सादगी और सुरुचिपूर्ण तरह से सम्पन्न हुए विद्यासागर स्मृति
सम्मान के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गुरदीप खुराना ने
कहा कि कथाकार विद्यासागर नौटियाल की स्मृति में दिये जाने वाले महत्वपूर्ण
सम्मान के लिए वर्ष 2024 सम्मान पंकज बिष्ट को दिया जाना उसे परम्परा का
सम्मान है जिसका प्रतिनिधित्व नौटियाल जी की रचनाएं करती हैं। अध्यक्षीय वक्तव्य
ज्ञापित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि पंकज बिष्ट ने न सिर्फ अपने रचनात्मक लेखन
से बल्कि आज के दौर में समयांतर जैसी महत्वपूर्ण को प्रकाशित कराते हुए भी अपनी उस
भूमिका का लगातार निर्वाहन किया है जो उनकी सामजिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आगे
उन्होने कहा कि यह इस बात से भी दिखायी देता है कि समयांतर में लिखने वाले अन्य लेखक
भी पंकज बिष्ट की तरह ही प्रतिबद्धता वाले लोग है।
रविवार को सेव हिमालय मूवमेंट एवं देहरादून के रचनाकारों की संस्था संवेदना की ओर से साहित्य के क्षेत्र का प्रतिष्ठित विद्यासागर नौटियाल
स्मृति सम्मान -2024 प्राप्त करने के बाद पंकज बिष्ट ने कहा कि विद्यासागर
नौटियाल ने अपनी राजनीतिक साहित्यिक प्रतिबद्धता कभी छिपाई नहीं। सम्मान ग्रहण करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिबद्धता
क्या होती है यह मैने विद्यासागर नौटियाल से सीखा है।
प्रेस क्लब, देहरादून में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि
वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार इब्बार रब्बी ने कहा कि वे पंकज बिष्ट को उनके लेखन के शुरुआती समय से
जानते हैं और इसीलिए कह सकते हैं मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता पंकज बिष्ट के साहित्य
का मूल स्वर है। उन्होंने यह भी कहा कि वे हमेशा से जानते हैं कि पंकज बिष्ट किसी
भी सच को सामने लाने में उसी तरह खरे जैसे सच को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाने में नौटियाल जी ने कभी संकोच
नही किया।
पंकज बिष्ट के साहित्य पर विस्तृत टिप्पणी करते
हुए डॉ. संजीव नेगी ने कहा कि पंकज बिष्ट की साहित्यिक दृष्टि ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
को समेटे होती है और इसीलिए उनकी रचनाओं में जो समय दर्ज होता है उसका सीधा सम्बंध
उदारीकरण से उपजी विसंगतियों, बाबरी विध्वंस और वैश्विक परिघटनाओं के
साथ बना रहा। बच्चे गवाह नहीं हो सकते, पंद्रह जमा पचीस, टुंड्रा
प्रदेश व अन्य कहानियों के साथ साथ उन्होंने पंकज बिष्ट के उपन्यास लेकिन दरवाजा,
उस
चिड़िया का नाम, पंखोंवाली नाव आदि से उद्धरणों के जरिए अपनी स्थापनाओं
को रखा और बताया कि विद्यासागर नौटियाल जहां समष्टि की बात करते थे पंकज बिष्ट
मनुष्य के भीतर की कहानी कहते हैं।
पहला विद्यासागर सम्मान 2017 में कथाकार सुभाष पंत को दिया गया था। एक अंतराल के बाद दूसरा सम्मान 2022 में कथाकार शेखर जोशी को दिया गया और तीसरा सम्मान वर्ष 2023 में डॉ. शोभा राम शर्मा को दिया गया था।
वर्ष 2024 के सम्मान के पांच सदस्य चयन समिति में
वरिष्ठ
कथाकार सुभाष पन्त, हम्माद फारुकी, धीरेन्द्र नाथ तिवारी, जितेंद्र भारती व
राजेश पाल थे। चयन समिति ने सर्वानुमति से पंकज बिष्ट को उनके उल्लेखनीय लेखन के
आधार पर इस सम्मान के लिए योग्य पाया। चयन समिति की ओर से वक्तव्य देते हुए साहित्यकार
एवं संस्कृति कर्मी हम्माद फारुखी ने पंकज बिष्ट और विद्यासागर नौटियाल को एक समान
विचार का कथाकार बताया। उन्होंने पंकज बिष्ट व उनके साहित्य का व्यापक परिचय दिया।
और बताया कि किस तरह कुमाऊं के अल्मोड़ा , मुम्बई , भारत सरकार के सूचना सेवा विभाग के
प्रकाशन विभाग में उपसंपादक व सहायक संपादक, योजना के
अंग्रेजी सहायक सम्पादक, आकाशवाणी की समाचार सेवा में सहायक
समाचार संपादक व संवाददाता, भारत सरकार के फिल्म्स डिवीजन में
संवाद- लेखन करते हुए भी व साहित्यरत रहे हैं। उनके द्वारा संपादित समयांतर सबसे
विचारपरक पत्रिकाओं में है।
पंकज बिष्ट जी ने अपने भाषण के दौरान एक दिलचस्प बात यह कही, कि जब लगता है सब
कुछ लिखा जा चुका है और नया कुछ लिखने के लिए नहीं बचा तो पत्रकारिता में नयापन
ढूंढना पड़ता है. यह कभी ना खत्म होने वाला स्रोत है. इस संदर्भ में उन्होंने अपनी
पत्रिका समयांतर पर बात करते हुए बताया कि
समय पर पत्रिका निकालना और पाठकों तक पहुंचाना कितना श्रमसाध्य कार्य है. उन्होंने
पत्रकारिता में कमिटमेंट, प्रतिबद्धता,और जनपक्षधर्ता जैसे तत्वों की
अनिवार्यता पर अपने विचार रखे।
इस मौके पर सेव हिमालय मूवमेंट के संरक्षक
जगदंबा रतूड़ी, राजीव नयन बहुगुणा, साहित्यकार
जितेंद्र भारती, नवीन नैथानी, राजेश सकलानी,
दिनेश
जोशी, कृष्णा खुराना, कुसुम भट्ट, चंद्रनाथ मिश्र, अरुण
कुमार असफल गढवाली के रचनाकार दैवेंद्र जोशी,
मदन डुकलान, बीना
बैंजवाल, कान्ता घिल्डियाल, सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता
समर भंडारी, सुरेंद्र
सजवाण, संजीव घिल्डियाल,
चंद्रकला, राजेंद्र गुप्ता समीर रतूड़ी, अंतरिक्ष
नौटियाल, पंचशील, अनीता
नौटियाल आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम के दौरान समय साक्ष्य, काव्यांश प्रकाशन, राहुल फाउंडेशन और गार्गी प्रकाशन
वालों ने पुस्तक प्रदर्शनी भी लगायी।