स्वाद की सबसे आधारभूत जरुरत की जब भी बात होगी, नमक के जिक्र के बिना वह बात पूरी नहीं हो सकती. बल्कि ऐसी कोई भी बात तो नमक का जिक्र करते हुए ही शुरु होगी. इस तरह से देखें तो जीवन के सत को यदि कोई परिभाषित कर सकता है तो निश्चित ही वह तत्व नमक हो सकता है. ॠतु डिमरी नौटियाल की कविता में यह नमक बार बार प्रकट होता है. उदासी के हर क्षण में स्त्री मन की भाव दशा को रेखांकित करने के लिए ॠतु उसको सबसे सहज और सम्प्रेषणीय प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करती है. अपनी उपस्थिति से स्त्री और पुरुष के भीतर को प्रभावित कर देने की क्षमता संपन्न नमक की यह भी विशेषता है कि वह अपने सबसे करीबी के कंधों में टंगे थैलों में कुछ गैर जरुरी किताबों के साथ बैनर पोस्तर हो जाना चाहता है. प्रस्तुत है ॠतु की कुछ
कविताएँ. ऋतु डिमरी नौटियाल शिक्षा : स्नातकोत्तर (सांख्यिकी) कृतित्व : समर प्रकाशन द्वारा (प्रकाशानाधीन) सौ कवियों की कविताओं के साझा संग्रह में कविताएँ सम्मिलित आजकल पत्रिका के जून अंक में कविताएँ प्रकाशित इंदौर समाचार दैनिक पत्र में कविताएँ प्रकाशित मोबाइल नंबर : 9899628430 ईमेल : ritunautiyal1975@gmail.com |
ॠतु डिमरी नौटियाल
भार
जब तक हवा रही भीतर
फेफडों में आक्सीजन बनकर,
उड़ती रहीं गुब्बारे के मानिंद,
अब शून्य है,
लेकिन भारी इतना
कि उठने ही न दे
मानो कैद हो गयी देह
कोठरी में
निशान
नदी!!
मरने के बाद
गहराई छोड़ जाती है;
आंसू!!
ढुलकने के बाद
लकीर छोड़ जाते हैं;
भाषा!!
विलुप्त कर दिये जाने के बाद भी
इतिहास छोड़ जाती है;
विछोह !!
छोड जाता है स्मृतियाँ,
उस घाव की तरह
जिसे कुरेद कुरेद के
हरा किया जा सकतता है प्रेम
कहाँ खतम हो पाता है सब कुछ यूंही
पूरक
मेरा तुमको देखना
तुम्हारा मुझको देखना
कभी एक सा नहीं
मेरे भीतर के जंगल में
तुम बोन्साई ढूंढते हो,
कतरते हो एक एक टहनी
संभावित बाग के लिए
जब तुम पतझड़ बनते हो
मैं पेड़ बन जाने की कामना करती हूँ
जिसमें तुम अपना बसंत आना भी देख सको
जब मैं रेगिस्तान में
ढूढती हूं प्यास
छायाएं भ्रम खडा कर देती हैं
तुम भी उस वक्त मेरे भीतर
बो देते हो कैक्टस
जब तुम अपने भीतर के समन्दर में
मोती होने का दावा करते हो
मुझे मिलती हैं सिर्फ नमक की बूंदें
प्यास बुझाने की झिझक में
जिन्हें मीठा कर देती हूँ मैं
नमक
उतर गया शरीर का
सारा नमक,
बचा रह गया
फिर भी आंसुओं में,
एक कतरा
सहेज लेना चाहती है
फिर से अपने भीतर
4 comments:
इन कविताओं में मौजूद ताज़गी सुन्दर बयार की तरह है। एक उम्मीद जैसे कली की तरह खिलने को है। भाषा के प्रति सम्मान पैदा होता है।
एक युवा की यह शुरुआत भरोसा पैदा कर रही है। स्त्री का व्यक्तित्व अपनी संवेदनात्मक और बौद्धिक सामर्थ्य को प्रकट कर रहा है।
श्रतु आपकी तुलिका में संवादनाओं की अभिव्यक्ति मात्र पढ़ी ही नहीं जा रही अपितु अंतर्मन को झकझोर देती है।
अनेक आभार व शुभकामनाएं 😊
बहुत सुंदर रचना दी ,भाव काफी गहरे है।
बढ़िया रचनाएँ
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