पंखुरी
सिन्हा को मैं एक कहानीकार के रूप में जानता रहा। ज्ञानपीठ से उनका एक कहानी संग्रह
आया था एवं पत्रिकाओं में भी उनकी कहानियों को पढ़ना होता रहा। लेकिन यह जानना बिल्कुल
आरम्भिक जानना था। अपनी कहानियों से पंखुरी ने उन्हें और जानने की उत्सुकता पैदा की है। उनके लिखे को पढ़ना हुआ। इस तरह उनका कवि रूप, उनके आलेख ओर सोसल साईटस एवं सचल
भौतिक स्थितियों वाली गतिविधियों में उनकी उपस्थिति की सक्रियता से परिचय होता रहा।
इस ब्लाग पर पहले भी उनकी कविताएं प्रकाशित हुई हैं। वर्तमान राजनैतिक, आर्थिक स्थितियों
से निर्मित हो रहे सामाजिक परिदृश्यों को अपना विषय बनाती उनकी कुछ और कविताएं हाल
ही में प्राप्त हुई। पंखुरी जी का आभार एवं स्वागत । कुछ कविताएं यहां प्रस्तुत
हैं।
वि.गौ. |
सड़क ही घोटाला है
साल दर साल
बद से बदतर
होता रहा
इस प्रान्त, इस शहर का हाल
धांधलियां होती रहीं
यहाँ के बिजली घरों
ईटों की भट्टियों में
बल्कि बात ये की
धांधलियां होती रहीं
इतनी आधारभूत जगहों में
जैसे कि आटे, चावल, दाल की मिलों में
चूड़े को कूटने और बेचने वाली दुकान के ठीक सामने
जबकि और जगह धांधलियों की बातें
इन क्षेत्रों से निकलकर
बड़ी कंपनियों
विदेशी निवेशों
लागतों, साझों की बातों में उछाली जा रही थीं
पर यहाँ तो सड़क ही घोटाला है
जाने कब से
है ही नहीं
जापानी सहयोग से बन जाने के बाद भी नहीं
खँगाल जाती है
उसे हर साल बाढ़
नदी नहीं बाढ़
नदियाँ तो यहाँ शांत हैं
मैदानों में सम्भली, संभाली
समतल पर सड़क भी आसान है
रखना, बचाना
पर है ही नहीं
कहीं नज़र में
दूर दूर तक जापानी निर्देशन में बनी सड़क भी......................
इस बार की भारत पाक वार्ता
औरों के आस पास भी होते होंगे
ऐसे पहरे
तुम सोचो, समझो
और मत करो बयान
उस पहरे का हाल
इन दिनों जब कभी
पहरे की बात होती है
बात चीन के वाच टावर्स की होने लगती है
इन दिनों जब कभी बात
पड़ोसी के हस्तक्षेप की होती है
बात पाकिस्तान की होने लगती है
पाकिस्तान जैसे प्रतीक है
हस्तक्षेप का
वैसे पाकिस्तान के समर्थक
जाने किन बातों का
प्रतीक हैं
जाने किन मनसूबों के लोग हैं वो
किन मांगो के भी
कौन मित्र हैं उनके
और क्या है आज़ादी के माने
इस बार जब सरकार ने धरा
फिर छोड़ा
फिर धरा अलगाववादियों को
क्या लगा कि वह भी कोई
समाधान नहीं निकालना चाहती
बस वो कश्मीर जो
अधिकृत है
वैसे रह जाएगा
इतिहास के पन्नो में क्या?
ज़िद और बर्बादी
जो बात राज़ी ख़ुशी
अपने आप
मुस्कुराहटों के साथ हो रही हो
उसे लगभग रद्द कर
तय की हुई दूरी से
बातों को वापस लौटाकर
जिन रास्तों पर हँसते हुए
चलते आये
लगभग उनपर आँसू समेत चलवाकर
उसी मंज़िल पर पहुँचना, पहुँचाना
कितनी और कैसी बर्बादी है
शक्ति, समय, सामर्थ्य और भावनाओं की भी...........