Saturday, January 17, 2015

फेसबुक तो एक युक्तिभर है





यह उल्‍लेखनीय है कि इन्‍टरनेट तकनीक ने कविता, कहानी, उपन्‍यास, यात्रा वृतांतों के साथ साथ साहित्‍य की कई दूसरी नयी विधाओं की संभावनाओं के भी द्वार खोले हैं। ये नयी विधाऐं न सिर्फ माध्‍यम के अनुकूल साबित हो रही है बल्कि उनमें अभिव्‍यक्ति का ऐसा संदेश भी है जो माहौल में ताजगी भरने वाला है। उसे और ज्‍यादा आत्‍मीय बनाता हुआ। गतिविधियों में पारदर्शिता बरतता हुआ और जनतांत्रिक स्थितियों के लिए माहौल गढ़ता हुआ। ये नयी विधाऐं अभी अपनी इतनी शैशव अवस्‍था में हैं कि उनका नामकरण भी नहीं किया जा सकता। हालांकि उस तरह के प्रयास भी इन्टरनेट के जरिये संभव हैं। ये नयी विधाऐं जो एक हद तक अपना आकार बनाती हुई हैं, उनमें एक है खुद का खुद से ही साक्षात्‍कार। इसके प्रणेता के तौर पर हिन्‍दी कथाकार रमेश उपध्‍याय का नाम उल्‍लेखनीय है और दूसरी अभी हाल ही में शुरू हुई लेकिन माध्यम के लिए ज्‍यादा अनुकूल साबित होती हुई अनिल जनविजय की फोटो प्रश्‍नावलियां। दिलचस्‍प है कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’जैसी बाजारू प्रतियोगतिओं में दिल थाम कर हिस्‍सा लेने वाले प्रतियोगियों का एक एक क्षण वाला विचित्र मनोरंजन नहीं बल्कि संदर्भ विशेष को ज्‍यादा से ज्‍यादा विस्‍तार देते प्रतियोगियों का बेहिचक प्रवेश इस प्रतियोगिता की खूबी की तरह है जो इसे स्‍वस्‍थ मनोरंजक स्थितियों के लिए जरूरी बनाता जा रहा है। अन्‍य बहुत सी विधायें जो बिखरे बिखरे से रूप में होती हैं, उनको याद करूं तो जगदीश्‍वर चतुर्वेदी, चौखम्‍बा ब्‍लाग वाले द्विवेदी जी, अशोक पाण्‍डे, प्रभात रंजन, संज्ञा पाण्‍डे, शिरीष कुमार मौर्य, यादवेन्‍द्र, सुजाता तेबतिया, नूर अहमद, नील कमल, राकेश रोहित, आशुतोष, आशुतोष सिंह, तेजिन्दर, महेश पुनेठा, अजित साहनी,  शीमा असलम, संध्राया नवोदिता, ताराशंकर, अनुराग मिश्रा  रामजी तिवारी, बोधिसत्‍व और भी कई मित्रों की पोस्‍टों से कभी कभी उभरती है। अरे हां एक शख्‍स का जिक्र तो छूट ही गया, वह आजकल किताबों के दिलचस्‍प किस्‍सों के साथ हैं- सूरज प्रकाश। तकनीक से परहेज करने वाली हिन्‍दी की एक ऐसी जमात है जिसे इन्‍टरनेट की यह सब सकारात्‍मकता देखनी चाहिए और सिर्फ चलताऊ तरह से ‘फेसबुकिया’ कहने से बचना चाहिए। फेसबुक तो तकनीक के भीतर एक छोटी सी जगह है और ज्‍यादा सहजता से कहने का प्रयास करूं तो उसे एक युक्ति माना जा सकता है। टिविटर, ब्‍लाग और वेबसाइटें आदि और भी कई युक्तियां हैं जो एक तकनीक का हिस्‍सा भर है।


2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-01-2015) को ""आसमान में यदि घर होता..." (चर्चा - 1863) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Prabhakar / IndianTopBlogs said...

सही कहा आपने.
अगर हिंदी के साहित्यकार, साहित्य-प्रेमी और फिर केवल अपनी खुशी के लिए लिखने वाले नई विधाओं के जुड़ें तभी साहित्य आगे बढ़ेगा. जो लोग मानते हैं कि हमें हमेशा जड़ से जुड़ा रहना चाहिए, आगे कैसे बढ़ेंगे? जीवंत रहने के लिए भाषा और साहित्य को प्रयोगों को बढ़ावा देना होगा. टेक्नोलॉजी इसके लिए अच्छे माध्यम उपलब्ध करा रही है.