प्रिय मित्र यादवेन्द्र जी से मुखातिब होते
हुए
हम, जो दुनिया को खूबसूरत होते हुए देखना
चाहते हैं- किसी भी तरह के शोषण और गैर-बराबरी
के विरूद्ध होते हैं, चालाकी और षड़यंत्र की मुनाफाखोर ताकतों का हर तरह से मुक्कमल
विरोध करना चाहते हैं । यही कारण है कि अपने कहे के लिए उन्हें ज्यादा जिम्मेदार भी माना जाना चाहिए, या उन्हें
खुद भी इस जिम्मेदारी को महसूस करना चाहिए । ताकि उनके पक्ष और विपक्ष को दुनिया
दूरगामी अर्थों तक ले सके और उनकी राय से व्युत्पन्न होती नैतिकता, आदर्श को विक्षेपित
किया जाना संभव न हो पाये। पर ऐसा अक्सर देखने में आता नहीं। खास तौर पर तब जब प्रतिरोध
के किसी मसले को शासक वर्ग द्वारा भिन्न
अंदाज में प्रस्तुत कर दिया गया हो। ऐसे खास समय में प्रतिरोध का हमारा तरीका कई
बार इतना वाचाल हो जाता है कि खुद हमारे अपने ही मानदण्डों को संतुष्ट 0कर पाना
असंभव हो जाता है । कई बार ऐसा इस वजह से भी होता है कि शासकीय चालाकियों को पूरी
तरह से पकड़ पाना हमारे लिए मुश्किल होता है और उसका लाभ उठाकर शासक वर्ग के घुसपैठिये
भी प्रतिरोध का नकाब पहनकर अपनी भूमिका को बदल चुके होते हैं ताकि हमारे हमेशा के वास्तविक
प्रतिरोध को अप्रसांगिक कर सके । उस वक्त उनके प्रतिरोध की आवाज इतनी ऊंची होती
है कि एकबारगी वे हमें जनता के पक्षधर नजर आते हैं जो हमारे ही मन के प्रिय भावों को
प्रकट करने में साथ दे रहे होते है। उनकी इस भूमिका पर हम उन पर कोई सवाल नहीं उठा
सकते बल्कि उनके ही नारों, उनके ही तर्कों के साथ खुद प्रतिरोध में जुट जाते हैं।
लेकिन एक दिन जब वे पाला बदलकर फिर से अपने पूर्व रंग में होते हें तो पाते हैं कि
उनके अधुरे तर्कों के कारण और उनके ही पीछे पीछे डोलने के कारण हम खुद ही
अप्रसांगिक हो चुके हैं।
घुसपैठियों के तर्कों में बहने की बजाय हमें प्रतिरोध की अपनी भूमिका को स्पष्ट रखते हुए निशाना ठीक से साधना आना चाहिए। मैगी के समर्थन में आ रहे
विचारों के मद्देनजर बात न भी की जाये तो ओसामा बिन लादेन की हत्या के समय को
देखिये जब एक वैश्विक पूंजी के विरोध में किया जा रहा हमारा प्रतिरोध हमें
अप्रसांगिक बना दे रहा था । हम लादेन के पक्षधर नहीं हो सकते पर अनायास वैसा दिख
रहे थे। हाना मखमलबॉफ की फिल्म एक बार फिर याद आ रही है
1 comment:
सटीक रचना
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