आस्ट्रेलिया हमारे इतिहासबोध में सुदूर स्थित पृथ्वी के नक्शे से अलग एक बेढंगे गोल शरीफे जैसे भूखंड के आकार का महाद्वीप है। रोचक तथ्य यह भी है कि आज यही महाद्वीप एकमात्र ऐसा भूखंड है जिसमें सिर्फ एक ही देश है। हमारी मिथकीय जानकारी और कल्पना के अनुसार दुनिया की सबसे पुरातन जनजातियों के लोग कभी यहां रहते थे। ब्रिटिश उपनिवेश के प्रारम्भिक दौर से पहले तक उन मूल जनजातियों की संख्या लाखों करोड़ों में बताई जाती है।
लेकिन अब इस महाद्वीप में समायी पचानबे प्रतिशत आवादी ब्रिटिश,आइरिस,ग्रीक,यूरोपीय,चीनी,
जापानी,कोरियाई,ईरानी लेबनानी, वियतनामी तथा अपने भारत,पाकिस्तान, बंग्लादेश,श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि दक्षिण एशियाई देशों के मूल नागरिकों से अटी पड़ी है।
यहां अब मिश्रित व मूल आदिवासी समुदाय की जनसंख्या लगभग आठ लाख है जो महाद्वीप की कुल,ढाई तीन करोड़ की आबादी का चार प्रतिशत बैठता है।
इस आवादी से थोड़ा कम लगभग तीन प्रतिशत तो यहां भारतीय मूल के लोग ही रहते हैं।
तो,तीन करोड़ की कुल आवादी में इतने कम मूल निवासियों का बचा होना क्या दर्शाता है! निश्चित रूप से यह आंकड़ा हैरतअंगेज करने वाला भले ही न हो पर विचारणीय व विमर्श के लायक तो है ही।
यहां के महानगर व उपनगरों में शक्ल सूरत से पहचान में आने वाले मूल निवासी तो बिल्कुल नजर नहीं आते,हां,बताया जाता है कि सुदूर दक्षिण व उत्तरी क्षेत्र के भीतरी इलाकों में वे पहचान में आ जाते हैं। इतने वर्षों बाहरी लोगो के सम्पर्क में आने से,यूं भी शुद्ध जनजातीय रक्त वाले वंशजों का मौजूद होना नामुमकिन है। अभी पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए,पहले आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सज्जन की फोटो टीवी पर देखी थी। वे रंग में गोरे,पर नाक नक्श से जरूर जनजातीय अन्वार लिए लग रहे थे।
मौसम के बरसाती तेवर के बीच बारिश के थोड़ा थमते ही बिल्कुल नीचे प्रतीत होते आसमान में बादलों के धुंए जैसे छल्ले हवा के वेग से चरवाहे की हांक से भागते भेड़ों के रेवड़ जैसे प्रतीत हो रहे हैं। प्रशान्त महासागर के इतने करीब के बादल ऐसे चलायमान नहीं होंगे तो कहां के होंगे,सोचता हुआ मैं यहां के औपनिवेशिक काल के शुरुआती इतिहास के प्रति जिज्ञासु हो उठा।
अफ्रीकी महाद्वीप से पुराआदि काल में हुए एकमात्र मानव प्रवास के प्रमाणिक सूत्र,आस्ट्रेलियाई जनजातीय समुहों के डी.एन.ए में पाये गये हैं,जोकि इसको विश्व की प्राचीनतम सभ्यता साबित करते हैं। आज से पचास साठ हजार वर्ष पुरानी जीवित संस्कृति के कस्टोडियन कहे जाने वाले लगभग तीन सौ विभिन्न भाषाई व रीति रिवाजों से भरे जन समूह वाले इस द्वीप के पूर्वी तट,यानी वर्तमान शिडनी में में जेम्स कुक नामक अंग्रेज नाविक ने सन् 1770 में कदम रख कर ब्रिटिश राज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया था। सुदूर सागर के मध्य ऐसी खुली धरती पाकर ब्रिटिश उपनिवेशकों ने द्वीप पर कब्जे की योजना बना ली।शुरुआत में इंग्लैंड की जेलों में बढ़ी हुई कैदियों की संख्या को इस धरती पर बैरक बना कर,यहां भेज देने के साथ ही आगामी कब्जे का शिलान्यास कर दिया गया।इसीलिए आस्ट्रेलिया को ब्रितानी अभियुक्तों का ठिकाना कहा जाता है।
सन 1788 में कैप्टन आर्थर फिलिप अपने जहाज में अभियुक्तों, नाविकों व कुछ अन्य नागरिकों से भरे 1500 लोगों के साथ शिडनी कोस्ट में उतरा। उसके बाद,साल दर साल विधिवत अंग्रेजों की रिहाइशों का यहां के भिन्न-भिन्न तटों पर बसना प्रारंभ हो गया।मूल निवासियों के साथ हुए संघर्ष व हिंसा के अगले दस वर्षों में आदिवासियों की आवादी घट कर काफी कम हो गई। जिसके लिए जिम्मेदार, मुख्यतया बाहरी लोगों के आने से फैली नई बीमारियों,स्माल पाक्स,मिजिल्स, दिमागी बुखार व अन्य महामारियों के साथ उनकी जमीनों को हड़पने में हुए खूनी संघर्ष के दौरान हुई मौतें हैं।
जनजातीय लोग निर्ममता पूर्वक साफ कर दिये गये, उनको खाने हेतु आर्सेनिक जैसे जहरीले रसायनों से युक्त भोजन तक दिये जाने की बातें पढ़ने को मिलती हैं ।इन वर्षों में हुए संघर्षों में लगभग 20000 आदिवासियों तथा दो ढाई सौ यूरोपीय लोगों के मारे जाने के आंकड़े मिलते हैं।औपनिवेशिक काल के संघर्षों के बाद कुल सात आठ लाख मूल लोगों के बचे होने का अनुमान लगाया जाता है।
उत्तरोत्तर,औपनिवेशिक बसावट के बाद अगले सौ वर्षों में मूल निवासियों की जनसंख्या घट कर डेड़ लाख से भी कम आंकी जाती है। सन 1900 तक इनकी संख्या डेड़ लाख तक रह गई।
आखिरी शुद्ध रक्त वाले तस्मानियाई ,'एबओरिजनल' शख्स की मौत 1876 में हुई बताई जाती है।मतलब कि मिश्रित वर्णसंकरता पहले ही काबिज हो चुकी थी।
1850 के आसपास सोने की खानों के पता चलने तथा उसकी खुदाई के तरीके जान लेने के बाद तो इस द्वीप का आर्थिक रूप से कायाकल्प हो गया। यहां की अपार खनिज सम्पदा की भनक यूरोप,चीन,यू.एस.ए तक पंहुची। हजारों चीनी मजदूर गोल्ड माइंस में काम करने आये,जो प्रथम चायनीज सैटिलमैंट के कारक बने। उनके वंशज आज,यहां की आवादी में बहुतायत के रूप में मौजूद हैं।
इस गोल्ड रस परिघटना के कारण ही यहां बहुभाषी,बहुधर्मी,विविधतापूर्ण संस्कृति की शुरुआत होने लगी,जो आज परिपक्व हो कर एक आदर्श जनतांत्रिक देश के रुप में पल्लवित नजर आती है,इस देश का कोई सरकारी संवैधानिक धर्म नहीं है, पचासों भाषाओं व दर्जनों धार्मिक मान्यताओं के लोग यहां जितने अमन चैन सहकार व सहअस्तित्व के साथ रहते हैं, वैसे अन्य देश विरले ही होंगे। नागरिकता यानी 'सिटीजनशिप' ही यहां का परम नागरिक धर्म है।
बहरहाल,औपनिवेशिक शासकों ने बाद में मूल निवासियों के संरक्षण संवर्धन व उनकी सभ्यता संस्कृति कला को बचाये रखने हेतु सहानुभूति पूर्वक काम किये,क्योंकि इस महादेश में निर्विवाद रूप से उनका राज था।उन्हें हमारे देश,भारत जैसे किसी स्वतंत्रता संग्राम का सामना भी नहीं करना पड़ा। अगर इतनी पुरानी आस्ट्रेलियाई जनजाति की हमारे यहां जैसी,वैदिक,रामायण,महाभारतकालीन सभ्यतायें,राज्य साम्राज्य,सल्तनत,सूबे व शिक्षा,कला संस्कृति होती तो आजादी की मांग भी उठती तधा औपनिवेशिक शासकों को लौटना
पड़ता । दुर्भाग्य से यहां के समस्त आदिवासी समुदाय का बाहरी सम्पर्क से अभाव,व विशाल सागर के मध्य स्थित द्वीप में अलग थलग पड़े पड़े रहने के कारण ऐसा हुआ होगा।
1901में 6 विभिन्न ब्रिटिश उपनिवेशों,न्यू साउथ वेल्स,क्वींसलैंड, विक्टोरिया, तस्मानिया,साउथ कोस्ट व पश्चिमीआस्ट्रेलिया को मिला कर 'कामनवेल्थ आफ आस्ट्रेलिया' नाम से इस देश का संवैधानिक जन्म हुआ।उसके पश्चात आधुनिक राष्ट्र के सभी गुण यहां की सरकारों ने अंगीकार करने प्रारम्भ किये।
जनजातियों की घटी हुई जनसंख्या में भी संरक्षण संवर्धन नीतियों से वृद्धि होना प्रारम्भ हुई।उनके सम्मान व अधिकारों हेतु बने सुधारवादी ग्रुपों ने समय समय पर अपने पूर्वजों के साथ हुए अत्याचारों व वर्ताव पर नाराजी जाहिर की,आवाज उठाई तथा प्रतिकर व पश्चाताप की मांग के साथ भूमि अधिकारों सहित तमाम रियायतों व सुविधाओं के हक प्राप्त किये।
'आस्ट्रेलिया दिवस',जो कि 26 जनवरी 1788 को प्रथम औपनिवेशिक जहाज के इस धरती पर उतरने की स्मृति में मनाया जाता है,उस के विरोध में जनजातीय ग्रुपों ने 1938 से 1955 तक लगातार विरोध,बहिष्कार किये इस दिन को 'शोक दिवस' के रूप में मनाया। जनजातीय संगठनों के संघर्षों व मानव अधिकार समितियों के प्रयास के साथ ही
इशाई मिशनरियों के हस्तक्षेप के कारण सरकार के साथ सुलह समझौते के प्रयास फलीभूत हुए।रिकन्सीलियेसन कमेटी व विभाग बने।
1972 में सरकार ने अलग से 'डिपार्टमेंट आफ एबओरिजनल अफेयर्स' का गठन किया।
आज वे लोग शिक्षित,सम्पन्न व सरकारी नौकरियों में हैं। सरकारी व रिजर्व जमीनें,पार्क,फार्मलैंड आदि उनके निजी नाम पर भले ही न हों पर प्रतीकात्मक रुप से उनके पूर्वजों की मानी जाती हैं।
उनसे कोई हाऊसटैक्स,लगान,आदि नहीं ली जाती।
हां,कामनवैल्थ देश होने के कारण ब्रिटिश महारानी के क्राउन का सम्मान व परंपरा का पालन अवश्य किया जाता है।
सार्वजनिक स्थानों पर आस्ट्रेलियाई झंडे के साथ एबओरिजनल,व टौरिस स्ट्रेट द्वीप के प्रतीक दो और झंडे और फहराये जाते हैं। टौरिस स्ट्रेट,क्वींसलैंड और पापुआ न्यू गुइना के मध्य स्थित द्वीप है। जहां के मूल निवासी आस्ट्रेलियाई एबओरिजनल आदिवासियों से भिन्न माने जाते हैं।जगह जगह पार्कों ,भवनों आदि में "देश का आभार" शीर्षक से स्मृति पटों पर लिखा मिलता है,
'हम एबओरिजनल तथा टौरिर स्ट्रेट आइसलैंडर जातियों के अतीत,वर्तमान व भविष्य का सम्मान करते हैं,हम इस धरती पर उनकी जीवित संस्कृति,गाथाओं व परंपराओं को आत्मसात करते हुए साथ साथ मिल कर इस देश के उज्जवल भविष्य के निर्माण हेतु प्रतिबद्ध हैं।'
इशाई धर्म की मिशनरियों के प्रभाव व वैचारिक सोच वाले राष्ट्रों की यह खूबी है कि वे पश्चाताप व कन्फैशन वाली उदारता दर्शाने में पीछे नहीं हटते तथा समझौता,सुलह या 'रीकन्सलियेसन'जैसी नीति के माध्यम से पीड़ित,प्रताड़ित जनों के घावों पर मरहम फेर कर द्वंद से बचते हुए भविष्य को उज्जवल बनाने में यकीन रखते हैं।इसी कारण उनकी सरकारों में अलग से रीकन्सीलियेसन विभाग' बनाये जाते हैं।
यह नीति भले ही कूटनीति हो,अगर राष्ट्रों में अमन चैन और समुदायों के बीच भाईचारा बढ़ता हो तो क्या नुकसान है!
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