Thursday, June 25, 2015

प्रेम, प्रकृति और मिथक का अनूठा संसार


हमारे द्वारा पुकारे जाने वाले नाम प्रीति को स्‍वीकारते हुए भी हमारी साथी प्रमोद कुमारी ने अब प्रमोद के अहमदपुर के नाम से लिखना तय किया है। अहमदपुर उनके प्रिय भूगोल का नाम है। प्रीति का वर्तमान भूगोल यद्यपि देहरादून है। डॉ शोभाराम शर्मा द्वारा अनुदित ओर संवाद प्रकाशन से प्रकाशित उपन्‍यास जब व्हेल पलायन करते हैं की समीक्षा प्रीति द्वारा की गयी है। रचनात्‍मक सहयोग के लिए प्रीति का आभार ।
वि गौ
 
प्रमोद के अहमदपुर 

प्रेम की ताकत पशु को भी मनुष्य बना सकती है। प्रेम की ताकत को दुनिया भर की आदिम जनजातियां भी सभ्यता का प्रकाश फैलने से पहले ही पहचान चुकी थीं जो उनकी दंतकथाआें में आज भी देखने को मिलता है। एेसी ही प्रेम की ताकत की कथा है यह उपन्यास। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मनुष्यता का इतिहास सदियों से संजोई गई एेसी ही दंतकथाआें में परतदर परत दर्ज हैजो बुद्ध की तरह प्रेम और करुणा से मनुष्य के मनुष्य हो जाने में विश्वास करती हैं। इन्हीं जीवन मूल्यों में रचा बसा प्रेम प्रकृति और मिथक का अनूठा संसार है उपन्यास जब व्हेल पलायन करते हैं।' 
ऐसे समय में जब समूचा विश्व हिंसा से ग्रस्त हो। दुनिया के ताकतवर देश अपनी वस्तुआें के लिए बाजार पैदा करने के लिए अपने से कमजोर देशों पर अपने मूल्य लादने में जुटें हो और संकीर्णता व सनक के मारे कुछ लोग अपने ही इतिहास को नष्ट करने में जुटे होंसिर्फ इसलिए दूसरों की हत्या कर देते हों कि वे उनके जैसे नहीं दिखते। एेसे में डॉ. शोभाराम शर्मा द्वारा अनुदित उपन्यास जब व्हेल पलायन करते हैं का प्रकाशन एकसुखद अनुभूति देता है। यह उपन्यास बताता है कि प्रेम की ताकत से ही मनुष्यता आज तक जीवित है। दरअसल प्रेम ही मनुष्य की जीवन शक्ति है। प्रेम उसके सभी क्रियाकलापों का केंद्र बिंदु है। जब भी मनुष्य इस सत्य को भुला देता है या उससे दूर हो जाता हैमानवता का खून बहने लगता है। 
जब व्हेल पलायन करते हैं साइबेरिया की अल्पसंख्यक चुकची जनजाति की अद्भुत कलात्मक दंत कथाआें व लोक विश्वासों पर आधारित उपन्यास है। वह दंतकथा जो साइबेरिया के चुकची कबीले के लोग ठिठुरती ध्रुवीय रातों में यारंगा (रेनडियर की खाल के तंबू) के भीतर चरबी के दीयों की हल्की रोशनी में न जाने कितनी सदियों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सुनाते आ रहे हैं। चुकची जनजाति के लोगों का भोलासा विश्वास है कि वे व्हेलों के वंशज हैं। इस जनजाति के पहले लेखक यूरी रित्ख्यू की इस पुस्तक का ईव मैनिंग द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद 19७7 में सोवियत लिटरेचर में प्रकाशित हुआ था। यह लघु उपन्यास या कहें आधुनिक दंत कथा मौखिक कथा कहने का एक बहुत ही सुंदर नमूना है। व्हेलों और इंसानों के बीच के रिश्तों की कवितामयी कहानी कहता यह लघु उपन्यास उन लोगों के लिए भी अहम है जो पुराने लोगों की कथाआें को हंसी में उड़ा देते हैं और मनुष्य के अनुभवजन्य ज्ञान की उपेक्षा कर मुनाफे और लालच के मारे अपने ही पर्यावरण का विनाश करते हैं।
मनुष्य के ह्वेल में बदल जाने और व्हेल के मनुष्य में बदल जाने की यह कथा मौजूदा दौर के एक चुकची व्यक्ति द्वारा आधुनिक संदर्भों में फिर से कही गई दंतकथा है। जो एक कथा वाचक की तरह अपनी लोक कथा को अपने समय के संदर्भ में पेश करता है। यह उपन्यास इस तरह से विकास के आधुनिक पश्चिमी विचार की भी तीखी मानवीय आलोचना करता है। यह दंतकथा मौजूदा लालच और मुनाफे की व्यवस्था पर भी प्रहार करती है और बिना किसी घोषणा के बताती है कि प्रकृति से मनुष्य का तादात्म्य कितना जरूरी है और यदि मनुष्य के हृदय में प्रेम न हो तो प्रकृति से तादात्म्य भी असंभव है। यूरी रित्ख्यू ने भी अपनी मूल भूमिका में लिखा है''जब एक पुस्तक लिखी जाती है तो कभी कभी वह एेसे पहलुआें और विशेषताआें को प्रदर्शित कर बैठती हैजिस पर लिखते समय लेखक ने सोचा तक न हो। मैं इस पुस्तक में कुछ एेसा ही पाता हूं।'' डॉ. शोभाराम शर्मा ने इस उपन्यास को अंग्रेजी से  हिंदी में प्रस्तुत किया है। पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें उपन्यास की यूरी रित्ख्यू की मूल भूमिका के साथसाथ यूरी रित्ख्यू के दो लेख स्वर लहरी के संगसंग और सदियों की छलांग भी शामिल हैंजो उपन्यास लिखे जाने की पृष्ठभूमि समझने में पाठक की मदद करते हैं। अनुवादक की भूमिका और परिशिष्ट में उनके द्वारा दिया गया यूरी रित्ख्यू का साहित्यिक परिचय स्पष्ट कर देता है कि मनुष्य के मनुष्य बने रहने के लिए लोक विश्वासों व दंतकथाआें पर आधारित एेसी कृतियां कितनी जरूरी हैं। अनुवादक डॉ. शोभाराम शर्मा ने भी अपनी भूमिका में लिखा है—''यदि हमारे लेखक भी अपने लोक साहित्य और दंतकथाआें की बहुमूल्य थाती का उपयोग कर एेसी निर्दोष कलाकृतियां प्रस्तुत कर सकें तो कितना अच्छा हो।''

जब व्हेल पलायन करते हैं : मूल लेखक यूरी रित्ख्यू
अनुवाद : डॉ. शोभाराम शर्मा
संवाद प्रकाशन, आई-499 शास्त्रीनगर मेरठ-250004 (उ.प्र.)
संवाद प्रकाशन, ए-4, ईडन रोज,वृन्दावन एवरशाइन सिटी वसई रोड (पूर्व)
ठाणे (महाराष्ट्र.) पिन-401208

Thursday, June 11, 2015

घुसपैठियों से सावधान


प्रिय मित्र यादवेन्‍द्र जी से मुखातिब होते हुए

हम, जो दुनिया को खूबसूरत होते हुए देखना चाहते हैं-  किसी भी तरह के शोषण और गैर-बराबरी के विरूद्ध होते हैं, चालाकी और षड़यंत्र की मुनाफाखोर ताकतों का हर तरह से मुक्कमल विरोध करना चाहते हैं । यही कारण है कि अपने कहे के लिए उन्‍हें  ज्‍यादा जिम्मेदार भी माना जाना चाहिए, या उन्‍हें खुद भी इस जिम्मेदारी को महसूस करना चाहिए । ताकि उनके पक्ष और विपक्ष को दुनिया दूरगामी अर्थों तक ले सके और उनकी राय से व्‍युत्‍पन्न होती नैतिकता, आदर्श को विक्षेपित किया जाना संभव न हो पाये। पर ऐसा अक्सर देखने में आता नहीं। खास तौर पर तब जब प्रतिरोध के किसी मसले को  शासक वर्ग द्वारा भिन्‍न अंदाज में प्रस्तुत कर दिया गया हो। ऐसे खास समय में प्रतिरोध का हमारा तरीका कई बार इतना वाचाल हो जाता है कि खुद हमारे अपने ही मानदण्‍डों को संतुष्‍ट 0कर पाना असंभव हो जाता है । कई बार ऐसा इस वजह से भी होता है कि शासकीय चालाकियों को पूरी तरह से पकड़ पाना हमारे लिए मुश्किल होता है और उसका लाभ उठाकर शासक वर्ग के घुसपैठिये भी प्रतिरोध का नकाब पहनकर अपनी भूमिका को बदल चुके होते हैं ताकि हमारे हमेशा के वास्‍तविक प्रतिरोध को अप्रसांगिक कर सके । उस वक्‍त उनके प्रतिरोध की आवाज इतनी ऊंची होती है कि एकबारगी वे हमें जनता के पक्षधर नजर आते हैं जो हमारे ही मन के प्रिय भावों को प्रकट करने में साथ दे रहे होते है। उनकी इस भूमिका पर हम उन पर कोई सवाल नहीं उठा सकते बल्कि उनके ही नारों, उनके ही तर्कों के साथ खुद प्रतिरोध में जुट जाते हैं। लेकिन एक दिन जब वे पाला बदलकर फिर से अपने पूर्व रंग में होते हें तो पाते हैं कि उनके अधुरे तर्कों के कारण और उनके ही पीछे पीछे डोलने के कारण हम खुद ही अप्रसांगिक हो चुके हैं।

घुसपैठियों के तर्कों में बहने की बजाय हमें प्रतिरोध की अपनी भूमिका को स्पष्ट रखते हुए  निशाना ठीक से साधना आना चाहिए। मैगी के समर्थन में आ रहे विचारों के मद्देनजर बात न भी की जाये तो ओसामा बिन लादेन की हत्‍या के समय को देखिये जब एक वैश्विक पूंजी के विरोध में किया जा रहा हमारा प्रतिरोध हमें अप्रसांगिक बना दे रहा था । हम लादेन के पक्षधर नहीं हो सकते पर अनायास वैसा दिख रहे थे। हाना मखमलबॉफ की फिल्‍म एक बार फिर याद आ रही है  

Tuesday, April 7, 2015

सिंगिंग बेल

जब भी एक सहज-सरल व्‍यक्ति का जिक्र करना हो, मेरी स्‍मृतियों में जो चेहरा कौंधता है, पाता हूं कि वह हिन्‍दी के कथाकार सुभाष पंत से मिलता जुलता है । उसकी आंखें, उसके बोलने का ढंग और किसी भी भाव के प्रति एक अपने ही तरह की तटस्‍थता में वह ऐसा शख्‍स नजर आता है जिसे मैं उम्र के अंतर के बावजूद बिना औपचारिक हुए दोस्‍ताने के संग साथ की तरह करीब पाता हूं । आत्‍मीयता का अनोखापन भी सुभाष पंत के यहां उसी तटस्‍थता में रहता है। जिसे उनके इस पत्र में भी देखा जा सकता है । 
प्रिय विजय,
नए कहानी संकलन की पांडुलिपि भिजवा रहा हूँ। इसकी अंतिम कहानी पुराने ढंग की  लेकिन सकारात्मक कहानी है, ऐसी कहानियाँ आजकल लिखी नहीं जा रहीं। लेकिन मुझे लगा ऐसी कहानियाँ लिखी जानी जरूरी है। पहल को भेजी है। अभी निर्णय का पता नहीं। इस कहानी को छोड़कर तुम जो भी कहानी चाहो अपने ब्लाग में उपयोग कर सकते हो। उपन्यास प्रकाशन की प्रगति के बारे में बताना।

तुम्हारा, सुभाष पंत

यह पत्र उन्‍होंने मुझे अपने नये संग्रह की पांडुलिपि भेजते हुए मेल किया। सच, यह खुशी की बात है कि पंत जी अपने नये संकलन की तैयारी में हैं ओर सतत् रचनाशील । सामांतर कहानी आंदोलन दौर के कुछ एक कहानीकारों में सुभाष पंत का नाम प्रमुख है। पहाड़ चोर उनका एक महतवपूर्ण उपन्‍यास है। उनकी कहानियां सामान्‍य जन के जीवन घटनाक्रमों काे अपना विषय बनाती हैं एवं उनकी दृष्टि से ही अमानवीयता की मुखालफत में खड़ी होती हैं। सिंगिंग बेल पहल की दूसरी पारी में प्रकाशित हुई उनकी एक ऐसी ही कहानी है। इस कहानी की विशेषता यह भी है कि यह मंचन की संभावनाओं से युक्‍त है। 

वि.गौ.
सुभाष पंत
मारिया डिसूजा ने आँखें उठाकर हिलक्वीन की खिड़की से बाहर झांका। काली, गहरी, नम धुंध फैली हुर्इ थी। एक भूरा-काला सैलाब, जिसमें पहाड़ के शिखर, घाटी, पेड़, सड़के और मकान और गिरजाघर सब डूब गए थे।
   एकाएक उसके भीतर जैसे कुछ टूट गया। उसने गले में लटकते क्रास को उंगलियों से टटोला। हर बार उसने मौसम में छाए कोहरे को देखा था, लेकिन उसमें गिरजाघर पूरी तरह खो गया हो, ऐसा कभी नहीं हुआ।
   कोहरा बेआवाज़ शीशों पर नमी की परत की तरह फैल रहा था और एक बेचैन सी आवाज़ के साथ टिन की छत से बूँदों में टपक रहा था।
   और बफऱ् पड़ने का कोर्इ आसार नहीं।
   बफऱ् गिरने से पहले वह उसका गिरना जान लेती है। उसके पैर के तलुवों में गुदगुदी होने लगती है, जैसे उन्हें कोर्इ नाजुक उंगलियों से सहला रहा हो। मौसम कभी चोरी छुपे नहीं आता। वह एक खुली किताब है, जिसके हर पन्ने पर उसका बयान लिखा होता है। बफऱ् की चादर फैलाता ठंडा कोहरा नसों मे बरस रहा था, लेकिन बफऱ्बारी का कोर्इ आसार नहीं था।
   वह उदास हो गर्इ। आदमी ही नहीं, मौसम भी बेर्इमान हो गए। अनायास उसके मुँह से आह निकली, और वह भाप बनकर हवा में थरथराती रही।
   उसने गले में स्कार्फ बांधा और फिरन पहन लिया, जो अब उसके बदन पर तंग था। उसका लाल रंग अपनी आभा खो चुका था। कालर और आस्तीनों की सफेद कढ़ार्इ मटमैली पड़ गर्इ थी और कपड़ा कर्इ जगह से इतना झिरक गया था कि उसकी मरम्मत नहीं हो सकती थी। वह उसे बहुत एतिहात से पहनती, ताकि अपनी अंतिम साँस तक उसे पहनती रह सके। वह उसे अपनी अंतिम साँस तक पहनना चाहती थी।
   इसे डेविड काश्मीर से उसके लिए लाया था। चालीस बरस पहले। वह उसे पहन कर निकलती तो बर्फ में आग लग जाती। तब वह बीस साल की खूबसूरत लड़की थी।
   उसने चर्च में प्रार्थना खत्म की ही थी कि फ़ादर ने इशारे से उसे अपने पास बुला लिया। वे आत्म-स्वीकार करने वाले मंच के समीप खड़े थे। उनका हाथ खिड़की की जाली पर था, जिसके पीछे गुनहगार अपने गुनाहों पर पश्चात्ताप करते और बाहर अपराध स्वीकार किए जाते। 'मिसेज मारिया, उन्होंने कहा और उनकी आवाज़ काँप रही थी, 'र्इशू के लिए, आगे ये फिरन पहनकर चर्च में मत आना। मैंने देखा, किसी का भी ध्यान प्रार्थना की पुस्तक पर नहीं था। सब तुम्हें देख रहे थे।
   यह वक्त की बात है। तब चर्च ने उससे रियायत चाही थी....
   वह काठ की सीढि़याँ उतरने लगी। कभी खट खट का संगीत हवा में बिखर जाता था, जब वो पैडि़यों से उतरती थी, और अब एक धपधप की आवाज़ हो रही थी। घुन लगा काठ जैसे साँस भर रहा हो....
   नीचे उतरते ही अबूझे सन्नाटे ने उसे घेर लिया। कोर्इ आत्मीय जैसे सहसा अनुपसिथत हो गया हो। वह यह जानने के लिए ठिठकी और अगले ही क्षण बेचैन हो गर्इ। निरन्तर बजती लय खामोश थी। उसने निगाह उठा कर देखा। हिलक्वीन की भीतरी दीवारों पर बाहर के कोहरे से अलग दूूसरी तरह का कोहरा फैला हुआ था। जंगखार्इ आत्मा-सा सबकुछ बेआब उदासी में डूबा हुआ और दीवालघड़ी का पैडुलम ठहरा हुआ। उसे अहसास हुआ मानो जीवन की सारी गतियाँ ही ठहर गर्इ हैं। हुकम से यह ग़लती कैसे हुर्इ। वह तो घड़ी में चाबी देना कभी नहीं भूलता था। इस बार कैसे भूल गया?
   वह अपना घ्यान बटाने के लिए डस्टर निकालकर कुर्सियाँ और मेजें साफ करने लगी। पिछले दिन कोर्इ ग्राहक नहीं आया था, उन पर गर्द नहीं थी, सिवा नमी की एक महीन-सी परत के, जो पता नहीं कहाँ से पसीजकर वहाँ फैली हुर्इ थी। मौसम के हाथों में ठंडे नश्तर थे। और हìयिँ काँँँप रही थीं। एक वक्त था जब वह जानती ही नहीं थी कि ठंड क्या होती है? वह शमीज के ऊपर एक हल्का-सा पुलओवर पहन कर बेलचे से दरवाज़े के बाहर फैली बर्फ हटाकर रास्ता बना देती। तब उसके सुडौल उराजों में अंडे को चूजे में बदल सकने की तपिश थी और मौसम, मौसम था। इतनी बर्फ पड़ती कि जहाँ तक नज़र जाती वहाँ तक के पहाड़ सफेद हो जाते। बर्फबारी के बाद आसमान झक नीला हो जाता और तब वहीं नहीं, बर्फ के हर कतरे में सूरज चमकने लगते।
   फ़र्नीचर से नमी साफ करते हुए वह लगातार बहादुर के बारे में सोचती रहीं। आज सुबह लौट आने का वायदा करके वह कल अपने बीमार पिता को देखने गाँव गया था। ऐसे कोहरे में जिसमें चर्च, गुम्बद और गुम्बद पर लटका क्रास डूब गया हो, वह गाँव से कैसे आ सकता है, जिसकी पगडंडिया सकरी हैं और वे जंगल और खाइयों से गुजरती हैं। एक मन करता वह अभी न आए। कोहरे में खो जाएगा। दूसरा मन चाहता, वह कैसे भी हो, आ जाए। उससे दीवार घड़ी की खामोशी बर्दाश्त नहीं हो रही थी....जो उसकी पहुँच के बाहर की ऊँचार्इ पर टंगी थी। बहादुर ही मेज पर कुर्सी रखकर उस तक पहुँच सकता था। 
   ज्यादा समय नहीं बीता कि घंटी घनघनाने लगी। कोहरे की चादर में लिपटा बहादुर था।
   'तू इतनी सुबह कैसे चला आया। ठंड और कोहरे में, जिसमें हाथ को हाथ दिखार्इ नहीं देता। किसी खार्इ-खंदक में गिर पड़ता....मैं तेरे घरवालों को क्या जवाब देती? उसने मीठी फटकार लगार्इ।
   बहादुर ने कोहरे से नीली पड़ गर्इ उंगलियों को आपस में रगड़ा। अपनी छोटी-छोटी आँखें मिचमिचार्इं जो ठंड से सिकुड़कर और छोटी हो गर्इ थींं। जवाब में वह सिर्फ एक भोली-सी हँसी हँसा।
   'ठंड से कैसे काँप रहा है कम्बख्त, मारया ने कहा, 'और वो कोट! कोट कहाँ गया?
   अपराधबोध से हुकम की गर्दन झुक गर्इ।
   मारया समझ गर्इ अपने पिता को दे आया है।
   'वे बूढ़े हैं न! ठंड सहन नहीं कर सकते। मैं जवान हूँ। ठंड से लटपटाती आवाज़ में हुकम ने कहा।
   'अच्छा, अच्छा, ज्यादा चालाक मत बन। भोटिया बाजार से तेरे लिए दूसरा कोट खरीद दूँगी। और तेरा बाप अब कैसा है?
   'ओझा कहता है ओपरे के असर में है। नरसिंग भगवान की बड़ी पूजा देनी पड़ेगी। ठीक हो जाएगा।
   'अपने बाप को यहाँ ले आ। बिमारी देवता नहीं, डाक्टर ठीक करते हैं, लाटे। कम्युनिटी स्पताल का बड़ा डाक्टर मेरी जान-पहचान का है। मैं कराउँगी उसका इलाज।
   हुकम को मेमसाब का नरसिंग महाराज पर विश्वास न किया जाना बुरा लगा। र्इसार्इ हैं। दया तो बहुत है उनके मन में पर वे हमारे भगवानों की ताकत नहीं समझ सकतीं। लेकिन उसने कोर्इ तर्क न करने की जगह पूछा, 'चाह बना दूँ मेमसाब आपने पी नहीं होगी।
   वाकर्इ मारया ने चाय नहीं पी थी। चाय हुकम ही बनाता। वह न हो तो इच्छा के बावजूद वह टाल जाती। क्या झंझट करना। अकेले चाय पीना उसे अच्छा ही नहीं लगता। 'पी नहीं, तेरा इंतजार कर रही थी। पर तू चाय बाद में बनना पहले घड़ी को चालू का दे, बंद पड़ी है। चाबी देना कैसे भूल गया?
   'चाबी तो दी थी, भगवान कसम। यकीन न हो तो फिर दे देता हूँ। हुकम ने कहा और मेज पर कुर्सी रख कर संतुलन बनाते हुए उस पर चढ़ गया। घड़ी की बगल में कील पर लटकी चाबी निकाली और घड़ी में चाबी भरने लगा। चाबी सरकी ही नहीं। उसने शीशा हटाकर पैंडुलम को हिलाया तो वह कुछ क्षणतक दोलन करने के बाद रुक गया। घड़ी की सुुइयाँ हिली तक नहीं। उसने निराशा में सिर हिलाया, 'खराब हो गर्इ शैद। और कुर्सी से नीचे कूदकर अपराधी की तरह खड़ा हो गया।
   घड़ी की टिकटिकाहट शुरु नहीं हुर्इ लेकिन मारया के भीतर कुछ टिकटिकाने लगा।
   'बीमार घडि़यों के अस्पताल से इसकी मरम्मत करवा लाना। करनैल होशियार कारीगर है। उसके हाथ का जादू बिगड़ी से बिगड़ी घड़ी को ठीक कर देता है।
   'घड़ीसाज तो दुकान बंद करके मैदान चला गया। ठंड खतम होने पर लौटेगा। मेमसाब आप दूसरी घड़ी क्यों नहीं ले लेतीं। अब सैलवाली घडि़याँ चलती हैं। चाबी भरने की कोर्इ जरूरत ही नहीं। टैम भी सही बताती हैं। यह तो वैसेर्इ सुस्त चलती है। हर दूसरे दिन कांटा सरकाकर टैम ठीक करना पड़ता है।
   'ज्यादा बकबक मत कर। तुझे जो कहा जाता है.... मारया ने उसे झिड़क दिया। वक्त तो वह मसजिद की अजान, गुरूद्वारे की अरदास, मंदिर के घंटों और गिरजाघर की प्रार्थना से भी जान लेती है। लेकिन उसके जीवन की गतियाँ बस हिलक्वीन की जंगखार्इ दीवार पर टंगी यह घड़ी ही नियंत्रित करती हैं, चाहे सुस्त चले या तेज चले....इसे डेविड लाया था। वह चला गया लेकिन उसे वह हर समय इसमें धड़कते हुए महसूस करती है....
   मेमसाब तो उसकी बड़ी गलतियाँ तक नजरअंदाज कर देती थी। आज उन्हें क्या हुआ? और यह तो कोर्इ गलती भी नहीं थी। हुकम को अजीब लगा, बहुत ही अजीब। वह सिर झुकाए चाय बनाने चला गया।
   उसने बहुत मनोेयोग से मेमसाब की पसंद की चाय तैयार की। ठंड से लड़नेवाली गुड़, अदरख, काली मिर्च की पहाड़ी चाय। काश! तुलसी की पत्ती और ताजा दूध भी होता। तुलसी सर्दियों में सूख जाती है और दूधिए पहाड़ छोड़कर मैदानों में उतर जाते हैं। पाउडर का दूध।ं उसमें वह मजा कहाँ? लेकिन क्या किया जा सकता है। मौसम; मैदानों में सिर्फ पोशाकें बदलता है, पर पहाड़ तो मौसम के साथ पूरी तरह बदल जाता है।
   मारया चाय सिप करने लगी। इतने धीमें धीमें मानों वह चाय नहीं पी रही, चाय उसे पी रही है।
   चाय खत्म करके उसने गिलास रखा और अपने सूजे पपोटे उठाकर इस उम्मीद से खिड़की के शीशों से बाहर देखा कि कोहरा छंट रहा होगा। शीशे अंधे हो गए थे। बाहर कुछ भी दिखार्इ नहीं दिया। सूरज निकल चुका था। उसे भी कोहरे ने निगल लिया था।
   'मेमसाब ठंडे से आपकी आँखें सूज गर्इ। बोरिक से सेंकने के लिए पानी नमाया कर देता हूँ। हुकम ने कहा।
   अचानक अतीत का एक टुकड़ा छिटक कर मारया की सूजी आँखों में जाग गया। डेविड उससे पूछता और अक्सर पूछता, 'मालूम है, तेरी क्या चीज सबसे खूबसूरत है?ंंंंंंंंंंंंंंंंंं
   वह मुसकुराते हुए जवाब देती, और अक्सर यही जवाब देती, 'एक जवान लड़की की हर चीज खूबसूरत होती है, खासकर उस लड़की की, जो प्यार करना जानती है....
   वह हँसने लगता, एक ही तरह से हँसता और हर बार लगता और ही तरह से हँस रहा है, 'सारी खूबसूरती में भी कुछ ज्यादा खूबसूरत होता है....    
   वह जानती होती, डेविड क्या कहेगा, फिर भी सुनना चाहती, महाआख्यानाें की तरह जिनकी सर्वविदित कहानियाँ हर बार ऐसे उत्साह और रोमांंच से सुनी जाती हैं जैसे पहली बार सुनी जा रही हों। वह चुप हो जाती और इंतजार करने लगती।
   'तेरी काली आँखें मारया, जिनके पास जुबान है जो हर वक्त बोलती रहती हैं, जो शोले भी है और शबनम भी। झुकती हैं तो आसमान नीचे झुक जाता है और उठती हैं तो धरती ऊपर उठ जाती है।
   मारया ने अपनी सूजी आँखों में ममता भरते हुए हुकम की ओर देखा, 'लगता है, आँख का पानी जमकर बरफ की परत बन गया। इस समय नहीं, रात को याद से कर देना।
   मेमसाब की आवाज़ से सहसा हुकम छीज गया। उसने झुककर गिलास उठाया और ठिठककर उनके चेहरे की झुर्रियाँ पढ़ता रहा। कोर्इ ऐसी जगह नहीं उस चेहरे में जहाँ से ममता न टपकती हो। फिर उसने अफ़सोस के साथ कहा, 'कर्इ दिन से कोर्इ गाहक नहीं आ रहा.... और रुक कर फिर मारया के चेहरे को देखने लगा। दरअसल वह जानना चाहता था कि काम जोड़ना होगा या नहीं।
   'गाहक और मौत का कोर्इ भरोसा नहीं हुकम। दोनों में कौन कब टपक जाए कोर्इ नहीं जानता। सर्दियों में काम वैसे ही मंदा रहता है। बर्फ पड़ जाती तो गाहकों की भरमार हो जाती। यह होटल का धरम है कि वह तब भी स्वागत में तैनात रहे जब गाहक आने की उम्मीद बहुत कम हो। हिलक्वीन की शाख पर बêा नहीं लगना चाहिए। पैसा नहीं, इज्जत बड़ी चीज है। कमस्कम तीन-चार आदमियों का खाना तो तैयार कर ही लेना चाहिए। तू शुरु कर मैं आती हूँ।


दोनों ने मिलकर तीन-चार घंटे में सारी व्यवस्थाएँ करलीं। सफार्इ से लेकर खाना बनाने का काम निबट गया। तीन घंटे कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला गया।
   हिलक्वीन आँखें पसारे दस दिन के पहले ग्राहक की प्रतीक्षा करने लगा।
   कोहरा छंट गया था। सूरज ने खिड़कियों के शीशों पर फैली नमी की परत को सोख लिया था। और अब उनसे आसमान, शिखर, सड़क और हिलक्वीन के कैम्पस के डहेलिया दिखार्इ दे रहे थे।
   मिसेज मारया काउंटर पर बैठी यह सब देख रही थी। अगरबत्ती स्टैंड में सिलाप की बदबू खत्म करने के लिए कर्इ अगरबत्तियाँ जल रही थी जिनसे निकलती सुगंधित घुुएँ की पतली रेखाएँ हवा में बल खा रही थीं। वह हर आहट पर चौंकती और फिर निराश हो जाती। सड़क सुुनसान थी। कभी कभी इक्का-दुक्का आदमी चेहरे पर मफलर लपेटे ऐसे गुमसुम गुजरते दिखार्इ पड़ते जैसे खुद अपने से डरे हुए हों।
   'मानो यहाँ हमला हुआ है। आदमी या तो कहीं भाग गए या छुप गए। मारया बड़बड़ार्इ। उसने आदत के मुताबिक टाइम देखने के लिए दीवालघड़ी की ओर देखा। उसके सीने में टकटक कुछ बजने लगा। 'देखना कोर्इ और घड़ीसाज हो....करनैल के लौटने तक इंतजार नहीं किया जा सकता।
   'ठीक मेमसाब, हुकम ने मारया को आश्वस्त किया।
   'पता नहीं कितना टाइम हो गया। स्कूूल भी बंद हैं, वरना उसकी घंटियों से टाइम का पता चल जाता।
   'टैम तो भौत हो गया। हुकम ने कहा। उसे बहुत जोर की भूख लगी थी। वह समय को भूख से मापता था।
   'हो सकता है कि कोर्इ भूला-भटका गाहक आ ही जाए। वैसे तेरा क्या खयाल है, इस सीजन में बर्फ गिरेगी?
   'जरूर गिरेगी मेमसाब। कर्इ बार बरफ देर से गिरती है।
   'जिस दिन भी बर्फ गिरे तू अपने लिए भोटिया मार्केट से कोट खरीद लाना।
   हुकम जानता था कि बर्फ गिरे या न गिरे कोट उसके लिए खरीदा ही जाएगा। कुछ कहे बगैर वह चुपचाप खिड़की से बाहर देखने लगा। सहसा खुश होते हुए उसने कहा, 'मेमसाब कोर्इ आदमी है। गाहक हो सकता है। हाँ, गाहक ही है। वह सड़क से इस तरफ ही घूम गया है।
   मारया के दिल की धड़कन तेज हो गर्इ। अगरबत्तियाँ बुझ गर्इ थीं। उसने शीघ्रता से दोबारा नर्इ अगरबत्तियाँ जलार्इ और उत्तेजना में उसके हाथ काँपने लगे। ओवरकोट पहने, सिर गोल ऊनी टोपी से ढके और हाथ में ब्रीफकेस लिए एक आदमी तेज़ क़दमों से इस ओर ही आ रहा था। आगन्तुक ने सिर उठाकर होटल के साइनबोर्ड को देखा। आश्वस्त होने के बाद कि वह ठीक जगह पहुँच गया है, उसने डोरमेट पर जूते के तले रगडे़ और कंधे उचकाते हुए भीतर दाखिल हो गया। उसके भीतर आते ही दरवाजे की चौखट पर लटकी सौभाग्य सूचक जापानी सिंगिंग बेल बजने लगी।
   मारया उसके स्वागत में खड़ी हो गर्इ। आगंतुक ने अपना ब्रीफकेस मेज पर रखते हुए उसकी  ओर निगाह उठाकर देखा और बोला, 'अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप मिसेज मारया हैं।
   'हाँ, मैं ही... मारया ने कहा और अपनी स्मृतियों को खंगालने लगी। कुछ याद नहीं आया तो उसने कातर दयनीयता से कहा, 'अफसोस है, मैं आपको पहचान नहीं रही।
   आगंतुक हँसा और कुर्सी पर बैठते हुए बोला, 'चश्मा नहीं लगाए हैं न, इस वजह से....मुझे भी आपको पहचानने में दिक्कत हुर्इ। खैर, आप मुझे जान जाएँगी और एक शुभचिंतक से मिलकर खुश भी होंगी।
   'चश्मा टूट गया था। नया अभी बनकर नही आया। बिना चश्में के वाकर्इ आदमी की शकल बदल जाती है, उसकी पहचानने की ताकत भी.... 
   'आप ठीक कह रही हैं। वैसे आपकी सेहत तो ठीक है मिसेज मारया?
   'बस वैसे ही हैं जैसे इस उम्र में किसी की होने चहिए। उम्र किसी का भी लिहाज नहीं करती।
   'यह भी आपने ठीक कहा। आपका होटल तो तो ठीक चल रहा है न?
   'हाँ, ठीक ही चल रहा है।
   'लेकिन इस समय यहाँ बहुत सूनापन है। कोर्इ गाहक भी दिखार्इ नहीं दे रहा। जैसे किसी गाहक को आए अरसा गुजर गया हो।
   'जाड़ोंं में छोटे हिल-स्टेशनों के होटलों में मंदी रहती है। ज्यादातर होटल तो सीजन आने तक बंद रहते हैं। मैं नुकसान सहकर भी इसे आफ सीजन में खुला रखती हूँ।
   'वाकर्इ आप हिम्मतवाली महिला हैं। ऐसा न करतीं तो आपको ढूँढने में मुझे दिक्कत होती और आपको ढूँढना मेरे लिए बहुत जरूरी था.... आगंतुक ने कहा।
   मारया ऊबने लगी थी। यह हैरानी की बात थी कि कोर्इ ग्राहक खाने का आदेश देने की जगह उसके बारे में निजी सवाल पूछे। लेकिन दस दिन के इंतजार के बाद आया ग्राहक किसी मेहमान की तरह था। उसे झेलना उसकी व्यवसायिक और नैतिक मजबूरी थी।
   हुकम मेज पर पानी रख गया।
   'इतनी ठंड में पानी! नही, मिसेज मारया मुझे पानी की जरूरत नहीं है। क्या आप चाहती हैं कि मुझे निमोनिया हो जाए। आगन्तुक ने परिहास किया।
   'पानी तो जीवन की पहली जरूरत है। रोटी से भी पहली। मारया ने तत्परता से जवाब दिया। 
   'यह तो आपने ठीक कहा। फिर भी इतनी ठंड में.... आगंतुक ने कहा और हिलक्वीन की दीवालोंं को भेदती दृषिट से देखने लगा और फिर सहसा उसका स्वर बदल गया, 'लेकिन आप अपने होटल के बारे में काफी लापरवाह हैं। लगता है बरसों से दीवालों, खिड़की-दरवाजों पर रंग-रोगन नहीं हुआ।
   'होटल रिनोवेट किया जाना है। मारया ने सहजभाव से बताया।
   'रिनोवेट! यह तो बहुत अच्छी खबर है। पर मैंने तो सुना कि हिलक्वीन की प्रापर्टी पर कोर्इ मुकदमा चल रहा है।
   मारया ने भेदती नजर से उसे देखा और फिर मजबूती से कहा, 'आपने ठीक सुना। उन्होंने हिलक्वीन की कुछ जमीन पर कब्जा कर लिया। लेकिन फैसला मेरे हक़ में होगा। मैं एक सच्ची और र्इमानदार औरत हूँ।
   वह हँसने लगा। 'अच्छी बात है आप आशावादी हैं। वैसे सच्चार्इ और र्इमानदारी मुकदमा जीत जाने की कोर्इ शर्त नहीं है। फिर दीवानी के मुकदमें सालोंसाल चलते हैं। और हमारी न्याय-व्यवस्था की चाल कछुवे की है और इतनी खर्चीली भी कि आदमी के घर के बर्तन तक बिक जाते हैं और जब फै़सला आता है तबतक वह इतना निरीह हो जाता है कि उसे फ़ैसले की ज़रूरत ही नहीं रह जाती। नसीब सिंह शराब का ठेकेदार है और मेरा ख़याल है कि उसके पास पैसों की कमी नहीं हैं।
   'क्या मतलअ? मैं यह मुकदमा नहीं लड़ सकती। मारया ने तुर्शी से कहा।
   'जरूर लड़ सकती है। आगंतुक ने उपहास उड़ाती निगाह से मारया को देखा। 'लेकिन मेरे पास कुछ पुख्ता जानकारियाँ है। क्या आप उन्हें सुनना चाहेंगी? मेरे ख़याल से आपको उन्हें सुन ही लेना चाहिए।
   मारया पशोपेश में फँस गर्इ। आखिर इस आदमी का इरादा क्या है। वह निर्णय नहीं कर सकी कि उसे फिजूल की बातें सुननी चाहिए या नहीं।
   तभी उस आदमी ने कहना शुरु कर दिया, 'बुरा मत मानिए मिसेज मारया लेकिन यह सच है कि 'भê आप्टेशियन के यहाँ आपका चश्मा बने बारह दिन हो गए। आप उसे नहीं ला रहीं, क्योंकि उसे छुड़ाने के लिए चार सौ रुपए आपके पास नहीं हैं। इसके अलावा गुप्ता प्रोविजन में राशन का कुछ पैसा भी आपके सिर उधार है। मेरे पूछने पर उसके मालिक ने उधार की रकम बताने से इनकार कर दिया। बस इतना कहा कि अगर आप मिसेज मारया से मिलें तो मेरा सलाम कह दें। बनिए के सलाम का मतलब तो आप समझती हैं न?
   मारया ने अपना धीरज खोए बिना सहजता से कहा, 'बिजनेस में ऊँच-नीच चलती रहती है। बफऱ् पड़ जाती तो ऐसी नौबत न आती, फिर दो-चार महीने के बाद तो सीज़न शुरु होने ही वाला है।
'लेकिन जब आपने अपने सोने के कंगन ज्वैलर 'झब्बालाल एड सन्ज को बेचे तब सीज़न पीक पर था।
   मारया का चेहरा पीला पड़ गया। मानों सरेआम नंगी हो गर्इ हो। कंगन बेचते हुए उसे महसूस हुआ था, उनके साथ उनमें समार्इ अपने हाथों की गंध भी वह बेच रही है, जिस पर सिर्फ डेविड का अधिकार था....जैसे उसने डेविड को धोखा दिया था। वह इस लज्जाभरे प्रसंग को भूल जाना चाहती थी। इस आदमी ने उसकी दुखती रग को दबा दिया, जो भीतर ही भीतर कहीं अतल गहरार्इ में चुुपचाप कसक रही थी। वह आवेग में, जिसे नियंत्रित करना उसके काबू में नहीं रहा था, चीखी, 'आपकी मंशा क्या है, क्यों कर रहे मेरी जासूसी? बोलिए क्यों कर रहे?
   'मैं आपको असलियत बताना चाहता हूँ। वह यह है कि न आपका होटल ठीक चल रहा है और न आप मुकदमा लड़ सकती हैं।
   'मेरी निजी जिंदगी के बारे में टांग अड़ानेवाले आप कौन होते हैं? मारया ने सख्ती से कहा।
   'एक हमदर्द जो आपकी मदद करना चाहता है।
   'ओह! तो आप मेरे हमदर्द हैं। एक अनजान और ऐसा हममदर्द जिसे मैंने कभी चाहा ही नहीं कि वह मेरा हमदर्द हो। उसने व्यंग्य किया, 'तो फरमाइए जनाब आप मेरी क्या मदद करना चाहते हैं।
   आगंतुक ने दस्ताने उतारकर ब्रीफकेस खोला और नोटों का एक पुलिंदा निकाला। करारे, झिलमिलाते और अपनी ताकत के गरूर से भरे हज़ार-हज़ार रुपए के नोट। उन्हें मारया की ओर सरकाते हुए उसने कहा, 'यह बयाना है। अब आपको सिर्फ दो काग़ज़ों पर दस्तख़त करने हैं.....
   'तो आप दलाल हैं.... मारया ने लिजलिजी घृणा से कहा, 'और मैं दलालों से नफरत करती हूँ।
   आगंतुक हँसने लगा, 'लेकिन यह वक्त दलालों का वक्त है। खैर, आपको दलाल शब्द से ऐतराज है तो एजेंट कह लीजिए। और फिर मैं तो मुशिकल वक्त में एक हमदर्द की तरह आपकी मदद करने आया हूँ।
   'आश्चर्य की बात है। हमदर्द दलाल।
   'मैं आपकी हिलक्वीन उतनी कीमत पर बिकवा रहा हूँ, जितने की आप उम्मीद नहीं कर सकतीं। और फिर मैं आपसे कमीशन भी नहीं लूँगा हालांकि उस समय आप काफी अमीर होंगी जब आपका होटल बिक जाएगा। फिर भी मैंने ठेकेदार को राजी कर लिया कि दोनों तरफ का कमीशन वही अदा करे। और वह इसके लिए राजी है।
   'हूँ, तो खरीदार नसीब सिंह है और आप उसके गुर्गे हैं....वह कमीना मुझे इतना परेशान कर रहा है कि मैं तंग आकर हिलक्वीन उसे बेच दूँ। आप उसे बता दें, मैं हिलक्वीन नहीं बेचूँगी।
   'अगर नसीब सिंह इसे खरीदना तय कर चुका है तो आप इसका बिकना कैसे रोक सकती हैं मिसेज मारिया। आप उसकी ताक़त नहीं जानती और अपने बारे में भी गलतफहमी में हैं।
   'आप मुझे धमका रहे हैं। मारया ने तल्खी से कहा।
   'नहीं, बिल्कुल भी नहीं। मेरे पास कोर्इ हथियार नहीं है। रुपए हैं।
   'रुपया सबसे घातक हथियार है मिस्टर दलाल। आप यह बात नहीं जानते। शायद जान भी नहीं सकते। आखिर एक दलाल इस बात को कैसे जान सकता है...
   दलाल अश्लील हँसी हँसा, 'और आपको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। आपके हक़ में यही मुनासिब है कि आप मेरे प्रस्ताव को ठुकराएँ नहीं। फिर उसका चेहरा बदल कर सख्त हो गया  और आवाज बर्फ में दबे छुरे की तरह ठंडी और घातक हो गर्इ, 'समझ लीजिए आप एकदम अकेली हैं और वक्त बहुत खराब है....
   मारया इस चेतावनी से भीतर तक दहल गर्इ लेकिन अपने भय को जज्ब करते हुए बोली,   'अब मैं आपको और बर्दाश्त नहीं कर सकती। इससे पहले कि मैं आपको बेइज्जत करूँ, आप यहाँ से चले जाइए। जैसा कि आप समझ रहे हैं, मैं अकेली भी नहीं हूँ।
   'जाता हूँ मिसेज मारिया। दलाल ने नोटों की गìी ब्रीफकेस में वापिस रखते हुए कहा, 'मैं  फिर आपकी सेवा में हाजिर होऊँगा। माफ कीजिए, मेरा तो यह काम ही है। वह खड़ा हो गया। बाहर निकलने से पहले उसने सूराख करती नजरों से मारया को देखा जिसका चेहरा ठंड और भय से पीला पड़ा हुआ था। 'मिसेज मारया, आपको यकीन है कि....अच्छा छोडि़ए...मैं आपको नाराज़ नहीं करना चाहता। हमें एक दूसरे की जरूरत है। 


दलाल की चेतावनी ने उसे भीतर तक दहला दिया। कच्ची डोर से बंधा छुरा जैसे कि सीने पर लटका हुआ.... वह सो ही नहीं पार्इ। पहली बार उसने महसूस किया कि रात इतनी लम्बी होती है और त्रासद भी। कि सन्नाटे की भी आवाज़ होती है और अंधेरा भी आकृतियाँ गढ़ता है....और सर्दियों की ठंड़ी रात में कुत्ते ऐसे भौकते हैं जैसे रुदन कर रहे हों....कि रात में हवा से हिलक्वीन की छत रहस्यमय ढँग से खड़खड़ाती है और छाती में कुछ बजने लगता है.... 
   शहर अब वैसा नहीं रहा जैसा वह उसे जानती थी। उसके बचपन में पीटरसन साहब के पानी का मीटर चुरा लिया गया था। यह इतनी बड़ी घटना थी कि सारा टाउनशिप उद्वेलित हो गया था। स्थानीय अखबारों ने इसे लीड स्टोरी की तरह छापा। प्रशासन हिल गया था और पुलिस महकमें में हड़कम्प मच गया था। गली, चौराहों, पान के खोखों और चायघरों में यह अपराध कर्इ महीनों तक चर्चा का विषय बना रहा। अब सबकुछ बदल गया है। हवाएँ बदल गर्इ, आदमी और उनके व्यवहार बदल गए। अच्छे-भले भले आदमी हाशिए में खिसक गए और अपराधी मुख्यधारा में शामिल हो गए। हत्या और बलात्कार लोगों को उद्वेलित नहीं करते और ऐसे समाचार शौर्यगाथाओं की तरह पढ़े जाते हैं।
   पहली बार उसे अपने अकेलेपन का अहसास हुआ।
   वह अकेली है और उसके खिलाफ ठेकेदार नसीब सिंह है.... वह उससे हिलक्वीन छीनना चाहता है। हिलक्वीन....जो डेविड और उसके साझे श्रम का संंगीत है। डेविड चला गया लेकिन उसका संगीत उसमें जिन्दा है।
   और वह उस संगीत को मरने नहीं देना चाहती....


यह प्रार्थना का दिन था।
   कोहरा छंट गया था। हवा में ठंडक थी लेकिन धुली नील दी और झटककर फैलार्इ चादर की तरह निर्दोष आसमान में उसके खिलाफ लड़ता सूरज चमक रहा था।
   चर्च की सलेटी मीनार अपनी बाँहें फैलाए करुणा और दया का संंदेश दे रही थी।
   मारया ने फिरन पहना। उसे न पहनने के लिए कभी चर्च ने उससे रियायत चाही थी। वह उसे पहनकर तबतक प्रार्थना में शामिल नहीं हुुर्इ थी, जब तक फिरन में चमक रही और उसमें बर्फ में आग लगाने की ताब थी। फिरन की चमक फीकी पड़ चुकी थी। उसकी भी। और अब वह चर्च से सहायता चाहती थी। प्रार्थना केे लिए निकलने से पहले उसने सिर पर गरम टोेपी, पैरों में घुटनाें तक के ऊनी मोजे और गले में मफलर बांधकर ठंड के खिलाफ एक दुर्ग बना लिया। पर बाहर निकलते ही वह काँपने लगी। ठंड ने उसके बनाए दुर्ग को ध्वस्त कर दिया।
   कोर्इ भी दुर्ग अजेय नहीं होता चाहे उसे कितना ही मजबूत बना लिया जाए.....अजेय सिर्फ वक्त है....जिसे पढ़ने में वह नाकाम हो रही है....
   इक्का-दुक्का दुकानें जो सर्दियों में खुली रहती थीं, वे भी अभी नहीं खुली थीं। बंंद दुकानें मनहूस उदासी बिखेर रहीं थी और पूरा बाजार उसमें डूबा हुआ था। वे सड़कें जो सीज़न में रंगबिरंगी मछलियों से भरी नदियाँ होतीं, अजगरों की तरह पसरी हुर्इ थीं। भयावह उदास और इतनी लम्बी कि जैसे वे पार ही नहीं की जा सकतीं। वह मना रही थी कमस्कम मनभर की दुकान खुली हो, जहाँ से वह मोमबत्ती खरीदती थी। उसने चर्च में जितनी प्रार्थनाएँ की थी, जब से होश संभाला, प्रभु के लिए उतनी ही मोमबत्तियाँ जलार्इ थीं, जिसने खुद वह सलीब ढोया जिस पर वह लटकाया गया, इसलिए कि फिर कभी कोर्इ और किसी सलीब पर न चढ़ाया जाए.....
   वह उस मोड़ पर पहुँची जहाँ से मनभर की दुकान दिखार्इ देती थी। आशंका की धुंध छंट गर्इ। दुकान खुली थी। उसके इंतजार में कन्टोप और मिलिटरी का खारिज ओवरकोट पहने मनभर थड़े पर बैठा ठिठुर रहा था। मारया को देखकर उसकी बुझी आँखें चमकने लगी। मोमबत्ती निकालते हुए उसने कहा, 'आपके लिए ही मेमसाब...कितनी ही ठंड हो....बर्फ ही क्यों न गिरे, मैं प्रार्थना के दिन दुकान जरूर खोलता हूँ। 
   मारया ने मुसकराते हुए आभार प्रकट किया, 'वाकर्इ तुम्हारी दुकान खुली न होती तो मुझे अफसोस होता। मेरी प्रार्थना अधूरी रह जाती...
   'लेकिन... मनभर ने हकलाते हुए कहा, 'आप प्रार्थना के लिए आखरी मोमबत्ती खरीद रही हैं न।
   'क्या मतलब? मारया चौंकी। 
   'सुना कि आपने ठेकेदार नसीब सिंह को अपना होटल बेच दिया है, और आप यह शहर छोड़कर अपने बेटे के पास जा रही हैं....
   मारया को लगा जैसे उसके सिर पर कोर्इ कील ठोक दी गर्इ हो। उसके हाथ की वह मोमबत्ती काँपने लगी जो उसने प्रार्थना के लिए खरीदी थी। 'किसने कहा? उसने लड़खड़ाते स्वर में पूछा।
   'सभी कह रहे। हर जगह यही चर्चा है।
   उसने बेचैनी में मोमबत्ती को मजबूती से थाम लिया जिसका मोम ठंड से सख्त पड़ गया था और धागा जिसे लौ बनना था गर्व से तना हुआ था। सर्दियों में अमूमन बंद रहने वाले खिड़की और दरवाजो़ का आधारहीन चर्चा में मशगूल होना किसी भी तरह मामूली बात नहीं है। उसने सोचा। यह एक फंदा है जो उसे मानसिक रूप से तोड़ने के लिए फैलाया जा चुका है। वह एक उपेक्षित हँसी हँसी, 'अफवाह है बल्कुल अफवाह। मैंने अपना होटल नहीं बेचा और मैंं इसे बेचूँगी भी नहीं।
   मनभर ने बेचैन हमदर्दी में अपना सिर उठाया, 'एक बात है मेमसाब। बुरा मत मानिए। नसीब सिंह अगर आपका होटल खरीदना चाहता है तो आप उसे बेच ही दें। इसी में चैन है। वह एक खतरनाक आदमी है।
   मारया का मन भारी हो गया। उसकी समझ में नहीं आया, मनभर से क्या कहे। वह उसका एक भोला हममदर्द था। उसने कोर्इ जवाब नहीं और तेज़ी से उस सकरी सड़क की और मुड़ गर्इ जो कुछ दूरी के बाद उन सीढि़यों में बदल जाती थी, जो गिरजाघर के परिसर में पहुँचाती थी।


कैम्पस की घास पाले से जल कर बेजान हो गर्इ थी। पेड़ों की छालें तिड़क रही थीं और उनके पीले होते पत्ते पतझर का इंतजार कर रहे थे। लेकिन ऐसे उजाड़ में भी मौसम की बेरहमी के खिलाफ एक शालीन अवज्ञा में गिरजाघर की क्यारियों में गुलदाउदी, बोगेनवेलिया और डहेलिया के फूल खिले हुए थे, पैंजी, डाग, डैंठस और बटर फ्लार्इ की कलियाँ महकने की तैयारी कर रहीं थी। औरतें और मर्द रंग-बिरंगे लिबासों में फूलों के गुलदस्तों की तरह फैले हुए थे और बच्चे तितलियों की तरह मंडरा रहे थे। नरम और नाजुक धूप फैली हुर्इ थी जिसमें फूल, जूते, वस्त्र और टाइयाँ चमक रही थी।  
   यह र्इशू का प्रार्थना समय था जो पवित्र गिरजाघर की भित्ती में क्रास पर लटका हुआ था।
   मारया ने परिसर में कदम रखा और वह अवसन्न रह गर्इ। सारी निग़ाहें उस पर टिकी थीं। सब असहनीय किस्म की मुस्कान मुस्कुरा रहे थे और एक दूसरे के कान में फुसफुसा रहे थे। धीमी सी फुसफुसाहट, जो उससे आगे नहीं जाती जिसके कान में कही गर्इ है....लेकिन हर फुसफुसाहट परिसर के आख़री छोर पर खड़ी और सीढि़याँ चढ़ने से थकी और हाँफती मारया के कानों में चिंघाड़ रही थी। शराब के ठेकेदार को....
   उसे लगा वह निहत्थी है और दगती हुर्इ गोलियों के बीच खड़ी है और हिलक्वीन खो चुकी है....उसने अपने को ऐसे अपराधबोध से धिरा पाया जो उसने किया ही नहीं और जिसकी सफार्इ देना भी उसके वश में नहीं है। आखि़र किस किस को तो सफार्इ दे। वह सिर झुकाए चुपचाप प्रार्थना कक्ष में चली गर्इ और एक निरीह कोने में खड़ी हो गर्इ, जहाँ लोगों की आँखों से बची रह सके। फ़ादर अभी नहीं आए थे और प्रार्थना करनेवाले भी। प्रार्थना कक्ष में सिर्फ प्रभु थे और वह थी और दोनों सलीब पर लटके हुए थे...
   प्रार्थना के बाद वह चुपचाप गिरजाघर के पिछवाड़े चली गर्इ और सूनी बेंच पर बैठ गर्इ।
   बयालीस साल पहले भी वह इसी तरह भीड़ से छिटक कर गिरजाघर के पिछवाड़े आर्इ थी और इसी बेंच पर बैठी गर्इ थी। तब सर्दियाँ नहीं थीं। मौसम सुहावना था। हवाएँ जीवन स्पंदनो से भरी हुर्इ थी और सामने की घाटी फूलों से महक रही थी। उसकी आँखों में छवियाँ थीं। कोमल सपने थे। और मोहक-आकुल प्रतीक्षा थी। और फिर सचमुच डेविड आया था और इसी बेंच पर उसने प्रपोज किया था। 
   बयालीस साल बाद वह फिर उसी बेंच पर बैठी है। हवा चल रही है और वह हìयिें को कँपा देनेवाली ठंडक से भरी हुर्इ है।
   'मिसेज मारया तुम यहाँ अकेली और इतनी सर्दी में....
   उसने सिर उठाकर देखा। फ़ादर उसे विस्मय से देख रहे थे।
   उसने हड़बड़ाकर बैंच से खड़े होते हुए कहा, 'मैं अकेले में आपसे कुछ कहना चाहती हूँ। भीड़ छटने का इंंतजार कर रही थी।
   'हाँ, क्यों नहीं... फ़ादर ने कहा, 'पर क्या तुम आज प्रभु के लिए बोमबत्ती जलाना भूल गइर्ं?
   मारया ने चौंक कर देखा। वह अपने हाथ में मजबूती से उस मोमबत्ती को थामें थी जिसे वह प्रभु के लिए मनभर की दुकान से खरीद कर लार्इ थी। हताशा में उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसने छाती पर सलीब बनाया, 'ऐसा कैसे हो गया...
   'कोर्इ बात नहीं। मोमबत्ती तुम अब भी जला सकती हो। चर्च के दरवाजे हर समय खुले रहते हैं। मैं तुम्हे फिर से प्रार्थना भी करवा सकता हूँ। वैसे इसकी जरूरत नहीं है, प्रार्थना तुम कर चुकी हो।
   वह, होंठों ही होंठों में बुदबुदाते हुए कि प्रभु उसे उस गलती के लिए क्षमा करें जिसे उसने करना नहीं चाहा लेकिन जो अनायास हो गइर्, फ़ादर के पीछे चलने लगी। वे एक लम्बे और शांत गलियारे से गुजर रहे थे और हवा उनके जूतों की आवाज से हड़बड़ा रही थी। प्रार्थना कक्ष में पहुँच कर उसने श्रद्धा से मोमबत्ती जलार्इ और फिर फ़ादर की ओर देखा।
   वे घूम कर अपराध स्वीकार करने की बेदी के पास गए और उसकी जाली पर हाथ रखते हुए बोले, 'क्या तुम आत्म स्वीकार की बेदी पर जाओगी?
   उन्होंने तेज़ आवाज़ में नहीं पूछा था, लेकिन जनविहीन प्रार्थना कक्ष के सन्नाटे में वह एक गूँज में बदल गर्इ। हो सकता है कि ऐसा न भी हुआ हो, वह सिर्फ मारया के भीतर ही गूँजी हो। इस उम्र में जब वह युवा औरत की असीम शकित गंवा कर अशक्त बूढ़ी औरत में बदल गर्इ है, ऐसा प्र्रश्न पूछा जाना बेतुका ही नहीं, अपमानजनक भी था। उसका चेहरा रुआँसा गया। 'ऐसी बात नहीं, उसने विनम्र प्रतिरोध किया, 'मैंने कोर्इ पाप नहीं किया जिसके लिए प्रायशिचत करूँ। अफ़सोस है, औरतों के चरित्र के प्रति समाज की सोच से चर्च भी मुक्त नहीं है।
   'मैंने वैसे ही सोचा जैसे किसी पादरी को उस औरत के बारे में सोचना चाहिए जो चर्च में उससे मिलने के लिए भीड़ छंटजाने का इंतजार करती है....
   'दरअसल मुझे आपसे एक मदद चाहिए। आप की मदद का मतलब होगा सारा र्इसार्इ समाज मेरे साथ है।
   'उसका तो मैं पहले ही वायदा कर चुका हूँ मिसेज मारया डिसूजा...
   'वायदा कर चुके है... मारया असमंजस में पड़ गर्इ।
   'हिलक्वीन का मामला है न? फादर ने कहा और उसे ऐसे देखा जैसे उस बच्चे को देखा जाता है जो वह लौलीपाप मांग रहा हो, जो उसे दिया जा चुका है।
   'हाँ...उसी मामले में...लेकिन अजीब बात है अभी तो मैंने इस सिलसिले में आपसे कोर्इ बात की ही नहीं।
   'तुमने नहीं की पर ठेकेदार के आदमी आए थे। प्रार्थना करने लगे कि यह एक र्इसार्इ औरत की प्रापर्टी का मामला है। रजिस्ट्री के समय मैं एक गवाह के रूप में मौजूूद रहूँ, जिससे कल यह आरोप न लगाया जा सके कि प्रापर्टी बेचने के लिए उस पर दबाव डाला गया। किसी धर्मगुरु को ऐसे मामले में नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन मैं मान गया कि एक र्इसार्इ के साथ अन्याय न हो और उसे उसकी प्रापर्टी की वाजिब क़ीमत मिल सके।
   मारया सन्न रह गर्इ। लगा कि उसकी धमनियों में बहता रक्त जम गया है और आँखें अपनी धुरियों पर ठिठक गर्इ हैं। हवा रुक गर्इ और उसकी साँस भी। लेकिन हवा चल रही थी, जिससे पेड़ों के पत्ते खड़क रहे थे और साँस भी.... उसने अपनी आवाज़ को यथा संभव संतुलित करने की कोशिश की लेकिन वह भर्रार्इ हुर्इ आवाज़ थी, 'मैंने हिलक्वीन बेचने का कोर्इ वायदा नहीं किया फ़ादर।
   फ़ादर ने उसकी ओर देखा। उनकी आँखों में गहरा अविश्वास था। 'तुमने वायदा नहीं किया तो फिर वकील रजिस्ट्री की कार्यवार्इ क्यों कर रहा है और मुझ से गवाह के रूप में पेश होने की दरख़्वास्त क्यों की गर्इ....
   'मैं नहीं जानती फ़ादर। 
   'चीजें हवा में नहीं होती मिसेज डिसूजा....
   'पर यहाँ तो सबकुछ हवा में है। ठेकेदार का दलाल प्रस्ताव लेकर जरूर आया था जिसे मैंने अस्वीकार कर दिया। उसने मुझे धमकाया कि मैं अकेली हूँ। पर मुझे विश्वास था कि बेटे के बाहर होने के बावजूद मैं अकेली नहीं हूँ। प्रभु मेरे साथ है, आप और चर्च और पूरा र्इसार्इ समाज मेरे साथ है। कोर्इ मुझे वो करने को विवश नहीं कर सकता जो मैं नहीं करना चाहती। हिलक्वीन मेरी आत्मा का हिस्सा है फ़ादर।
   'र्इशू हमेशा सच्चे र्इसार्इ के साथ होता है। लेकिन तुम भूल रही हो मिसेज मारया। उस समय तुमने दलाल का प्रस्ताव नहींं ठुकराया। जहाँ तक मैं समझता हूँ, तुुम्हारा मन बाद में बदल गया। शायद तुम्हारे पास इससे बड़ा आफ़र आया हो या तुम्हे उम्मीद रही हो कि शायद कोर्इ और बड़ा आफ़र आएगा। एक सच्चे र्इसार्इ को अपने वायदे से नहीं मुकरना चाहिए।
   'मेरी बात का यकीन करिए फ़ादर....क्या एक सच्ची र्इसार्इ औरत र्इशू की प्रतिमा के समाने झूठ बोलेगी?
   'लेकिन पूरे र्इसार्इ समाज में यह चर्चा है। असेम्बली से पहले सब यही बात कर रहे थे....जहाँ तक मैं समझता हूँ सारे टाउनशिप में भी....
   'अफ़वाह! और वह एक ही तरीके से सब जगह फैल गर्इ। मुझे हैरानी है, ऐसा कैसे हुआ?
   फ़ादर सोच में पड़ गए। कमर के पीछे हाथ बाँधे, वे कुछ देर मौन रहे। फिर उन्होंने काँपती आवाज़ में कहा, 'ये वे ही लोग हैं जो उन पादरियों को जिन्दा जलाते हैं और ननों के साथ बलात्कार करते हैं, जो र्इशू की करुणा लेकर उन इलाकों में सेवा करते हैं जहाँ कोर्इ नहीं पहुँचता। हमें सचेत हो जाना चाहिए। यह अफ़वाह बिना वजह नहींं फैलार्इ गर्इ। उन्हें बहाना चाहिए....मेरी सलाह है मारया इससे पहले कि यहाँ वैसी घटना घटे जैसी नहीं घटनी चाहिए तुम ठेकेदार को हिलक्वीन बेच दो।
   मारया ने चौंक कर फ़ादर को देखा। उनका चेहरा हताश भय में डूबा हुआ था। 'आप डर गए फ़ादर, उसने पूछा।
   'क्योंकि हम हाथ में हथियार नहीं, बाइबल लेकर चलते हैं।
   'अगर हम पहले ही हार गए....बिना लड़े...उनके हौंसले और नहीं बढ़ेंगे....
   'शायद तुम खतरे को नहीं देख रही़ जबकि तुम अपने बेटे के पास जा सकती हो।
   'माँ बेटे के घर में सिर्फ एक मेहमान होती है। मेहमान कभी बहुत दिन बर्दाश्त नहीं किया जाता। और फिर जब मैं खुद कमा सकती हूँ।
   'मैं एक बार फिर तुम्हें वही सलाह देना चाहूँगा।
   'मैंने और डेविड़ ने एक एक र्इंट जोड़ कर इसे बनाया फ़ादर। डेविड नहीं रहा पर मैं उसे हिलक्वीन में धड़कता महसूस करती हूँ।
   'आदमी सारी जिंदगी स्मृति मेंं नहीं जी सकता। कभी तो उसका मोह छोड़ना ही होता है।
   'चर्च भी तो र्इशू की स्मृति है और सारे र्इसार्इ उसी स्मृति में जी रहे हैं। हिलक्वीन भी मेरे लिए चर्च की तरह पवित्र है। उसने ही तब मुझे टूटने से बचाया जब मैं टूट सकती थी और एक सम्मानभरी जिन्दगी दी। मैं उसे नहीं बेच सकती जैसे चर्च नहीं बेची जा सकती। मारया ने कहा और इससे पहले कि फ़ादर कुछ कहें वह उन्हें भय और असमंजस में छोड़ कर बाहर निकल गर्इ।


चर्च की सीढि़याँ उतरते हुए वह आतिमक उर्जा से भरी हुर्इ थी। अगर उसकी हत्या भी कर दी जाती है, जो मुमकिन है, क्योंकि उनके लिए हत्या करना एक दिलचस्प खेल है, तो यह एक शानदार मौत होगी और ताबूत में उसका सिर शर्म से झुका नहीं रहेगा। लेकिन वह अपने को उन आँखों का सामना करने में अक्षम पा रही थी जिनमें उसके प्रति मरी मछली की तरह अविश्वास चिपका होगा। जब वह वहाँ पहुँची जहाँ से मनभर की दुकान दिखार्इ देती थी, तो उसने राहत की साँस ली। दुकान बंद थी। उसे आश्चर्य हुआ क्या मनभर ने एक मोमबत्ती बेचने के लिए अपनी दुकान खोली थी....
   इक्का-दुक्का दुकानें खुली हुर्इ थी और दुकानदार आकसिमक ग्राहकों की प्रतीक्षा में थड़ो पर बैठे सर्दियों की धूप सेंक रहे थे। उसने किसी से भी नज़र नहीं मिलार्इ और सिर झुकाए चुपचाप चलती रही। उसे डर लग रहा था कि जिससे भी नज़र मिलाएगी, वहाँ एक ही सवाल होगा। पहाड़ी जगह सब एक दूसरे को जानते हैं। वे अपने बारे में कम, दूसरों के बारे में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। र्इसाइयों के बारे में तो उनमें विशेष-रूप से रहस्यमयी जिज्ञासा रहती है और उनकी आँखें खुर्दबीन में बदल जाती हैं। उसके भीतर कुछ था जो फटने के लिए धपधपा रहा था....वह जल्दी से सड़क को पार कर लेना चाहती थी लेकिन सर्दियों में पहाड़ की सड़के लम्बी हो जाती हैं जिन पर चलता आदमी चढ़ान चढ़ रहा होता हैं या ढ़लान उतर रहा होता है। उसकी साँस फूल गर्इ और ठीक उस जगह जहाँ उसके होटल की आखरी चढ़ान आरम्भ होती थी वह पूरी तरह पस्त हो गर्इ और सुस्ताने के लिए एक बड़े गोल पत्थर पर बैठ गर्इ जिस पर हिलक्वीन का मार्ग संकेत चिन्ह तीर बना हुआ था।
  बैठते ही उसे धूप ने अपने सम्मोहन में ले लिया जो पहाड़ की सर्दियों में जादू बिखेर रही थी। उसे झपकी आ गर्इ और शायद कुछ लम्बी ही। टूटी तो सामने एक कांस्टेबल खड़ा था जो रुटीन गश्त के लिए निकला था और उसे सड़क पर बैठे देखकर हैरान था।
   'कैसी हैं मिसेज मारिया?' उसके आँख खोलते ही उसने पूछा, 'मैं गश्त के लिए निकला था। आपको बैठे देखा तो रुक गया। तबीयत तो ठीक है न! मेरी किसी मदद की जरूरत हो तो....
   'धन्यवाद कांस्टेबल। तबीयत ठीक है। चर्च सेे लौट रही थी। थकान लगी। बस थोड़ा सुस्ता रही थी।' मारया ने फीकी-सी मुस्कान के साथ कहा।
   कांस्टेबल ओवरकोट की जेब में कुछ टटोलने लगा। जाहिर था उसका इरादा गश्त पर जाने की जगह उससे बात करने का था। यह परेशानी की बात थी। वह किसी से भी बात करने से बचना चाहती थी। लेकिन उसके उठने से पहले कांस्टेबल कोट की जेब से एक मुड़ी-तुड़ी बीड़ी निकाल चुका था, जो साबित कर रही थी कि वह मौसम की वजह से अपनी आर्थिकी के चिंताजनक स्तर पर था। सुêा मार कर लापरवाही से धुआँ उड़ाते हुए उसने कहा, 'अच्छा किया आपने मुकदमा वापस ले लिया। आप बहौत परेशान थी। मुकदमा तो अच्छे-अच्छोंं का चैंंन लूट लेता है। लोग दाँतों तले उंगली दबाते थे कि आपने ठेकेदार नसीब सिंह के खिलाफ मुकदमा दायर करने की हिम्मत की। लेकिन सबका यही विश्वास था कि एक दिन आप इसे वापिस ले लेंगी....और फिर वही हुआ....  
   मारया इस नर्इ अफ़वाह से बौखला गर्इ। 'यह बकवास है। अजीब बात है, मुझे ही नहीं मालूम और तुम्हे मालूम है कि मैंने मुकदमा वापिस ले लिया।
   'कैसी बात करती हैं मिसेज मारया? यह बात तो सभी जानते हैं। ठेकेदार की बेटी के जन्मदिन की पार्टी में खुद आपके वकील ने बताया कि वह मुकदमा वापिस लेने के काग़ज़ तैयार कर रहा है। उस पार्टी में थाना, तहसील के अलावा यहाँ के सभी गणमान्य मौजूद थे।
   'आपने जो भी सुना हो कांस्टेबल लेकिन जानलो मैं मुकदमा वापिस नहीं ले रही। वकील अगर ऐसी अफ़वाह फैला रहा है तो मैं उसकी जगह दूसरा वकील खड़ा करूँगी।
   'फिर होटल कैसे बेचेंगी?
   'मैं होटल भी नहीं बेच रही हूँ।
   कांस्टेबल हँसने लगा। 'सिर उठाकर अपने होटल का साइनबोर्ड तो देखो मिसेज मारया।
   साइनबोर्ड पर 'हिलक्वीन में आपका स्वागत है के नीचे 'होटल बिक रहा है और आगामी सूचना तक यह बंद है--प्रोपराइटर श्रीमती मारया डिसूजा लिखा हुआ था।
   साइनबोर्ड के नीचे लिखी इबारत पढ़ते ही मारया को लगा जैसे एक डूबते जहाज में उसका सबकुछ डूब रहा हो और वह उसे बचाने के लिए पागलों की तरह उफनते हुए समुæ के किनारे दौड़ रही हो। उसने उछलकर साइनबोर्ड के अक्षरों तक पहुँचना चाहा। कर्इ बार कोशिश करने पर भी वह उस तक नहीं पहुँच सकी। 
   'बेकार है, कांस्टेबल ने कहा, 'आप वहाँ तक नहीं पहुँच सकती। अगर पहुँच भी गर्इ तो इबारत को नहीं मिटा सकती। वह सफेदे से लिखी हुर्इ है।
   मारया फिर से पत्थर पर बैठ गर्इ। उसने हाँफते हुए कहा, 'मेरी बात सुनों कांस्टेबल। चाहो तो यहाँ भी सुन सकते हो और मैं अपनी बात कहने के लिए थाने भी जा सकती हूँ। मेरा होटल छीनने की साजिश की जा रही है।
   कांस्टेबल बीड़ी फेंक कर उसके पास ही पत्थर पर बैठ गया। उसने शकित के प्रतीक अपने डंडे को घुटनों के बीच फँसाया और बोलने की दिक्कत से बचने के लिए ओवरकोट के ऊपरी दो बटन खोले और खंखारकर बोला, 'पंæह साल पहले जब मैं यहाँ पहली पोसिटंग पर आया था और जब तक मेरे खाने का पुख्ता इंतजाम नहीं हुआ था, मैं अकसर हिलक्वीन में खाना खाता था। तब आज के मुकाबले परतनपुर एक छोटी-सी पहाड़ी जगह थी और यहाँ नए भर्ती पुलिसवाले के लिए पैसे कमाने की गुंजाइश नहीं के बराबर थी। कर्इ मर्तबा ऐसा होता कि मेरी जेब खाली रहती, तब मैं उधार खाना खा लेता। चूंकि आप उधार का हिसाब किसी रजिस्टर में नहीं लिखती थी और जैसी कि पुलिसवालों की आदत होती है, मैं उधार अदा करना भूल जाता था। आपने भी उधार का कभी तगादा नहीं किया। शायद आप एक व्यापारी औरत की जगह माँ ज्यादा थी। इस तरह मैंने आपका नमक खाया है और इस नाते मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ।
   'थैंक यू कांस्टेबल, मारया ने आभार प्रकट करते हुए कहा, 'बात यह है कि ठेकेदार नसीब सिंह अकेली जानकर हिलक्वीन मुझसे छीनना चाहता है, जिसके लिए वह मुझे कर्इ तरह से परेशान कर रहा है। पहले उसने हिलक्वीन की कुछ जगह हथियार्इ, जिसका मुकदमा चल रहा है। फिर उसने दलाल भेजकर मुझे धमकाया। वह अफवाएँ फैला रहा है और अफवाएंँ कितनी घातक होती हैं, इसे वही जान सकता है जिसके खिलाफ उन्हें फैलाया जाता है....और अब होटल का साइनबोर्ड तो तुम देख ही रहे हो, बलिक इसके बारे में तो तुमने ही मुझे बताया। यही वजह है कि मेरे होटल में गाहक नहीं आ रहे। वरना ऐसा कभी नहीं हुआ कि होटल में कभी कोर्इ गाहक न आया हो, मौसम चाहे कैसा भी रहा हो....बता नहीं सकती कि मैं कितनी दहशत में हूँ....
   'वक्त की बात है मिसेज मारिया। कांस्टेबल ने कहा, 'तब आपके होटल का परतनपुर में नाम था। घरेलु होटल, जहाँ अपनेपन से पहाड़ी खाना खिलाया जाता। वाह! क्या खाना होता था। आप यहांँ की एक सम्मानित महिला थीं, जिसे यहाँ का हर आदमी सलाम करता था। उन दिनों नसीब सिंह छोटे स्तर पर शराब की तस्करी करता था। वह शातिर और चालाक बदमाश था। उसने  थाने की नींद उड़ रखी थी। कमबख्त माल के साथ पकड़ में ही नहीं आता था। लेकिन बिल्ली के राज में चूहा कब तक खैर मना सकता है। मैं झूठी शान नहीं बघार रहा। इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं। यह लोकल पेपरों में छपा था, जिन की कटिंगें अब तक मेरी फाइल में हैं, आप चाहें तो उन्हें देख सकती हैं। मुखबिर की सूचना पर वह पकड़ ही लिया गया। जनाब उसे आपके इस सेवक ने ही पकड़ा था। और फिर मैंने उसकी इतनी धुनार्इ की कि उसका गरम पैजामा गीला हो गया, जो उसने कबाड़ी बाजार से खरीदा था। मेरा ख़याल है इसी डंडे से जो इस बखत मेरे हाथ में है। कांस्टेबल ने कहा और अभिमान से अपना डंडा हवा में लहराया और उसकी तेल पिलार्इ सतह धूप में चमकने लगी। 
   मरया डिसूजा ने राहत की साँस ली। 'चलो, कोर्इ तो है जो नसीब सिंह की असलियत जानता है....वह भी एक पुलिसवाला जिसके जिम्मे व्यवस्था बनाए रखना है।
   'हाँ, लेकिन यह पंæह साल पहले की बात है। कांस्टेबल ने कहा। उसने बीड़ी ढूँढने के लिए एक बार फिर अपनी जेब टटोली। शायद निराशाजनक समय होने की वजह से जेब में कोर्इ बीड़ी नहीं थी या यह भी हो सकता है कि मारिया डिसूजा की एकदम बगल में बैठे होने की वजह से नमक के सम्मान में, उसने बिड़ी पीने का इरादा बदल दिया हो। 
   'क्या मतलब? डिसूजा ने कहा और उसके डंडे की ओर देखा। वह एकदम निर्विकार था जैसे उसे कभी मार-पीट के लिए इस्तेमाल ही न किया हो। सहसा उसे लगा कि संभवत: अपनी सार्वभौम निरपेक्षता के लिए यह पुलिस को पहले हथियार के रूप में दिया जाता है।
   'दो साल यहाँ रहने के बाद मेरी बदली हो गर्इ। दस साल बाद मैं फिर परतनपुर के इसी थाने में अपनी पुराने पद पर लौट आया। मुझे उम्मीद है कि मैं जल्दी ही दीवान या हैड कास्टेबल बना दिया जाऊँगा। मेरा रिकार्ड अच्छा है और चरित्र बेदाग़ है, जैसा अमूमन हर कांस्टेबल का नहीं होता। इसके अलावा मेरी गोपनीय रिपोर्ट में यह दर्ज है कि मैंने दारू के तस्कर को पकड़ा था, जो पकड़ा नहीं जाता था। हाँ, तो यहाँ आने के बाद एक बार फिर मुझे हथियार के रूप में वही डंडा मिल गया, जिसे मैं यहाँ से जाते हुए माल गोदाम में जमा कर गया था, जो इस बखत मेरे हाथ में है और जिससे मैंने कभी नसीब सिंह की ऐसी कुटम्मस की थी कि उसका पैजामा गीला हो गया था। कांस्टेबल से कहा और उसने मूँछाें पर ताव देते हुए डंडे को जमीन पर खटखटाया। 
   'मैं र्इशू से दुआ करूँगी कि तुम जल्द से जल्द हैड कांस्टेबल बन जाओ और इस डंडे का न्याय पूर्वक इस्तेमाल कर सको। मारया ने दुआ के लिए हवा में अपना हाथ उठाया।
   'वही तो मैं आपको बताने जा रहा हूँ। डंडे के न्याय पूर्वक इस्तेमाल की बात। दस साल बाद लौटने पर मैंने पाया कि परतनपुर पूरी तरह बदल गया है। नसीब सिंह शराब ठेकेदार हो गया। परतनपुर का सबसे ताकतवर और सम्मानित। हिन्दु उद्धार संध का प्रमुख ध्वजाधारक और महान आर्य संस्कृति का पोषक। यह डंडा, जिसने कभी....अब उसकी हिफाजत के लिए है। यह तो आप जानती ही होंगी कि पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ने के साथ सम्मानित लोगों की हिफाजत करना भी है।
   'तो यह है तुम्हारे पतन की कहानी। मारया का चेहरा घृणा से तिड़क गया।
   'पतन की!, कांस्टेबल हँसा, 'यह ताकत का सम्मान है। जानती हैं? वह थाने को हर महीने बंधी रकम और बोतलें देता है। बस, हमें समझ मेंं आ गया कि शराब की तस्करी, जिसे अब वह नहीं उसके आदमी करते हैं, एक सेवाभाव है। अगर मैं कुछ गलत कह रहा होऊँ तो आप मेरा कान पकड़ सकती हैं। Ñपया अपने दिल पर हाथ रख कर मेरी बात पर गौर करें। पहाड़ी आदमी रोटी के बिना रह सकता है, दारू के बिना नहीं रह सकता। उन तक दारू पहुँचाना जो ठेके पर नहीं आ सकते अपराध माना जाएगा या पुण्य का काम माना जाएगा। फैसला मैं आप पर छोड़ता हूँ।
   'तुम एक बिके हुए आदमी हो कांस्टेबल लेकिन मैं फिर भी तुम्हारे लिए र्इशू से प्रार्थना करूँगी की वह तुम्हे माफ करे... मारया ने कहा और उठने के लिए घुटने पर हाथ रखे।
   'ठहरिए मिसेज मारया। गश्त पर होने के बावजूद मैं रुक कर आपसे बातें कर रहा हूँ तो इसका मतलब है कि मैं आपको तफसील से कुछ ऐसा बताना चाहता हूँ जो आपके काम आ सके।
   मारया उठते उठते फिर बैठ गर्इ। उसने एक बार साइनबोर्ड पर निगाह डाली और फिर कांस्टेबल के डंडे को देखने लगी।
   'और इस बीच आपका कारोबार मंदा हो गया। आप बदले वक्त को नहीं समझ सकींं। वक्त बदल रहा था और वक्त के साथ लोगों की खान-पान की रुचियाँ बदल रही थी। आप पहाड़ी की पहाड़ी ही रही और आपका होटल वही पहाड़ी खाना परोसता रहा। और फिर मुकदमा। उसने आपको इतना गरीब बना दिया कि गहने तक....और हाल ही में जब आप अपनी खिड़की से गिरजाघर देख रही थी और अपने होटल के भविष्य के बारे में इतनी बेचैन थीं कि उस बेचैनी में नाक से फिसलकर चश्मा गिरा और टूट गया।
   'और मैं उसे बनवा नहीं सकी... मारया ने हँसते हुए कहा, 'अच्छी जासूसी कर लेते हो....मुझे लगता है कि परतनपुर का हर आदमी ठेकेदार का जासूस है। लेकिन तुम्हारी जासूसी फेल हो गर्इ....चश्म ऐसे नहीं टूटा था।
   कांस्टेबल हड़बड़ा गया। 'खैर, उसने सड़क पर डंडा खटखटाते हुए कहा, 'असली मुíा यह है ककि ठेकेदार आपके होटल के दाएँ और बाएँ बाजू की ज़मीन खरीद चुका है। मालिक जमीन नहीं  बेचना चाहते थे, लेकिन उन्होंने बेच दी। मगरमच्छ से तो बैर नहीं कि जा सकता, जब नदी के किनारे रहना हो। वह यहाँ एक थ्री स्टार होटल खोलना चाहता है। जाहिर है थ्री स्टार होटल से परतनपुर का चेहरा बदल जाए। नगर के सभी गणमान्यों का उसे समर्थन है और हुकूमत उसका साथ दे रही है। लेकिन बीच में आपका होटल...
   'उसने अपना दलाल मेरे पास भेजा था।
   'यह उसका बड़प्पन है कि उसने दलाल आपके पास भेजा वरना उसके पास तो और भी बहुत से रास्ते थे।
   'कौन से रास्ते? क्या वह होटल छीनने के लिए....
   'मुमकिन है... कांस्टेबल ने सहजभाव से सिर हिलाया।
   'सुनो कांस्टेबल और गौर से सुनों। मैंने बयाना नहीं लिया और होटल बेचने से इनकार कर दिया।
   'क्या कह रही मिसेज मारया? बयाना तो आप ले चुकी हैं।
   क्या कहा? बयाना ले चुकी। वाह!
   आपने दलाल से कहा, जमाना खराब है। इतनी रकम नगद लेना ठीक नहीं रहेगा। वह इसे आपके बैंक के खाते में जमा करा दे और उसने यह रकम वहाँ जमा करादी है। परतनपुर में सब जगह यही चर्चा है कि बयाना लेने के बाद आप होटल बेचने से मुकर गर्इ। आपके कारण सारा र्इसार्इ समाज डरा हुआ है और उसकी गरदन शर्म से झुक गर्इ है। मैंने सुना तो मेरी आत्मा को बहुत क्लेश हुआ मिसेज मारया। मैं सचमुच आपकी बहुत इज्जत करता हूँ।
 मारया का चेहरा भय से पीला पड़ गया। उसने कुछ कहना चाहा लेकिन उसे लगा कि उसके होंठों में शब्द जम गए हैं और वह शब्दहीन हो गर्इ है।
   कांस्टेबल खड़ा हो गया और सम्मान से सिर झुकाते हुए बोला, 'यकीन मानिए जब मैं वर्दी में नहीं होता तो मेरे पास एक दूसरी आत्मा होती है और वह आपके लिए बहुत छटपटाती है। आप समझती हैं न बिना वर्दी के पुलिसवाले के पास कोर्इ ताकत नहीं होती और तब अगर आप किसी मुसीबत में हैं तो मैं आपकी मदद नहीं कर सकता।
   'चलो, कोर्इ तो है जिसकी आत्मा में मेरे लिए दर्द है, भले ही वह मेरी कोर्इ सहायता न कर सके। अगर तुम्हारी बात सच हुर्इ तो मैं जालसाजी के मामाले में बैंक को भी अदालत में खड़ा करूँगी।
   'लेकिन, माफ करिए मिसेज मारया आप अपने बेटे विक्टर को किस अदालत में खड़ा करेंगी? जहाँ तक मेरी जानकारी है, दलाल उससे बात कर चुका है। वह भी चाहता है कि आप होटल बेच दें। और चाहेगा क्यो नहीं जब जमाना ही ऐसा है कि हर आदमी ऐश की जिन्दग़ी जीना चाहता है। वह कार में क्यों नहीं घूमना चाहेगा? मुमकिन है उसकी सलाह पर ही दलाल ने....वह अगले महीने आ रहा है और तब तक यहीं रह कर आप पर दबाव डालेगा जब तक रजिस्ट्री नहीं हो जाती। मेरा सुझाव है कि....अच्छा छोडि़ए....बस इतना याद रखिए कि मेरी हमदर्दी सदा आपके साथ है। उसने हाथ हिलाया और सड़क पर डंडा खटखटाते हुए गश्त पर निकल गया।
   मारया हिलक्वीन के साइनबोर्ड के नीचे पत्थर पर चुपचाप बैठी कांस्टेबल के डंडे की खटखटाहट सुनती रही जो पहाड़ की निदोर्ंष शांंित को काठ के कीड़े की तरह कुतर रही थी। आवाज़ विलीन होने के बहुत देर बाद भी वह उसके कानों में गूँजती रही। सहसा उसे दलाल के शब्द याद आए--क्या आप सचमुच सोचती हैं कि अकेली नहीं हैं? तब वह उसके आशय को समझी ही नहीं थी। अब समझ रही है। दलाल विक्टर से बात कर चुका होगा और उसकी सहमति के बाद ही उसने उसे बयाना देने और धमकाने की हिम्मत की। एकाएक उसकी समझ में नहीं आया कि उसका सबसे बड़ा दुश्मन कौन है, ठेकेदार या उसका बेटा विक्टर और उससे हिलक्वीन कौन छीनना चाता है?
   विक्टर चार साल का था जब डेविड दुनिया से चला गया था। हिलक्वीन ने ही तब पिता बनकर उसकी परवरिश की और इस योग्य बनाया कि वह इस दुनिया में अपने पैरों पर खड़ा हो सके। बाज़ार की चकाचौध क्या सबकुछ को अंधा कर देती है। उसने अपनी छाती पर सलीब बनाया, 'प्रभु मैं विक्टर को माफ नहीं कर सकती। लेकिन तू उसे माफ़ करना।
   वह घुटनों पर हाथ रखकर उठी।
   उसकी आँखों के सामने वह छोटी-सी चढ़ार्इ थी, जिसे हिलक्वीन तक पहँुचने के लिए पार करना था। एक बारगी उसे लगा कि वह अंतिम बिंदू तक टूट गर्इ है और वह इस चढ़ार्इ को कभी पार नहीं कर सकेगी और दूसरे ही क्षण उसने महसूस किया कि सारे भरोसे टूट जाने के बाद वह एक अबूझ शकित से भी गर्इ है और वह कैसी भी दुर्गम चढ़ाइयों को दौड़ते हुए पार कर सकती है।


बहादुर हिलक्वीन के दरवाज़े पर खड़ा उसका इंतजार कर रहा था। मारया के लौटने में देर होने के कारण आशंका का बादल उसके चेहरे पर फैला हुआ था। उसे देखते ही वह बादल छंटा और उसके होंठों पर एक भोली मुस्कान बिखर गर्इ। घुप्प अंधेरी रात में अनायास प्रकाश की किरण की तरह।
   और जैसे ही मारया ने हिलक्वीन के भीतर क़दम रखा वैसे ही दरवाज़े के ऊपर टंगी सिंगिंग बेल बजने लगी....

Wednesday, January 21, 2015

दुश्मनों से दोस्ती

दुश्मनों से दोस्ती होने लगी है ;
गहन मेरी चौकसी होने लगी है।

ज़िन्दग़ी के नाज़ उठाने लगे हैं आप;
बात चलो काम की होने लगी है ।

हाँफ़ने लगी थी अब मेरी निगाह भी;
शुक्र है कि भोर सी होने लगी है ।

हो गये हैं कान चौकन्ने से और भी;
मुखर जब से खामुशी होने लगी है ।

खटकने लगी है ग़म को बात ये साहिल;
ख़ुशी से जो वाकिफ़ी होने लगी है ।

                          प्रेम साहिल



   प्रेम साहिल पंजाबी के कवि है. उनकी यह रचना मुझे उनके द्वारा ही वाट्सअप पर संदेश रूप में प्राप्त हुई. निशचित लिप्यांतरण और अनुवाद प्रेम साहिल ने खुद किया होगा.




Saturday, January 17, 2015

फेसबुक तो एक युक्तिभर है





यह उल्‍लेखनीय है कि इन्‍टरनेट तकनीक ने कविता, कहानी, उपन्‍यास, यात्रा वृतांतों के साथ साथ साहित्‍य की कई दूसरी नयी विधाओं की संभावनाओं के भी द्वार खोले हैं। ये नयी विधाऐं न सिर्फ माध्‍यम के अनुकूल साबित हो रही है बल्कि उनमें अभिव्‍यक्ति का ऐसा संदेश भी है जो माहौल में ताजगी भरने वाला है। उसे और ज्‍यादा आत्‍मीय बनाता हुआ। गतिविधियों में पारदर्शिता बरतता हुआ और जनतांत्रिक स्थितियों के लिए माहौल गढ़ता हुआ। ये नयी विधाऐं अभी अपनी इतनी शैशव अवस्‍था में हैं कि उनका नामकरण भी नहीं किया जा सकता। हालांकि उस तरह के प्रयास भी इन्टरनेट के जरिये संभव हैं। ये नयी विधाऐं जो एक हद तक अपना आकार बनाती हुई हैं, उनमें एक है खुद का खुद से ही साक्षात्‍कार। इसके प्रणेता के तौर पर हिन्‍दी कथाकार रमेश उपध्‍याय का नाम उल्‍लेखनीय है और दूसरी अभी हाल ही में शुरू हुई लेकिन माध्यम के लिए ज्‍यादा अनुकूल साबित होती हुई अनिल जनविजय की फोटो प्रश्‍नावलियां। दिलचस्‍प है कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’जैसी बाजारू प्रतियोगतिओं में दिल थाम कर हिस्‍सा लेने वाले प्रतियोगियों का एक एक क्षण वाला विचित्र मनोरंजन नहीं बल्कि संदर्भ विशेष को ज्‍यादा से ज्‍यादा विस्‍तार देते प्रतियोगियों का बेहिचक प्रवेश इस प्रतियोगिता की खूबी की तरह है जो इसे स्‍वस्‍थ मनोरंजक स्थितियों के लिए जरूरी बनाता जा रहा है। अन्‍य बहुत सी विधायें जो बिखरे बिखरे से रूप में होती हैं, उनको याद करूं तो जगदीश्‍वर चतुर्वेदी, चौखम्‍बा ब्‍लाग वाले द्विवेदी जी, अशोक पाण्‍डे, प्रभात रंजन, संज्ञा पाण्‍डे, शिरीष कुमार मौर्य, यादवेन्‍द्र, सुजाता तेबतिया, नूर अहमद, नील कमल, राकेश रोहित, आशुतोष, आशुतोष सिंह, तेजिन्दर, महेश पुनेठा, अजित साहनी,  शीमा असलम, संध्राया नवोदिता, ताराशंकर, अनुराग मिश्रा  रामजी तिवारी, बोधिसत्‍व और भी कई मित्रों की पोस्‍टों से कभी कभी उभरती है। अरे हां एक शख्‍स का जिक्र तो छूट ही गया, वह आजकल किताबों के दिलचस्‍प किस्‍सों के साथ हैं- सूरज प्रकाश। तकनीक से परहेज करने वाली हिन्‍दी की एक ऐसी जमात है जिसे इन्‍टरनेट की यह सब सकारात्‍मकता देखनी चाहिए और सिर्फ चलताऊ तरह से ‘फेसबुकिया’ कहने से बचना चाहिए। फेसबुक तो तकनीक के भीतर एक छोटी सी जगह है और ज्‍यादा सहजता से कहने का प्रयास करूं तो उसे एक युक्ति माना जा सकता है। टिविटर, ब्‍लाग और वेबसाइटें आदि और भी कई युक्तियां हैं जो एक तकनीक का हिस्‍सा भर है।