हिंदी साहित्य की
दुनिया से प्रेम करते हुए भी यदा कदा घटने वाली और दिख जाने वाली अंतर्विरोधी
घटनाएं नील कमल को क्षुब्ध किये रहती हैं। उन स्थितियों से पार पाने वे लिए वे एक
अच्छी कविता तक पहुंच जाने में सुकून महसूस करते हैं। इस जमाने में जब सम्पत्ति को
जहां तहां से समेट लेने का पागलपन हावी हो रहा हो, अपने
सुकून के लिए नील अपनी मासिक आमद के एक
हिस्से से कभी किताबे छपते हैं तो कभी पत्रिका। निजी स्रोतों से गैरव्यवसायिक ढंग
का काम करने वाले लोगों को यदि तलाशा जाये तो हिंदी का नील कमल वहां ज्यादा मजबूती
से खड़ा नजर आएगा। अलीक क यह अंक उन्हें अपनी जमीन को और सख्त बनाए रखने की राह
दिखा रहा है। इसमें प्रकाशित कविताएं और आलोचनात्मक आलेख उल्लेखनीय है।
अलीक के इस अंक में चार
युवा कवियों की कविताएं हैं- प्रियदर्शी मातृशरण, उमा भगत,
ललन चतुर्वेदी और पल्लवी मुखर्जी। प्रियदर्शी मातृशरण और उमा भगत की
कविताओं से मुझे पहली बार अलीक-4 से ही परिचित होने का अवसर मिल रहा है। यह अच्छी
बात है कि कवि प्रियदर्शी मातृशरण की कविता खुशामदी होने से ऐतराज करते हुए अपने
होने के साथ रहना चाहती है लेकिन एक लोचा है कि खुशामद कराती सत्ता का बिम्ब वहां
किसी “पुराने” कवि की आकृति पर अटका हुआ है। एक बार प्रियदर्शी मातृशरण की इस बात
को मान ही लिया जाए कि “पुराने” कवि की स्वाद- कलिकाएं किसी उससे भी “पुराने” कवि
के पद-तल में वास करती हों और यह भी कि जितना पीछे जाएं वह बेशक उतना ही पुराने
कवि की इच्छाओं वाले तैल-चित्र नजर आएं तो भी नवाचार और मौलिकता का तकाजा तब ही
माकूल है जब सत्ता की ट्रू पिक्चर बनती हो। निश्चित ही कवि प्रियदर्शी मातृशरण उस
ट्रू पिक्चर को आकार देना जानते हैं वरना लोभियों के गांव से गुजरना गंवारा ना
करते।
अपने समय को परिभाषित
करना कला साहित्य का मुख्य विषय रहा है। लेकिन इस तरह परिभाषित करते रहने में एक
बात यह भी दिखायी देती रही कि हर रचना में एक बहुत बड़ा हिस्सा अपने से पूर्व का
यथावत आ गया और इसीलिए नये एवम मौलिक होने की कोशिश में वह उसी तर्ज के साथ आगे
बढने लगा। यानि समय को परिभाषित करने की एक नयी पहल से आगे नहीं चला। इस तरह देखें
तो कला साहित्य ने अपने को कुछ ऐसी सीमाओं में कैद करा लिया जिसको नैतिक और आदर्श
से सम्पृक्त सामजिकी के सौंदर्य में जांचने परखना भी एक संकाय हो गया। प्रफुल्ल
कोलख्यान का आलेख एक संकाय से आगे बढकर सिविल सोसाइटी को नहीं देख पा रहा है।
3 comments:
भई वाह! इसे पढ़ना ही होगा। कविता केन्द्रित पत्रिका.... तलाश करता हूं इसे।
Notnull पर ऑनलाइन उपलब्ध है।
सुन्दर पोस्ट
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