मेरे अब्बा का
इन्तिकाल होने की खबर मुझे मिली थी पर मुझे उनके लिए अफ़सोस करने का और उनके
जनाजे में शामिल होने की इजाज़त की अर्जी ठुकरा दी गयी थी....दूसरा वाकया
उस दिन का है जब तुमने मुझे अपने साथ साथ घर चलने की गुजारिश की थी और मैं
उसको पूरा कर पाने से लाचार थी...तुम्हारे उदास होकर चले जाने के बाद मैं
जेल की अपनी कोठरी में वापिस आ गयी...उसके बाद मेरा खुद पर से सारा
नियंत्रण ख़तम हो गया.... बहुत देर तक मेरी सिसकियाँ रुक ही नहीं पा रही
थीं.
मेरे सबसे प्यारे नीमा, बच्चों के मामले में एक के बाद एक अनेक फैसलों में
कोर्टों ने कहा है कि तीन साल के बच्चों को पूरे पूरे दिन ( चौबीस
घंटे)सिर्फ उनके पिताओं के साथ नहीं छोड़ा जा सकता..बार बार कोर्टों ने यह
बात इसलिए दुहराने की दरकार समझी है क्योंकि उनको लगता है कि छोटे बच्चों
को उनकी माँ से पूरे पूरे दिन के लिए दूर रखना बच्चों की मानसिक सेहत के
लिए वाजिब नहीं होगा.
विडम्बना है कि वही कोर्ट आज एक तीन साल के बच्चे के कुदरती हक़ की परवाह
नहीं करती...बहाना यह है कि उसकी माँ देश की सुरक्षा के खिलाफ काम करने की
कोशिश कर रही है.
मुझे मेरे बेटे तुम्हें यह सफाई देने की जरुरत नहीं समझ आती...मुझे यह
लिखते हुए बेहद पीड़ा भी हो रही है कि मैंने किसी भी सूरत में "उनकी
"राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ जा कर कोई भी काम कभी नहीं किया...हाँ, एक
वकील होने के नाते मेरे सामने हरदम सबसे बड़ा लक्ष्य यही रहा कि अपने
मुवक्किलों की कानून में दिए हुए प्रावधानों के मुताबिक हिफाजत करूँ.मुझे
तुम्हें उदाहरण देकर समझाने की दरकार नहीं जिस इंटरव्यू को मुझे यातना देने
के लिए आधार बनाया जा रहा है वो आम जनता के लिए पूरा का पूरा उपलब्ध
है...कोई भी उसको पढ़ सकता है....वकील की भूमिका में मैंने कुछ फैसलों की
आलोचना जरुर की है पर मेरा वकील होना मुझे इसकी इजाज़त देता है.इसी को आधार
बना कर अब मुझे ग्यारह साल तक बेड़ियों में जकड़ कर रखने का फ़रमान सुनाया
गया है.
मेरे प्यारे बेटे...पहली बात, मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे मन में यह मुगालता
बिलकुल नहीं रहना चाहिए कि देश में पहला इंसान मैं ही हूँ जिसको इतनी कठिन
और बेबुनियाद सजा दी गयी हो...और न ही मुझे इसका कोई औचित्यपूर्ण आधार
दिखाई दे रहा है कि तुमसे कहूँ कि मेरे बाद कोई इस ज्यादती का शिकार नहीं
होगा.
दूसरी बात, मुझे यह देख जान का ख़ुशी हो रही है...ख़ुशी न भी कहो तो इसको
संतोष और शांति कहा जा सकता है कि मुझे उसी जगह कैद किया गया है जिस जगह
मेरे बहुत सारे मुवक्किल रखे गये हैं...इनमें से तो कई वो लोग हैं जिनका
मुकदमा मैं जीत के अंजाम तक पहुँचाने में नाकाम रही...आज वो सब भी इस देश
की अन्यायपूर्ण क़ानूनी व्यवस्था के कारण इसी जेल में बंद हैं.
तीसरी बात, मेरी ख्वाहिश कि तुमको जरुर पता चलनी चाहिए कि बतौर एक स्त्री
मुझे दी गयी कठिन सजा का मुझे गुमान है...मुझे इसका भी नाज है कि इन सबकी
परवाह न करते हुए मैंने पिछले चुनावों की गड़बड़ियों का विरोध करने वाले
अनेक कार्यकर्ताओं का क़ानूनी बचाव किया.मुझे इस बात की भी ख़ुशी है कि और
चाहे कुछ हो मुझे उनकी तुलना में ज्यादा कड़ी सजा दी गयी है क्योंकि मैंने
उनके वकील की हैसियत से उनका मुक़दमा पूरी निष्ठा से लड़ा था.
इस पूरे मामले में यह तो पूरी तरह से साबित हो गया कि औरतों की निरंतर चल
रही लड़ाई आखिर में रंग लायी...आप आज की तारीख में इसका समर्थन करें या
विरोध करें, एक बात तय है कि औरतों को अब नजर अंदाज करना मुमकिन नहीं रहा.
मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि तुमसे किस ढंग से कहूँ मेरे प्यारे नीमा...तुम
मुझे सजा देने वाले जज के लिए भी खुदा से दुआ माँगना...उनके लिए भी
जिन्होंने मुझसे लम्बी लम्बी जिरह की...और इस पूरी न्यायपालिका के लिए भी.
मेरे बेटे खुदा से उनके लिए इबादत करो कि उनके दिलों के अंदर भी शांति और
न्याय का बास हो जिस से उन्हें जीवन में कोई न कोई दिन ऐसा जरुर नसीब हो जब
दुनिया के अनेक अन्य देशों के लोगों की तरह वे चैन का जीवन बसर कर सकें.
मेरे सबसे प्यारे बच्चे, ऐसे मामलों में यह बहुत मायने नहीं रखता कि जीत
किसकी हुई...क्योंकि फैसले का पक्ष या विपक्ष के लिए की गयी कोशिशों और
दलीलों के साथ कोई अर्थपूर्ण ताल्लुक नहीं होता...और इस से भी कि मेरे
वकीलों ने मुझे बचाने की कोशिशों में कोई कोताही तो नहीं बरती..दरअसल असल
मुद्दा यहाँ तो ये है कि अजीबोगरीब खयालातों को आधार बना कर निर्दोष लोगों
को परेशान जलील और नेस्तनाबूद किया जा रहा है.मुझे फिर से यहाँ यह दुहराने
की जरुरत नहीं मेरे प्यारे कि आदिम समय से चलते आ रहे जीवन के इस खेल में
उन्ही लोगों को अंतिम तौर पर जीत हासिल होगी जिनका दमन पाक साफ़ है...जो
वाकई निर्दोष हैं ... इसी लिए मेरे प्यारे नीमा तुमसे मेरी यही गुजारिश है
कि जब खुदा से दुआ माँगना तो बाल सुलभ मासूमियत को बरकरार रखते हुए सिर्फ
राजनैतिक कैदियों की रिहाई की दुआ मत माँगना...खुदा से उन सबकी आजादी की
दुआ मांगना मेरे बेटे जो निर्दोष और मासूम लोग हैं.
बेहतर दिनों की आस में...
नसरीन सोतुदेह
3 comments:
बेहद मार्मिक
वह सुबह कभी तो आयेगी !
दिल को छूने वाला लेखन
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