क्या यह समाचार वाकई इतना गैरजरूरी है कि रस्सी को सांप बनाने वाले मीडिया को सांप सूंघा हुआ है। समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव में हुए बम धमाकों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक शामिल थे, स्वामी असीमानंद का इकबालिया बयान--- |
अला अल असवानी (Alaa Al Aswany)
मिस्र की नयी पीढ़ी के प्रमुख लेखक हैं जो पेशे से तो दन्त चिकित्सक हैं पर अरबी के लोकप्रिय और सामाजिक रूप में सजग कहानीकार उपन्यासकार हैं.होस्नी मुबारक की सत्ता का मुखर विरोध इनकी रचनाओं में दिखाई देता है.हाल में उनके एक लोकप्रिय उपन्यास पर एक लोकप्रिय फिल्म भी बनी है. हमारे मित्र और एक सजग अनुवादक यादवेन्द्र जी ने उनकी एक कहानी का अनुवाद पिछले तीन चार साल पहले किया था कथादेश में वह प्रकाशित हुई है ।
मिस्र की नयी पीढ़ी के प्रमुख लेखक हैं जो पेशे से तो दन्त चिकित्सक हैं पर अरबी के लोकप्रिय और सामाजिक रूप में सजग कहानीकार उपन्यासकार हैं.होस्नी मुबारक की सत्ता का मुखर विरोध इनकी रचनाओं में दिखाई देता है.हाल में उनके एक लोकप्रिय उपन्यास पर एक लोकप्रिय फिल्म भी बनी है. हमारे मित्र और एक सजग अनुवादक यादवेन्द्र जी ने उनकी एक कहानी का अनुवाद पिछले तीन चार साल पहले किया था कथादेश में वह प्रकाशित हुई है ।
मिस्र के लोकतान्त्रिक आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण अला अल असवानी ने पिछले दिनों विभिन्न माध्यमों में दिया है, इंटरनेट पर अंग्रेजी में उपलब्ध ऐसी ही कुछ सामग्रियों को संकलित कर के साथी पाठकों के लिए यह प्रस्तुति यादवेन्द्र जी के मार्फत है ...
मेरे लिए यह अविस्मरणीय अनुभव था.काहिरा में मैं आन्दोलनकारियों के काफिले में शामिल हुआ – पूरे मिस्र से इकठ्ठा हुए हजारों लोग काहिरा की सड़कों पर आजादी की मांग कर रहे थे और पुलिस की बेरहम हिंसा का उन्हें बिलकुल भय नहीं था.मिस्री शासन के सुरक्षा तंत्र में करीब पन्द्रह लाख सैनिक हैं और करोड़ों की राशि खर्च कर के सिर्फ एक काम के लिए ही प्रशिक्षित किया जाता है – देश की जनता को घुटने टेकने के लिए डराते धमकाते रहना.
मैं हजारों मिस्री युवाओं के काफिले में शामिल हो गया – देश के अलग अलग हिस्सों से आये इन नौजवानों के बीच एक ही बात सामान्य थी कि वे सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए भरपूर बहादुरी और दृढ संकल्प से भरे हुए थे.इनमें अधिकतर विश्वविद्यालय के छात्र हैं जिनके सामने पढ़ लिख कर सामने आने वाले भविष्य का कोई स्पष्ट खाका नहीं है.रोजगार की उन्हें उम्मीद नहीं दिखाई देती इसलिए शादी को लेकर भी उनके मन में गहरी निराशा का भाव है.उनके ह्रदय में इस अन्याय के मद्देनजर क्रोध की जैसी आवारा चिंगारी उठ रही है उसपर काबू पाना अब किसी के बस की बात नहीं.
इन क्रांतिकारियों के क्रियाकलापों से मैं जीवनपर्यंत अभिभूत रहूँगा.सभा के दौरान इन सब ने जो कुछ भी कहा उनमें गहरी राजनैतिक समझ और आजादी के वास्ते जान हथेली पर लेकर निर्भीकतापूर्वक आगे कदम बढ़ाने का जज्बा स्पष्ट देखा जा सकता है.आंदोलनकारियों ने मुझसे सभा को संबोधित करने के लिए कहा – हांलाकि मैं इस से पहले भी सैकड़ों दफा जनसभाओं में बोल चुका हूँ पर इस बार बिलकुल अनूठी अनुभूति हुई.मैं करीब तीस हजार प्रदर्शनकारियों से मुखातिब था जो समझौते जैसी कोई बात सुनने को बिलकुल तैयार नहीं थे और बीच बीच में नारे लगा कर इसको जतलाते भी जाते थे : होस्नी मुबारक मुर्दाबाद और आवाज दे रही है अवाम,उखाड़ फेंको बर्बर निज़ाम
जब कोई व्यक्ति प्यार में गहरे ढंग से डूब जाता है तो वह पुराना इंसान नहीं रहता बल्कि बेहतर इंसान बन जाता
है. क्रांति भी प्यार जैसी ही क्रिया है.इसमें जो कोई भी हिस्सा लेता है वह बखूबी जनता है कि पहले वो कैसा इंसान था और आन्दोलन ने उसको किस तरह प्रभावित किया और बदल डाला.क्रांति के बाद वही व्यक्ति अलग ढंग से सोचने और बर्ताव करने लगता है.जैसे हम मिस्रवासी ही हैं जो अपने दैनिक जीवन में अब ज्यादा गरिमा महसूस करने लगे हैं और हमें अब कोई भी बात भयाक्रांत नहीं करती.
मैंने उन्हें बताया कि उनकी उपलब्धियों पर मुझे फख्र है और अब दमन के शासन का अंत आसन्न है.अब हमें
कोई भय नहीं – न तो गोलियों का और न ही हथकड़ियों का, क्योंकि हमारी सामूहिक ताकत के मुकाबले उनकी खूंखार ताकत अब कहीं टिकने वाली नहीं.उनके पास दमन के वास्ते दुनिया के सबसे नृशंस हथियार हैं पर हमारे पास उनसे ज्यादा शक्तिशाली साधन हैं – हमारी हिम्मत और आजादी का संकल्प.होस्नी मुबारक तमाम निरंकुश तानाशाहों की तरह अपने अंत से पहले के स्वाभाविक चरणों से गुजर रहा है—पहले अकड़ भरा इनकार,उसके बाद नेस्तनाबूद कर देने की धौंसपट्टी और फिर विरोधियों को शांत करने के लिए मामूली सी रियायतों की घोषणा.अब उसके लिए एक ही रास्ता खुला है—अपना सूटकेस पैक करे और हवाई अड्डे का रास्ता नापे.यह सुनकर आंदोलन कारी एकदम जोश से भर गए और समवेत स्वर में बोल पड़े – हमने जिस आंदोलन की शुरुआत की है उसको तार्किक परिणति तक पहुंचाए बगैर हम चैन की सांस लेने वाले नहीं.
आन्दोलनकारी खूब पक्के इरादों वाले नौजवान हैं.उनके सामने बोलते वक्त जब भी मैंने मुबारक के लिये
राष्ट्रपति संबोधन का इस्तेमाल किया,वे गुस्से से उखड़ पड़े( ये लेख लिखे जाते समय तक होस्नी
मुबारक ने सत्ता छोड़ी नहीं थी). उसके लिए वे सिर्फ मुबारक या अधिक से अधिक पूर्व राष्ट्रपति
जैसा संबोधन सुनना चाहते हैं.
मेरे साथ एक मित्र स्पैनिश पत्रकार भी हैं जिन्होंने पूर्वी यूरोप के कई देशों के स्वतंत्रता संग्रामों को निकट
से देखा है.वे बताते हैं कि मेरा इतने सालों का तजुर्बा यही बतलाता है कि जब इतना बड़ा जनसमूह
जानमाल की परवाह किये बिना इतने पक्के इरादों के साथ सड़कों पर उमड़ पड़े तो सत्ता परिवर्तन
सिर्फ थोड़े वक्त की बात रह जाता है.
मिस्री जनता आखिर इतने संकल्प के साथ कैसी खड़ी हो गयी ? इस सवाल का जवाब इस शासन के अपने
चरित्र में छुपा हुआ है.दमनकारी शासन लोगों से उनकी आजादी छीन सकता है पर बदले में उन्हें जीवन के सर्व
सुलभ साधन आसानी से मुहैय्या करा सकता है.जनतांत्रिक शासन भले ही गरीबी का निराकरण न कर पाए पर
जनता को आजादी और गरिमा तो प्रदान कर ही सकता है.मिस्री शासन ने लोगों को सभी चीजों से वंचित कर दिया
– यहाँ तक कि आजादी और गरिमा से भी—दैनिक जरुरत की वस्तुओं की उपलब्धता की तो बात ही मत करिये.यहाँ इकठ्ठा हुए हजारों हजार मिस्री लोग उन्हीं वंचितों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
हैरत में डाल देने वाली सच्चाई है कि ट्यूनीशिया से बरसों पहले मिस्र में राजनैतिक सुधारों की मांग उठाई
जाने लगी थी पर ट्यूनीशिया में जो कुछ घटित हुआ उसने मिस्र में एक उत्प्रेरक का काम किया.अब
लोगों के सामने यह उदाहरण था कि कोई तानाशाह चाहे कितनी बड़ी फ़ौज खड़ी कर ले जनता के
व्यापक विद्रोह के सामने वह फ़ौज तानाशाह की जीवन भर की गारंटी नहीं दे सकती.इस देश में तो
स्थितियाँ ट्यूनीशिया से भी ज्यादा बदतर हैं – हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी के बोझ तले दम
तोड़ रहा है और यहाँ की क्रांति का अनुसरण कर सकते हैं—वैसे ही इश्तिहार काहिरा की सड़कों पर भी देखने को मिल रहे हैं.अब तो आजादी की मांग की यह आवाज यमन तक जा पहुंची है.
यहाँ के सत्ता प्रतिष्ठान को अब यह समझ आने लगा है कि उनके तमाम इंतज़ाम प्रदर्शनों को रोकने में
कामयाब नहीं हो पा रहे हैं.फेसबुक के जरिये प्रदर्शन आयोजित करने की बात सही है क्योंकि इसकी प्रामाणिकता और निष्पक्षता पर लोगों का भरोसा है.जब सरकार ने इनपर पाबंदी लगाने की कोशिश की तो जनता ज्यादा सयानी साबित हुई.सुरक्षा बलों की दिनों दिन बढती जा रही हिंसा के बावजूद जनता बगावत के लिए उठ खड़ी हुई है.इतिहास गवाह है कि एक हद लाँघ जाने के बाद सामान्य पुलिसकर्मी भी अपने लोगों पर फायरिंग करने का हुक्म मानने से इनकार कर देता है.
मैंने चोरी छिपे बाहर लाया गया एक गोपनीय सरकारी फरमान देखा है जिसमें मिस्री टेलीविजन के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे खोज खोज कर वैसी औरतों की तस्वीरें दिखाएँ जो भयभीत हों और अपनी सुरक्षा के लिए तानाशाही उस से भी ज्यादा समय से कुंडली मार कर बैठी हुई है.हम पडोसी देश
मुबारक की गुहार लगाती हों.
पुलिस को ठेंगा दिखा कर बगावत का रास्ता पकड़ने वाले अधिकांश लोग सामान्य देशवासी हैं.एक नौजवान
आन्दोलनकारी ने अपना अनुभव मुझे सुनाया कि परसों वह पुलिस की मार से बच कर भागते हुए देर रात एक
रिहायशी इलाके में घुस गया और एक दरवाजे के सामने खड़े होकर घंटी बजाने लगा.साठ साल के एक बुजुर्ग ने जब दरवाजा खोला तो जाहिर है उनके चेहरे पर बदहवासी का भाव था.नौजवान ने पुलिस से छिपने के लिए अंदर आने की इजाजत माँगी,बुजुर्ग ने उसका आइडेंटीटी कार्ड देखा फिर अंदर आने के लिए कहा.फिर अपनी युवा बेटी को सोते से जगाया और उसके लिए कुछ खाने को बनाने को कहा.रात में ही तीनों ने साथ मिल कर चाय पी और इस तरह से घुलमिल कर बातें करने लगे जैसे बरसों की पहचान हो.सुबह जब पुलिस का आतंक थोडा कम हुआ तो उस बुजुर्ग ने नौजवान को मुख्य सड़क तक साथ जाकर पहुँचाया,एक टैक्सी रोकी और उसको गंतव्य तक जाने के लिए पैसे देने लगे.नौजवान ने पैसे लेने से मना कर दिया और उनको शुक्रिया अदा किया.इसपर बुजुर्ग ने कहा कि शुक्रिया तो बेटे मुझे तुम्हारा अदा करना चाहिए कि अपने जान की बाजी लगा कर तुमलोग मुझ जैसे तमाम मिस्र वासियों को इन आततायियों से बचा रहे हो.
हमें यह अनूठा अवसर मिला है जब हम इतिहास के बारे में पढ़ ही नहीं रहे हैं बल्कि इतिहास के अंदर साँस भी ले रहे हैं. कुछ इसी तरह मिस्री बसंत का आगाज हुआ.
इन क्रांतिकारियों के क्रियाकलापों से मैं जीवनपर्यंत अभिभूत रहूँगा.सभा के दौरान इन सब ने जो कुछ भी कहा उनमें गहरी राजनैतिक समझ और आजादी के वास्ते जान हथेली पर लेकर निर्भीकतापूर्वक आगे कदम बढ़ाने का जज्बा स्पष्ट देखा जा सकता है.आंदोलनकारियों ने मुझसे सभा को संबोधित करने के लिए कहा – हांलाकि मैं इस से पहले भी सैकड़ों दफा जनसभाओं में बोल चुका हूँ पर इस बार बिलकुल अनूठी अनुभूति हुई.मैं करीब तीस हजार प्रदर्शनकारियों से मुखातिब था जो समझौते जैसी कोई बात सुनने को बिलकुल तैयार नहीं थे और बीच बीच में नारे लगा कर इसको जतलाते भी जाते थे : होस्नी मुबारक मुर्दाबाद और आवाज दे रही है अवाम,उखाड़ फेंको बर्बर निज़ाम
जब कोई व्यक्ति प्यार में गहरे ढंग से डूब जाता है तो वह पुराना इंसान नहीं रहता बल्कि बेहतर इंसान बन जाता
है. क्रांति भी प्यार जैसी ही क्रिया है.इसमें जो कोई भी हिस्सा लेता है वह बखूबी जनता है कि पहले वो कैसा इंसान था और आन्दोलन ने उसको किस तरह प्रभावित किया और बदल डाला.क्रांति के बाद वही व्यक्ति अलग ढंग से सोचने और बर्ताव करने लगता है.जैसे हम मिस्रवासी ही हैं जो अपने दैनिक जीवन में अब ज्यादा गरिमा महसूस करने लगे हैं और हमें अब कोई भी बात भयाक्रांत नहीं करती.
मैंने उन्हें बताया कि उनकी उपलब्धियों पर मुझे फख्र है और अब दमन के शासन का अंत आसन्न है.अब हमें
कोई भय नहीं – न तो गोलियों का और न ही हथकड़ियों का, क्योंकि हमारी सामूहिक ताकत के मुकाबले उनकी खूंखार ताकत अब कहीं टिकने वाली नहीं.उनके पास दमन के वास्ते दुनिया के सबसे नृशंस हथियार हैं पर हमारे पास उनसे ज्यादा शक्तिशाली साधन हैं – हमारी हिम्मत और आजादी का संकल्प.होस्नी मुबारक तमाम निरंकुश तानाशाहों की तरह अपने अंत से पहले के स्वाभाविक चरणों से गुजर रहा है—पहले अकड़ भरा इनकार,उसके बाद नेस्तनाबूद कर देने की धौंसपट्टी और फिर विरोधियों को शांत करने के लिए मामूली सी रियायतों की घोषणा.अब उसके लिए एक ही रास्ता खुला है—अपना सूटकेस पैक करे और हवाई अड्डे का रास्ता नापे.यह सुनकर आंदोलन कारी एकदम जोश से भर गए और समवेत स्वर में बोल पड़े – हमने जिस आंदोलन की शुरुआत की है उसको तार्किक परिणति तक पहुंचाए बगैर हम चैन की सांस लेने वाले नहीं.
आन्दोलनकारी खूब पक्के इरादों वाले नौजवान हैं.उनके सामने बोलते वक्त जब भी मैंने मुबारक के लिये
राष्ट्रपति संबोधन का इस्तेमाल किया,वे गुस्से से उखड़ पड़े( ये लेख लिखे जाते समय तक होस्नी
मुबारक ने सत्ता छोड़ी नहीं थी). उसके लिए वे सिर्फ मुबारक या अधिक से अधिक पूर्व राष्ट्रपति
जैसा संबोधन सुनना चाहते हैं.
मेरे साथ एक मित्र स्पैनिश पत्रकार भी हैं जिन्होंने पूर्वी यूरोप के कई देशों के स्वतंत्रता संग्रामों को निकट
से देखा है.वे बताते हैं कि मेरा इतने सालों का तजुर्बा यही बतलाता है कि जब इतना बड़ा जनसमूह
जानमाल की परवाह किये बिना इतने पक्के इरादों के साथ सड़कों पर उमड़ पड़े तो सत्ता परिवर्तन
सिर्फ थोड़े वक्त की बात रह जाता है.
मिस्री जनता आखिर इतने संकल्प के साथ कैसी खड़ी हो गयी ? इस सवाल का जवाब इस शासन के अपने
चरित्र में छुपा हुआ है.दमनकारी शासन लोगों से उनकी आजादी छीन सकता है पर बदले में उन्हें जीवन के सर्व
सुलभ साधन आसानी से मुहैय्या करा सकता है.जनतांत्रिक शासन भले ही गरीबी का निराकरण न कर पाए पर
जनता को आजादी और गरिमा तो प्रदान कर ही सकता है.मिस्री शासन ने लोगों को सभी चीजों से वंचित कर दिया
– यहाँ तक कि आजादी और गरिमा से भी—दैनिक जरुरत की वस्तुओं की उपलब्धता की तो बात ही मत करिये.यहाँ इकठ्ठा हुए हजारों हजार मिस्री लोग उन्हीं वंचितों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
हैरत में डाल देने वाली सच्चाई है कि ट्यूनीशिया से बरसों पहले मिस्र में राजनैतिक सुधारों की मांग उठाई
जाने लगी थी पर ट्यूनीशिया में जो कुछ घटित हुआ उसने मिस्र में एक उत्प्रेरक का काम किया.अब
लोगों के सामने यह उदाहरण था कि कोई तानाशाह चाहे कितनी बड़ी फ़ौज खड़ी कर ले जनता के
व्यापक विद्रोह के सामने वह फ़ौज तानाशाह की जीवन भर की गारंटी नहीं दे सकती.इस देश में तो
स्थितियाँ ट्यूनीशिया से भी ज्यादा बदतर हैं – हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी के बोझ तले दम
तोड़ रहा है और यहाँ की क्रांति का अनुसरण कर सकते हैं—वैसे ही इश्तिहार काहिरा की सड़कों पर भी देखने को मिल रहे हैं.अब तो आजादी की मांग की यह आवाज यमन तक जा पहुंची है.
यहाँ के सत्ता प्रतिष्ठान को अब यह समझ आने लगा है कि उनके तमाम इंतज़ाम प्रदर्शनों को रोकने में
कामयाब नहीं हो पा रहे हैं.फेसबुक के जरिये प्रदर्शन आयोजित करने की बात सही है क्योंकि इसकी प्रामाणिकता और निष्पक्षता पर लोगों का भरोसा है.जब सरकार ने इनपर पाबंदी लगाने की कोशिश की तो जनता ज्यादा सयानी साबित हुई.सुरक्षा बलों की दिनों दिन बढती जा रही हिंसा के बावजूद जनता बगावत के लिए उठ खड़ी हुई है.इतिहास गवाह है कि एक हद लाँघ जाने के बाद सामान्य पुलिसकर्मी भी अपने लोगों पर फायरिंग करने का हुक्म मानने से इनकार कर देता है.
मैंने चोरी छिपे बाहर लाया गया एक गोपनीय सरकारी फरमान देखा है जिसमें मिस्री टेलीविजन के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे खोज खोज कर वैसी औरतों की तस्वीरें दिखाएँ जो भयभीत हों और अपनी सुरक्षा के लिए तानाशाही उस से भी ज्यादा समय से कुंडली मार कर बैठी हुई है.हम पडोसी देश
मुबारक की गुहार लगाती हों.
पुलिस को ठेंगा दिखा कर बगावत का रास्ता पकड़ने वाले अधिकांश लोग सामान्य देशवासी हैं.एक नौजवान
आन्दोलनकारी ने अपना अनुभव मुझे सुनाया कि परसों वह पुलिस की मार से बच कर भागते हुए देर रात एक
रिहायशी इलाके में घुस गया और एक दरवाजे के सामने खड़े होकर घंटी बजाने लगा.साठ साल के एक बुजुर्ग ने जब दरवाजा खोला तो जाहिर है उनके चेहरे पर बदहवासी का भाव था.नौजवान ने पुलिस से छिपने के लिए अंदर आने की इजाजत माँगी,बुजुर्ग ने उसका आइडेंटीटी कार्ड देखा फिर अंदर आने के लिए कहा.फिर अपनी युवा बेटी को सोते से जगाया और उसके लिए कुछ खाने को बनाने को कहा.रात में ही तीनों ने साथ मिल कर चाय पी और इस तरह से घुलमिल कर बातें करने लगे जैसे बरसों की पहचान हो.सुबह जब पुलिस का आतंक थोडा कम हुआ तो उस बुजुर्ग ने नौजवान को मुख्य सड़क तक साथ जाकर पहुँचाया,एक टैक्सी रोकी और उसको गंतव्य तक जाने के लिए पैसे देने लगे.नौजवान ने पैसे लेने से मना कर दिया और उनको शुक्रिया अदा किया.इसपर बुजुर्ग ने कहा कि शुक्रिया तो बेटे मुझे तुम्हारा अदा करना चाहिए कि अपने जान की बाजी लगा कर तुमलोग मुझ जैसे तमाम मिस्र वासियों को इन आततायियों से बचा रहे हो.
हमें यह अनूठा अवसर मिला है जब हम इतिहास के बारे में पढ़ ही नहीं रहे हैं बल्कि इतिहास के अंदर साँस भी ले रहे हैं. कुछ इसी तरह मिस्री बसंत का आगाज हुआ.
क्रांति का यह पल बेहद रोमांचक और अनुभवों को समृद्ध करने वाला था.लाखों लोग अपने अपने घरों से निकल कर सड़कों पर आ गए थे,उनके जोश को देख कर मैं भी उनमें शामिल हो गया.मैंने पूरे 18 दिन उनके साथ बिताये और इस अद्भुत तजुर्बे ने मुझे कई नयी चीजें लिखने की प्रेरणा दी-- अब मुझमें कई नयी कहानियाँ लिखने की स्फूर्ति है.मुझे आदमीयत पर भरोसा मजबूत करने वाले अनेक पलों की नायाब सौगात मिली-- यह मेरे जीवन का शानदार दौर रहा.और यह सिर्फ मेरा ही अनुभव नहीं है बल्कि अनेक लेखक और कलाकार इन अनुभूतियों को मेरे साथ साझा करते हैं.
मुझे बहुत अरसे से यह लगता रहा है कि मिस्र में क्रांति अवश्यम्भावी और आसन्न है और अपने पिछले कई इंटरव्यू में जब मैंने ये बातें कहीं तो कई लोगों को इसका यकीन नहीं हुआ.2007 में न्यूयार्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में मैंने साफ़ साफ़ कहा था कि मिस्र एक बड़े परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा हुआ है--इस अचानक होने वाले बदलाव से हम सब चौंक जायेंगे.
इस क्रांति का सर्वश्रेष्ठ पक्ष ये रहा कि विभिन्न तबके के लोगों की अद्भुत एकता और अखंडता दिखाई दी... धैर्य और सहिष्णुता ...हर किसी ने आपको सहज भाव से स्वीकार किया.चाहे बुरकानशीं स्त्री हो या आधुनिक युवती...अमीर हो या गरीब...मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम...सब ने.एक उदाहरण देता हूँ: तहरीर चौक पर सेना खाने पीने का सामान नहीं ले जाने दे रही थी पर हमें मालूम था कि इसमें कस्र अल नील कि तरफ एक गेट है जहाँ से खाने का सामान यहाँ तक लाया जा सकता है.चौक पर तैनात सैनिक भी हमें दिखा दिखा कर निर्देश दे रहे थे कि खाना अंदर लाना है तो उस गेट की ओर जाओ.
मैंने यहाँ डटे हुए ऐसे लोगों को देखा जो देखने से फटेहाल गरीब लगते थे पर हमारे लिए ऐसे लोग भी अपने साथ झोलियों में भर के तीन चार सौ संद्विच लेकर आये--उनकी शक्ल सूरत और पहनावा देख कर जाहिर था कि इसकी कीमत चुकाने में उन्हें जरुर मुश्किल आई होगी.कई साधन संपन्न लोग भी थे जो क्रांति को अपना पूरा समर्थन दे रहे थे,पर उन तंग हाल लोगों का जज्बा देख कर प्रेरणादायक हैरानी होती है. हमें वहाँ बैठे हुए पता ही नहीं लग पाता था कि आन्दोलनकारियों को खाने पीने का समान कैसे और कहाँ से मिल जाता है.
वहाँ मौजूद सभी लोग बेहद अनुशासित थे -- संघर्ष करने वालों से लेकर उनको रोकने वाले सुरक्षा कर्मियों तक.जब मुबारक सरकार ने गुंडों मवालियों को ट्रकों में भर कर वहाँ मारकाट करने के लिए छुट्टा छोड़ दिया तो तो आन्दोलन कर्मी नौजवानों ने सामूहिक तौर पर उनका जम कर मुकाबला किया-- इनमें सभी व्यवसायों के लोग शामिल थे.थोड़े समय में सब कुछ व्यवस्थित हो गया.वहाँ सिगरेट पीना माना है-- मुझे जब इसकी तलब लगी तो मैंने एक सिगरेट निकाल कर सुलगा ली पर तभी वहाँ एकत्र समूह में से किसी की आवाज आई कि जनाब,आप यहाँ सिगरेट नहीं पी सकते...एक रात का वाकया है,करीब दो बजे थे.मैंने सिगरेट का एक खाली पाकेट वहीँ फेंक दिया,तभी एक सत्तर साल की बुजुर्ग महिला मेरे पास आयी और मुझसे बोली: मैं तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ बेटे और मैंने तुम्हारी एक एक किताब पढ़ी हुई है...पर ये सिगरेट का डिब्बा यहाँ से उठा लो , ऐसा करना ठीक नहीं...हम यहाँ मिलजुल कर एक नए मिस्र का निर्माण करने के लिए इकठ्ठा हुए हैं..इस नए मुल्क को खूब सुन्दर और साफ़ सुथरा होना चाहिए....इसी लिए मैं बार बार ये कहता हूँ की तहरीर चौक पर जो सब कुछ घटा वह अविस्मरणीय था...एक सुखद स्वप्न के साकार होने जैसा.
मुझे बहुत अरसे से यह लगता रहा है कि मिस्र में क्रांति अवश्यम्भावी और आसन्न है और अपने पिछले कई इंटरव्यू में जब मैंने ये बातें कहीं तो कई लोगों को इसका यकीन नहीं हुआ.2007 में न्यूयार्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में मैंने साफ़ साफ़ कहा था कि मिस्र एक बड़े परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा हुआ है--इस अचानक होने वाले बदलाव से हम सब चौंक जायेंगे.
इस क्रांति का सर्वश्रेष्ठ पक्ष ये रहा कि विभिन्न तबके के लोगों की अद्भुत एकता और अखंडता दिखाई दी... धैर्य और सहिष्णुता ...हर किसी ने आपको सहज भाव से स्वीकार किया.चाहे बुरकानशीं स्त्री हो या आधुनिक युवती...अमीर हो या गरीब...मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम...सब ने.एक उदाहरण देता हूँ: तहरीर चौक पर सेना खाने पीने का सामान नहीं ले जाने दे रही थी पर हमें मालूम था कि इसमें कस्र अल नील कि तरफ एक गेट है जहाँ से खाने का सामान यहाँ तक लाया जा सकता है.चौक पर तैनात सैनिक भी हमें दिखा दिखा कर निर्देश दे रहे थे कि खाना अंदर लाना है तो उस गेट की ओर जाओ.
मैंने यहाँ डटे हुए ऐसे लोगों को देखा जो देखने से फटेहाल गरीब लगते थे पर हमारे लिए ऐसे लोग भी अपने साथ झोलियों में भर के तीन चार सौ संद्विच लेकर आये--उनकी शक्ल सूरत और पहनावा देख कर जाहिर था कि इसकी कीमत चुकाने में उन्हें जरुर मुश्किल आई होगी.कई साधन संपन्न लोग भी थे जो क्रांति को अपना पूरा समर्थन दे रहे थे,पर उन तंग हाल लोगों का जज्बा देख कर प्रेरणादायक हैरानी होती है. हमें वहाँ बैठे हुए पता ही नहीं लग पाता था कि आन्दोलनकारियों को खाने पीने का समान कैसे और कहाँ से मिल जाता है.
वहाँ मौजूद सभी लोग बेहद अनुशासित थे -- संघर्ष करने वालों से लेकर उनको रोकने वाले सुरक्षा कर्मियों तक.जब मुबारक सरकार ने गुंडों मवालियों को ट्रकों में भर कर वहाँ मारकाट करने के लिए छुट्टा छोड़ दिया तो तो आन्दोलन कर्मी नौजवानों ने सामूहिक तौर पर उनका जम कर मुकाबला किया-- इनमें सभी व्यवसायों के लोग शामिल थे.थोड़े समय में सब कुछ व्यवस्थित हो गया.वहाँ सिगरेट पीना माना है-- मुझे जब इसकी तलब लगी तो मैंने एक सिगरेट निकाल कर सुलगा ली पर तभी वहाँ एकत्र समूह में से किसी की आवाज आई कि जनाब,आप यहाँ सिगरेट नहीं पी सकते...एक रात का वाकया है,करीब दो बजे थे.मैंने सिगरेट का एक खाली पाकेट वहीँ फेंक दिया,तभी एक सत्तर साल की बुजुर्ग महिला मेरे पास आयी और मुझसे बोली: मैं तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ बेटे और मैंने तुम्हारी एक एक किताब पढ़ी हुई है...पर ये सिगरेट का डिब्बा यहाँ से उठा लो , ऐसा करना ठीक नहीं...हम यहाँ मिलजुल कर एक नए मिस्र का निर्माण करने के लिए इकठ्ठा हुए हैं..इस नए मुल्क को खूब सुन्दर और साफ़ सुथरा होना चाहिए....इसी लिए मैं बार बार ये कहता हूँ की तहरीर चौक पर जो सब कुछ घटा वह अविस्मरणीय था...एक सुखद स्वप्न के साकार होने जैसा.
3 comments:
अभी केवल उपस्थिति और सरसरी निगाह ध्यान से पढ़ा जाएगा शाम / रात को!
मानवीय गरिमा को स्थापित करती और मनुष्य की अदम्य जिजिविषा को अभिव्यक्ति देने वाली इस प्रस्तुति के लिये यादवेन्द्र्जी का आभार
भविष्य की कई दशा-दिशाओं में यहां का प्रभाव दिखेगा...
बेहतर...
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