२८ अप्रैल २०१२ को इलाहबाद शहर में प्रसिद्ध कहानीकार अल्पना मिश्र का कहानी-पाठ तथा उनके तीसरे नवीनतम कहानी-संग्रह "कब्र भी कैद औ' जंजीरें भी " पर
परिचर्चा का आयोजन किया गया . यह आयोजन जन संस्कृति मंच तथा हिंदी विभाग
,इलाहबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में विभाग के सभागार में
संपन्न हुआ . परिचर्चा का प्रारंभ जन संस्कृति मंच के सचिव व आलोचक प्रणय
कृष्ण के स्वागत -व्यक्तव्य से हुआ . उन्होंने कहानीकार अल्पना मिश्र का
परिचय दिया और उन पर लिखित हिंदी के मुख्य कथाकारों कृष्णा सोबती, चित्र
मुद्गल और ज्ञानरंजन के विचार पढ़ कर सुनाये . इस प्रकार अल्पना मिश्र के
कहानियों के वृहत्तर परिदृश्य का परिचय उपस्थित विद्वान् श्रोताओं को
दिया . अपने आत्म-व्यक्तव्य में अल्पना मिश्र ने आज के समय और समस्याओं की
ओर संकेत करते हुए कहा, " जीवन पहले भी इकहरा नहीं था , पर आज जटिलताए बढ़ी
हैं . आज के समय में दो तरह की सामानांतर दुनिया है, एक तरफ चमकती हुई
दुनिया है , भौतिकता की प्रतिस्पर्धा है जो की पैदा की गयी है , स्वाभाविक
नहीं है . दूसरी तरफ अन्धकार की दुनिया है जिसमें शोषण , दमन, विस्थापन
,गरीबी ,जन-असंतोष और जनांदोलनों का उभार है . एक लेखक की जिम्मेदारी है कि
वह इन दोनों के बीच के परदे को खींच कर असल दुनिया सामने लाये . वह सच
सामने लाये जो दरअसल बेदखल तो कर दिया गया है पर अपनी अनुपस्थिति में भी
उपस्थित है . मेरा लेखन इसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास है ." आत्म-व्यक्तव्य
के बाद उन्होंने नए संग्रह की पहली कहानी 'गैर हाज़िर में हाज़िर' का पाठ
किया . परिचर्चा का प्रारंभ करते हुए अनीता गोपेश ने अल्पना मिश्र को
स्पष्ट सरोकारों का कहानीकार बताया . उन्होंने कहा ."अल्पना जी की कहानियां
बहुत तेजी से ऊपर से गिरता हुआ प्रपात नहीं है जिसके छींटे आपको भिगों
दें, बाढ़ में उफनती नदी नहीं है जो आपको बहा ले जाए बल्कि एक ऐसी शांत नदी
है जो अपने सतत प्रवाह में चलती है आपको आह्वान करती हुई की आओ मेरे साथ
चलो और समय की गति को पकड़ो , देखो दोनों कूलों पर क्या घटित हो रहा है .
अल्पना जी की कहानियों में स्त्री-विमर्श की जगह सशक्तिकरण है. परिचर्चा
के क्रम में आलोचकीय वक्तव्य देते हुए प्रणय कृष्ण ने तीनों संग्रहों को
क्रमानुसार नहीं बल्कि समानांतर देखने की बात कही . उन्होंने कहा ,'ये
तीनों संग्रह २१ वीं शताब्दी के हैं और इसलिए २० वीं शताब्दी में जो कुछ
हुआ और नया कुछ जो इस शताब्दी में होना है उन दोनों के जंक्शन पर लिखी हुई
ये कहानियां हैं .' उन्होंने कहानियों के शिल्प के बारे में बताते हुए कहा
कि 'जो लोग आतंरिक विवशता से लिखना शुरू करते हैं वो शिल्प से आक्रांत नहीं
होते और जो ऐसा नहीं करते उनकी चिंता शिल्प पे ही टिकी रहती है . चित्रा
मुद्गल इसिलए इनकी कहानियों के बारे में लिखती हैं कि ये शिल्पाक्रांत नहीं
हैं.' परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कहानीकार शेखर जोशी ने अल्पना
मिश्र की पूर्व की लिखी कहानियों के साथ इस संग्रह की सभी कहानियों पर
क्रमशः अपनी बात रखी . अपने व्यक्तव्य में उन्होंने कहानीकार के साधारण
जीवन के असाधारण और सूक्ष्म पर्यवेक्षण की प्रशंसा की और बल देते हुए कहा
कि अल्पना की कहानियां जमीन से जुडी हुई कहानियां हैं . कार्यक्रम का कुशलता पूर्वक सञ्चालन डॉ सूर्यनारायण ने किया तथा डॉ लालसा यादव ने धन्यवाद ज्ञापित किया . कार्यक्रम में राम जी राय, राधेश्याम अग्रवाल , हरिश्चंद्र पाण्डेय , विवेक निराला ,संतोष
कुमार चतुर्वेदी , विवेक कुमार तिवारी , पद्मजा , चन्द्रकला जोशी , नीलम
शंकर , विभागाध्यक्ष डॉ मीरा दीक्षित तथा हिंदी विभाग के सभी प्राध्यापक
एवं छात्र उपस्थित थे .
- सुशील कृष्णेत
3 comments:
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
अच्छी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
कल 18/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
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