फिल्मकार की दुनिया वास्तविकता और स्वप्नों के बीच के अंतर संबंधों से
निर्मित होती है.यह आस पास बिखरी सच्चाइयों को फिल्म निर्माण के लिए
प्रेरणा के तौर पर ग्रहण करता है, फिर अपनी कल्पना शक्ति से इनमें रंग भरता
है और उम्मीदों और स्वप्नों को अच्छी तरह से मिला कर फिल्म को जन्म देता
है.
सच्चाई ये है कि मुझे पिछले पाँच सालों से फिल्म निर्माण से वंचित रखा गया
है और अब तो आधिकारिक तौर पर आने वाले अगले बीस सालों तक मुझे फिल्मों को
भूल जाने का फ़रमान जारी किया गया है.पर मुझे मालूम है कि अपनी कल्पना में
मैं अपने स्वप्नों को फिल्म की शक्ल देता रहूँगा.सामाजिक रूप में चैतन्य
फिल्मकार होने के नाते मैं अपने आस पास के लोगों के दैनिक जीवन और उनकी
चिंताओं को फिल्म की विधा में चित्रित नहीं कर पाऊंगा पर मैं ऐसे स्वप्नों
को अपने से परे क्यों धकेलूं कि आने वाले बीस सालों में आज के दौर की तमाम
समस्याएं सुलझ जायेंगी और इसके बाद मुझे फिर से फिल्म बनाने का अवसर मिला
तो अपने देश में व्याप्त अमन और तरक्की के बारे में फिल्म बनाऊंगा.
सच्चाई ये है कि उन्होंने मुझे बीस सालों के लिए सोचने और लिखने से मना कर
दिया पर इन बीस सालों में वे मुझे स्वप्न देखने से कैसे रोक सकते हैं--- इन
बीस सालों में ऐसी पाबंदियाँ और धमकियाँ काल के गर्त में समा जायेंगी और
इनकी जगह आज़ादी और मुक्त चिंतन की बयार बहने लगेगी.
उन्होंने मुझे अगले बीस सालों तक दुनिया की ओर नजर उठा कर देखने की मनाही
कर दी.मुझे पूरी उम्मीद है कि जब मैं इसके बाद खुली हवा में साँस लूँगा तो
ऐसी दुनिया में विचरण कर सकूँगा जहाँ भौगोलिक,जातीय और वैचारिक आधार पर कोई
भेदभाव नहीं किया जायेगा और लोगबाग अपने विश्वासों और मान्यताओं को
संरक्षित रखते हुए मिलजुल कर अमन और आज़ादी से जीवन बसर कर रहे होंगे.
उन्होंने मुझे बीस सालों तक चुप रहने की सजा सुनाई है.फिर भी अपने स्वप्नों
में मैं उस समय तक शोर मचाता ही रहूँगा जब तक कि निजी तौर पर एक दूसरे को
और उनके नजरियों को धीरज और सम्मान से सुना नहीं जाता.
अंततः मेरे फैसले की सच्चाई यही है कि मुझे छह साल जेल में बिताने
पड़ेंगे.अगले छह साल तो मैं इस उम्मीद में जियूँगा ही कि मेरे सपने
वास्तविकता के धरातल पर खरे उतरेंगे.मेरे अरमान हैं कि दुनिया के हर कोने
में बसने वाले फिल्कार ऐसी महान फिल्म रचना करेंगे कि जब मैं सजा पूरी होने
के बाद बाहर निकलूं तो मैं उस दुनिया में साँस और प्रेरणा लूँ जिसके बनाने
के स्वप्न उन्होंने अपनी फिल्मों में देखे थे.
अब से लेकर आगामी बीस सालों तक मुझे जुबान न खोलने का फ़रमान सुनाया गया
है...मुझे न देखने का फ़रमान सुनाया गया है...मुझे न सोचने का फ़रमान
सुनाया गया है...फ़िल्में न बनाने का फ़रमान तो सुनाया ही गया है.
बंदिश और मुझे बंदी करने वाले हुक्मरानों की सच्चाई से मेरा सामना हो रहा
है.अपने स्वप्नों को जीवित रखने के संकल्प के साथ मैं आपकी फिल्मों में
इनके फलीभूत होने की कामना करता हूँ--- इनमें वो सब मंजर दिखाई दे जिसको
देखने से मुझे वंचित कर दिया गया है
यूरोपीय संसद द्वारा स्थापित विचारों की आज़ादी के लिए प्रदान किया जाने वाला सखारोव पुरस्कार इसबार ईरान के दो ऐसे जुझारू और दुर्दमनीय लोकतान्त्रिक योद्धाओं को दिया गया है जिन्होंने अपने सामाजिक सरोकारों की रक्षा के लिए देश की बदनाम जेलों में सर्वाधिक अमानवीय यातनाएं सहीं पर टस से मस नहीं हुए।पुरस्कारों की घोषणा करते हुए यूरोपीय संसद के अध्यक्ष मार्टिन शुल्ज ने इनके बारे में कहा कि सरकारी दमन और धमकी के आगे झुकने से इनकार करते हुए इन निर्भीक नायकों ने अपने देश के भविष्य का अपनी किस्मत से ज्यादा ध्यान रखा।अपने कामों से घनघोर निराशा और दमन के वातावरण में भी सकारात्मक आशावाद की ज्योति जलाये रखने वाले ये दोनों नायक हैं: विश्व प्रसिद्द फ़िल्मकार जफ़र पनाही और मानवाधिकार एक्टिविस्ट और वकील नसरीन सोतुदेह। 52 वर्षीय विश्वप्रसिद्ध फ़िल्मकार जफ़र पनाही ईरान में शांतिपूर्ण ढंग से अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए अनुकरणीय संघर्ष करने वाले लोगों की फेहरिस्त में अग्रणी हैं जिन्हें छः साल की कैद (अभी वे अपने घर में नजरबन्द हैं पर उनकी सजा माफ़ नहीं हुई है और कभी भी उनको जेल में डाला जा सकता है) और बीस सालों तक फिल्म निर्माण,निर्देशन,लेखन न करने का फरमान सुनाया गया है साथ ही किसी भी तरह का इंटरव्यू देने और विदेश यात्रा करने से रोक दिया गया है।पिछले दिनों दुनिया के एक बेहद प्रतिष्ठित फिल्म समारोह के जूरी का सदस्य बनने पर उनकी अनुपस्थिति पर एक कुर्सी खाली छोड़ कर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया गया था। उनकी सभी फ़िल्में विभिन्न समारोहों में प्रशंसित और पुरस्कृत हुई हैं पर अपने देश में आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित हैं। फिल्म बनाने से बीस सालों तक दूर रहने की सजा सुनाये जाने के बाद जफ़र पनाही की प्रतिक्रिया-
-यादवेन्द्रमानवाधिकार एक्टिविस्ट और वकील नसरीन सोतुदेह के अनुदित खत को अगली पोस्ट में प्रस्तुत किया जायेग।
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