कुछ वर्ष पहले तक साहित्य में षष्ठीपूर्ति मनाने की सूचनाएंं खूब सुनी जाती थी। लेकिन "युवा रचनाओं" के "आंदोलन" के शुरु होने के बाद से ऐसा कोई आयोजन सुनायी नहीं दिया।
गढवाली भाषा के कवि मदन डुकलान की कविताओं के अनुवाद को सांझा करते हुए हम भी उस परम्परा को तो नहीं ही निभा रहे हैं। लेकिन यह बात फिर भी अपनी जगह है कि मार्च का महीना, कवि मदन डुकलान का जन्म माह है। और आज अपने जीवन के 60 वर्ष पूरे करने के साथ भाई मदन का सेवाकाल से निवृत्ति क दिन है। उन्हें ढेरों शुभकामनाएं।
मदन भाई लगभग चालीस वर्षों से गढवाली भाषा में लेखन कर रहे हैं। लेखन के उन शुरुआती दिनों में जब वे हिंदी भाषा में भी लिखते थे, गढवाली भाषा साहित्य की बहुत अच्छी स्थिति नहीं थी। लेकिन एक गढवाली भाषा के प्रति अपने प्रेम और गढवाली भाषा साहित्य की चिंताओं के मद्देनजर उन्होंने गढवाली भाषा में ही लिखने का तय किया। "चिट्ठी पत्री" जैसा कविता फोल्डर निकालते हुए आज उसे एक गढवाली भाषा की जरूरी पत्रिका के रूप में स्थापित किया। यह उल्लेखनीय है कि "चिट्ठी पत्री" ने सौ सालों की गढवाली कविताओं के साथ "अंग्वाल" और सौ सालों की गढवाली कहानियों के साथ "हुंगारा" ऐतिहासिक महत्व के अंक निकाले।
भाषायी प्रेम के चलते मदन भाई ने गढवाली भाषा में फिल्म भी बनायी और वैसे ही फिल्मों और गढवाली भाषा के नाटकों में भी आज तक सक्रिय हैं।
मदन डुकलान की ये कविताएं उनके नए संग्रह "तेरि किताब छों" से हैं और इन कविताओं के अनुवाद गढवाली भाषा की एक विश्वसनीय अनुवादक कान्ता घिल्डियाल ने किए हैं।
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